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भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रामीण भारत: प्रगति और समस्याएँ

  • 08 Aug 2023
  • 21 min read

यह एडिटोरियल 04/08/2023 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Rural poverty declines, but lifestyle issues emerge’’ लेख पर आधारित है। इसमें ग्रामीण विकास और ग्रामीण भारत की प्रगति में नीति आयोग की भूमिका के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

बहुआयामी गरीबी सूचकांक, नीति आयोग, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (MNREGA), प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G), सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य), प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY)

मेन्स के लिये:

ग्रामीण विकास से संबंधित चुनौतियाँ।

भारत विरोधाभासों का देश है, जहाँ तीव्र आर्थिक विकास के साथ ही सतत् गरीबी और सामाजिक समस्याओं का सह-अस्तित्व पाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र, जहाँ देश की लगभग दो-तिहाई आबादी निवास करती है, जीवन स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के मामले में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों से गुज़र रहे हैं। 

जैसे-जैसे भारत का ग्रामीण परिदृश्य एक परिवर्तनकारी यात्रा से गुज़र रहा है, जहाँ बहुआयामी गरीबी (multidimensional poverty) में आशाजनक गिरावट आ रही है, परिवर्तनों की एक जटिल तस्वीर भी सामने उभर रही है। नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा जारी अद्यतन राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (National Multidimensional Poverty Index- MPI), प्रगति के एक उत्साहजनक आख्यान को उजागर करता है, जहाँ वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच गरीबी दरों (poverty rates) में पर्याप्त कमी नज़र आई है। 

नीति आयोग का राष्ट्रीय MPI:

  • परिचय: राष्ट्रीय MPI गरीबी की एक माप है जो तीन समान रूप से महत्त्वपूर्ण आयामों— स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के मामले में किसी देश की प्रगति को दर्शाता है। 
    • यह 10 संकेतकों पर विचार करता है जिसमें पोषण, बाल मृत्यु दर, स्कूली शिक्षा के वर्ष, रसोई ईंधन, स्वच्छता आदि शामिल  हैं। 
  • राष्ट्रीय MPI के घटक: राष्ट्रीय MPI को दो घटकों में विभाजित किया जा सकता है- 
    • गरीबी की स्थिति (incidence of poverty)—यानी गरीब लोगों का प्रतिशत और गरीबी की तीव्रता (intensity of poverty)—यानी गरीबों का औसत अभाव स्कोर (average deprivation score)। 
  • राष्ट्रीय MPI के निष्कर्ष: नीति आयोग की प्रगति समीक्षा 2023 के अनुसार, भारत ने वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच बहुआयामी गरीबी को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। 
    • इस अवधि में गरीबी की स्थिति 24.85% से घटकर 14.96% हो गई, जबकि गरीबी की तीव्रता 47.14% से घटकर 44.39% हो गई। 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में भी गरीबी में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई जहाँ यह 32.59% से घटकर 19.28% हो गई। 
      • ग्रामीण गरीबी में सुधार का श्रेय केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ अन्य हितधारकों द्वारा की गई विभिन्न लक्षित विकास पहलों को दिया जा सकता है।  

ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार के संकेत: 

