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कोरोनावायरस वैक्सीन नीति

  • 12 Jan 2021
  • 10 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में COVID-19 वैक्सीन के विकास और वितरण की चुनौतियों तथा समाधान के साथ इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

हाल ही में भारत सरकार द्वारा एस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) और भारत बायोटेक (कोवैक्सिन) द्वारा निर्मित COVID-19 वैक्सीन के सीमित उपयोग की स्वीकृति दे दी गई है। वर्तमान में अलग-अलग निर्माताओं द्वारा कई अन्य वैक्सीन पर कार्य किया जा रहा है जो संभवतः इसी वर्ष बाज़ार में उपलब्ध होंगी।

हालाँकि भारत को अपनी पूरी आबादी के टीकाकरण की आवश्यकता नहीं होगी परंतु पूरी तरह से हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) विकसित करने के लिये कम-से-कम 30-40% लोगों का टीकाकरण करना होगा।   

गौरतलब है कि अब तक विकसित अधिकांश COVID-19 वैक्सीन के लिये बूस्टर खुराक की आवश्यकता होती है। ऐसे में न्यूनतम स्तर पर भी COVID-19 वैक्सीन की लगभग 1 बिलियन खुराक की आवश्यकता होगी। इसके अतिरिक्त आवंटन, वितरण, वित्तपोषण, संचार आदि जैसे अन्य कारक भी COVID-19 टीकाकरण अभियान के मार्ग की कुछ प्रमुख बाधाएँ हैं।

चुनौतियाँ:  

  • आवंटन: अधिकांश देशों में सबसे पहले स्वास्थ्य कर्मियों का टीकाकरण किया जाएगा क्योंकि COVID-19 से संक्रमित लोगों के इलाज और शेष आबादी के टीकाकरण में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इसके बाद टीकाकरण के लिये बुजुर्गों को प्राथमिकता देना तर्कसंगत लगता है, जिनके मामलों में संक्रमण और मृत्यु दर अधिक रही है।
    • हालाँकि वयस्क की तुलना में एक युवा व्यक्ति की असामयिक मृत्यु अधिक क्षतिकारक हो सकती है। यह भारत के लिये अधिक चिंता का विषय है, क्योंकि इसकी 80% आबादी 50 वर्ष से कम आयु की है।
  • वितरण: वैक्सीन को कंपनियों से गोदामों तक ले जाना अपेक्षाकृत आसान होगा परंतु कोल्ड चेन और भंडारण सुविधाओं से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए इसे गोदामों से वितरकों तथा वितरकों से अंतिम-उपभोक्ता तक ले जाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
  • वित्तपोषण: संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूरोप में इस वैक्सीन को पूरी तरह से निशुल्क तथा सरकारी खर्च पर प्रदान किये जाने की संभावना है।
    • हालाँकि देश की वर्तमान राजकोषीय स्थिति को देखते हुए भारत सरकार को एक बड़ी दुविधा का सामना करना पड़ेगा कि इतने बड़े पैमाने पर टीकाकरण को सरकारी कोष से वित्तीय सहायता दी जानी चाहिये या नहीं।
  • मानव संसाधन:  एक वर्ष में 30-40 मिलियन टीकाकरण (नियमित टीकाकरण अभियान के तहत) की तुलना में इसी अवधि में 600 मिलियन लोगों के टीकाकरण का प्रबंधन बहुत ही कठिन होगा।
    • मौजूदा प्राथमिकताओं को प्रभावित किये बगैर इंट्रामस्क्युलर शॉट्स देने के लिये आवश्यक प्रशिक्षित मानव संसाधन जुटाना आसान नहीं होगा।
  • सार्वजनिक विश्वास:  आशावादी पूर्वाग्रह के कारण भी कई लोगों को टीकाकरण अनावश्यक लगता है। बीमारियों के संदर्भ में बहुत से लोगों को लगता है कि उन्हें इनका बहुत कम जोखिम है।
    • हालाँकि यह व्यवहार COVID-19 जैसी महामारी से लड़ने में घातक साबित हो सकता है।

आगे की राह:  

