भारत के स्टार्टअप विकास को आकार देना | 12 Apr 2025
यह एडिटोरियल 08/04/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Why Indian startup ecosystem needs a deep-tech compass” पर आधारित है। लेख में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि भारत के स्टार्टअप इको-सिस्टम को उल्लेखनीय वृद्धि हासिल करते हुए, दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और घरेलू नवाचार सुनिश्चित करने के लिये अल्पकालिक उपक्रमों से डीप-टेक जैसे उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
प्रिलिम्स के लिये:इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO), स्टार्टअप इंडिया पहल, स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS), स्टार्टअप के लिये क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS), वैकल्पिक निवेश कोष (AIF), महिला उद्यमिता मंच (WEP), अटल इनोवेशन मिशन (AIM), मोटर वाहन अधिनियम, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम- 2024, एंजल टैक्स, बौद्धिक संपदा अधिकार मेन्स के लिये:भारत के स्टार्टअप इको-सिस्टम को बढ़ावा देने में नवाचार और सरकारी पहल का महत्त्व। |
भारत के स्टार्टअप इको-सिस्टम ने तेज़ी से विकास किया है, जिससे यह विश्व में तीसरे सबसे बड़े इको-सिस्टम के रूप में स्थापित हुआ है। 1.57 लाख से अधिक मान्यता प्राप्त (उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) द्वारा) स्टार्टअप और यूनिकॉर्न की बढ़ती संख्या के साथ, भारत नवाचार में एक वैश्विक अग्रणी के रूप में उभर रहा है। सरकार द्वारा समर्थित पहल, क्षेत्र-विशिष्ट नीतियों और बढ़ते निवेशक विश्वास के साथ मिलकर इस परिवर्तन को आगे बढ़ा रहे हैं। हालाँकि, पूंजी अभिगम, विनियामक जटिलता और स्केलिंग जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो विकास को बनाए रखने तथा दीर्घकालिक मूल्य बनाने के लिये निरंतर सुधार एवं रणनीतिक निवेश की मांग करती हैं।
भारत में स्टार्टअप्स की स्थिति क्या है?
- स्टार्टअप: स्टार्टअप से तात्पर्य नवगठित व्यवसाय से है जिसका लक्ष्य नवाचार और प्रौद्योगिकी के माध्यम से तेज़ी से विस्तार करना है।
- इन व्यवसायों का उद्देश्य सामान्यतः विघटनकारी उत्पादों या सेवाओं के माध्यम से बाज़ार की कमियों को पूरा करना होता है।
- फंडिंग परिदृश्य: वर्ष 2025 की पहली तिमाही में, भारतीय स्टार्टअप्स ने 2.5 बिलियन डॉलर जुटाए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 8.7% की वृद्धि दर्शाता है।
- यह वृद्धि भारत में बढ़ते निवेशक विश्वास और जीवंत स्टार्टअप क्षेत्र को दर्शाता है।
- IPO उछाल: भारत के स्टार्टअप क्षेत्र में इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) में वृद्धि देखी जा रही है, जिसमें 23 स्टार्टअप वर्ष 2025 में पब्लिक लिस्टिंग की तैयारी कर रहे हैं।
- यह वृद्धि भारतीय मूल के नवाचारों और बाज़ार-संचालित समाधानों में निवेशकों की व्यापक रुचि को दर्शाता है।
- यूनिकॉर्न विकास: भारत में 100 से अधिक यूनिकॉर्न हैं, जिनका मूल्य 1 बिलियन डॉलर से अधिक है।
- ये यूनिकॉर्न फिनटेक, हेल्थ-टेक, एडटेक और ई-कॉमर्स जैसे विविध क्षेत्रों में फैले हुए हैं, जो स्टार्टअप इको-सिस्टम की विशाल क्षमता को सिद्ध करते हैं।
- क्षेत्रीय विकास और समावेशिता: टियर-2 और टियर-3 शहर अब प्रमुख भागीदार बन रहे हैं, जो 51% स्टार्टअप में योगदान दे रहे हैं।
- ये शहर क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करते हुए कृषि, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में समाधान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
स्टार्टअप के प्रकार (मूल्यांकन के आधार पर)
