भारत में युवा रोज़गार | 21 Aug 2024

यह एडिटोरियल 20/08/2024 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “The crisis of youth unemployment” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के गंभीर युवा रोज़गार संकट पर प्रकाश डाला गया है, जो शिक्षित लोगों, विशेष रूप से युवा महिलाओं के बीच उच्च बेरोज़गारी एवं अल्परोज़गार द्वारा चिह्नित होता है और तत्काल नीति सुधारों का आह्वान किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, जनसांख्यिकी लाभांश, प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, युवा: युवा लेखकों को सलाह देने के लिये प्रधान मंत्री योजना, सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना, डिजिटल इंडिया कार्यक्रम, पीएम गति शक्ति योजना

मेन्स के लिये:

बेरोज़गारी और बेरोज़गारी के रुझान तथा क्षेत्रीय एवं लैंगिक असमानता।

भारत का प्रत्याशित जनसांख्यिकी लाभांश एक गंभीर जनसांख्यिकीय आपदा में बदलता जा रहा है, जहाँ देश अभूतपूर्व युवा रोज़गार संकट का सामना कर रहा है। युवाओं के बीच उच्च शैक्षणिक उपलब्धि के बावजूद रोज़गार के अवसर कम हैं, जिसके परिणामस्वरूप विशेष रूप से शहरी युवाओं और युवा महिलाओं के बीच उच्च बेरोज़गारी दर पाई जाती है।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के हाल के आँकडों से पता चलता है कि युवाओं के लिये रोज़गार की स्थिति अभी भी बदतर बनी हुई है, जहाँ युवाओं के लिये वृद्ध आयु समूहों की तुलना में श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) 40% कम है और बेरोज़गारी दर लगभग तीन गुना अधिक है।

शैक्षिक योग्यता और उपलब्ध रोज़गार अवसरों के बीच उल्लेखनीय असंगति के कारण स्थिति और भी बदतर हो गई है, जहाँ उच्च शिक्षित व्यक्ति (विशेष रूप से महिलाएँ) सबसे अधिक बेरोज़गारी दर का सामना कर रहे हैं। इस मुद्दे को संबोधित करने के लिये प्रभावी समाधान विकसित करने हेतु गहन पड़ताल की आवश्यकता है।

भारत में युवा रोज़गार के वर्तमान रुझान क्या हैं?

  • युवा बेरोज़गारी संकट:
    • उच्च युवा बेरोज़गारी दर: युवाओं (15-29 आयु वर्ग) में बेरोज़गारी की दर सामान्य आबादी की तुलना में व्यापक रूप से अधिक है। वर्ष 2022 में शहरी युवाओं के लिये बेरोज़गारी दर 17.2% थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 10.6% थी।
      • युवा महिलाओं के लिये यह स्थिति विशेष रूप से गंभीर है, जिनके बीच युवा पुरुषों के 15.8% की तुलना में 21.6% बेरोज़गारी दर पाई जाती है।
    • शिक्षा का प्रभाव: युवाओं में उच्च शिक्षा प्राप्ति विरोधाभासी रूप से उच्च बेरोज़गारी दरों से जुड़ी हुई है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में माध्यमिक शिक्षा या उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों के लिये बेरोज़गारी दर 18.4% और स्नातकों के लिये 29.1% थी, जबकि निरक्षर व्यक्तियों के लिये यह दर मात्र 3.4% थी।
    • NEET (Not in Employment, Education, or Training) दर: युवाओं का एक बड़ा अनुपात न तो रोज़गार में संलग्न है, न ही शिक्षा में और न ही प्रशिक्षण में।
      • भारत रोज़गार रिपोर्ट (India Employment Report) 2024 के अनुसार, वर्ष 2022 तक प्रत्येक तीन में से एक युवा NEET श्रेणी में शामिल था।
    • NEET श्रेणी में महिलाओं की संख्या उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में लगभग पाँच गुना अधिक है।
  • लैंगिक असमानता:
    • कार्य सहभागिता दर (Work Participation Rates): शहरी पुरुष युवाओं की कार्य सहभागिता दरें उनकी महिला समकक्षों की तुलना में तीन गुना अधिक हैं।
    • महिलाओं के लिये बेरोज़गारी दर: युवा महिलाओं को युवा पुरुषों की तुलना में लगातार उच्च बेरोज़गारी दर (औसतन लगभग 50% अधिक) का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में 34.5% महिला स्नातक बेरोज़गार थीं, जबकि उनके पुरुष समकक्षों के लिये यह अनुपात 26.4% था।
      • शिक्षित युवा महिलाओं में बेरोज़गारी दर सबसे अधिक है, जहाँ 34.5% महिला स्नातक बेरोज़गार हैं।

