प्रिलिम्स फैक्ट: 05 अक्तूबर, 2021 | 05 Oct 2021
फिजियोलॉजी/मेडिसिन के लिये ‘नोबेल पुरस्कार’ (2021)
Nobel Prize for Physiology/Medicine, 2021
हाल ही में अमेरिका के दो वैज्ञानिकों- ‘डेविड जूलियस’ और ‘अर्डेम पटापाउटियन’ को तापमान एवं स्पर्श के लिये रिसेप्टर्स की उनकी खोजों हेतु फिजियोलॉजी/मेडिसिन के क्षेत्र में ‘नोबेल पुरस्कार’ (2021) से सम्मानित किया गया है।
- उनका कार्य मुख्य तौर पर ‘सोमाटोसेंसेशन’ यानी आँख, कान एवं त्वचा जैसे विशेष अंगों की देखने, सुनने और महसूस करने की क्षमता पर केंद्रित है।
प्रमुख बिंदु
- खोज के विषय में:
- डेविड जूलियस:
- उन्होंने ‘TRPV1’ की खोज की, जो कि एक हीट-सेंसिंग रिसेप्टर है।
- तापमान को लेकर त्वचा के सेंस पर डेविड जूलियस के निष्कर्ष इस प्रयोग पर आधारित थे कि कुछ कोशिकाएँ ‘कैप्साइसिन’ पर किस प्रकार प्रतिक्रिया करती हैं। ‘कैप्साइसिन’ ही वह अणु है जो मिर्च को उसका स्वाद देता है।
- अर्डेम पटापाउटियन
- उन्होंने दो यंत्र संवेदी आयन चैनलों की खोज की है, जिन्हें ‘पीज़ो’ (Piezo) चैनल के नाम से जाना जाता है।
- ‘पीज़ो-1’ नाम ग्रीक शब्द 'Píesi' से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘दबाव’ से है।
- उन्हें सेलुलर तंत्र और अंतर्निहित जीन को खोजने का श्रेय दिया जाता है, जो हमारी त्वचा पर एक यांत्रिक बल को विद्युत तंत्रिका संकेत में परिवर्तित करता है।
- उन्होंने दो यंत्र संवेदी आयन चैनलों की खोज की है, जिन्हें ‘पीज़ो’ (Piezo) चैनल के नाम से जाना जाता है।
- डेविड जूलियस:
- महत्त्व:
- इन निष्कर्षों ने हमें यह समझने की अनुमति दी है कि किस प्रकार गर्मी, ठंड और यांत्रिक बल तंत्रिका आवेगों को प्रारंभ कर सकते हैं, जो हमें अपने आसपास की दुनिया को देखने और अनुकूलित करने की अनुमति देते हैं।
- इस ज्ञान का उपयोग पुराने दर्द सहित कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिये किया जा रहा है।
नोट
- ‘सोमाटोसेंसेशन’ त्वचा और कुछ आंतरिक अंगों में तंत्रिका रिसेप्टर्स के माध्यम से पहचाने जाने वाले स्पर्श, तापमान, शरीर की स्थिति और दर्द की संवेदनाओं के लिये एक सामूहिक शब्द है।
- इसमें ‘मैकेनोरसेप्शन, थर्मोरेसेप्शन, प्रोप्रियोसेप्शन’ जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
- ‘मैकेनोसेंसिटिव’ महत्त्वपूर्ण प्रोटीन हैं, जो सेंसर और प्रभावकारक दोनों के रूप में काम करने में सक्षम हैं।
- झिल्लियों में एम्बेडेड ‘मैकेनोसेंसिटिव’ यांत्रिक उत्तेजनाओं जैसे- तनाव और वक्रता को विद्युत या जैव रासायनिक संकेतों में परिवर्तित करते हैं, जिससे अनुकूली प्रतिक्रिया की अनुमति मिलती है।
नोबेल पुरस्कार के विषय में
- स्वीडिश वैज्ञानिक ‘अल्फ्रेड नोबेल’ की वसीयत के माध्यम से वर्ष 1895 में पाँच श्रेणियों में नोबेल पुरस्कारों की स्थापना की गई थी।
- नोबेल पुरस्कार, नोबेल फाउंडेशन द्वारा रसायन विज्ञान, साहित्य, शांति, भौतिकी और फिजियोलॉजी/मेडिसिन के क्षेत्रों में दिये जाने वाले पुरस्कारों का एक समूह है।
- ‘नोबेल फाउंडेशन’ वर्ष 1900 में स्थापित एक निजी संस्थान है, जिस पर ‘अल्फ्रेड नोबेल’ की वसीयत को पूरा करने का अंतिम दायित्व है।
- रसायन विज्ञान, साहित्य, शांति, भौतिकी और फिजियोलॉजी/मेडिसिन में पुरस्कार पहली बार वर्ष 1901 में प्रदान किये गए थे।
- वर्ष 1968 में ‘स्वेरिजेस रिक्सबैंक’ ने अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में ‘स्वेरिजेस रिक्सबैंक पुरस्कार’ की स्थापना की थी।
