शासन व्यवस्था
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण का अधिकार
- 18 Apr 2024
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण का अधिकार, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, जीवन का अधिकार, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरिकन, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार, अनुच्छेद 51A(g), एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ (2000), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दों की परस्पर प्रकृति |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण के अधिकार को भारतीय संविधान में निहित जीवन के मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 21) और समता (अनुच्छेद 19) के भाग के रूप में स्वीकार किया है।
- यह निर्णय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन के संरक्षण से संबंधित एक मामले के दौरान आया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों के अंतर्संबंध पर तीव्रता से ध्यान केंद्रित किया गया है।
जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार:
- जीवन और आजीविका का अधिकार: जलवायु परिवर्तन तूफान या बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं के कारण लोगों के जीवन के अधिकार को सीधे प्रभावित कर सकता है, जिससे जीवन और संपत्ति की हानि हो सकती है।
- उदाहरण के लिये, निचले तटीय क्षेत्रों में, जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का स्तर बढ़ने से लोगों के घरों और आजीविका को खतरा हो सकता है, जिससे उन्हें स्थानांतरित होने के लिये विवश होना पड़ सकता है।
- स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुँच: जलवायु परिवर्तन जल स्रोतों को प्रभावित कर सकता है, जिससे जल की कमी या प्रदूषण हो सकता है।
- इससे लोगों के स्वच्छ जल और स्वच्छता का अधिकार प्रभावित होता है।
- उन क्षेत्रों में जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक पड़ता है, यहाँ समुदायों को सुरक्षित पेयजल तक पहुँचने के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- स्वास्थ्य और कल्याण: जलवायु परिवर्तन आर्थिक रूप से कमज़ोर आबादी के लिये स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकता है।
- उदाहरण के लिये, हीट वेव के बढ़ने से गर्मी से संबंधित बीमारियों और मौतों का कारण बन सकता है, जिससे स्वास्थ्य का अधिकार प्रभावित हो सकता है।
- इसी तरह मौसमी बदलाव से खाद्य सुरक्षा और पोषण पर भी असर पड़ सकता है, जिससे लोगों का समग्र हित प्रभावित हो सकता है।
- प्रवासन और विस्थापन: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित घटनाएँ जैसे समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम की घटनाएँ या मरुस्थलीकरण लोगों को पलायन करने या अपने घरों से विस्थापित होने के लिये मजबूर कर सकता है। यह मानवाधिकारों, विशेष रूप से निवास के अधिकार और शरण मांगने के अधिकार के साथ जुड़ा हुआ है।
- उदाहरण के लिये, तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों को समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण स्थानांतरित होना पड़ सकता है, जिससे पुनर्वास और अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- आदिवासियों के अधिकार: जलवायु परिवर्तन उन समुदायों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है जो अपनी आजीविका तथा सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- उदाहरण के लिये, जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव से खेती अथवा मछली पकड़ने जैसी पारंपरिक आजीविका के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है, जिससे आदिवासियों के भूमि, संसाधनों एवं सांस्कृतिक विरासत के अधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या कैसे करता है?
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 48A जो पर्यावरण संरक्षण को अनिवार्य बनाता है और अनुच्छेद 51A(g) जो वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देता है, जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित रहने के अधिकार की अंतर्निहित गारंटी प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है जबकि अनुच्छेद 14 इंगित करता है कि सभी व्यक्तियों को विधि के समक्ष समानता तथा विधि का समान संरक्षण प्राप्त होगा।
- ये लेख स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार तथा जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
- एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ मामले, 2000 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार जीवन के अधिकार का विस्तार है।
- हालिया निर्णयों के निहितार्थ:
- इस निर्णय के महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं कि यह भारत में पर्यावरण संरक्षण प्रयासों के लिये कानूनी आधार को मज़बूत करता है और साथ ही जलवायु परिवर्तन पर निष्क्रियता के विरुद्ध कानूनी चुनौतियों के लिये एक रूपरेखा भी प्रदान करता है।
- यह जलवायु परिवर्तन के मानवाधिकार आयामों की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के अनुरूप है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम तथा मानवाधिकार के साथ-साथ पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक द्वारा उल्लिखित है।
- इस निर्णय के महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं कि यह भारत में पर्यावरण संरक्षण प्रयासों के लिये कानूनी आधार को मज़बूत करता है और साथ ही जलवायु परिवर्तन पर निष्क्रियता के विरुद्ध कानूनी चुनौतियों के लिये एक रूपरेखा भी प्रदान करता है।
मानवाधिकार संरक्षण के साथ जलवायु परिवर्तन शमन को संतुलित करने में चुनौतियाँ क्या हैं?