  • क्षेत्रीय विविधताएँ:
    • राज्यों के बीच असमानताएँ: अलग-अलग राज्यों में रोज़गार की स्थिति व्यापक रूप से भिन्न-भिन्न है। बिहार, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड , राजस्थान, ओडिशा, केरल, हिमाचल प्रदेश और असम जैसे राज्यों में उच्च बेरोज़गारी दर और निम्न कार्य बल भागीदारी विशेष रूप से व्याप्त है।
      • इसके अलावा, एक स्पष्ट सकारात्मक संबंध पाया जाता है, जहाँ उच्च शहरीकृत राज्यों में बेरोज़गारी दर में वृद्धि देखी जाती है। यह उच्च शहरीकृत गोवा एवं केरल जैसे राज्यों में बेरोज़गारी के उच्च स्तर और निम्न शहरीकृत उत्तर प्रदेश, झारखंड एवं मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बेरोज़गारी के निम्न स्तर की व्याख्या करता है।
    • शहरीकृत राज्यों में कृषि और कृषि पर निर्भर क्षेत्र आकार में छोटे होते हैं, इसलिये वहाँ अनौपचारिक रोज़गार के स्रोत अपेक्षाकृत कम होते हैं।

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश से संबद्ध संभावनाएँ:

  • युवा जनसंख्या: भारत को महत्त्वपूर्ण जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त है, जहाँ इसकी 50% से अधिक आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है, जबकि  65% से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। इससे संभावित कामगारों का एक बड़ा समूह तैयार होता है जो आर्थिक विकास एवं उत्पादकता में योगदान कर सकता है।
    • कार्यबल वृद्धि: भारत में कार्यशील आयु वर्ग की आबादी में वर्ष 2030 तक लगभग 200 मिलियन की वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे देश की आर्थिक क्षमता में वृद्धि होगी।
  • नवाचार और उद्यमिता: ग्लोबल एंटरप्रेन्योरशिप मॉनिटर (GEM) 2023 के अनुसार, भारत में एक सुदृढ़ स्टार्टअप पारितंत्र मौजूद है, जिसमें 70,000 से अधिक स्टार्टअप मान्यता प्राप्त हैं और इनमें से कई का नेतृत्व युवा उद्यमी कर रहे हैं।
    • स्टार्टअप विकास:स्टार्टअप इंडिया’ जैसी सरकारी पहलों ने वर्ष 2016 में इसके शुभारंभ के बाद से 80,000 से अधिक स्टार्टअप के सृजन को समर्थन दिया है, जिससे युवाओं में नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा मिला है।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था: भारत में IT और डिजिटल सेवा क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8% का योगदान देते हैं तथा 4.5 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं। डिजिटल मंचों के उदय ने IT, ई-कॉमर्स और डिजिटल कंटेंट निर्माण में विविध रोज़गार अवसर पैदा किये हैं।
  • इंटरनेट का प्रसार: भारत में 800 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं (वर्ष 2024 तक), जो एक विशाल डिजिटल बाज़ार और टेक-सैवी युवाओं के लिये संभावित रोज़गार अवसरों का संकेत देता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: विश्व आर्थिक मंच (WEF) के वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक (GCI) 2023 में भारत 63 देशों की सूची में 43वें स्थान पर रहा, जो वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये इसके कार्यबल के बढ़ते कौशल और क्षमता को दर्शाता है।
    • IT आउटसोर्सिंग: भारत IT आउटसोर्सिंग के लिये एक अग्रणी वैश्विक केंद्र बना हुआ है, जो IT सेवाओं में वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी में लगभग 55% का योगदान देता है। यह मुख्यतः भारत के कुशल और युवा कार्यबल द्वारा प्रेरित हैं

बेरोज़गारी (Unemployment) क्या है?

