प्राकृतिक कृषि के माध्यम से भारतीय कृषि में क्रांति | 11 Jan 2023
यह एडिटोरियल 08/01/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Why this dithering on natural farming?” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में ‘नेचुरल फार्मिंग’ और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
‘नेचुरल फार्मिंग’ (Natural farming) या प्राकृतिक कृषि कृषि की एक विधि है जो सिंथेटिक इनपुट के बजाय प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है। इसने फसल की पैदावार बढ़ाने और कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के एक तरीके के रूप में भारत में हाल में लोकप्रियता पाई है।
- हालाँकि ऐसी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं जिनका भारत में प्राकृतिक कृषि के कृषकों को सामना करना पड़ रहा है, जैसे सीमित बाज़ार, आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक आदानों (इनपुट्स) की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण पैदावार में गिरावट।
- परिणामस्वरूप, इन चुनौतियों की सूक्ष्म परिप्रेक्ष्य से संवीक्षा करना और प्राकृतिक कृषि को एक ऐसी खाद्य उत्पादन विधि के रूप में बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है जो पर्यावरण के अनुकूल है तथा भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता नहीं करता है।
प्राकृतिक कृषि क्या है?
- प्राकृतिक कृषि कृषि की एक विधि है जो एक ऐसे संतुलित और आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने का प्रयास करती है जिसमें सिंथेटिक रसायनों या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (Genetically Modified Organisms- GMO) के उपयोग के बिना फसलें उगाई जा सकती हैं।
- सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे कृत्रिम आदानों पर निर्भर रहने के बजाय, प्राकृतिक कृषि से संलग्न कृषक मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाने और फसल की वृद्धि को समर्थन देने के लिये फसल चक्र (Crop Rotation), अंतर-फसल (Intercropping) और कंपोस्टिंग (Composting) जैसी तकनीकों पर भरोसा करते हैं।
- प्राकृतिक कृषि की विधियाँ प्रायः पारंपरिक ज्ञान एवं अभ्यासों पर आधारित होती हैं और इन्हें स्थानीय परिस्थितियों एवं संसाधनों के अनुकूल बनाया जा सकता है।
- प्राकृतिक कृषि का लक्ष्य इस प्रकार से स्वस्थ एवं पौष्टिक खाद्य का उत्पादन करना है जो संवहनीय और पर्यावरण के अनुकूल हो।
प्राकृतिक कृषि का महत्त्व
- खाद्य एवं पोषण सुरक्षा: प्राकृतिक कृषि भारत में समुदायों के लिये खाद्य सुरक्षा की स्थिति में सुधार लाने में मदद कर सकती है, विशेष रूप से छोटे स्तर के किसानों के लिये, जो आधुनिक आदानों तक आसान पहुँच नहीं रखते या इसका व्यय वहन करने में सक्षम नहीं होते।
- प्राकृतिक तकनीकों पर भरोसा करके किसान उच्च लागत का वहन किये बिना स्वस्थ, पौष्टिक खाद्य का उत्पादन कर सकते हैं।
- पर्यावरणीय लाभ: प्राकृतिक कृषि के कई सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं, जैसे जल प्रदूषण, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के स्तर में कमी।
- यह विभिन्न प्रकार की फसलों और अन्य पौधों के विकास का समर्थन कर जैव विविधता को संरक्षित करने में भी मदद कर सकता है।
- सतत् कृषि: प्राकृतिक कृषि कृषि के प्रति एक सतत् या संवहनीय दृष्टिकोण है जो प्राकृतिक संसाधनों में कमी लाने के बजाय उन्हें संरक्षित करने और बढ़ाने का प्रयास करती है।
- यह भारत जैसे देश में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है, जहाँ जनसंख्या में वृद्धि अपेक्षित है और भविष्य में प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव में और वृद्धि होगी।
- आर्थिक लाभ: प्राकृतिक कृषि लागत में कमी, जोखिम में कमी, समान पैदावार और अंतर-फसल से आय की प्राप्ति के दृष्टिकोण से किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि करके कृषि को व्यवहार्य एवं आकांक्षी बना सकती है।
प्राकृतिक कृषि से संलग्न प्रमुख मुद्दे
- मौसम और जलवायु: प्राकृतिक कृषि की विधियाँ मौसम और जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं, क्योंकि वे फसल वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये सिंथेटिक इनपुट पर निर्भर नहीं होती हैं। यह भारत में किसानों के लिये चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकती है जहाँ अप्रत्याशित जलवायु परिदृश्य उत्पन्न हो सकता है।
- कीटों और रोगों का खतरा: प्राकृतिक कृषि के कृषक पारंपरिक किसानों (जो इन समस्याओं के उपचार के लिये सिंथेटिक रसायनों का उपयोग करते हैं) की तुलना में कीटों और रोगों को नियंत्रित करने में अधिक कठिनाई का सामना कर सकते हैं।
