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शासन व्यवस्था

स्ट्रीट वेंडर्स के समक्ष चुनौतियाँ

  • 02 May 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्ट्रीट वेंडर (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनयमन) एक्ट, 2014, 74वाँ संवैधानिक संशोधन, स्मार्ट सिटी मिशन, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र-पर्यावास

मेन्स के लिये:

शहरी नियोजन संबंधी मुद्दे, स्ट्रीट वेंडर्स का मामला, स्ट्रीट वेंडर (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनयमन) एक्ट

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में स्ट्रीट वेंडर (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनयमन) एक्ट, 2014 ने अपनी दसवीं वर्षगाँठ मनाई, जो भारत में स्ट्रीट वेंडर (पथ विक्रेता) आंदोलनों द्वारा चार दशकों के कानूनी विकास एवं वकालत की परिणति को दर्शाता है।

स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट और इससे जुड़े पहलू क्या हैं?

  • स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट:
    • कार्यक्षेत्र और उद्देश्य: यह एक्ट भारतीय शहरों में स्ट्रीट वेंडर्स की सुरक्षा और विनियमन के लिये तैयार किया गया था, जिसमें निर्दिष्ट विक्रय क्षेत्र (Vending Zones) स्थापित करने में स्थानीय अधिकारियों को शामिल किया गया था।
      • वेंडर्स शहरी जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, वे खाद्य वितरण और सांस्कृतिक पहचान में योगदान करते हैं तथा इस कानून का उद्देश्य उनकी आजीविका को सुरक्षित करना एवं उनकी गतिविधियों को औपचारिक शहरी नियोजन में एकीकृत करना है।
    • शासन संबंधी संरचना: यह एक्ट नगर विक्रय समितियों (Town Vending Committees - TVC) की स्थापना करता है, जिसमें स्ट्रीट वेंडर्स प्रतिनिधि शामिल होते हैं, इस समूह में कुल 
      • 33% महिला वेंडर्स होती हैं।
      • ये समितियाँ निर्दिष्ट क्षेत्रों में वेंडर्स को शामिल करने और शिकायत निवारण समिति (सिविल न्यायधीश या न्यायिक मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में) जैसे तंत्रों के माध्यम से शिकायतों को सुनने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • अन्य प्रावधान:
      • यह एक्ट विभिन्न स्तरों पर वेंडर्स और सरकार की भूमिकाओं तथा ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
      • प्रावधान के अनुसार, राज्यों/ULB को हर पाँच वर्ष में कम-से-कम एक बार SV की पहचान करने के लिये सर्वेक्षण करने की आवश्यकता होती है।
  • कार्यान्वयन चुनौतियाँ:
    • प्रशासनिक चुनौतियाँ:
      • एक्ट में उल्लिखित सुरक्षा के बावजूद, स्ट्रीट वेंडर्स को अक्सर उत्पीड़न और बेदखली का सामना करना पड़ता है।
      • यह आंशिक रूप से एक अवैध गतिविधि के रूप में वेंडिंग के लगातार नौकरशाही विचारों के कारण है।
      • इसके अतिरिक्त, TVC अक्सर वेंडर्स का प्रतिनिधित्व करने के बजाय शहर के अधिकारियों के नियंत्रण में रहते हैं, महिलाओं का प्रतिनिधित्व अक्सर केवल प्रतीकात्मक होता है।
    • शासन एकीकरण के मुद्दे:
      • यह  एक्ट 74वें संवैधानिक संशोधन द्वारा स्थापित व्यापक शहरी शासन ढाँचे के साथ एकीकृत होने के लिये संघर्ष करता है।
      • शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के पास अक्सर एक्ट को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये शक्ति और संसाधनों का आभाव होता है, खासकर स्मार्ट सिटीज़ मिशन जैसी व्यापक नीतियों के संदर्भ में, जो समावेशी शहरी नियोजन पर बुनियादी ढाँचे को प्राथमिकता देते हैं।
    • सामाजिक धारणा संबंधी समस्याएँ:
      • 'विश्व स्तरीय शहर' का दृष्टिकोण अक्सर स्ट्रीट वेंडर्स को बाहर कर देता है, जिसके तहत शहरी अर्थव्यवस्था में इनकों योगदानकर्त्ता के बजाय उपद्रव करने वाले के रूप में देखा जाता है।
      • सामाजिक कलंक से शहरी नियोजन और नीतियाँ प्रभावित होने के साथ ऐसी नीतियाँ बनती हैं जिससे  स्ट्रीट वेंडर्स हाशिये पर चले जाते हैं।
  • कानून को मज़बूत करने के उपाय:
    • सहायक कार्यान्वयन की आवश्यकता:
      • हालाँकि यह एक्ट प्रगतिशील है, और इसका प्रभावी कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण है तथा  इसके लिये आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय जैसे उच्च सरकारी स्तरों से प्रारंभिक शीर्ष मार्गदर्शन की आवश्यकता हो सकती है।
      • समय के साथ, देशभर में वेंडर्स के विविध स्थानीय संदर्भों के लिये रणनीतियों को तैयार करने हेतु अधिक विकेंद्रीकृत शासन की ओर परिवर्तन आवश्यक है।
    • शहरी योजनाओं के साथ एकीकरण:
      • योजनाओं में स्ट्रीट वेंडर्स को बेहतर ढंग से शामिल करने के लिये नीतियों और शहरी नियोजन दिशानिर्देशों को संशोधित किया जाना चाहिये।
      • इसमें शहरी नियोजन में वेंडर्स को शामिल करने के लिये ULB की क्षमताओं को बढ़ाना और TVC स्तर पर नौकरशाही नियंत्रण से अधिक समावेशी, विचार-विमर्श प्रक्रियाओं की ओर बढ़ना शामिल है।
    • नई चुनौतियों का समाधान:
      • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, ई-कॉमर्स  से बढ़ती प्रतिस्पर्धा और वेंडरों में वृद्धि जैसी उभरती चुनौतियों के आलोक में अधिनियम की आवश्यकताओं का रचनात्मक रूप से उपयोग किया जाना चाहिये। 
      • इसमें इन बदलती वास्तविकताओं के लिये नवाचार और अनुकूलन करने के लिये राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) जैसे राष्ट्रीय मिशनों के घटकों का लाभ उठाना शामिल है।