भारतीय मोर
Indian Peafowl
हाल ही में केरल में ‘पीफाउल’ (Peafowl) यानी भारतीय मोर ने एक शख्स को टक्कर मार दी, जिसके बाद उसकी मौत हो गई। इस घटना ने केरल में भारतीय मोर की बढ़ती आबादी पर प्रकाश डाला है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय
- ‘पीफाउल’, मोर की विभिन्न प्रजातियों का सामूहिक नाम है। नर मोर को ‘पीकॉक’ (Peacock) कहा जाता है, जबकि मादा मोर को ‘पीहेन’ (Peahen) कहा जाता है।
- मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी भी है।
- ‘पीफाउल’ (पावो क्रिस्टेटस) ‘फासियानिडे’ परिवार से संबंधित है। ये उड़ने वाले सभी पक्षियों में सबसे बड़े होते हैं।
- ‘फासियानिडे’ एक ‘तीतर’ परिवार है, जिसके सदस्यों में जंगली अथवा घरेलू मुर्गी, मोर, तीतर और बटेर शामिल हैं।
- मोर की दो सबसे अधिक पहचानी जाने वाली प्रजातियाँ हैं:
- नीला या भारतीय मोर, जो भारत और श्रीलंका में पाया जाता है।
- हरा या जावाई मोर (पावो म्यूटिकस) म्याँमार (बर्मा) और जावा में पाया जाता है।
- ‘पीफाउल’, मोर की विभिन्न प्रजातियों का सामूहिक नाम है। नर मोर को ‘पीकॉक’ (Peacock) कहा जाता है, जबकि मादा मोर को ‘पीहेन’ (Peahen) कहा जाता है।
- पर्यावास
- भारतीय मोर, मूलतः भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।
- यह प्रजाति वर्तमान में सबसे अधिक मध्य केरल में पाई जाती है, इसके बाद राज्य के दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम हिस्सों का स्थान है।
- वर्तमान में केरल में तकरीबन 19% क्षेत्र इस प्रजाति का आवासीय क्षेत्र है और यह वर्ष 2050 तक 40-50% तक बढ़ सकता है।
- ये मुख्यतः जंगल के किनारों और खेती वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- चिंताएँ
- ये केरल में धान की खेती करने वाले किसानों के लिये एक बड़ा खतरा हैं। ये धान के बीजों को नष्ट कर देते हैं और मानव-पशु संघर्ष का कारण बनते हैं।
- कृषि विस्तार और वनों की कटाई ने जानवरों को 'मानव क्षेत्र पर आक्रमण' करने के लिये प्रेरित किया है।
- मोर की बढ़ती आबादी जलवायु परिवर्तन का भी संकेत देती है। ये शुष्क पारिस्थितिकी में बढ़ने और पनपने के लिये जाने जाते हैं।
- ये केरल में धान की खेती करने वाले किसानों के लिये एक बड़ा खतरा हैं। ये धान के बीजों को नष्ट कर देते हैं और मानव-पशु संघर्ष का कारण बनते हैं।
- संरक्षण स्थिति
- IUCN: कम चिंताजनक
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
श्यामजी कृष्ण वर्मा
Shyamji Krishna Varma
प्रधानमंत्री ने क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की जयंती (4 अक्तूबर) पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
प्रमुख बिंदु
- श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म 4 अक्तूबर, 1857 को गुजरात के कच्छ ज़िले के मांडवी शहर में हुआ था।
- वे संस्कृत और अन्य भाषाओं के विशेषज्ञ थे।
- संस्कृत भाषा के उनके गहरे ज्ञान ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में इस विषय के प्रोफेसर मोनियर विलियम्स का ध्यान आकर्षित किया।
- वह बाल गंगाधर तिलक, स्वामी दयानंद सरस्वती और हर्बर्ट स्पेंसर से प्रेरित थे।
- उन्होंने लंदन में इंडियन होम रूल सोसाइटी, इंडिया हाउस और द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट की स्थापना की।
- इंडियन होम रूल सोसाइटी और इंडिया हाउस ने ब्रिटेन में युवाओं को भारत में अपने ही प्रतिनिधियों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों हेतु प्रेरित करने की दिशा में काम किया।