  • उन्नत आवास अवसंरचना: 
    • पक्के या अर्द्ध पक्के घरों तक पहुँच में वृद्धि बेहतर संरचनात्मक पहुँच और बेहतर जीवन स्थिति का प्रतीक है। 
    • टिकाऊ आवास प्राकृतिक घटकों के विरुद्ध प्रत्यास्थता को बढ़ावा देता है, जिससे ग्रामीण निवासियों के लिये सुरक्षा सुनिश्चित होती है। 
  • बेहतर स्वच्छता सुविधाएँ: 
    • शौचालयों की वृहत उपलब्धता स्वच्छता एवं स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने और खुले में शौच एवं संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने की स्थिति को प्रकट करती है। 
      • बेहतर स्वच्छता सुविधाएँ सामुदायिक कल्याण और स्वच्छ वातावरण में योगदान देती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G) के तहत 1 लाख से अधिक गाँवों ने स्वयं को ODF प्लस (खुले में शौच मुक्त- प्लस) घोषित किया है। 
  • विद्युत तक विस्तारित पहुँच: 
    • बिजली तक पहुँच का विस्तार ग्रामीण समुदायों को बेहतर कनेक्टिविटी, प्रकाश व्यवस्था और आर्थिक गतिविधियों के अवसरों के साथ सशक्त बनाता है। 
      • बिजली बेहतर शैक्षिक प्रतिफल, उत्पादकता में वृद्धि और जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि को सक्षम बनाती है। 
    • उदाहरण के लिये: 
  • स्वच्छ रसोई ईंधन को अपनाना: 
    • स्वच्छ रसोई गैस के बढ़ते उपयोग से घर के अंदर वायु प्रदूषण में कमी आती है, जिससे श्वसन स्वास्थ्य और समग्र कल्याण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
      • स्वच्छ रसोई ईंधन संवहनीय पर्यावरणीय अभ्यासों का समर्थन करता है; इस प्रकार, एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है। 
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY): 
      • उज्ज्वला 1.0 के तहत मार्च 2020 तक BPL परिवारों की 50 मिलियन महिलाओं को LPG कनेक्शन उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। 
      • उज्ज्वला 2.0 के तहत लाभार्थियों को अतिरिक्त 10 मिलियन LPG कनेक्शन प्रदान किये जाने थे। 
  • शैक्षिक और सामाजिक सशक्तीकरण: 
    • शिक्षा में बालिकाओं की बढ़ती भागीदारी प्रगतिशील सामाजिक मूल्यों को दर्शाती है और लैंगिक समानता एवं समावेशी विकास में योगदान देती है। 
    • कनेक्टिविटी के माध्यम से ज्ञान का प्रसार शैक्षिक विकास में सहायता करता है और सूचना-संपन्न निर्णयन को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण के लिये: सांसद आदर्श ग्राम योजना का उद्देश्य ग्रामीणों को विकल्प चुनने के लिये सशक्त बनाना और उन्हें उन विकल्पों का उपयोग करने के अवसर प्रदान करना है। 
  • आय स्रोतों का विविधीकरण: 
    • गैर-कृषि रोज़गार के बढ़ते अवसरों से आय के स्रोतों में विविधता आती है, जिससे केवल कृषि पर निर्भरता कम हो जाती है। 
      • आय विविधीकरण कृषि से जुड़ी अनिश्चितताओं के विरुद्ध वित्तीय स्थिरता और प्रत्यास्थता को बढ़ाता है। 
    • उदाहरण के लिये: 
      • मनरेगा (MGNREGA): योजना का प्राथमिक उद्देश्य सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देना है। 
      • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों के लिये कुशल और प्रभावशील संस्थागत मंच तैयार करना है, जिससे उन्हें स्थायी आजीविका वृद्धि और वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच के माध्यम से घरेलू आय बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सके। 
  • ग्रामीण विकास से संबंधित अन्य सरकारी पहलें: 

ग्रामीण भारत के विकास से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ:  

