भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सतत् विकास | 26 Jun 2024
यह एडिटोरियल 25/06/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The Supreme Court of India spells the way in Himalaya’s development” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में पर्यावरणीय मुद्दों पर विचार किया गया है और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार को मान्यता देने वाले सर्वोच्च न्यायालय के हाल के आदेश के परिप्रेक्ष्य में सतत् विकास के उपाय सुझाए गए हैं।
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR), कंचनजंगा, फूलों की घाटी, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs), गंगोत्री ग्लेशियर, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण का अधिकार, केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB), नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (NMSHE), भारतीय हिमालयी जलवायु अनुकूलन कार्यक्रम (IHCAP), SECURE हिमालय प्रोजेक्ट मेन्स के लिये:भारतीय हिमालयी क्षेत्र से संबंधित प्रमुख पर्यावरणीय चिंताएँ, पर्यावरण संरक्षण प्रयासों का समर्थन करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय |
भारतीय हिमालयी क्षेत्र (Indian Himalayan Region- IHR) को व्यापक रूप से भारत के ‘वाॅटर टाॅवर’ (water tower) और आवश्यक पारितंत्र वस्तुओं एवं सेवाओं के एक महत्त्वपूर्ण प्रदाता के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस महत्त्वपूर्ण समझ के बावजूद, इस क्षेत्र की विशिष्ट विकास आवश्यकताओं और वर्तमान में अपनाए जा रहे विकास मॉडल के बीच एक गंभीर अंतराल बना हुआ है।
IHR की अर्थव्यवस्था आंतरिक रूप से इसके प्राकृतिक संसाधनों के स्वास्थ्य एवं कल्याण से जुड़ी हुई है। विकास की आड़ में इन संसाधनों का दोहन एक गंभीर खतरा पैदा करता है, जो संभावित रूप से IHR को अपरिहार्य आर्थिक गिरावट की ओर ले जा सकता है। ऐसे विनाशकारी परिणाम से बचने के लिये प्राकृतिक संसाधनों के सतत् प्रबंधन के साथ ही विकास अभ्यासों को उचित रूप से संरेखित करना महत्त्वपूर्ण है।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR):
- परिचय:
- यह भारत के उस पर्वतीय क्षेत्र को संदर्भित करता है जो देश के भीतर संपूर्ण हिमालय पर्वतमाला को सम्मिलित करता है।
- भारतीय हिमालयी क्षेत्र 13 भारतीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (अर्थात् जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल) में 2500 किलोमीटर तक विस्तृत है।
- महत्त्व:
- IHR में विश्व के कुछ सबसे उच्च शिखर (जैसे कंचनजंगा) शामिल हैं।
- भारत के ‘जल मीनार’ के रूप में जाना जाने वाला IHR गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों सहित कई प्रमुख नदियों का स्रोत है।
- यह क्षेत्र पारिस्थितिक संतुलन को विनियमित करने और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह क्षेत्र वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की समृद्ध विविधता का घर है, जिसमें कई स्थानिक और लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
- इसमें कई राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य और बायोस्फीयर रिज़र्व शामिल हैं, जैसे फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान।
- IHR भारतीय उपमहाद्वीप की जलवायु और मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है, मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं के लिये एक अवरोधक के रूप में कार्य करता है और मानसून पैटर्न को प्रभावित करता है।
- इस क्षेत्र में विविध जातीय समुदाय निवास करते हैं जिनकी अपनी विशिष्ट संस्कृतियाँ, भाषाएँ और परंपराएँ हैं।
- इसमें विभिन्न धर्मों के महत्त्वपूर्ण धार्मिक और तीर्थ स्थल शामिल हैं, जैसे अमरनाथ, बद्रीनाथ आदि।.
