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शासन व्यवस्था

स्ट्रीट वेंडर्स

  • 26 Jul 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया, स्वनिधि, मूल अधिकार, डीपीएसपी, द स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट 

मेन्स के लिये:

असंगठित अर्थव्यवस्था का महत्त्व, स्ट्रीट वेंडर्स के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ और उनके समाधान हेतु उपाय, संबंधित सरकारी पहल

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में आवास और शहरी मामलों के मंत्री ने "अतिक्रमणकारियों से स्व-रोगार तक (From Encroachers to Self-Employed)" विषय पर आयोजित नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया (NASVI) की छठी बैठक को संबोधित किया। 

स्ट्रीट वेंडर्स: 

  • परिचय: 
    • स्ट्रीट वेंडर ऐसे व्यक्ति हैं जो सामान की बिक्री के लिये एक स्थायी निर्मित संरचना के बिना जनता को बड़े पैमाने पर वस्तुओं की बिक्री की पेशकश करते हैं 
    • स्ट्रीट वेंडर सामान को बेचने के लिये स्थायी रूप से फुटपाथ या अन्य सार्वजनिक/निजी स्थानों पर कब्ज़ा कर लेते हैं या अस्थायी तौर पर अपने सामान को ठेले (Push Carts) या सिर पर टोकरियों में लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। 
  • जनसंख्या 
    • दुनिया भर के प्रमुख शहरों में विशेष रूप से एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के विकासशील देशों में स्ट्रीट वेंडर की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। 
    • भारत में लगभग 49.48 लाख स्ट्रीट वेंडर्स की पहचान की गई है। 
      • उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 8.49 लाख, उसके बाद मध्य प्रदेश में 7.04 लाख स्ट्रीट वेंडर हैं 
      • दिल्ली में केवल 72,457 स्ट्रीट वेंडर हैं। 
      • सिक्किम में किसी स्ट्रीट वेंडर की पहचान नहीं की गई है। 
  • संवैधानिक प्रावधान: 
    • व्यापार करने का अधिकार: 
      • अनुच्छेद 19 (1) (g) भारतीय नागरिकों को किसी भी पेशे को अपनाने या व्यवसाय, व्यापार या वाणिज्य करने का मौलिक अधिकार देता है। 
    • कानून के समक्ष समानता: 
      • संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार, राज्य भारत के क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। 
    • सामाजिक न्याय: 
      • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि भारत संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है और अपने समस्त नागरिकों के लिये सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता सुनिश्चित करेगा। 
    • निदेशक सिद्धांत:  
      • अनुच्छेद 38(1) के तहत राज्य द्वारा सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित कर लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का निर्देश देना है, जिस्में राष्ट्रीय संस्थाओं में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित किया जाएगा 
      • अनुच्छेद 38 (2) 'आय की स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करने' का निर्देश देता है। 
      • अनुच्छेद 39 (A) राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिये नीति तैयार करने का निर्देश देता है कि नागरिकों, पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधनों तक पहुँच का अधिकार हो। 
      • अनुच्छेद 41 विशेष रूप से राज्य की आर्थिक क्षमता की सीमा के भीतर 'काम करने का अधिकार' प्रदान करता है। 

स्ट्रीट वेंडर्स की संख्या बढ़ने का कारण: 

  • पहला, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी के साथ-साथ लाभकारी रोज़गार की कमी ने लोगों को शहरों में बेहतर जीवन की तलाश में अपने गाँवों से बाहर जाने को मजबूर किया है। 
    • इन प्रवासियों के पास संगठित क्षेत्र में बेहतर वेतन, सुरक्षित रोज़गार पाने के लिये कौशल या शिक्षा का अभाव होता है, अतः उन्हें असंगठित क्षेत्र में काम के लिये समझौता करना पड़ता है। 
  • दूसरा, देश में आबादी का एक और वर्ग है जो रोज़गार हेतु असंगठित क्षेत्र में जाने के लिये मज़बूर है। 
    • ये वे श्रमिक हैं जो कभी संगठित क्षेत्र में कार्यरत थे। 
      • उद्योगों के बंद होने, आकार घटने या विलय के कारण उन्होंने अपनी नौकरी खो दी और उन्हें या उनके परिवार के सदस्यों को जीवन-यापन लिये असंगठित क्षेत्र में कम वेतन पर काम की तलाश करनी पड़ी। 

स्ट्रीट वेंडर्स के समक्ष चुनौतियाँ: 