  • गरीबी और असमानता: 
    • व्यापक गरीबी की स्थिति बनी हुई है, जो निम्न आय, बुनियादी सेवाओं तक सीमित पहुँच और संसाधनों के असमान वितरण जैसी विशेषताएँ रखती है। 
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच तथा ग्रामीण क्षेत्रों के भीतर आय असमानता की स्थिति समतामूलक विकास में बाधा उत्पन्न करती है। 
  • कृषि संकट: 
    • प्राथमिक आजीविका स्रोत के रूप में कृषि पर निर्भरता ग्रामीण समुदायों को अप्रत्याशित मौसम पैटर्न, बाज़ार के उतार-चढ़ाव और फसल विफलताओं से उत्पन्न जोखिमों के प्रति संवेदनशील बनाती है। 
    • विखंडित भूमि जोत, अपर्याप्त सिंचाई सुविधा और पुरानी पड़ चुकी कृषि पद्धतियाँ उत्पादकता एवं आय सृजन में बाधा उत्पन्न करती हैं। 
  • बेरोज़गारी और अल्प-रोज़गार: 
    • अपर्याप्त गैर-कृषि रोज़गार अवसरों के कारण कृषि क्षेत्र में मौसमी बेरोज़गारी और अल्प-रोज़गार की स्थिति उत्पन्न होती है। 
    • कौशल विकास और बाज़ार-उन्मुख व्यावसायिक प्रशिक्षण की कमी विभिन्न क्षेत्रों में ग्रामीण कार्यबल की भागीदारी को सीमित करती है। 
  • अवसंरचनात्मक अंतराल: 
    • सड़क, बिजली और दूरसंचार सहित अपर्याप्त ग्रामीण कनेक्टिविटी बाज़ारों, सेवाओं एवं सूचना तक पहुँच को सीमित करती है। 
    • कई ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता सुविधाएँ और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाएँ अपर्याप्त हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि: 
    • ग्रामीण क्षेत्र सूखा, बाढ़, ग्रीष्म लहर और चरम मौसमी घटनाओं जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चपेट में आते हैं। 
    • ये जल, मृदा और वनों जैसे प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता एवं गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं तथा ग्रामीण समुदायों, विशेषकर किसानों एवं चरवाहों की आजीविका पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं। 

उदाहरण के लिये, वर्ष 1990 और 2016 के बीच खेत में विचरण करने वाले पक्षियों (farmland birds) की आबादी में एक तिहाई की गिरावट आई है। 

प्रवासन और शहरीकरण: 

  • ग्रामीण क्षेत्र बाह्य प्रवासन की उच्च दर का सामना कर रहे हैं जहाँ बेहतर अवसरों और सेवाओं की तलाश में विशेष रूप से और शिक्षित लोगों का शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन हो रहा है।  
  • इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमबल की कमी, भूमि विखंडन, सामाजिक अलगाव और सांस्कृतिक पहचान की हानि की स्थिति बन सकती है। 
  • दूसरी ओर शहरीकरण से ग्रामीण क्षेत्रों को कुछ लाभ भी प्राप्त हो सकता है, जैसे बेहतर कनेक्टिविटी, बाज़ार पहुँच, धन प्रेषण और नवाचार। 
  • नशे की लत और मानसिक स्वास्थ्य: 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं और वयस्कों के बीच तंबाकू, गुटखा, शराब और सोशल मीडिया की लत बढ़ रही है। 
    • इनका ग्रामीण लोगों के स्वास्थ्य, उत्पादकता, सामाजिक संबंधों और सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। 
      • इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और जागरूकता का अभाव होता है, जिससे तनाव, अवसाद, आत्महत्या और हिंसा की स्थिति बन सकती है। 
  • अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छता: 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः उचित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों एवं सुविधाओं- जैसे स्रोत पर पृथक्करण और जैविक/अजैविक अपशिष्ट के लिये क्रमशः कम्पोस्टिंग/बायोगैस संयंत्र/रीसाइक्लिंग इकाइयों आदि का अभाव पाया जाता है। 
    • इससे पर्यावरण प्रदूषण, स्वास्थ्य संबंधी खतरे, सौंदर्य संबंधी गिरावट और संसाधनों की हानि की स्थिति बन सकती है। 
      • ग्रामीण क्षेत्रों को अभी भी स्वच्छता सुविधाओं और स्वच्छता अभ्यासों तक सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 

ग्रामीण विकास से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये संभावित समाधान:  