  • परिचय:
    • बेरोज़गारी से तात्पर्य उस स्थिति से है जहाँ कार्य-सक्षम व्यक्ति सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश कर रहे हों, लेकिन उन्हें उपयुक्त नौकरी प्राप्त नहीं हो रही हो।
  • बेरोज़गारी का मापन: देश में बेरोज़गारी की गणना आमतौर पर निम्नलिखित सूत्र का उपयोग कर की जाती है:
    • बेरोज़गारी दर = [बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या / कुल श्रम बल] x 100.
      • यहाँ ‘कुल श्रम बल’ में नियोजित और बेरोज़गार दोनों शामिल हैं। जो लोग न तो नियोजित हैं और न ही बेरोज़गार हैं, उदाहरण के लिये छात्र, उन्हें श्रम बल का अंग नहीं माना जाता है।
  • बेरोज़गारी के प्रकार:
    • संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structural Unemployment): कार्यबल के पास उपलब्ध कौशल और उपलब्ध पदों की आवश्यकताओं के बीच असंगति के कारण उत्पन्न बेरोज़गारी का यह रूप श्रम बाज़ार के भीतर प्रणालीगत समस्याओं को उजागर करता है।
    • चक्रीय बेरोज़गारी (Cyclical Unemployment): आर्थिक चक्रों से जुड़ी यह बेरोज़गारी आर्थिक मंदी के दौरान बढ़ जाती है और आर्थिक विकास की अवधि के दौरान कम हो जाती है। यह वृहद आर्थिक (मैक्रोइकॉनोमिक) स्थितियों के प्रति रोज़गार अवसर की उपलब्धता की संवेदनशीलता को दर्शाती है।
    • घर्षणात्मक बेरोज़गारी (Frictional Unemployment): इसे संक्रमणकालीन बेरोज़गारी (Transitional Unemployment) भी कहा जाता है, जो नौकरियों के बीच प्राकृतिक संक्रमण से उत्पन्न होती है। बेरोज़गारी का यह प्रकार उस अस्थायी अवधि को दर्शाता है जो व्यक्ति नए रोज़गार अवसरों की तलाश में बिताते हैं।
    • अल्परोज़गार (Underemployment): यह पूर्णरूपेण बेरोज़गारी की स्थिति नहीं है, बल्कि यह अवधारणा ऐसे पदों पर कार्यरत व्यक्तियों से संबंधित है, जहाँ उनकी योग्यताओं का कम उपयोग होता है या कार्य के घंटे अपर्याप्त होते हैं, जिससे आर्थिक अकुशलता की भावना पैदा होती है।
    • छिपी हुई बेरोज़गारी (Hidden Unemployment): यह ऐसे व्यक्तियों से संबंधित है जो हतोत्साहन या अन्य कारकों के कारण सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश नहीं कर रहे हैं, लेकिन यदि परिस्थितियाँ उनके अनुकूल हों तो वे संभावित रूप से रोज़गार बाज़ार में प्रवेश कर सकते हैं।
    • प्रच्छन्न बेरोज़गारी (Disguised Unemployment): यह इसलिये पैदा होती है क्योंकि कारख़ाने या भूमि पर आवश्यकता से अधिक श्रमिक कार्यरत होते हैं, यानी श्रम का प्रति इकाई उत्पादन कम होता है।
  • बेरोज़गारी के प्रमुख कारण:
    • जनसंख्या का आकार: उच्च जनसंख्या से रोज़गार बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जाती है, जिसके कारण प्रभावी आर्थिक एवं रोज़गार सृजन रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
    • कौशल की असंगति: श्रमिकों के कौशल प्रायः रोज़गार बाज़ार की आवश्यकताओं से संगत नहीं होते, जो बेहतर शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण की आवश्यकता को उजागर करता है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र की गतिशीलता: विशाल अनौपचारिक क्षेत्र बेरोज़गारी की ‘ट्रैकिंग’ को जटिल बना देता है; इस क्षेत्र को औपचारिक बनाने से रोज़गार आँकड़े की परिशुद्धता में सुधार हो सकता है।
    • नीति कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: प्रभावी नीतियों को भी क्रियान्वयन में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है; नीतियों को वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों के साथ संरेखित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • वैश्विक आर्थिक कारक: वैश्विक व्यापार और भू-राजनीति से संबद्ध मुद्दे रोज़गार को प्रभावित करते हैं; नीतियों को बाह्य कारकों के विरुद्ध आर्थिक प्रत्यास्थता का निर्माण करना चाहिये।

युवा बेरोज़गारी के निहितार्थ क्या हैं?

