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सामाजिक न्याय

स्ट्रीट वेंडर्स: भूमिका एवं संघर्ष का आकलन

  • 06 May 2024
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 1/05/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Implementing the Street Vendors Act” लेख पर आधारित है। इसमें स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट, 2014 के बहुआयामी पहलुओं और इसके क्रियान्वयन की राह की चुनौतियों पर चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014, पीएम स्वनिधि योजना, दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM), शहरी स्थानीय निकाय (ULBs), शिकायत निवारण समिति, मौलिक अधिकार, DPSPs, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय, स्वयं सहायता समूह (SHGs), टाउन वेंडिंग समितियाँ (TVCs), NULM

मेन्स के लिये:

पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014 से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ।

1 मई, 2014 को लागू हुए पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014 [Street Vendors (Protection of Livelihood and Regulation of Street Vending) Act, 2014], जिसे आम तौर पर ‘स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट’ के रूप में जाना जाता है, ने एक दशक पूरे कर लिये हैं। एक दूरदर्शी विधान के रूप में इसका स्वागत किया गया था, जिसका उद्देश्य पथ विक्रेता या ‘स्ट्रीट वेंडर्स’ के विक्रय अधिकारों को वैध बनाकर उनका उत्थान करना था। हालाँकि, इस विधान के व्यावहारिक कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।

स्ट्रीट वेंडर्स प्रमुख शहरों में अपनी व्यापक उपस्थिति के कारण शहरी अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण घटक हैं, जो रोज़मर्रा की आवश्यक उपयोगी वस्तुओं की पेशकश करते हैं। वे शहरी आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र में अपरिहार्य माध्यम या नोड्स के रूप में कार्य करते हैं, जो निवासियों के लिये मूलभूत आवश्यकताओं तक पहुँच प्रदान करते हैं।

स्ट्रीट वेंडर्स कौन हैं और उनके संबद्ध अधिकार:

  • परिभाषा:
    • स्ट्रीट वेंडर वह व्यक्ति होता है जो विक्रय या वेंडिंग के लिये किसी स्थायी निर्मित संरचना के बिना आम लोगों को वस्तुओं की बिक्री करता है।
    • वे फुटपाथ या अन्य सार्वजनिक/निजी स्थानों पर अस्थायी निर्मित संरचना के माध्यम से अपना कार्य करते हैं या वे चल (मोबाइल) विक्रेता हो सकते हैं जो ठेला या टोकरियों में अपनी वस्तु रख एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते हुए उसकी बिक्री करते हैं।
  • जनसंख्या:
    • दुनिया भर के प्रमुख शहरों में, विशेषकर एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसे विकासशील भूभागों में स्ट्रीट वेंडर्स की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • भारत में लगभग 49.48 लाख स्ट्रीट वेंडर्स की पहचान की गई है, जहाँ उनकी सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश (8.49 लाख) और मध्य प्रदेश (7.04 लाख) में है। राजधानी दिल्ली में लगभग 72,457 स्ट्रीट वेंडर्स की पहचान की गई है, जबकि सिक्किम में उनकी अनुपस्थिति पाई गई है।
  • संवैधानिक प्रावधान - व्यापार का अधिकार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(g) सभी नागरिकों को कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का मूल अधिकार प्रधान करता है।

पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014 

  • वैधीकरण :
    • इसे पथ विक्रेताओं या स्ट्रीट वेंडर्स के बिक्री अधिकारों को वैध बनाने के लिये लागू किया गया था।
    • इसका उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में स्ट्रीट वेंडिंग को सुरक्षित एवं विनियमित करना था, जहाँ शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) द्वारा उप-कानूनों, योजना-निर्माण एवं प्रवर्तन के माध्यम से राज्य-स्तरीय विनियमनों एवं कार्यक्रमों के अनुपालन को सुनिश्चित किया जाना था।
  • भूमिका और उत्तरदायित्व:
    • यह विक्रेताओं और सरकार के विभिन्न स्तरों, दोनों की भूमिकाओं एवं उत्तरदायित्वों को रेखांकित करता है।
    • इसमें सभी ‘मौजूदा’ विक्रेताओं को निर्दिष्ट वेंडिंग ज़ोन में समायोजित करने और उनके लिये वेंडिंग प्रमाणपत्र (VCs) जारी करने की परिकल्पना की गई है।
    • यह टाउन वेंडिंग समितियों (TVCs) के गठन के माध्यम से एक सहभागी शासन ढाँचा स्थापित करता है। इन समितियों में स्ट्रीट वेंडर प्रतिनिधियों की 40% सदस्यता (महिला स्ट्रीट वेंडर्स के लिये 33% के उप-प्रतिनिधित्व के साथ) का प्रावधान किया गया है।
      • ये समितियाँ वेंडिंग क्षेत्रों में सभी मौजूदा वेंडर्स के समावेशन को सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं और इसमें शिकायतों एवं विवादों के निपटान के लिये भी एक तंत्र शामिल है जहाँ एक सिविल न्यायाधीश या न्यायिक मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक शिकायत निवारण समिति (Grievance Redressal Committee) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है।
  • सर्वेक्षण का आयोजन:
    • इसमें अनिवार्य किया गया है कि राज्य/शहरी स्थानीय निकाय प्रत्येक पाँच वर्ष में कम से कम एक बार स्ट्रीट वेंडर्स की पहचान के लिये सर्वेक्षण आयोजित करें।