प्रकार |
मूल्यांकन सीमा |
विवरण |
सीड स्टेज/प्रारंभिक चरण |
10 मिलियन डॉलर से कम |
नव स्थापित स्टार्टअप, प्रायः पूर्व-राजस्व चरण में, सीड फंडिंग या इनक्यूबेटर द्वारा समर्थित होते हैं। |
मिनिकॉर्न्स |
10 मिलियन डॉलर से लेकर 100 मिलियन डॉलर से कम |
प्रारंभिक विकास चरण के स्टार्टअप्स में विस्तार और वृहत निवेश को आकर्षित करने की क्षमता दिख रही है। |
सूनीकॉर्न्स |
100 मिलियन डॉलर से लेकर 1 बिलियन डॉलर से कम |
तेज़ी से बढ़ते स्टार्टअप्स के जल्द ही यूनिकॉर्न का दर्जा प्राप्त करने की उम्मीद है। |
यूनिकॉर्न्स |
1 बिलियन डॉलर या उससे अधिक |
निजी स्वामित्व वाली स्टार्टअप कंपनियाँ जिनका मूल्यांकन 1 बिलियन डॉलर या उससे अधिक है। |
डेकाकॉर्न्स |
10 बिलियन डॉलर या उससे अधिक |
10 बिलियन डॉलर या उससे अधिक मूल्य के स्टार्टअप, महत्त्वपूर्ण बाज़ार प्रभाव का संकेत देते हैं। |
प्रमुख पहलों और उनकी उपलब्धियों ने भारत के स्टार्टअप इको-सिस्टम को किस प्रकार मज़बूत किया है?
- स्टार्टअप इंडिया पहल: वर्ष 2016 में शुरू की गई स्टार्टअप इंडिया पहल का उद्देश्य नवाचार और उद्यमिता के लिये एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
- अनुपालन को सरल बनाने और कर लाभ प्रदान करने से 1.57 लाख से अधिक स्टार्टअप लाभान्वित हुए हैं, जिससे संसाधनों तक उनकी पहुँच बढ़ी है।
- स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स (FFS): प्रारंभिक चरण के वित्तपोषण के लिये आवंटित 10,000 करोड़ रुपए के साथ FFS, स्टार्टअप विकास को बढ़ावा देने में आधारशिला रहा है।
- वर्ष 2024 तक, इस फंड ने 1,173 स्टार्टअप्स में ₹21,276 करोड़ का निवेश सक्षम किया, जिससे उनकी वित्तीय क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS): वर्ष 2021 में लॉन्च की गई स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS), अवधारणा के प्रमाण (किसी विचार की क्षमता को मान्य करने के लिये व्यवहार्यता परीक्षण) और प्रोटोटाइप विकास (डिज़ाइन कार्यक्षमता के परीक्षण के लिये उत्पाद का प्रारंभिक संस्करण) जैसे महत्त्वपूर्ण चरणों के माध्यम से स्टार्टअप का समर्थन करती है।
- वर्ष 2024 तक 2,622 स्टार्टअप्स को सहायता देने और उनके विकास को बढ़ावा देने के लिये 467.75 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- स्टार्टअप्स के लिये ऋण गारंटी योजना (CGSS): स्टार्टअप के लिये क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS) संपार्श्विक-मुक्त ऋण तक पहुँच की सुविधा प्रदान करती है, जिससे स्टार्टअप्स को परिसंपत्तियों के बोझ के बिना वित्तपोषण प्राप्त करने में मदद मिलती है।
- जनवरी 2025 तक, इस योजना ने 209 स्टार्टअप्स के लिये ₹604.16 करोड़ की गारंटी दी है, जिसमें ₹27.04 करोड़ महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के लिये आवंटित किये गए हैं।
- महिला उद्यमियों के लिये समर्थन: सरकार ने महिला उद्यमियों को प्राथमिकता दी है, जिसके तहत वर्ष 2024 तक 73,151 स्टार्टअप्स में कम से कम एक महिला निदेशक थी।
- महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स को वैकल्पिक निवेश कोष (AIF) के माध्यम से 3,107.11 करोड़ रुपए का निवेश प्राप्त हुआ है।
- क्षेत्र-विशिष्ट नीतियाँ: जैव प्रौद्योगिकी, कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के लिये लक्षित नीतियाँ क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण रही हैं।
- इन नीतियों ने निवेश को आकर्षित किया है, विशेष रूप से डीप-टेक में, जहाँ भारत एक वैश्विक अग्रणी के रूप में उभर रहा है।