  • आर्थिक निहितार्थ:
    • संसाधन उपयोग में अक्षमता: उच्च युवा बेरोज़गारी संभावित आर्थिक उत्पादन में महत्त्वपूर्ण कमी को परिलक्षित करती है। शिक्षित और कुशल युवा व्यक्ति जो बेरोज़गारी या अल्प-रोज़गार की स्थिति रखते हैं, अर्थव्यवस्था में उपयुक्त योगदान नहीं देते हैं, जिससे संसाधन उपयोग में अक्षमता आती है।
    • निम्न आर्थिक वृद्धि: लगातार बेरोज़गारी की स्थिति आर्थिक वृद्धि में बाधा डालती है। चूँकि आबादी का एक बड़ा हिस्सा उत्पादकता में योगदान नहीं करता है, इसलिये अर्थव्यवस्था धीमी विकास दर और निम्न समग्र उत्पादकता का सामना करती है।
    • निर्भरता अनुपात में वृद्धि: सुदीर्घ बेरोज़गारी के कारण परिवार के संसाधनों पर निर्भरता बढ़ सकती है, जिससे परिवारों पर वित्तीय बोझ बढ़ सकता है और संभावित रूप से गरीबी का स्तर भी बढ़ सकता है।
    • क्रय शक्ति में कमी: बेरोज़गार युवाओं के पास कम प्रयोज्य आय (disposable income) होती है, जिससे उनकी व्यय क्षमता कम हो जाती है और समग्र उपभोक्ता मांग प्रभावित होती है। उपभोग में यह कमी व्यवसायों और आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकती है।
  • सामाजिक निहितार्थ:
    • सामाजिक अशांति और अस्थिरता: युवा बेरोज़गारी के उच्च स्तर से सामाजिक अशांति और अस्थिरता पैदा हो सकती है। रोज़गार अवसरों की कमी से उत्पन्न निराशा विरोध प्रदर्शनों, हड़तालों और नागरिक अशांति के अन्य रूपों में प्रकट हो सकती है।
  • दीर्घकालिक प्रभाव:
    • कौशल असंगति और कौशल क्षरण: सुदीर्घ बेरोज़गारी के कारण कौशल क्षरण (Skills Erosion) की स्थिति बन सकती है क्योंकि कार्यबल की क्षमताएँ पुरानी पड़ जाती हैं। यह कौशल असंगति (Skills Mismatch) बेरोज़गार युवाओं के लिये रोज़गार बाज़ार में पुनः प्रवेश करना कठिन बना देती है।
    • रोज़गार योग्यता में कमी: बेरोज़गारी की अवधि के दौरान प्रासंगिक अनुभव और कौशल विकास की कमी युवा व्यक्तियों के लिये रोज़गार योग्यता (employability) एवं करियर की संभावनाओं को और कम कर सकती है।

रोज़गार से संबंधित सरकार की पहलें:

युवा रोज़गार में सुधार के लिये कौन-से कदम उठाए जाने चाहिये?