भारत में स्ट्रीट वेंडर्स का महत्त्व:

  • आजीविका सृजन:
    • वे लाखों लोगों, विशेष रूप से प्रवासियों और शहरी गरीबों के लिये आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। यह उन्हें चुनौतीपूर्ण आर्थिक परिस्थितियों के बीच स्व-रोज़गार एवं जीविका के अवसर प्रदान करता है।
    • स्ट्रीट वेंडिंग से आपूर्ति शृंखला, लॉजिस्टिक्स और सहायक सेवाओं में भी अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं।
  • वस्तुओं एवं सेवाओं की सुलभता:
    • स्ट्रीट वेंडर्स शहरी निवासियों को सस्ती और सुलभ वस्तु एवं सेवाएँ उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • ताज़ा उत्पादों से लेकर रेडी-टू-ईट स्नैक्स तक, उनकी पेशकश दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करती है और शहरों की खाद्य सुरक्षा में योगदान देती है।
  • सांस्कृतिक विरासत संरक्षण:
    • स्ट्रीट वेंडर्स प्रायः खाद्य परंपराओं और सांस्कृतिक अभ्यासों के संरक्षक भी होते हैं। मुंबई के वड़ा पाव और चेन्नई के सड़क किनारे मिलने वाले डोसा जैसे उत्पाद उनके महत्त्व को दर्शाते हैं।
    • कारीगरों के शिल्प भारत के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों की विविध सांस्कृतिक विरासत को प्रतिबिंबित करते हैं। 

स्ट्रीट वेंडर्स के लिये सरकार की प्रमुख पहलें 

  • पीएम स्वनिधि योजना:
    • आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा लॉन्च की गई पीएम स्वनिधि योजना का उद्देश्य स्ट्रीट वेंडर्स को अपने व्यवसायों को फिर से शुरू करने या मौजूदा व्यवसाय के विस्तार के लिये वहनीय कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान करना है। यह समय पर पुनर्भुगतान के लिये प्रोत्साहन (incentives) भी प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (National Urban Livelihood Mission- NULM):
    • NULM एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसका उद्देश्य शहरी गरीब परिवारों को लाभकारी स्व-रोज़गार एवं कुशल मज़दूरी रोज़गार के अवसरों तक पहुँच में सक्षम बनाकर उनकी गरीबी और भेद्यता को कम करना है।
    • इसमें स्ट्रीट वेंडर्स के लिये कौशल प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और ऋण तक पहुँच के प्रावधान शामिल हैं।
  • DAY-NULM के अंतर्गत अर्बन स्ट्रीट वेंडर्स (USV) का घटक शामिल:
  • कौशल विकास संबंधी पहलें:
    • स्ट्रीट वेंडर्स की क्षमताओं को बढ़ाने, उन्हें अपने आजीविका विकल्पों में विविधता ला सकने तथा उनकी आय अर्जन की क्षमता में सुधार करने के लिये विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रमों और व्यावसायिक प्रशिक्षण पहलों की पेशकश की गई है।
  • टाउन वेंडिंग समितियाँ (TVCs):
    • स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के तहत, अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन की सुविधा के लिये नगरपालिका स्तर पर टाउन वेंडिंग समितियों का गठन किया जाता है।
    • ये समितियाँ वेंडिंग ज़ोन की पहचान करने, वेंडिंग प्रमाणपत्र जारी करने और स्ट्रीट वेंडर्स की शिकायतों का समाधान करने के लिये उत्तरदायी हैं।
  • राज्य विशिष्ट प्रावधान:
    • महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल ने स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट, 2014 के तहत स्ट्रीट वेंडर्स के लिये राज्य-विशिष्ट प्रावधान तैयार किये हैं।

