अल-अक्सा मस्जिद और शेख जर्राह
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इज़रायली सशस्त्र बलों ने यरुशलम में ज़ायोनी राष्ट्रवादियों द्वारा वर्ष 1967 में शहर के पूर्वी हिस्से पर इजरायल के कब्जे को स्मरण करते हुए निकाले जाने वाले मार्च से पहले येरुशलम के हरम अस-शरीफ में अल-अक्सा मस्जिद पर हमला कर दिया।
- शेख जर्राह के निकट पूर्वी यरुशलम से दर्जनों फिलिस्तीनी परिवारों को निष्कासित किये जाने की धमकी ने संकट को और बढ़ा दिया।
- ज़ियोनिज़्म (Zionism) एक विश्वव्यापी यहूदी आंदोलन है जिसके परिणामस्वरूप इज़रायल राज्य की स्थापना और इसका विकास हुआ तथा वर्तमान में यह एक यहूदी मातृभूमि के रूप में इज़रायल का समर्थन करता है।
प्रमुख बिंदु
अल-अक्सा मस्जिद:
- यह इस्लाम में आस्था रखने वालों के लिये सबसे पवित्र संरचनाओं/भवनों में से एक है। यह 35 एकड़ के स्थल- जिसे मुस्लिमों द्वारा हरम अल शरीफ या पवित्र पूजा स्थल (Noble Sanctuary) तथा यहूदियों द्वारा टेम्पल माउंट (Temple Mount) के रूप में जाना जाता है, में स्थित है।
- यह स्थल पुराने शहर यरुशलम का हिस्सा है, जिसे ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों के लिये पवित्र माना जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी की शुरुआत में पूर्ण हो चुका था और इसके सामने ‘डोम ऑफ द रॉक’ नामक स्वर्ण-गुंबद वाला इस्लामी स्थल स्थित है जो यरुशलम की मान्यता का प्रतीक है।
- ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन' (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO ने यरुशलम के पुराने शहर और इसकी दीवारों को विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) के रूप में वर्गीकृत किया है।
यरुशलम को लेकर संघर्ष:
- यरुशलम इज़रायल-फिलिस्तन के मध्य संघर्ष का मुख्य केंद्र रहा है। वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र ( United Nations- UN) की मूल विभाजन योजना के अनुसार, यरुशलम को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर (International City) के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
- परंतु वर्ष 1948 के प्रथम अरब इज़रायल युद्ध में इज़रायलियों ने शहर के पश्चिमी आधे हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया और जॉर्डन ने पुराने शहर सहित पूर्वी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जिसमें हरम अस-शरीफ का निवास भी शामिल था।
- वर्ष 1967 में अरब-इज़रायल युद्ध के छह दिनों की समयावधि में इजरायली सेना ने सीरिया से गोलन हाइट्स, जॉर्डन से वेस्ट बैंक तथा पूर्वी यरुशलम को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया।
- इसके बाद इज़रायल ने पूर्वी यरुशलम में बस्तियों का विस्तार किया।
- इज़रायल पूरे यरुशलम शहर को अपनी "एकीकृत, शाश्वत राजधानी" (Unified, Eternal Capital) के रूप में देखता है, जबकि राजनीतिक परिदृश्य में फिलिस्तीनियों के नेतृत्व ने इस बात को सुनिश्चित कर दिया है कि वे भविष्य के फिलिस्तीनी राज्य हेतु किसी भी समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे जब तक कि पूर्वी यरुशलम को उसकी राजधानी के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है।
शेख जर्राह का मुद्दा:
- वर्ष 1948 में जब ऐतिहासिक फिलिस्तीन में इज़रायल राज्य का निर्माण हुआ, तो हज़ारों फिलिस्तीनयों को उनके घरों से ज़बरन बेदखल कर दिया गया था।
- बेदखल किये गए इन फिलिस्तीनियों के 28 परिवार बसने के लिये पूर्वी यरुशलम में स्थित शेख जर्राह चले गए।