  • सार्वजनिक रोज़गार अवसरों का विस्तार करना: मनरेगा (जो केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित है) के समान शहर-विशिष्ट सार्वजनिक रोज़गार योजनाएँ शुरू की जाएं जो अवसंरचना और सेवा क्षेत्रों को लक्षित करें। बेहतर रोज़गार सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के रोज़गार अवसरों को पुनर्जीवित करने और विस्तारित करने की रणनीतियों पर विचार किया जाए।
  • दूरस्थ कार्य अवसर: कंपनियों को प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने और दूरस्थ कार्य व्यवस्था प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए। इससे प्रमुख शहरों से बाहर रहने वाले व्यक्तियों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और बेहतर कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा मिलेगा।
  • समावेशी विकास और लैंगिक समानता: लैंगिक समानता और सशक्तीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करना, शिक्षा एवं रोज़गार तक समान पहुँच सुनिश्चित करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2022 में केवल 24% महिलाएँ कार्यबल में भागीदारी कर रही थीं, इसलिये अधिक महिलाओं को कार्यबल में शामिल करना भविष्य के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
  • कौशल संगति को उन्नत करना: उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप शैक्षिक पाठ्यक्रम और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को संशोधित किया जाए। प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रासंगिक बनाने के लिये शैक्षिक संस्थानों और उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा दें।
  • उद्यमिता और अवसंरचना में निवेश को बढ़ावा देना: युवा उद्यमियों के लिये कर छूट, सब्सिडी और वित्तपोषण तक पहुँच प्रदान करना।
  • युवा आउटरीच कार्यक्रम: युवा उद्यमियों को प्रेरित करने और उनका समर्थन करने के लिये विशेष आउटरीच कार्यक्रम विकसित किये जाएँ। इनमें युवा उद्यमियों की आवश्यकताओं के अनुरूप मार्गदर्शन, पूंजी तक पहुँच और व्यवसाय विकास सेवाएँ शामिल होनी चाहिये।
  • क्षमता निर्माण: युवाओं में उद्यमशीलता क्षमता निर्माण के लिये प्रभावी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जाए, जिसमें व्यवसाय प्रबंधन, वित्तीय साक्षरता और नवाचार में प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है।
    • युवा-केंद्रित सामाजिक सुरक्षा: रोज़गार संक्रमण के दौरान वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये, विशेष रूप से युवा लोगों के लिये, सामाजिक सुरक्षा सुरक्षा जाल का विकास किया जाए।
    • डिजिटल और गिग इकॉनोमी का एकीकरण: गिग श्रमिकों के लिये रोज़गार सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा लाभ और उचित वेतन प्रदान करने के लिये नीतियाँ विकसित की जाएँ। वृद्धिशील तकनीकी क्षेत्र के लिये युवाओं को तैयार करने हेतु डिजिटल कौशल में प्रशिक्षण का विस्तार किया जाए।
  • बेहतर नीति कार्यान्वयन: रोज़गार योजनाओं और नीतियों की प्रभावशीलता की निगरानी के लिये तंत्र को सुदृढ़ बनाया जाए। वास्तविक दुनिया के परिणामों के आधार पर नीतियों को लगातार अनुकूलित और बेहतर बनाने के लिये फीडबैक तंत्र स्थापित करें।
    • मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया  और स्किल इंडिया: मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसी सफल पहलों को समर्थन देना तथा इनका विस्तार करना जारी रखा जाए। युवाओं में रोज़गार और कौशल विकास को बढ़ावा देने पर लक्षित ये पहलें आशाजनक परिणाम देंगी।

निष्कर्ष:

भारत में विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी पाई जाती है, जो आने वाले दशक में और बढ़ेगी। भारत की 65% से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। इस जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करना और युवाओं एवं उनकी रचनात्मक ऊर्जा को राष्ट्र निर्माण के लिये इस्तेमाल करना वास्तव में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिये आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था श्रम शक्ति में वृद्धि का समर्थन करे और युवाओं के पास उचित शिक्षा, कौशल, स्वास्थ्य जागरूकता एवं अन्य सुविधाएँ मौजूद हों, ताकि वे अर्थव्यवस्था और राष्ट्र निर्माण में उत्पादक रूप से योगदान कर सकें।

अभ्यास प्रश्न: जनसांख्यिकीय लाभांश की अवधारणा की चर्चा कीजिये और समझाइये कि भारत के वर्तमान युवा रोज़गार परिदृश्य के संदर्भ में यह जनसांख्यिकीय आपदा में क्यों बदल रही है। इस प्रवृत्ति को उलटने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स 

प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है?  (2016) 

(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन प्रदान करना
(d) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधियन करना

उत्तर: (a)


प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ है कि:  (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

प्रश्न: हाल के समय में भारत में आर्थिक वृद्धि की प्रकृति को अक्सर रोज़गार विहीन वृद्धि के रूप में वर्णित किया जाता है। क्या आप इस दृष्टिकोण से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिये। (2015)