- भारतीय होम रूल सोसाइटी के माध्यम से उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन की आलोचना की।
- श्यामजी कृष्ण वर्मा बॉम्बे आर्य समाज के पहले अध्यक्ष बने। उन्होंने वीर सावरकर को प्रेरित किया जो लंदन में इंडिया हाउस के सदस्य थे। वर्मा ने भारत में कई राज्यों के दीवान के रूप में भी कार्य किया।
- स्वामी दयानंद सरस्वती हिंदू सुधार संगठन आर्य समाज के संस्थापक थे।
- वह लंदन में बैरिस्टर थे, वर्ष 1905 में उन्हें औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ लेख लिखने के लिये देशद्रोह के आरोप में इनर टेंपल (Inner Temple) द्वारा वकालत पर रोक लगा दी गई थी।
- यह कदम महत्त्वपूर्ण था क्योंकि ऑनरेबल सोसाइटी ऑफ द इनर टेंपल लंदन में बैरिस्टर और जजों के लिये चार पेशेवर संघों में से एक है।
- वर्मा को वर्ष 1909 में इनर टेंपल से हटा दिया गया था। उनकी मृत्यु के कई वर्षों बाद वर्ष 2015 में इस निर्णय पर फिर से विचार किया गया और उन्हें हटाए जाने के निर्णय को सर्वसम्मति से अनुचित माना गया तथा गवर्निंग काउंसिल ने माना कि वर्मा के मामले में "पूरी तरह से निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई" थी।
- अंग्रेज़ों द्वारा आलोचना किये जाने के बाद उन्होंने अपने समस्त कार्य इंग्लैंड से पेरिस स्थानांतरित कर लिये और अपना आंदोलन जारी रखा।
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के बाद वह स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा चले गए और अपना शेष जीवन वहीं बिताया। 30 मार्च, 1930 को उनका निधन हो गया।
टैक्स इंस्पेक्टर विदाउट बॉर्डर्स कार्यक्रम
Tax Inspectors Without Borders Programme
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) तथा आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) ने सेशेल्स में टैक्स इंस्पेक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (TIWB) कार्यक्रम शुरू किया है।
भारत को इस कार्यक्रम के लिये भागीदार प्रशासन के रूप में चुना गया है जो कर विशेषज्ञता प्रदान किया है।
प्रमुख बिंदु
- TIWB के बारे में:
- अगले 12 महीनों के दौरान भारत का लक्ष्य सर्वोत्तम ऑडिट प्रथाओं को साझा करते हुए अपने कर लेखा परीक्षकों की तकनीकी जानकारी और कौशल हस्तांतरित करके सेशेल्स के कर प्रशासन को मज़बूत करने में सहायता करना है।
- यह पर्यटन और वित्तीय सेवा क्षेत्रों के स्थानांतरण एवं मूल्य निर्धारण मामलों पर केंद्रित है।
- ट्रांसफर प्राइस, जिसे ट्रांसफर कॉस्ट के रूप में भी जाना जाता है, वह कीमत है जिस पर संबंधित साझेदारों जैसे विभागों के बीच आपूर्ति या श्रम के व्यापार के दौरान एक-दूसरे के साथ लेन-देन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ मुनाफे को कम कर अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के लिये स्थानांतरण कीमतों में हेरफेर कर सकती हैं।
- यह छठा TIWB कार्यक्रम है जिसे भारत ने कर विशेषज्ञता प्रदान करके समर्थन प्रदान किया है।
- भारत के साथ पाँचवाँ TIWB कार्यक्रम जून 2021 में भूटान में शुरू किया गया था।
- टैक्स इंस्पेक्टर विदाउट बॉर्डर्स कार्यक्रम:
- TIWB एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम है।
- यह दुनिया भर में विकासशील देशों की लेखापरीक्षा क्षमता और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अनुपालन को मज़बूत करने के लिये जुलाई 2015 में शुरू की गई एक संयुक्त OECD/UNDP पहल है।
