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प्रिलिम्स फैक्ट्स: 10 जुलाई, 2021

  • 10 Jul 2021
  • 12 min read

dbGENVOC: ओरल कैंसर के जीनोमिक वेरिएंट का डेटाबेस

dbGENVOC: Database of Genomic Variants of Oral Cancer

हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्तपोषित स्वायत्त संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स (National Institute of Biomedical Genomics- NIBMG) ने ओरल कैंसर/ मुख के कैंसर में जीनोमिक  बदलाव पर विश्व का पहला डेटाबेस (dbGENVOC) तैयार किया है।

प्रमुख बिंदु: 

dbGENVOC के बारे में:

  • डीबीजेनवोक ओरल कैंसर के जीनोमिक वेरिएंट्स का ब्राउज करने योग्य ऑनलाइन डेटाबेस है जिसे संभावित उपयोगकर्त्ताओं को नैदानिक रूप से प्रासंगिक विभिन्न सोमेटिक/दैहिक और जर्मलाइन वेरिएंट डेटा तक पहुंँच प्रदान करने, प्रश्न करने, ब्राउज़ करने और डाउनलोड करने की अनुमति देने के उद्देश्य से विकसित किया गया है।
    • सोमेटिक या एक्वायर जीनोमिक वेरिएंट (Somatic or Acquired Genomic Variants) कैंसर का सबसे आम कारण है, जो किसी व्यक्ति के जीवन के दौरान उसकी कोशिका में जीन को नष्ट होने से होता है।
    • एक जर्मलाइन वेरिएंट (Germline  Variant) युग्मकों (Gametes) में पाया जाता  है और गर्भाधान के समय सीधे माता-पिता से बच्चे में जाता है। जर्मलाइन रोगजनक वेरिएंट के कारण होने वाले कैंसर को विरासत में मिला या वंशानुगत कहा जाता है।
  • इसे भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में मुख के कैंसर के नए रोगियों के विभिन्न  डेटा के साथ वार्षिक तौर पर अपडेट किया जाएगा।

भारत में कैंसर के मामले:

  • विश्व कैंसर रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 में अनुमानित 1.16 मिलियन नए कैंसर के मामले थे।
  • 10 में से 1 भारतीय अपने जीवनकाल में कैंसर से ग्रसित होता है तथा  15 में से 1 की मृत्यु इस बीमारी से होती है।
  • भारत में छह सबसे आम प्रकार के कैंसरों में स्तन कैंसर (Breast Cancer), ओरल कैंसर (Oral Cancer), सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer), फेफड़े का कैंसर (Lung Cancer),  पेट का कैंसर  (Stomach Cancer) और कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) शामिल हैं।
    • ओरल कैंसर भारत में पुरुषों में पाया जाने वाला कैंसर का सबसे प्रचलित रूप है जो मुख्य रूप से तंबाकू चबाने के कारण होता है।

अन्य संबंधित पहलें:

  • नेशनल कैंसर ग्रिड (National Cancer Grid- NCG): यह  संपूर्ण देश  में प्रमुख कैंसर केंद्रों, अनुसंधान संस्थानों, रोगी समूहों तथा धर्मार्थ संस्थानों का एक नेटवर्क है, जिसे ऑन्कोलॉजी (कैंसर का अध्ययन), कैंसर की रोकथाम, निदान और उपचार हेतु रोगियों की  देखभाल के लिये एक समान मानक स्थापित करने, विशेष प्रशिक्षण एवं शिक्षा प्रदान करने का अधिकार है। यह  कैंसर के उपचार में सहयोगी बुनियादी ज़रूरतों के साथ-साथ नैदानिक अनुसंधान की सुविधा प्रदान करता है। इसका गठन अगस्त 2012 में हुआ था।
  • राष्ट्रीय जीनोम ग्रिड (National Genomic Grid- NGG): NGG भारत में कैंसर से प्रभावित जीनोमिक कारकों का अध्ययन करने के लिये कैंसर रोगियों के नमूने एकत्र करेगा और इन नमूनों को सत्यापित करेगा।
  • ज़िला स्तर की गतिविधियों हेतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM) के तहत कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम व नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention and Control of Cancer, Diabetes, Cardiovascular Diseases and Stroke- NPCDCS) को लागू किया जा रहा है।

उच्च-तुंगता पर पाए जाने वाले याक

High-Altitude Yak

हाल ही में अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग ज़िले के दिरांग में स्थित याक पर राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र (National Research Centre on Yak- NRCY) ने उच्च तुंगता (High Altitude) वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले याक का बीमा करने के लिये नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (NICL) के साथ करार किया है।

  • NRCY एक प्रमुख शोध संस्थान है जो विशेष रूप से भारत में याक संबंधी अनुसंधान एवं विकास कार्यों में संलग्न है। इसकी स्थापना वर्ष 1989 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा की गई थी।

प्रमुख बिंदु:

Bovini

परिचय:

  • याक बोविनी (Bovini) जनजाति से संबंधित हैं, जिसमें बाइसन, भैंस और मवेशी भी शामिल हैं। यह -40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकता है।
    • इनके लंबे बाल उच्च उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों में रहने हेतु इन्हें अनूकूल बनाते है, जो पर्दे की तरह अपने पक्षों से लटके रहते हैं। इनके बाल इतने लंबे होते हैं कि वे कभी-कभी ज़मीन को छूते हैं।
  • हिमालयी लोगों द्वारा याक को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। तिब्बती किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक गुरु रिनपोछे ने सबसे पहले याक को पालतू बनाया था।
    • भारतीय हिमालयी क्षेत्र के उच्च तुंगता वाले स्थानों पर उन्हें खानाबदोशों की जीवन रेखा के रूप में भी जाना जाता है।

आवास:

  • ये तिब्बती पठार और उससे सटे उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों के लिये स्थानिक हैं।
    • 14,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर याक सबसे अधिक आरामदायक स्थिति में रहते हैं। भोजन की खोज में ये 20,000 फीट की ऊँचाई तक चले जाते हैं और प्रायः 12,000 फीट से नीचे नहीं उतरते हैं।
  • याक पालन करने वाले भारतीय राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर शामिल हैं।
    • याक की देशव्यापी जनसंख्या प्रवृत्ति दर्शाती है कि इनकी आबादी बहुत तेज़ी से घट रही है। भारत में याक की कुल आबादी लगभग 58,000 है।

खतरा:

  • जलवायु परिवर्तन:
    • वर्ष के गर्म महीनों के दौरान उच्च ऊँचाई पर पर्यावरणीय तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप याक में उष्मागत तनाव (Heat Stress) बढ़ जाता है जो इसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं की गति को प्रभावित कर रहा है।
  • आंतरिक प्रजनन (Inbreeding):
    • चूँकि युद्धों और संघर्षों के कारण सीमाएँ बंद हैं इसलिये मूल याक क्षेत्र से नए याक जर्मप्लाज्म (Germplasm) की उपलब्धता की कमी के कारण सीमाओं के बाहर पाए जाने वाले याक आंतरिक प्रजनन (Inbreeding) से पीड़ित हैं।

जंगली याक (Bos mutus) की संरक्षण स्थिति:


कोविड-19 वैक्सीन बूस्टर शॉट्स 

Covid-19 Vaccine Booster Shots

हाल ही में फाइज़र (Pfizer) और बायोएनटेक (BioNTech) ने यह घोषणा की कि वे अपनी कोविड- 19 वैक्सीन (BNT162b2) की तीसरी बूस्टर खुराक के लिये नियामक अनुमति की मांग करेंगे।

  • कोविड- 19 के अत्यधिक संक्रामक वेरिएंट ‘डेल्टा’ के वैश्विक प्रसार के बीच यह घोषणा सामने आई  है।

प्रमुख बिंदु

बूस्टर शॉट्स:

  • ‘बूस्टर’ किसी विशेष रोगजनक के विरुद्ध एक व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने का साधन है।
  • यह ठीक वही मूल टीका भी हो सकता है, जिसका का लक्ष्य अधिक एंटीबॉडी का उत्पादन करके सुरक्षा के परिमाण में वृद्धि करना है।
  • यदि वैज्ञानिक लोगों को एक नए वेरिएंट (वायरस का एक ऐसा वेरिएंट जो मूल वायरस का उत्परिवर्तित रूप हो तथा जिसके खिलाफ लोगों को टीका लगाया गया था) से बचाने का लक्ष्य रखते हैं, तो वे बूस्टर में प्रयोग किये जाने वाले घटकों में परिवर्तन कर सकते हैं।
  • ये शॉट्स केवल उन्हीं लोगों के लिये उपलब्ध होते हैं जिनका पहले से पूर्ण टीकाकरण हो चुका हो।

आवश्यकता:

  • ये बूस्टर विशेष रूप से ऐसे बुज़ुर्गों और प्रतिरक्षाविहीन लोगों के लिये मददगार होंगे जिनका शरीर वैक्सीन की पहली दो शॉट्स के बाद वायरस के खिलाफ एक मज़बूत प्रतिरक्षा स्थापित करने में असमर्थ था।
  • दूसरा यदि अध्ययनों से ऐसा ज्ञात होता है कि नए संस्करण पर एक विशिष्ट टीके द्वारा निर्मित एंटीबॉडी का कोई प्रभाव नहीं हो रहा है तब एक संशोधित बूस्टर शॉट की आवश्यकता होती है।

चिंताएँ:

  • बूस्टर शॉट्स को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अनुमति मिलना बाकी है।
  • वास्तव में WHO ने तीसरी खुराक को प्रोत्साहित करने में चिंता व्यक्त की है।
  • बूस्टर शॉट्स पर आँकड़ों की कमी और इस तथ्य को देखते हुए कि विश्व के अधिकांश हिस्सों में उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों को अभी भी पूरी तरह से टीका नहीं लगाया गया है, तो इस तरह की सिफारिश अनावश्यक और समय से पहले है।
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