भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:मैस्करीन हाई, ग्लोबल वार्मिंग अंतराल, यमन और सोमालिया की विश्व मानचित्र पर अवस्थिति मेन्स के लिये:ग्लोबल वार्मिंग का भारतीय मानसून पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दक्षिणी हिंद महासागर में मैस्करीन हाई (Mascarene High- MH) क्षेत्र की परिवर्तनशीलता पर हुए एक अध्ययन के अनुसार, समुद्र की सतह के तापमान (Sea Surface Temperature- SST) में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- यह अध्ययन ग्लोबल वार्मिंग अंतराल (Global Warming Hiatus- GWH) (1998-2016) की अवधि के दौरान किया गया।
- अध्ययन से प्राप्त परिणाम ऐसे देशों के लिये चिंताजनक हैं जिनकी खाद्य उत्पादन और अर्थव्यवस्था मानसूनी वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर करती है।
- GWH के दौरान दक्षिणी हिंद महासागर में MH के कमज़ोर पड़ने से सोमालिया और ओमान के तट पर अपवेलिंग की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है जो अरब सागर के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने का कारक बन सकता है।
- इसके अलावा इस प्रक्रिया से कृषि उपज प्रभावित हो रही है क्योंकि अतिरिक्त या कम वर्षा, फसलों के लिये हानिकारक होती है।
ग्लोबल वार्मिंग अंतराल:
- ग्लोबल वार्मिंग अंतराल से तात्पर्य एक निश्चित समयसीमा में ग्लोबल वार्मिंग का कम हो जाना या ग्लोबल वार्मिंग की वृद्धि में कमी से है जो विश्व स्तर पर सतह के तापमान में अपेक्षाकृत कम परिवर्तन की अवधि है।
- इस प्रक्रिया के दौरान समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि हो सकती है।
मैस्करीन हाई:
- मैस्करीन हाई (MH) दक्षिण हिंद महासागर में 20° से 35° दक्षिण अक्षांश और 40 ° से 90 ° पूर्वी देशांतर के बीच स्थित एक अर्द्ध-स्थायी उपोष्णकटिबंधीय उच्च दबाव वाला क्षेत्र है।
- यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ से क्रॉस-इक्वेटोरियल पवनें भारत में आती हैं।
- इस उच्च दबाव क्षेत्र के कारण उत्पन्न होने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून भारतीय उपमहाद्वीप मानसून का सबसे मज़बूत घटक है जो संपूर्ण पूर्वी एशिया की वार्षिक वर्षा में लगभग 80 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है।
- यह इस क्षेत्र के एक अरब से अधिक लोगों के लिये एक प्रमुख जलापूर्ति स्रोत भी है। मानसून को कई जलवायु कारक नियंत्रित करते हैं जिनमें से एक MH है।
- इसका नाम मैस्करीन द्वीप समूह के नाम पर रखा गया है, जो हिंद महासागर में मेडागास्कर के पूर्व में मॉरीशस के द्वीपों के साथ-साथ फ्रेंच रियूनियन द्वीपों से मिलकर बना है।
- अफ्रीकी और ऑस्ट्रेलियाई मौसम पैटर्न पर इसका अत्यधिक प्रभाव पड़ने के साथ ही, यह दक्षिण में हिंद महासागर और उत्तर में उपमहाद्वीपीय भू-भाग के मध्य अंतर-गोलार्द्ध परिसंचरण में भी मदद करता है।
मैस्करीन हाई की भूमिका:
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण SST में वृद्धि के परिणामस्वरूप MH और भारतीय भू-भाग के मध्य दाब प्रवणता में कमी आई है।
- दाब प्रवणता में आई कमी ने पश्चिमी हिंद महासागर में निचले स्तर की क्रॉस-इक्वेटोरियल पवनों की तीव्रता को कम कर दिया, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून के आगमन और पूर्वी एशिया में वर्षा प्रभावित हुई है।
आगे की राह:
- पिछले 18 वर्षों के दौरान SST ने मानसून पर अत्यधिक प्रभाव डाला है।
- जलवायु परिवर्तन प्रभाव के जोखिम को कम करने के लिये हीटवेव सहित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और बढ़ते तापमान के कारण बर्फ तथा ग्लेशियर के पिघलने से उत्पन्न होने वाली बाढ़ की स्थिति को रोकने के लिये तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।