भारत में स्ट्रीट वेंडर नीति का विकास: 

भारत में स्ट्रीट वेंडर्स के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • कानूनी उलझन और उत्पीड़न:
    • अनिश्चित कानूनी स्थितिः स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट होने के बावजूद भी प्रवर्तन असमान बना हुआ है। कई वेंडर्स बिना लाइसेंस के काम करते हैं, जिससे उन्हें अधिकारियों और स्थानीय मध्यस्थों द्वारा बेदखली एवं उत्पीड़न का खतरा होता है।
    • रिश्वत और जबरन वसूली: यू.एन.-हैबिटेट की रिपोर्ट इस मुद्दे को उजागर करती हैं कि वेंडर्स  को पुलिस और स्थानीय अधिकारियों को रिश्वत देने के लिये मजबूर किया जाता है
  • अनिश्चित आजीविका और बुनियादी ढाँचे का संकट:
    • प्रतिस्पर्द्धा और आय में उतार-चढ़ावः कुछ क्षेत्रों में संतृप्ति और स्थापित व्यवसायों से प्रतिस्पर्धा अप्रत्याशित आय एवं आर्थिक असुरक्षा का कारण बनती है।
    • अवास्तविक लाइसेंस सीमा: मुंबई जैसे अधिकांश शहरों में लाइसेंस सीमा तार्किक नही है, जहाँ पर अनुमानित 2.5 लाख  वेंडर्स हैं जबकि लाइसेंस की सीमा को लगभग 15,000 तक सीमित रखा गया है।
    • बुनियादी सुविधाओं का अभाव: स्वच्छ पानी, स्वच्छता सुविधाओं और अपशिष्ट निपटान तक सीमित पहुँच, वेंडर्स तथा ग्राहकों दोनों के लिये स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न  करती है।
    • विस्थापन का खतराः शहरी विकास परियोजनाएँ और सड़क चौड़ीकरण की पहल अक्सर वेंडर्स  को विस्थापित करती हैं, जिससे आजीविका में व्यवधान उत्पन्न  होता है। 
    • व्यावसायिक खतरे: स्ट्रीट वेंडर्स ऐसे वातावरण में काम करते हैं जो अक्सर उनके स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं।
  • औपचारिक प्रणाली को नेविगेट करना:
    • जटिल लाइसेंसिंग प्रक्रिया: स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट की जटिल लाइसेंसिंग प्रक्रिया कठिन और औपचारिक हो सकती है, जो वेंडर्स को हतोत्साहित करती है।
    • ऋण तक सीमित पहुँच: अनौपचारिक आय, वेंडर्स के व्यवसाय उन्नयन एवं विस्तार के लिये ऋण प्राप्त करना कठिन बना देती है।
      • हालाँकि, PM स्वनिधि योजना का लक्ष्य व्यापक स्तर पर लक्षित आबादी को लाभ पहुँचाना था, परंतु इससे लक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो पाए।
      • जागरूकता की कमी,दस्तावेज़ीकरण और नौकरशाही बाधाएँ जैसे मुद्दे कई   वेंडर्स को योजना का लाभ प्राप्त करने से वंचित कर देते हैं।
  • लैंगिक भेदभाव: महिला वेंडर्स को अक्सर लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो उनके व्यावसायिक अवसरों और आय को प्रभावित करता है।
    • उनके प्रति हिंसा एवं उत्पीड़न की संभावना भी अधिक होती हैं, जिससे उन्हें व्यापार करने में बाधा उत्पन्न होती है।
    • कोविड-19 का प्रभाव: कोविड महामारी के कारण स्ट्रीट वेंडर्स को गंभीर आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ा।
    • लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के मानदंडों के कारण, कई लोगों ने अपनी आय का एकमात्र स्रोत खो दिया तथा वे निर्धनता की स्थिति में पहुँच गए।

स्ट्रीट वेंडर्स की समस्या से निपटने के लिये क्या कदम आवश्यक हैं?