  • स्थान की कमी: 
    • हमारे शहरों के लिये तैयार किये गए मास्टर प्लान विक्रेताओं/हॉकरों को स्थान आवंटित नहीं करते हैं, क्योंकि नियोजक भारतीय परंपराओं की अनदेखी करते हुए विपणन की पश्चिमी अवधारणा की नकल करते हैं। 
  • कई प्राधिकरणों से निवारण: 
    • विक्रेताओं को कई प्राधिकरणों से निपटना पड़ता है- नगर निगम, पुलिस (थाना के साथ-साथ यातायात), क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण, ज़िला प्रशासन, स्थानीय पंचायत आदि। 
  •  शोषण और ज़बरन वसूली: 
    • कई मामलों में एक प्राधिकारी द्वारा उठाए गए सकारात्मक कदम दूसरों के कार्यों की वजह से निष्प्रभावी हो जाते हैं। 
    • विक्रेताओं को विनियमित करने के बजाय नगर निगम उन्हें एक अतिक्रमणकारी और बाधा के रूप में मानते हैं, उनकी नीतियों और कार्यों का उद्देश्य विनियमन के बजाय उन्हें हटाना और परेशान करना अधिक है। 
  • बार-बार बेदखली: 
    • ज़िला या नगरपालिका प्रशासन द्वारा नियमित निष्कासन किया जाता है। 
    • वे निष्कासन टीम की कार्यवाही से डरते हैं जिसे स्थानीय रूप से अलग-अलग नामों से जाना जाता है। 
  • रंगदारी रैकेट: 
    • 'रंगदारी टैक्स' और 'हफ्ता वसूली' के मामले आम हैं। 
    • कई शहरों में विक्रेताओं को अपना व्यापार चलाने के लिये पर्याप्त धन देना पड़ता है। 

स्ट्रीट वेंडर्स के लिये सरकार की पहल: 

  • स्वनिधि योजना: 
    • स्वनिधि (SVANidhi) योजना शहरी क्षेत्रों के 50 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर्स को लाभान्वित करने के लिये शुरू की गई थी, जिनमें आसपास के शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी शामिल थे। 
    • इसका उद्देश्य 1,200 रुपए प्रतिवर्ष की राशि तक कैश-बैक प्रोत्साहन के माध्यम से डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना है। 
  • नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया: 
    • NASVI एक ऐसा संगठन है जो देश भर के हज़ारों स्ट्रीट वेंडर्स के आजीविका अधिकारों की सुरक्षा के लिये कार्य कर रहा है। 
    • NASVI की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत में स्ट्रीट वेंडर संगठनों को एक साथ लाना था ताकि वृहद् स्तर पर बदलावों के लिये सामूहिक रूप से प्रयास किया जा सके। 
  • स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का नियमन) अधिनियम, 2014: 
    • इस अधिनियम को सार्वजनिक क्षेत्रों में स्ट्रीट वेंडर्स को विनियमित करने और उनके अधिकारों की सुरक्षा करने हेतु लागू किया गया था। 
    • यह अधिनियम स्ट्रीट वेंडर को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जो किसी भी सार्वजनिक स्थान या निजी क्षेत्र पर, किसी अस्थायी जगह पर बने ढाँचे से या जगह-जगह घूमकर, आम जनता के लिये रोज़मर्रा के उपयोग की वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश करता है।

आगे की राह 

  • स्ट्रीट वेंडर्स के लिये कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, किंतु इसके बावजूद इन योजनाओं के कार्यान्वयन, पहचान, जागरूकता और पहुँच से संबंधित विभिन्न चरणों में अंतराल देखा जा रहा है, जिन्हें समयबद्ध ढंग से दूर किया जाना आवश्यक है। 
  • इसके अलावा महिला स्ट्रीट वेंडर्स को मातृत्व भत्ता, दुर्घटना राहत, उच्च शिक्षा हेतु वेंडर के बच्चों को सहायता और किसी भी संकट के दौरान पेंशन जैसे लाभ प्रदान किये जाने चाहिये। 
  • राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिये कहा जाना चाहिये कि अधिकारियों द्वारा रेहड़ी-पटरी वालों को परेशान न किया जाए क्योंकि वे केवल आजीविका का अधिकार मांग रहे हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. वैश्वीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्र में रोगार में कमी कैसे की है? क्या बढ़ी हुई अनौपचारिकता देश के विकास के लिये हानिकारक है? (2016, मुख्य परीक्षा) 

स्रोत: पी.आई.बी. 

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