  • टीकाकरण प्राथमिकता: यदि पूर्व में हुए COVID-19 संक्रमण के कारण किसी व्यक्ति के शरीर में प्रतिरक्षा मौजूद है तो ऐसे में उसके लिये टीकाकरण का सुरक्षात्मक लाभ बहुत सीमित होगा, अतः कार्यशील आयु के बीच वैक्सीन के आवंटन में दो कारकों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये: 
    • COVID-19 एंटीबॉडी के लिये लोगों की जाँच करना और बगैर एंटीबॉडी वाले लोगों को टीकाकरण में प्राथमिकता देना एक बेहतर निर्णय हो सकता है।
    • हर्ड इम्युनिटी के नज़दीक पहुँच चुके क्षेत्रों में बगैर किसी अतिरिक्त प्रतिबंध के भी सामान्य आर्थिक गतिविधियों को पुनः शुरू करने के लिये बहुत ही कम मात्रा में वैक्सीन की आवश्यकता होगी और ऐसे क्षेत्रों में वैक्सीन के उच्च सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलेंगे।
  • वैक्सीन आपूर्ति शृंखला को मज़बूत बनाना: इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (Electronic Vaccine Intelligence Network- eVIN) प्रणाली को बढ़ावा देकर देश के सभी कोल्ड चेन पॉइंट्स पर वैक्सीन स्टॉक और स्टोरेज़ तापमान से संबंधित सभी प्रकार की जानकारियों को  वास्तविक समय में प्राप्त करने की क्षमता विकसित की जा सकेगी।
  • मानव संसाधन की कमी को दूर करना:  मेडिकल छात्रों, फेलोबॉमिस्ट्स, पैरामेडिक्स और फार्मासिस्टों को शामिल कर उन्हें शीघ्रता एवं विश्वसनीयता के साथ टीके लगाने के लिये प्रशिक्षित किया जा सकता है, जो वर्तमान में व्याप्त मानव संसाधन के इस अंतर को पाटने में सहायक होगा।
  • हाइब्रिड वित्तपोषण नीति: भारत को एक हाइब्रिड रणनीति की आवश्यकता होगी, जहाँ अधिकांश आबादी (आर्थिक रूप से कमज़ोर) को सरकारी सहायता के माध्यम से निशुल्क वैक्सीन उपलब्ध कराई जाती है, जबकि आर्थिक रूप से समर्थ लोगों के लिये निजी बाज़ारों को काम करने की अनुमति दी जा सकती है।
  • प्रभावी संचार:  एक अच्छी संचार रणनीति जो COVID-19 वैक्सीन से जुड़े मिथकों को दूर करने की परिकल्पना करती है, में विज्ञान आधारित सूचना, नियमित संचार, पहुँच बढ़ाने के लिये समुदाय के सम्मानित नेताओं का उपयोग करना और गलत सूचना के प्रसार को रोकने जैसे महत्त्वपूर्ण कारकों का शामिल होना आवश्यक होगा।
  • वैक्सीन के प्रमाणन की आवश्यकता: सामान्य गतिविधियों और लोगों को निर्बाध आवाजाही शुरू करने की अनुमति देने के लिये प्रत्येक देश को टीकाकरण के प्रमाण के संदर्भ में ऐसे स्थानीय प्रोटोकॉल की आवश्यकता होगी जिसका दूसरे देशों के मानदंडों के साथ परस्पर समन्वय हो।
    • दूसरे शब्दों में कहें तो भारत या तंज़ानिया में प्राप्त टीकाकरण का प्रमाण पत्र सिंगापुर एयरलाइंस या क्वांटस एयरलाइंस (अमेरिकी) आदि को स्वीकार्य होना चाहिये।
    • इसके लिये एक व्यापक रूपरेखा बनाने में बहुपक्षीय निकायों  की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता होगी जिससे इस रूपरेखा के आधार पर आवश्यक डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किये जा सकें।

निष्कर्ष: 

भारत का COVID-19 वैक्सीन अभियान एक महत्त्वपूर्ण मिशन होगा, यह सिर्फ इसलिये नहीं कि भारत अपनी  इतनी बड़ी आबादी का टीकाकरण करेगा बल्कि भारत विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता होने के कारण विश्व के एक बड़े हिस्से को वैक्सीन उपलब्ध कराएगा। टीकों के विकास और वितरण से जुड़ी चुनौतियों को दूर कर बहुत ही कम समय में लाखों लोगों तक कुशलता से वैक्सीन की पहुँच सुनिश्चित करने के प्रयासों को मज़बूती प्रदान की जा सकेगी।

अभ्यास प्रश्न:  COVID-19 वैक्सीन के विकास और वितरण की प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए समाधान के संभावित विकल्पों पर चर्चा कीजिये।

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