- यह पूरे अफ्रीका, एशिया, पूर्वी यूरोप, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के विकासशील देशों में योग्य विशेषज्ञों को नियुक्ति करता है ताकि ऑडिट, आपराधिक कर जाँच तथा स्वचालित रूप से आदान-प्रदान की गई जानकारी के प्रभावी उपयोग से क्षेत्रों में कर क्षमता का निर्माण किया जा सके।
- TIWB की सहायता से दुनिया के कुछ सबसे कम विकसित देशों में घरेलू संसाधन जुटाने में वृद्धि हुई है।
ड्रोन-आधारित वैक्सीन डिलीवरी मॉडल: i-Drone
Drone-Based Vaccine Delivery Model: i-Drone
हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ड्रोन-आधारित वैक्सीन डिलीवरी मॉडल ‘ड्रोन रिस्पांस एंड आउटरीच इन नॉर्थ ईस्ट’ (i-Drone) नाम से लॉन्च किया है।
- ड्रोन मानव रहित विमान (UA) के लिये एक आम शब्दावली है। मानव रहित विमान के तीन सबसेट हैं- रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट, ऑटोनॉमस एयरक्राफ्ट और मॉडल एयरक्राफ्ट।
प्रमुख बिंदु
- i-Drone के बारे में:
- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने यह सुनिश्चित करने के लिये एक मॉडल तैयार किया है कि जीवन रक्षक टीके सभी तक पहुँचे।
- इसे भारत के कठिन और दुर्गम इलाकों में वैक्सीन वितरण की सुविधा के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- वर्तमान में ड्रोन आधारित वितरण परियोजना को मणिपुर और नगालैंड के साथ-साथ अंडमान और निकोबार द्वीप केंद्रशासित प्रदेश में कार्यान्वयन की अनुमति दी गई है।
- ICMR को आईआईटी-कानपुर के सहयोग से ड्रोन का उपयोग करके कोविड-19 वैक्सीन वितरण की व्यवहार्यता अध्ययन करने की अनुमति दी गई थी।
- महत्त्व:
- यह वर्तमान वैक्सीन वितरण तंत्र में अंतराल को दूर करने में मदद करेगा और इसका उपयोग महत्त्वपूर्ण जीवन रक्षक दवाएँ पहुँचाने, रक्त के नमूने एकत्र करने आदि में किया जा सकता है।
- इस तकनीक का उपयोग गंभीर परिस्थितियों में भी किया जा सकता है। यह स्वास्थ्य देखभाल वितरण, विशेष रूप से कठिन क्षेत्रों में स्वास्थ्य आपूर्ति चुनौतियों का समाधान करने में एक गेम चेंजर साबित हो सकता है।
- ड्रोन का उपयोग करने वाली अन्य परियोजनाएँ:
- तेलंगाना सरकार ने महत्त्वाकांक्षी 'द मेडिसिन फ्रॉम स्काई' के पायलट परीक्षण के लिये 16 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) का चयन किया है, जो अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है।
- अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) को कुछ कृषि विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों के अलावा कृषि अनुसंधान गतिविधियों के लिये ड्रोन तैनात करने की अनुमति दी गई थी।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR)
- जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय एवं संवर्द्धन के लिये भारत का यह शीर्ष निकाय दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है।
- इसका अधिदेश समाज के लाभ के लिये चिकित्सा अनुसंधान का संचालन, समन्वय और कार्यान्वयन करना है; उत्पादों/प्रक्रियाओं में चिकित्सा नवाचार और उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में संलग्न करना।
- इसे भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Department of Health Research, Ministry of Health & Family Welfare) के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है।