- वर्ष 1956 में जब पूर्वी येरुशलम पर जॉर्डन का शासन था, जॉर्डन के निर्माण और विकास मंत्रालय तथा संयुक्त राष्ट्र राहत और निर्माण एजेंसी द्वारा शेख जर्राह में इन परिवारों को घरों के निर्माण करने हेतु सहायता उपलब्ध कराई गई लेकिन वर्ष 1967 में इज़रायल द्वारा जॉर्डन के पूर्वी यरुशलम पर कब्ज़ा कर लिया गया।
- 1970 के दशक के शुरुआती दौर में यहूदी एजेंसियों (Jewish Agencies) द्वारा इन परिवारों से ज़मीन छोड़ने की मांग करना शुरू कर दी गई।
- वर्ष 2021 की शुरुआत में पूर्वी यरुशलम के केंद्रीय न्यायालय ने यहूदी एजेंसियों के पक्ष में अपने निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें न्यायालय ने चार फिलिस्तीनी परिवारों को शेख जर्राह से बेदखल होने के पक्ष में निर्णय दिया था।
- यह समस्या अभी भी अनसुलझी है जो गंभीर बनी हुई है।
इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत का रुख:
- भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को मान्यता दी थी लेकिन भारत फिलिस्तीन को फिलिस्तीन मुक्ति संगठन ( Palestine Liberation Organisation- PLO) में एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश भी है।
- भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले पहले देशों में से एक है।
- वर्ष 2014 में भारत ने गाजा क्षेत्र में इज़रायल के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांँच हेतु संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (The United Nations Human Rights Council- UNHRC) के प्रस्ताव का समर्थन किया। जांँच का समर्थन करने के बावजूद, वर्ष 2015 में UNHRC में भारत ने इजरायल के खिलाफ मतदान नहीं किया।
- वर्ष 2018 में लिंक वेस्ट पॉलिसी के रूप में भारत ने दोनों देशों (इज़रायल और फिलिस्तीन) के साथ परस्पर स्वतंत्र और अनन्य व्यवहार करने हेतु अपने संबंधों को डी- हाइफनेटेड (De-Hyphenated) किया गया है।
- जून 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद में इज़रायल द्वारा प्रस्तुत किये गए एक निर्णय के पक्ष में मतदान किया, जिसमें एक फिलिस्तीनी गैर-सरकारी संगठन (Palestinian Non-Governmental Organization) को सलाहकार का दर्जा देने पर आपत्ति जताई गई थी।
- अभी तक भारत द्वारा फिलिस्तीन की स्वतंत्रता में अपने ऐतिहासिक नैतिक समर्थक की छवि को बनाए रखने की कोशिश की गई है साथ-ही-साथ इज़रायल के साथ सैन्य, आर्थिक और अन्य रणनीतिक संबंधों में संलग्न होने का प्रयास किया गया है।
संबंधित गतिविधियाँ:
- मार्च 2021 में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court- ICC) ने इज़राइल (वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी) के कब्जे वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में युद्ध अपराधों की जाँच शुरू की।
- अप्रैल 2021 में अमेरिका ने फिलिस्तीनियों को कम-से-कम 235 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई है।
आगे की राह:
- विश्व को एक बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण समाधान हेतु एक साथ आने की ज़रूरत है लेकिन इज़रायल सरकार तथा अन्य शामिल दलों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक बढ़ा दिया है। एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों के सहित इज़राइल के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखने में मददगार साबित होगा।
- इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान तथा मोरक्को के मध्य हालिया सामान्यीकरण समझौते, जिन्हें अब्राहम समझौते (Abraham Accords) के रूप में जाना जाता है, इस दिशा में एक सही कदम है। सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम समझौते की तर्ज़ पर दोनों देशों के मध्य शांति की परिकल्पना करनी चाहिये।