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विब्रियो वुल्निफिकस संक्रमण

  • 27 Sep 2023
  • 5 min read

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

हाल के वर्षों में भारत समुद्री वातावरण में पाए जाने वाले घातक बैक्टीरिया विब्रियो वुल्निफिकस के बढ़ते संक्रमण के कारण चिंतित है। 

  • इसके संभावित खतरे के बावजूद, यह रोगजनक भारत में काफी हद तक कम रिपोर्ट किया गया है।

विब्रियो वुल्निफिकस:

  • परिचय: 
    • विब्रियो वुल्निफिकस एक जीवाणु है जो मनुष्यों में गंभीर संक्रमण उत्पन्न कर सकता है। यह अधपके समुद्री भोजन, विशेषकर सीप खाने से हो सकता है, जिसमें हानिकारक बैक्टीरिया हो सकते हैं।
  • वाहक: 
    • यह सामान्यतः दो मुख्य मार्गों के माध्यम से अनुबंधित होता है: संक्रमित रॉ शैलफिश का सेवन करने से और घावों के दूषित जल के संपर्क में आने से।
      • यह समुद्री जीवों जैसे ईल, डर्बी, तिलापिया, ट्राउट और झींगा के माध्यम से फैलता है।
      • समुद्री जीवों में इसका पहला मामला वर्ष 1975 में जापानी ईल में दर्ज़ किया गया था। मनुष्यों में वी. वुल्निफिकस का पहला मामला वर्ष 1976 में अमेरिका में दर्ज़ किया गया था।
        • यह रोगजनक वर्ष 1985 में आयातित ईल के माध्यम से स्पेन पहुँचा था।
      • वर्ष 2018 में, भारत ने केरल के एक तिलापिया फार्म में वी. वुल्निफिकस के प्रकोप का दस्तावेज़ीकरण किया।
        • मूल रूप से अफ्रीका और पश्चिम एशिया की तिलापिया विश्व स्तर पर सबसे अधिक कारोबार वाली खाद्य मछलियों में से एक है।
  • लक्षण:
    • वी. वुल्निफिकस संक्रमण के लक्षणों में डायरिया, उल्टी, बुखार और, गंभीर मामलों में, माँस खाने से होने वाली बीमारियाँ शामिल हैं जो कुछ ही दिनों में घातक हो सकती हैं।
  • भारत में वी. वुल्निफिकस के पक्ष में पर्यावरणीय कारक: 
    • यह जीवाणु 20°C से ऊपर गर्म जल में पनपता है। भारत की समुद्री सतह का औसत तापमान 28°C इसे एक आदर्श आवास स्थान प्रदान करता है।
      • बढ़ी हुई वर्षा एवं कम तटीय लवणता के साथ जलवायु परिवर्तन, वी. वुल्निफिकस के विकास को और बढ़ावा देता है।
  • परिणाम:  
    • वी.वुल्निफिकस संक्रमण में शीघ्र निदान और उपचार के बावज़ूद भी उच्च मृत्यु दर 15% से 50% तक होती है।
    • वैसी आबादी जो शारीरिक रूप से कमज़ोर है, अर्थात् जो क्रोनिक लीवर रोग, कैंसर, क्रोनिक किडनी रोग और मधुमेह से पीड़ित हैं, में इस रोग का जोखिम बढ़ जाता है। 
    • इस संक्रमण के कारण अंग विच्छेदन (Limb Amputations) करना (शरीर के किसी हिस्से, जैसे हाथ या पैर को शल्यचिकित्सा से हटाना) पड़ सकता है, जिससे यह एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता का विषय बन जाता है।

वैश्विक प्रसार:

  • वी. वुल्निफिकस जोखिम को कम करने के उपाय:
    • स्वास्थ्य देखभाल जागरूकता: यह सुनिश्चित करना चाहिये कि समुद्र तटीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर वी. वुल्निफिकस संक्रमण के जोखिमों से अवगत हों, साथ ही प्रासंगिक लक्षणों वाले रोगियों का परीक्षण किया जाना भी आवश्यक है।
    • पूर्वानुमानित उपकरण: शोधकर्त्ता समुद्री सतह के तापमान और फाइटोप्लांकटन के स्तर की निगरानी के लिये उपग्रह-आधारित सेंसर का उपयोग करके जोखिम-चेतावनी उपकरण विकसित कर रहे हैं, जो बढ़े हुए वी. वुल्निफिकस संक्रमण से जुड़े हैं।
    • जापान में प्रचलित मौसमी खाद्य उपभोग से सीख: जापान में, सीप और मसल्स जैसे समुद्री द्विकपाटी जीवों (Bivalves) का सेवन केवल सर्दियों में किया जाता है, गर्मियों के दौरान इनके सेवन से परहेज़ किया जाता है क्योंकि इस मौसम में बैक्टीरिया का स्तर अधिक होता है। खान-पान का यह अभ्यास संक्रमण के जोखिम को काफी कम कर देता है।
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