- क्षमता निर्माण कार्यक्रम: महिला उद्यमिता मंच (WEP) और अटल इनोवेशन मिशन (AIM) स्टार्टअप्स को समर्थन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- WEP नीतियों और पुरस्कारों को एकीकृत करता है, जबकि AIM ने युवावस्था से ही उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये 10,000 अटल टिंकरिंग लैब्स की स्थापना की है।
- राज्यों की स्टार्टअप रैंकिंग: वर्ष 2018 से, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत DPIIT राज्यों की स्टार्ट-अप रैंकिंग का कार्य कर रहा है।
- यह देश भर में स्टार्टअप्स के लिये व्यावसायिक परिवेश को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत में स्टार्टअप इको-सिस्टम के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- पूंजी उपलब्धता: कई स्टार्टअप्स, विशेष रूप से टियर-2 और टियर-3 शहरों में, पर्याप्त पूंजी हासिल करने में चुनौतियों का सामना करते हैं।
- वर्ष 2024 में, इन शहरों में फंडिंग में काफी गिरावट आई है, जुलाई 2024 में ₹2,202 करोड़ से नवंबर 2024 में ₹202 करोड़ तक की गिरावट आई है, जो फंडिंग असमानता को उजागर करता है।
- नियामक बाधाएँ: भारत का नियामक परिदृश्य स्टार्टअप्स के लिये बहुत बड़ी चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
- उदाहरण के लिये, ओला और उबर जैसी ऐप-आधारित कैब सेवाओं को मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत वर्गीकृत करने पर चल रही बहस से परिचालन में अनिश्चितता बढ़ रही है।
- अनुपालन भार: नया डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम- 2024, स्टार्टअप्स के लिये अनुपालन बोझ बढ़ाता है।
- हालाँकि यह डेटा सुरक्षा के लिये आवश्यक है, लेकिन इससे उन स्टार्टअप्स पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है जो पहले से ही परिचालन दक्षता के साथ संघर्ष कर रहे हैं।
- स्केलिंग मुद्दे: कई स्टार्टअप्स के लिये स्केलिंग एक महत्त्वपूर्ण बाधा बनी हुई है, लगभग 90% स्टार्टअप्स पाँच वर्षों के भीतर विफल हो जाते हैं।
- बाज़ार में प्रवेश की चुनौतियाँ और परिचालन अक्षमताएँ जैसे मुद्दे इस उच्च विफलता दर में योगदान करते हैं, जिससे दीर्घकालिक विकास बाधित होता है।
- प्रतिस्पर्द्धा और बाज़ार संतृप्ति: कुछ क्षेत्रों में स्टार्टअप, विशेष रूप से एडटेक, तीव्र प्रतिस्पर्द्धा का सामना कर रहे हैं।
- इन बाज़ारों की संतृप्ति तथा अस्थिर नकदी व्यय के कारण, सीमित लाभप्रदता होती है तथा स्टार्टअप्स को विकास को बनाए रखने में संघर्ष करना पड़ता है।
- प्रतिभा पलायन और बौद्धिक संपदा: भारत प्रतिभा पलायन की एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है, जहाँ नवाचारों को कम मूल्य पर विदेशी कंपनियों को बेच दिया जाता है।
- इससे बौद्धिक पूंजी की हानि होती है और भारत के स्टार्टअप इको-सिस्टम की दीर्घकालिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कमज़ोर होती है।
- नवप्रवर्तन की स्थिरता: स्टार्टअप प्रायः अल्पकालिक लाभ पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अस्थिर मॉडल सामने आते हैं।
- एड-टेक जैसे क्षेत्रों में, इसके परिणामस्वरूप महामारी के बाद मंदी आई है, जिससे दीर्घकालिक मूल्य सृजन को प्राथमिकता देने वाले स्थायी विकास मॉडल की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
- बुनियादी अवसंरचना की चुनौतियाँ: टियर-2 और टियर-3 शहरों में विकास के बावजूद, निम्नस्तरीय बुनियादी अवसंरचना अभी भी एक बाधा बना हुआ है।
- अपर्याप्त कनेक्टिविटी और संसाधनों तक सीमित पहुँच स्टार्टअप्स की स्केलेबिलिटी को सीमित करती है, जिससे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है।
भारत नवाचार और स्टार्टअप में वैश्विक अग्रणी कैसे बन सकता है?