  • विश्व बैंक और यू.एन.-हैबिटेट स्ट्रीट वेंडर्स को एक समस्या के रूप में देखने के स्थान पर उन्हें शहरी अर्थव्यवस्था के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में स्वीकार करते हैं।
    • औपचारिकीकरण और विनियमन: स्ट्रीट वेंडर अधिनियम, औपचारिकीकरण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। हनोई (वियतनाम) और अहमदाबाद (भारत) जैसे शहरों ने वेंडर्स पंजीकरण प्रणाली स्थापित की है, जो पहचान पत्र तथा स्वच्छता एवं सुरक्षा पर प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
    • निर्दिष्ट क्षेत्र: रियो डी जनेरियो (ब्राज़ील) और किगाली (रवांडा) जैसे शहरों ने व्यवस्था सुनिश्चित करने और पैदल चलने वालों के प्रवाह में सुधार लाने के लिये निर्दिष्ट स्ट्रीट वेंडर्स ज़ोन स्थापित किये हैं।
      • वेंडर्स तथा निवासी संघों के परामर्श से उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान करके इसे भारत में लागू किया जा सकता है।
    • बुनियादी ढाँचा और सहायता: स्वच्छ जल, स्वच्छता सुविधाएँ तथा अपशिष्ट निपटान तक पहुँच प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है। लीमा (पेरू) जैसे शहर अपशिष्ट प्रबंधन पर प्रशिक्षण और उपकरण उन्नयन के लिये सूक्ष्म ऋण प्रदान करते हैं।
    • भारतीय शहर गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों के साथ सहयोग करके इन मॉडलों का प्रयोग कर सकते हैं।
    • वेंडर्स संघ: कुमासी (घाना) जैसे संघों के माध्यम से वेंडर्स को सशक्त बनाने से अधिकारियों के साथ बातचीत की सुविधा मिलती है और सामूहिक सौदेबाज़ी को बढ़ावा मिलता है।
      • भारत वेंडर्स संघों को प्रोत्साहित कर उन्हें नीतिगत चर्चाओं में एकीकृत कर सकता है।
    • सहयोगात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना: प्रभावी स्ट्रीट वेंडर प्रबंधन के लिये बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है:
      • स्थानीय प्राधिकारी: शहरों को अनुकूल वातावरण बनाने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये। इसमें वेंडर्स परमिट जारी करना, निर्दिष्ट क्षेत्र स्थापित करना और बुनियादी ढाँचा संबंधी सहायता प्रदान करना सम्मिलित है।
      • स्ट्रीट वेंडर्स: वेंडर्स को नियमों का पालन करना होगा, स्वच्छता मानकों को बनाए रखना होगा और निर्दिष्ट शुल्क का भुगतान करना होगा। उन्हें वेंडर्स संघों में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिये तथा अधिकारियों के साथ रचनात्मक बातचीत में संलग्न होना चाहिये ।
      • निवासी संघ: भीड़भाड़ और अपशिष्ट प्रबंधन के विषय में निवासियों की चिंताओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। वेंडर्स संघों के साथ खुला संचार और समाधानों का सह-निर्माण इस अंतर को मिटा सकता है।

स्ट्रीट वेंडर्स के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयास और भारतीय पहल:

वर्ग 

विवरण

वैश्विक पहल

ILO अनुशंसा 204 (श्रमिकों का आर्थिक समावेशन), संयुक्त राष्ट्र SDGs 8 (सभी के लिये सभ्य कार्य)

ग्लोबल एडवोकेसी के लिये स्ट्रीट वेंडर्स पहल (SVIGA)

अनौपचारिक रोज़गार में महिलाएँ: वैश्वीकरण और संगठित करना (WIEGO)

भारतीय योजनाएँ


PM स्वनिधि, स्ट्रीट वेंडर्स  एक्ट 2014, राज्य-विशिष्ट योजनाएंँ

निष्कर्ष:

  • भारत का भविष्य जनसंख्या घनत्व और माल की विविधता जैसे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, प्रत्येक शहर की अनूठी विशेषताओं के अनुसार नीतियाँ बनाने में निहित है। कौशल विकास एवं माइक्रोफाइनेंस कार्यक्रमों के माध्यम से वेंडर्स की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) एक्ट, 2014 के कार्यान्वयन के बाद भारत में स्ट्रीट वेंडर्स के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों के समाधान में एक्ट की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये और शहरी क्षेत्रों में स्ट्रीट वेंडर्स की स्थिति में सुधार हेतु उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण के परिणाम स्वरूप औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार कैसे कम हुए? क्या बढ़ती हुई अनौपचारिकता देश के विकास के लिये हानिकारक है? (2016)

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