- व्यापार-बंद: कुछ जलवायु शमन उपाय मानवाधिकारों के साथ टकराव कर सकते हैं, जैसे संरक्षण परियोजनाओं के लिये भूमि उपयोग पर प्रतिबंध अथवा नवीकरणीय ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण विस्थापन।
- ऐसे समाधान ढूँढना कठिन हो सकता है जो लाभांश को अनुकूलित करते हुए त्रुटियों को कम करे।
- संसाधनों तक पहुँच: नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन अथवा कार्बन मूल्य निर्धारण को लागू करने जैसी जलवायु गतिविधियाँ, विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये ऊर्जा, जल तथा भोजन जैसे आवश्यक संसाधनों तक पहुँच को प्रभावित कर सकती हैं।
- पर्यावरणीय प्रवासन: जलवायु-प्रेरित प्रवासन सामाजिक प्रणालियों पर दबाव डाल सकता है और साथ ही मेज़बान समुदायों में संसाधनों एवं अधिकारों पर संघर्ष का कारण बन सकता है।
- प्रवासन प्रवाह को इस तरह से प्रबंधित करना कि प्रवासियों तथा मेज़बान आबादी दोनों के अधिकारों का सम्मान हो, यह एक बहुआयामी चुनौती प्रस्तुत करती है।
- अनुकूलन बनाम शमन: जलवायु प्रभावों के अनुकूलन में निवेश के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (शमन) को कम करने के प्रयासों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- एक को दूसरे पर प्राथमिकता देने से मानवाधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर उन समुदायों पर, जो पहले से ही जलवायु संबंधी जोखिमों का सामना कर रहे हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है जिसके लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
- यह राष्ट्रीय जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के बीच संतुलन बनाने का एक कठिन प्रयास है, साथ ही यह सुनिश्चित करना भी है कि जलवायु पहल विदेशों में कमज़ोर समूहों के अधिकारों का उल्लंघन न करें।
आगे की राह
- मानवाधिकार-आधारित कार्बन मूल्य निर्धारण: प्रगतिशील छूट या लाभांश के साथ कार्बन कर लागू करना। कम आय वाले परिवारों के लिये छूट बड़ी हो सकती है, जिससे उच्च ऊर्जा लागत के प्रभाव की भरपाई हो सकती है और एक न्यायपूर्ण परिवर्तन सुनिश्चित हो सकता है।
- कार्बन टैक्स से राजस्व को स्वच्छ ऊर्जा पहल, कमज़ोर आबादी के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल और उनके जलवायु शमन एवं अनुकूलन प्रयासों में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिये निर्देशित किया जा सकता है।
- हरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण: विकासशील देशों को सस्ती दरों पर हरित प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना। इसमें बौद्धिक संपदा प्रतिबंधों में ढील देना या प्रौद्योगिकी साझा साझेदारी बनाना शामिल हो सकता है।
- इससे विकासशील देशों को अपने विकास के अधिकार से समझौता किये बिना कम कार्बन वाले विकास पथ अपनाने की अनुमति मिलेगी।
- मानवाधिकार प्रभाव आकलन: किसी भी जलवायु परिवर्तन शमन या अनुकूलन रणनीतियों को लागू करने से पहले संपूर्ण मानवाधिकार प्रभाव आकलन करें।
- इससे संभावित जोखिमों की पहचान करने में सहायता मिलेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि समाधान इस तरह से बनाए गए हैं जो मानवाधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में कानूनी ढाँचे और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। |
और पढ़ें: जलवायु परिवर्तन मामले में स्विस महिलाएँ
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 (Universal Declaration of Human Rights,1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और उत्तर: (d) प्रश्न. 'वैश्विक जलवायु परिवर्तन गठबंधन' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017) |