  • स्थानीयकृत रोज़गार के अवसर: 
    • कौशल विकास और उद्यमशीलता के अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने से ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यबल को सहारा मिल सकता है। 
    • कौशल विकास कार्यक्रमों, सूक्ष्म उद्यमों को बढ़ावा देने, ग्रामीण अवसंरचना के विकास आदि के माध्यम से गाँवों के निकट रोज़गार के अधिक अवसर सृजित किये जाने चाहिये। 
      • इससे प्रवासन की विवशता कम हो सकती है, ग्रामीण लोगों की आय एवं आजीविका सुरक्षा बढ़ सकती है और उनकी आत्मनिर्भरता एवं गरिमा की संवृद्धि हो सकती है। 
  • व्यसन और मादक द्रव्यों के सेवन पर अंकुश: 
    • तंबाकू, गुटखा और शराब के उपभोग को कम करने के लिये कठोर विनियमन और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। 
    • समग्र सामुदायिक हस्तक्षेप स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा दे सकते हैं और मादक द्रव्यों पर निर्भरता पर अंकुश लगा सकते हैं। 
  • प्रौद्योगिकी के उपयोग को संतुलित करना: 
    • अत्यधिक इंटरनेट उपयोग के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से स्वस्थ डिजिटल आदतों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
    • सामुदायिक पहलें पारस्परिक संपर्क को बढ़ावा दे सकती है और सामाजिक बंधनों को सुदृढ़ कर सकती हैं। 
  • व्यापक अपशिष्ट प्रबंधन: 
    • स्वच्छ भारत मिशन 2.0 को स्रोत पर पृथक्करण, जैविक/अजैविक अपशिष्ट के लिये क्रमशः कम्पोस्टिंग/बायोगैस संयंत्र/रीसाइक्लिंग इकाइयों के माध्यम से ग्रामीण स्तर पर अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • इससे ग्रामीण क्षेत्रों की पर्यावरणीय गुणवत्ता, स्वास्थ्य स्वच्छता और संसाधन दक्षता में सुधार हो सकता है तथा ग्रामीण लोगों के लिये आय एवं रोज़गार के अवसर भी सृजित हो सकते हैं। 

ग्रामीण मुद्दों को हल करने में नीति आयोग की भूमिका:

  • नीति आयोग: 
    • ऐसी नीतियों का निर्माण कर सकता है जो विशेष रूप से व्यसन, डिजिटल निर्भरता और अपशिष्ट प्रबंधन जैसी ग्रामीण चुनौतियों को लक्षित करें। 
    • व्यापक समाधानों के लिये सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र और समुदायों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान कर सकता है। 
    • इन चुनौतियों के मूल कारणों और उनकी क्षेत्रीय विविधताओं को समझने के लिये अध्ययन आयोजित करा सकता है और इस प्रकार, प्रभावी समाधान का सृजन करने में सहायता कर सकता है। 
    • सुदृढ़ निगरानी प्रणालियों के कार्यान्वयन से विभिन्न पहलों की प्रगति का आकलन किया जा सकता है और इष्टतम प्रभाव के लिये रणनीतियों को अनुकूलतम बनाया जा सकता है। 
    • नशे की लत, प्रौद्योगिकी पर निर्भरता, अपशिष्ट प्रबंधन और अन्य विषयों को हल करने वाली अभिनव परियोजनाओं का समर्थन एवं वित्तपोषण कर सकता है। 

अभ्यास प्रश्न: नीति आयोग की नवीनतम बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) रिपोर्ट के आलोक में ग्रामीण भारत के विकास की उपलब्धियों और चुनौतियों की चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. UNDP के समर्थन से ‘ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व’ द्वारा विकसित ‘बहुआयामी निर्धनता सूचकांक’ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/हैं? (2012)

  1. पारिवारिक स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति और सेवाओं से वंचन
  2. राष्ट्रीय स्तर पर क्रय शक्ति समता  
  3. राष्ट्रीय स्तर पर बजट घाटे की मात्रा और GDP की विकास दर 

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिये, जो संतुलित और समावेशी विकास में बाधक हैं। (2019)

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