- चीन, नेपाल और भूटान के साथ भारत की उत्तरी सीमा पर अवस्थित होने के कारण IHR रणनीतिक/सामरिक महत्त्व भी रखता है।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में प्रमुख पर्यावरणीय चिंताएँ:
- जलवायु परिवर्तन और हिमनद का पिघलना:
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिससे अनुप्रवाह क्षेत्र में जल संसाधनों की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
- तापमान और वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन से स्थानीय जलवायु में व्यवधान उत्पन्न होता है, जिससे कृषि और आजीविका पर प्रभाव पड़ता है।
- IHR में प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं, जैसे अचानक आने वाली बाढ़ या ‘फ्लैश फ्लड’, ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (glacial lake outburst floods- GLOFs), और चरम मौसमी घटनाएँ।
- IHR में ग्लेशियर प्रति वर्ष औसतन 10 से 60 मीटर की दर से पीछे हट रहे हैं। पिछले 70 वर्षों में गंगोत्री ग्लेशियर 1500 मीटर से अधिक पीछे खिसक गया है।
- वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने के कारण और भी भयानक हो गई थी, जिसके कारण विनाशकारी बाढ़ आई और भारी विनाश हुआ।
- मृदा अपरदन और भूस्खलन:
- वनों की कटाई, अनियोजित निर्माण कार्य और अत्यधिक चराई मृदा क्षरण में योगदान करते हैं।
- यह क्षेत्र भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान, जिससे संपत्ति, अवसंरचना और जान-माल की हानि होती है।
- वर्ष 2021 में उत्तराखंड के चमोली ज़िले में हिमनदों के फटने से आई बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप जीवन और अवसंरचना को अभूतपूर्व क्षति पहुँची।
- जल की कमी और प्रदूषण:
- IHR के कई क्षेत्रों में झरनों और नदियों के सूख जाने के कारण जल की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- कृषि अपवाह, अनुपचारित मलजल और औद्योगिक अपशिष्टों से होने वाला प्रदूषण जल स्रोतों को दूषित करता है, जिससे मानव स्वास्थ्य तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ता है।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के एक अध्ययन से उजागर हुआ है कि IHR में 50% से अधिक झरने सूख रहे हैं, जिससे लाखों लोगों के लिये जल की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
- विकासात्मक परियोजनाएँ:
- जलविद्युत स्टेशनों के निर्माण से नदी पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है, मत्स्य आबादी प्रभावित होती है तथा स्थानीय समुदाय विस्थापित होते हैं।
- अवसंरचना परियोजनाओं में प्रायः पर्यावरणीय मानदंडों की अनदेखी की जाती है, जिससे पारिस्थितिकी क्षति होती है और आपदा जोखिम बढ़ जाता है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2023 में आई बाढ़ के आपदा-पश्चात आकलन में इस आपदा के लिये नदी तलों और बाढ़ के मैदानों में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण को ज़िम्मेदार ठहराया गया।
- वायु प्रदूषण:
- वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि, औद्योगिक गतिविधियाँ और बायोमास का जलाया जाना वायु की गुणवत्ता को खराब करने में योगदान करते हैं।
- पहाड़ी इलाके इन प्रदूषकों को जब्त या ट्रैप कर सकते हैं, जिससे यहाँ के निवासियों के लिये स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं और दृश्यता घट सकती है।
- लद्दाख के लेह शहर में वाहनों की बढ़ती आवाजाही और निर्माण गतिविधियों के कारण वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है, जिससे निवासियों और पर्यटकों के स्वास्थ्य पर समान रूप से असर पड़ रहा है।
- वनों की कटाई और पर्यावास की क्षति:
- IHR में 10,000 से अधिक पादप प्रजातियाँ, 300 स्तनपायी प्रजातियाँ और 1,000 पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कई लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में शामिल हैं।
- कृषि, शहरी विकास और अवसंरचना परियोजनाओं के लिये बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से पर्यावास विनाश और जैव विविधता की हानि होती है।
- वन स्थिति रिपोर्ट, 2021 में पाया गया है कि देश के पहाड़ी ज़िलों में वन क्षेत्र में वर्ष 2019 की तुलना में 902 वर्ग किलोमीटर की गिरावट दर्ज की गई है। हिमालयी राज्यों में यह क्षति कहीं अधिक है, जहाँ कुल मिलाकर 1,072 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र की हानि हुई है।
सर्वोच्च न्यायालय के हाल के निर्णय IHR में पर्यावरण संरक्षण प्रयासों का किस प्रकार समर्थन करते हैं?
- जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध अधिकार की मान्यता:
- एम.के. रंजीतसिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण का अधिकार (right to be free from the adverse climate change) है , जिसे संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 द्वारा मान्यता दी जानी चाहिये।
- जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता दिया जाना, पर्यावरण और मानव अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो सरकार के लिये प्रभावी उपायों को लागू करने के दायित्व का निर्माण करता है।
- पर्यावरण के प्रति पारिस्थितिकी-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना:
- तेलंगाना राज्य एवं अन्य बनाम मोहम्मद अब्दुल कासिम मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि समय की मांग है कि पर्यावरण के प्रति पारिस्थितिक-केंद्रित दृष्टिकोण (Ecocentric View of the Environment) अपनाया जाए, जहाँ प्रकृति सर्वोपरि होती है।
- न्यायालय ने कहा, “मनुष्य एक प्रबुद्ध प्रजाति है, जिससे पृथ्वी के संरक्षक या ‘ट्रस्टी’ के रूप में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है... समय आ गया है कि मानव जाति संवहनीय जीवन जिए और नदियों, झीलों, समुद्र तटों, मुहाने, पर्वतमालाओं, पेड़ों, पहाड़ों, समुद्रों एवं वायु के अधिकारों का सम्मान करे.... मनुष्य प्रकृति के नियमों से बंधा हुआ है।”
- हिमालयी राज्यों की वहन क्षमता पर निर्देश:
- अशोक कुमार राघव बनाम भारत संघ शीर्षक जनहित याचिका (PIL) में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता से आगे की राह सुझाने को कहा ताकि न्यायालय हिमालयी राज्यों और शहरों की वहन क्षमता के संबंध में निर्देश पारित कर सके।
IHR की सुरक्षा के लिये प्रमुख सरकारी पहलें
- नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (NMSHE)
- भारतीय हिमालयी जलवायु अनुकूलन कार्यक्रम (IHCAP)
- सिक्योर हिमालय प्रोजेक्ट (SECURE Himalaya Project)
- एकीकृत हिमालयी विकास कार्यक्रम (IHDP)
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC)
IHR में सतत् विकास को बढ़ावा देने हेतु उपाय:
- जलवायु-प्रत्यास्थी अवसंरचना:
- ऐसे भवन निर्माण संहिताएँ एवं प्रक्रियाएँ अपनाई जाएँ जो भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ के प्रति प्रत्यास्थी हों।
- वर्षा जल के प्रबंधन और अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव को कम करने के लिये पारगम्य फुटपाथ, ग्रीन रूफ और बायोस्वेल जैसे हरित अवसंरचना में निवेश किया जाए।
- मिश्रा समिति, 1976 के सुझाव के अनुरूप आपदा-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
- एकीकृत भूमि उपयोग योजना:
- ऐसी भूमि उपयोग योजनाएँ विकसित करें जो संरक्षण, कृषि, आवासीय और औद्योगिक गतिविधियों के लिये क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से सीमांकित करें।
- प्रभावी भूमि उपयोग योजना और पर्यावरणीय परिवर्तनों की निगरानी के लिये GIS एवं रिमोट सेंसिंग का उपयोग करें।
- उदाहरण के लिये, पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP), जिसे गाडगिल समिति के रूप में भी जाना जाता है, ने संरक्षण और विकास आवश्यकताओं के बीच संतुलन के निर्माण के लिये पश्चिमी घाटों के लिये एक ज़ोनिंग प्रणाली की सिफ़ारिश की थी।
- जल संसाधन प्रबंधन:
- शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन प्रणालियों की स्थापना को बढ़ावा देदिया जाए।
- स्थानीय समुदायों के लिये जल स्रोतों की संवहनीयता सुनिश्चित करने के लिये स्प्रिंगशेड का जीर्णोद्धार एवं प्रबंधनकिया जाए।
- राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) ने गंगा नदी को स्वच्छ एवं जीवंत करने, प्रदूषण स्रोतों को दूर करने और संवहनीय अभ्यासों को बढ़ावा देने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की सिफ़ारिश की।
- वन एवं जैवविविधता संरक्षण:
- क्षरित भूमि को पुनःबहाल करने तथा जैव विविधता के संवर्द्धन के लिये बड़े पैमाने पर पुनर्वनीकरण परियोजनाएँ शुरू की जाएँ।
- संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रमों के माध्यम से वन संसाधनों के प्रबंधन एवं संरक्षण के लिये स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जाए।
- चिपको आंदोलन एक ज़मीनी स्तर का वन संरक्षण प्रयास था, जहाँ स्थानीय महिलाओं ने पेड़ों को काटने से रोकने के लिये उन्हें आलिंगन में लिया और सामुदायिक कार्रवाई की शक्ति का प्रदर्शन किया।
- लुप्तप्राय प्रजातियों और उनके पर्यावासों के संरक्षण के लिये कार्यक्रम विकसित करना तथा उनका कार्यान्वयन करना।
- नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (NMSHE) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दूर करने, संवहनीय आजीविका को बढ़ावा देने और भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता का संरक्षण करने पर केंद्रित है।
- सतत्/संवहनीय कृषि:
- रासायनिक खादों का प्रयोग कम करने तथा मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये जैविक कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित किया जाए।
- ऐसी सूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाएँ विकसित की जाएँ जिनका बड़े बांधों की तुलना में पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़े।
- जैव विविधता को बढ़ाने, कटाव को कम करने और फसल की पैदावार में सुधार करने के लिये पेड़ों एवं झाड़ियों को कृषि प्रणालियों में एकीकृत किया जाए।
- सिक्किम भारत का पहला पूर्णतः जैविक राज्य बन गया है जहाँ रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के उपयोग को कम करते हुए सतत् कृषि को बढ़ावा दिया गया।
- पर्यावरण अनुकूल पर्यटन:
- पर्यटकों की संख्या को विनियमित करने और पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने के लिये वहन क्षमता का आकलन किया जाए।
- ऐसे पारिस्थितिकी-पर्यटन पहलों का विकास किया जाए जो संवहनीय अभ्यासों को बढ़ावा दें तथा स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ प्रदान करें।
- जैवनिम्नीकरणीय सामग्रियों के उपयोग को बढ़ावा दें और प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करें।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने नियमों की एक शृंखला की सिफ़ारिश की है, जिसके तहत एक बफ़र जोन बनाया जाएगा तथा ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs)-प्रवण क्षेत्रों और आसपास के क्षेत्रों में पर्यटन को प्रतिबंधित किया जाएगा, ताकि उन क्षेत्रों में प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सके।
- निगरानी और अनुसंधान:
- परिवर्तनों पर नज़र रखने और विकास गतिविधियों के प्रभाव का आकलन करने के लिये सुदृढ़ पर्यावरण निगरानी प्रणालियाँ स्थापित करें।
- सतत् विकास अभ्यासों, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और जैव विविधता संरक्षण पर केंद्रित अनुसंधान पहलों का समर्थन किया जाए।
- हिमालयी हिमनद विज्ञान पर उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह (HLEG) की रिपोर्ट में हिमालयी ग्लेशियरों की निगरानी, उनके स्वास्थ्य का आकलन और क्षेत्रीय जल संसाधनों में उनकी भूमिका को समझने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- शिक्षा और जागरूकता:
- भारत और अन्य प्रभावित देशों को अपने स्कूली पाठ्यक्रम में हिमालय के भूविज्ञान एवं पारिस्थितिकी के बारे में आधारभूत ज्ञान को शामिल करना चाहिये। यदि छात्रों को उनके पर्यावरण के बारे में पढ़ाया जाए तो वे भूमि से अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे और उसकी आवश्यकताओं को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे।
- यदि हिमालय के लोग अपने पर्वतीय घर की भूवैज्ञानिक भेद्यता और पारिस्थितिकीय भंगुरता के बारे में अधिक जागरूक होते तो वे निश्चित रूप से इसकी सुरक्षा के लिये कानूनों और नियमों का अधिक अनुपालन करते।
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय के हाल के निर्णयों और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से सुरक्षा के मूल अधिकार की मान्यता के परिप्रेक्ष्य में यह आवश्यक है कि लोग, विशेषकर भारतीय हिमालयी क्षेत्र के लोग, एक ऐसे सतत् विकास मॉडल के हक़दार हों जो इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी वहन क्षमता के अनुरूप हो।
आगे की राह यह होनी चाहिये कि न केवल पर्यावरण की सुरक्षा की जाए बल्कि IHR में समुदायों की दीर्घकालिक समृद्धि एवं कल्याण को भी सुनिश्चित किया जाए, जहाँ विकास और पर्यावरणीय संवहनीयता के बीच संतुलन पर बल दिया जाना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) की प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों की चर्चा कीजिये। इस क्षेत्र में विकास हेतु पारिस्थितिकी-केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाने के उपाय बताइये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2020) शिखर पर्वत
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (B) प्रश्न. यदि आप हिमालय से होकर यात्रा करेंगे तो आपको निम्नलिखित में से कौन सा पौधा वहाँँ प्राकृतिक रूप से उगता हुआ देखने को मिलेगा? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: A प्रश्न. जब आप हिमालय में यात्रा करेंगे, तो आपको निम्नलिखित दिखाई देगा: (2012)
उपर्युक्त में से किसे हिमालय के युवा वलित पर्वत होने का प्रमाण कहा जा सकता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: D मेन्स:प्रश्न. हिमालय क्षेत्र और पश्चिमी घाट में भूस्खलन के कारणों के बीच अंतर बताइये। (2021) प्रश्न. हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से भारत के जल संसाधनों पर कौन से दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे? (2020) प्रश्न . "हिमालय में भूस्खलन की अत्यधिक संभावना है।" इसके कारणों पर चर्चा करते हुए इसके शमन हेतु उपयुक्त उपाय बताइये। (2016) |