- डीप-टेक इको-सिस्टम को मज़बूत करना: भारत को AI, रोबोटिक्स और सेमीकंडक्टर जैसे डीप-टेक उद्योगों के समर्थन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने तथा भारत को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित करने के लिये प्रारंभिक चरण के वित्तपोषण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- नीतिगत सुधार और समर्थन: सरकार को एंजल टैक्स को समाप्त करने जैसे नीतिगत सुधारों को लागू करना और बढ़ाना जारी रखना चाहिये।
- सुरक्षित बंदरगाह नियमों का विस्तार और उच्च तकनीक क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास के लिये अतिरिक्त प्रोत्साहन की पेशकश से भारतीय स्टार्टअप्स की वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित होगी।
- टियर-2 और टियर-3 शहरों का विकास: टियर-2 और टियर-3 शहरों को नवाचार केंद्रों के रूप में विकसित करके स्टार्टअप इको-सिस्टम का विकेंद्रीकरण आवश्यक है।
- बुनियादी अवसंरचना में सुधार, कम भूमि दर उपलब्ध कराना और नवाचार केंद्रों की स्थापना से क्षेत्रीय स्टार्टअप्स को विकसित होने में मदद मिलेगी।
- बौद्धिक संपदा संरक्षण को दृढ़ करना: नवाचार-संचालित विकास को प्रोत्साहित करने के लिये बौद्धिक संपदा संरक्षण को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- पेटेंट जाँच में तीव्रता लाने और बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से यह सुनिश्चित होगा कि स्टार्टअप्स के नवाचार वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बने रहें।
- शिक्षा जगत के साथ सहयोग: गहन तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने के लिये शिक्षा जगत और स्टार्टअप के बीच सहयोग आवश्यक है।
- विश्वविद्यालय इनक्यूबेटर के रूप में कार्य कर सकते हैं, अनुसंधान साझेदारी को बढ़ावा दे सकते हैं और स्टार्टअप्स को वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने वाली अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में सहायता कर सकते हैं।
- स्थानीय समाधानों के माध्यम से समावेशी विकास: स्टार्टअप्स को स्थानीय चुनौतियों का समाधान करने के लिये टियर-2 और टियर-3 शहरों में अपनी उपस्थिति का लाभ उठाना चाहिये।
- कृषि, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में समाधान विकसित करने से भारत के स्टार्टअप इको-सिस्टम के समावेशी विकास में योगदान मिलेगा।
- सरकारी खरीद और बाज़ार के अवसर: अमेरिका के समान, स्टार्टअप्स से सरकारी खरीद के लिये नीतियाँ लागू करने से महत्त्वपूर्ण बाज़ार अवसर खुलेंगे।
- स्टार्टअप्स के लिये सरकारी अनुबंधों का एक निश्चित प्रतिशत अनिवार्य करने से दीर्घकालिक विकास और स्थिरता सुनिश्चित होगी।
निष्कर्ष
भारत का स्टार्टअप इको-सिस्टम उचित नीतिगत सुधारों और डीप-टेक उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करके आगे बढ़ने के लिये तैयार है। चुनौतियों का समाधान करके और नवाचार को बढ़ावा देकर, भारत वैश्विक स्तर पर नेतृत्व करना जारी रख सकता है, जिससे उद्यमशीलता की सफलता से प्रेरित संधारणीय, समावेशी आर्थिक विकास का भविष्य सुनिश्चित हो सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “भारत का स्टार्टअप इको-सिस्टम समृद्ध तो है, लेकिन असमान भी है।” इस संदर्भ में अवसरों, उपलब्धियों और चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. जोखिम पूँजी से क्या तात्पर्य है? (2014) (a) उद्योगों को उपलब्ध कराई गई अल्पकालीन पूँजी उत्तर: (b) |