- यह प्राकृतिक कृषि को अधिक जोखिमपूर्ण और चुनौतीपूर्ण बना सकता है। उदाहरण के लिये, प्राकृतिक कृषि से संबद्ध किसान कीटनाशकों के उपयोग के बिना कीट संक्रमण को नियंत्रित करने के लिये संघर्ष कर सकता है, जिससे फिर फसल की हानि तथा वित्तीय कठिनाई की स्थिति बन सकती है।
- सीमित संसाधन और समय की पाबंदी: पारंपरिक कृषि की विधियों की तुलना में प्राकृतिक कृषि में प्रायः अधिक श्रम और अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण के लिये, प्राकृतिक किसानों को कंपोस्टिंग, फसल चक्र और अंतर-फसल जैसे कार्यों पर अधिक समय एवं प्रयास का निवेश करना पड़ सकता है। यह भारत में किसानों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है जो पहले से ही दबाव का सामना कर रहे हैं और उनके पास इन कार्यों के लिये समर्पित समय या जनशक्ति का अभाव हो सकता है।
भारत में कृषि से जुड़ी अन्य प्रमुख चुनौतियाँ
- सिंचाई सुविधा का अभाव: राष्ट्रीय स्तर पर भारत के सकल फसली क्षेत्र (GCA) का मात्र 52% ही सिंचित है। स्वतंत्रता के बाद से भारत ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन इसके बावजूद फसल रोपण के लिये मानसून पर भारी निर्भरता बनी हुई है।
- कृषि विविधीकरण का अभाव: भारत में कृषि के तेज़ी से वाणिज्यीकरण के बावजूद अधिकांश किसान अनाज को ही मुख्य फसल के रूप में देखते हैं (अनाज के पक्ष में न्यूनतम समर्थन मूल्य के झुके होने के कारण) और फसल विविधीकरण की उपेक्षा करते हैं।
सतत् कृषि से संबंधित हाल की सरकारी पहलें
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER)
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
आगे की राह
- किसान प्रशिक्षण केंद्र: भारत में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने का एक तरीका यह होगा कि किसानों को प्राकृतिक कृषि की तकनीकों और इससे संबद्ध के लाभों के बारे में शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
- यह विस्तार कार्यक्रमों और स्थानीय स्तर पर किसान प्रशिक्षण केंद्र के निर्माण के माध्यम से किया जा सकता है।
- प्राकृतिक कृषि को वित्तीय प्रोत्साहन: सरकार प्राकृतिक विधियों को अपनाने वाले किसानों को अनुदान या सब्सिडी जैसे वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर भारत में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा सकती है।
- सरकार प्राकृतिक कृषि तकनीकों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये विनियमनों या मानकों की भी स्थापना कर सकती है।
- प्राकृतिक कृषि को CSR से जोड़ना: निजी क्षेत्र कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व कार्यक्रमों, प्राकृतिक कृषि परियोजनाओं में निवेश और प्राकृतिक कृषि संगठनों के साथ साझेदारी जैसी पहलों के माध्यम से भारत में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
- एक ज़िला एक प्राकृतिक उत्पाद मेला: किसान मंडी और समुदाय-समर्थित कृषि कार्यक्रमों जैसे स्थानीय एवं संवहनीय खाद्य प्रणालियों के विकास को प्रोत्साहन देने से प्राकृतिक रूप से उगाए गए उत्पादों की मांग के सृजन के साथ भारत में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
- इसके साथ ही, प्राकृतिक कृषि उत्पादों को बढ़ावा देने और इन्हें स्वयं में एक ब्रांड के रूप में विकसित करने के लिये राज्य स्तर पर ‘एक ज़िला एक प्राकृतिक उत्पाद मेला’ का आयोजन किया जा सकता है।
- अनुसंधान एवं विकास: प्राकृतिक कृषि तकनीकों में सुधार के लिये और उनकी प्रभावशीलता को प्रदर्शित करने के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने से भारत में प्राकृतिक कृषि को अपनाने की दर में वृद्धि लाई जा सकती है।
- इसके तहत, सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक उर्वरक, सबसे प्रभावी कीट नियंत्रण विधियों और सबसे अधिक उत्पादक फसल चक्र जैसे विषयों पर अनुसंधान करना शामिल हो सकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत में कृषि के लिये एक सतत् दृष्टिकोण के रूप में प्राकृतिक कृषि की संभावना पर विचार कीजिये और उस भूमिका की चर्चा कीजिये जो निजी क्षेत्र प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने तथा इसका समर्थन करने में निभा सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाQ1. पर्माकल्चर कृषि पारंपरिक रासायनिक कृषि से कैसे अलग है? (वर्ष 2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) 1 और 3 उत्तर: (B) Q. निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित कृषि' की प्रमुख विशेषता है? (वर्ष 2012) (A) नकदी फसलों और खाद्य फसलों दोनों की कृषि उत्तर: (C) मुख्य परीक्षाQ1. फसल विविधीकरण से पहले वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधीकरण के लिए अवसर कैसे प्रदान करती हैं? (वर्ष 2021) Q2. सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के क्रमशः जल इंजीनियरिंग और कृषि विज्ञान के क्षेत्र में योगदान से भारत को कैसे लाभ हुआ है? (वर्ष 2019) |