न्यायाधीशों की संपत्ति का सार्वजनिक प्रकटीकरण | 03 Apr 2025

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने संकल्प लिया कि उसके सभी न्यायाधीश अपनी संपत्ति का विवरण मुख्य न्यायाधीश के समक्ष सार्वजनिक रूप से घोषित करेंगे, ताकि उसे न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जा सके। यह निर्णय दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आवास पर बड़ी मात्रा में नकदी पाए जाने के बाद लिया गया, जिससे संपत्ति के सार्वजनिक प्रकटीकरण पर विमर्श फिर से शुरू हो गया है।

न्यायाधीशों की संपत्ति के प्रकटीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय:

  • कानूनी स्थिति: न्यायाधीश कानूनी रूप से अपनी संपत्ति का सार्वजनिक रूप से प्रकटीकरण करने के लिये बाध्य नहीं हैं। 
  • वर्ष 1997 का सर्वोच्च न्यायालय का संकल्प: न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति की घोषणा मुख्य न्यायाधीश के समक्ष करनी चाहिये, लेकिन सार्वजनिक रूप से नहीं।
  • वर्ष 2009 सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर स्वैच्छिक संपत्ति प्रकटीकरण की अनुमति है, लेकिन अनिवार्य नहीं।
  • सर्वोच्च न्यायालय का वर्ष 2019 का निर्णय: इसमें अभिनिर्धारित किया गया कि न्यायाधीशों की संपत्ति व्यक्तिगत जानकारी नहीं है और उन्हें इसे आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत लाया गया।
  • उच्च न्यायालय परिदृश्य: मार्च 2025 तक, 770 में से केवल 97 (13%) उच्च न्यायालय न्यायाधीशों ने सार्वजनिक रूप से संपत्ति घोषित की है।
    • कई उच्च न्यायालयों (इलाहाबाद, राजस्थान, बॉम्बे, गुजरात, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड) ने सार्वजनिक प्रकटीकरण का कड़ा विरोध किया और न्यायाधीशों की संपत्ति के बारे में आरटीआई अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया।
  • अन्य लोक सेवकों के साथ तुलना: अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के नियम 16(1) के अनुसार लोक सेवकों को अपनी संपत्ति की वार्षिक घोषणा करनी होगी।
    • निर्वाचन के दौरान राजनीतिक उम्मीदवारों के लिये संपत्ति का खुलासा अनिवार्य कर दिया गया (ADR v. UoI, 2002)। 
    • सांसदों/विधायकों को अपने घोषणापत्र अध्यक्ष (लोकसभा) या सभापति (राज्यसभा) को प्रस्तुत करने होंगे, ताकि जनता तक उनकी पहुँच सुनिश्चित हो सके।
    • केंद्रीय मंत्रियों को अपनी संपत्ति की घोषणा प्रधानमंत्री कार्यालय में करनी होती है, जिसकी जानकारी अक्सर ऑनलाइन प्रकाशित की जाती है।

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