भारत में स्ट्रीट वेंडर्स के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ 

  • प्रशासनिक चुनौतियाँ:
    • उत्पीड़न और बेदखली: स्ट्रीट वेंडर्स के संरक्षण पर केंद्रित स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के अस्तित्व के बावजूद उन्हें उत्पीड़न और बेदखली का सामना करना पड़ता है, जो प्रायः उन्हें अवैध प्रवासियों के रूप में देखने के पुराने नौकरशाही दृष्टिकोण का परिणाम होता है।
    • जागरूकता और संवेदनशीलता का अभाव: अधिनियम के प्रावधानों के संबंध में राज्य प्राधिकारियों, आम लोगों और वेंडर्स के बीच समझ की कमी पाई जाती है, जिसके परिणामस्वरूप इसके कार्यान्वयन में अंतराल उत्पन्न होता है।
    • TVCs में सीमित प्रतिनिधित्व: टाउन वेंडिंग समितियों में स्ट्रीट वेंडर प्रतिनिधियों का प्रभाव प्रायः कम होता है और इसमें महिला स्ट्रीट वेंडर्स का समावेशन प्रायः महत्त्वहीन बना रहता है।
  • शासन संबंधी चुनौतियाँ:
    • अपर्याप्त शहरी शासन तंत्र: शहरी शासन ढाँचे के साथ अधिनियम का संरेखण अपूर्ण रहा है और शहरी स्थानीय निकायों में आवश्यक प्राधिकार एवं क्षमता का अभाव पाया जाता है।
    • शहरी विकास पहलों में उपेक्षा: स्मार्ट सिटी मिशन जैसे कार्यक्रम स्ट्रीट वेंडर्स के एकीकरण के बजाय आधारभूत संरचना के विकास को प्राथमिकता देते हैं, जिससे अधिनियम के उद्देश्यों की उपेक्षा होती है।
    • अपवर्जनकारी शहरी विकास: ‘वर्ल्ड क्लास सीटीज़’ की पारंपरिक धारणा स्ट्रीट वेंडर्स को हाशिये पर धकेलती है, जिससे शहरी जीवन में वैध योगदानकर्ता के रूप में उनकी स्वीकृति बाधित होती है।
  • सामाजिक चुनौतियाँ:
    • जलवायु परिवर्तन और तकनीकी प्रगति का प्रभाव: स्ट्रीट वेंडर्स को जलवायु परिवर्तन, ई-कॉमर्स से प्रतिस्पर्द्धा और घटती आय जैसी नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिये नवोन्मेषी प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता है।
    • शहर की छवि पर कलंक: हाई-टेक शहरी क्षेत्र का सामाजिक दृष्टिकोण स्ट्रीट वेंडर्स की स्थिति को कायम बनाये रखता है, जहाँ शहरी समुदायों के अभिन्न सदस्यों के रूप में उनके महत्त्व को चिह्नित करने के बजाय उन्हें विकास में बाधक के रूप में देखा जाता है।
  • जबरन वसूली रैकेट:
    • ‘रंगदारी टैक्स’ और ‘हफ़्ता’ के मामले आम हैं। कई शहरों में स्ट्रीट वेंडर्स को अपना व्यापार चलाने के लिये पुलिस या दबंग को धन देना पड़ता है।

स्ट्रीट वेंडर्स की स्थिति में सुधार के लिये और क्या किया जा सकता है?

  • कार्यान्वयन को प्रबल करना:
    • इसमें पहचान प्रक्रियाएँ, जागरूकता बढ़ाना (शैक्षणिक कार्यशालाओं, गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग, सहकर्मी समुदाय शिक्षा, उपलब्ध लाभों के बारे में स्थानीय अधिकारियों के साथ सहकार्यता आदि के माध्यम से) और सहायता कार्यक्रमों की पहुँच सुनिश्चित करना शामिल है।
  • लाभों का विस्तार करना:
    • स्ट्रीट वेंडर्स को दुर्घटना राहत, प्राकृतिक मृत्यु के लिये मुआवजा, बच्चों की उच्च शिक्षा के लिये शैक्षिक सहायता और संकट के समय पेंशन सहित विभिन्न व्यापक लाभ प्रदान किये जाने चाहिये।
  • उत्पीड़न पर रोक:
    • यह सुनिश्चित किया जाए कि स्ट्रीट वेंडर्स को मनमाने ढंग से बेदखल न किया जाए, उनके सामान जब्त न हों या उनपर अनुचित जुर्माना न लगाया जाए। यह आजीविका अर्जन के उनके अधिकार की रक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रतिनिधित्व बढ़ाना:
    • स्ट्रीट वेंडरों को टाउन वेंडिंग कमेटियों जैसे निर्णय लेने वाले निकायों में सार्थक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी आजीविका को प्रभावित करने वाले मामलों में उनकी आवाज़ सुनी जाए।
    • स्ट्रीट वेंडर्स, विशेषकर महिला स्ट्रीट वेंडर्स का प्रतिनिधित्व बढ़ाने से हाशिये पर स्थित इस समूह के लिये अधिक समावेशी नीतियाँ और बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं।
  • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना:
    • ऋण, बचत और बीमा जैसी औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुँच को सुगम बनाने से स्ट्रीट वेंडरों को अपने वित्त का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने और अपने व्यवसायों में निवेश करने में मदद मिल सकती है।
    • सूक्ष्म वित्त संस्थान, स्वयं सहायता समूह और डिजिटल बैंकिंग समाधान स्ट्रीट वेंडर्स के बीच वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: स्ट्रीट वेंडर्स के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये और उनके सशक्तीकरण के लिये नीतिगत उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार कैसे कम हुए? क्या बढ़ती हुई अनौपचारिकता देश के विकास के लिये हानिकारक है? (2016)

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