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शासन व्यवस्था

विकसित राष्ट्र के लिये पूर्वी भारत का पुनरुद्धार

  • 24 Aug 2024
  • 31 min read

यह एडिटोरियल 20/08/2024 को ‘मिंट’ में प्रकाशित “The eastern states have a big role in India's development aim” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि भारत के पूर्वी राज्य अपनी क्षमता के बावजूद आर्थिक एवं सामाजिक विकास में पिछड़े हुए हैं। भारत के लिये वर्ष 2047 के अपने आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये इनके विकास में गति लाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिसके लिये क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने और सामाजिक-आर्थिक दशाओं में सुधार लाने के लिये तत्काल प्रयासों की आवश्यकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), कौशल विकास, आयुष्मान भारत योजना, बजट 2024-25, अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, पोलावरम सिंचाई परियोजना, विशाखापत्तनम-चेन्नई औद्योगिक गलियारा, समावेशी विकास। 

मेन्स के लिये:

आर्थिक विकास में सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों का महत्त्व, संसाधनों का संग्रहण तथा क्षेत्रीय असमानता को दूर करना।

वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में भारत की यात्रा व्यापक रूप से इसके पूर्वी राज्यों के प्रदर्शन पर निर्भर करती है। आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और झारखंड से मिलकर बनता यह क्षेत्र देश के आर्थिक आख्यान में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है। ‘बीटा-कंवर्जेंस’ (beta convergence) की अवधारणा बताती है कि समय के साथ निर्धन क्षेत्रों को समृद्ध क्षेत्रों की तुलना में तेज़ी से विकास करना चाहिये। यह सिद्धांत भारत के पूर्वी राज्यों में अपेक्षा के अनुरूप साकार नहीं हुआ है। अपने समृद्ध खनिज संसाधनों, रणनीतिक अवस्थिति और विशाल संभावनाओं के बावजूद, ये राज्य ऐतिहासिक रूप से आर्थिक विकास में पिछड़े रहे हैं, जो भारत की विकास आकांक्षाओं के लिये एक चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करते हैं। यह अपसरण (divergence) लक्षित हस्तक्षेप और नीतियों की आवश्यकता को उजागर करता है।

चूँकि भारत वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, इन पूर्वी राज्यों का विकास करना अपरिहार्य हो गया है। संतुलित राष्ट्रीय विकास और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के लिये इस भूभाग का आर्थिक उत्थान आवश्यक है। अपने विशाल कृषि आधार, खनिज संपदा और उभरती औद्योगिक क्षमता के साथ, पूर्वी राज्य देश के विकास पथ में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के लिये तैयार हैं। हालाँकि, गरीबी, निम्न साक्षरता दर और अपर्याप्त अवसंरचना जैसी  लगातार बनी रही समस्याओं को दूर करना इस क्षमता को साकार करने के लिये आवश्यक है।

पूर्वी राज्यों के विकास को सीमित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • आर्थिक कारक:
    • अविकसित औद्योगिक क्षेत्र: इन राज्यों को मुख्य रूप से ऐतिहासिक उपेक्षा, निवेश की कमी और अपर्याप्त अवसंरचना के कारण एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार स्थापित करने के लिये संघर्ष करना पड़ा है।
      • इस अविकसितता के कारण औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार के अवसर सीमित हो गए हैं और आर्थिक विविधीकरण अवरुद्ध हो गया है, जिसके कारण जनसंख्या का एक बड़ा भाग निम्न उत्पादकता वाले कृषि एवं अनौपचारिक क्षेत्रों पर निर्भर रहने को विवश है।
    • मालभाड़ा समीकरण नीति (Freight Equalisation Policy), 1952: इसका उद्देश्य खनिज परिवहन लागत को सब्सिडी प्रदान कर भारत में कहीं भी कारख़ानों के निर्माण को प्रोत्साहित करना था।
      • इस नीति का भारत के पूर्वी राज्यों पर हानिकारक प्रभाव पड़ा, क्योंकि इससे खनन क्षेत्रों के निकट उद्योग स्थापित करने के लिये प्रोत्साहन कम हो गया। इससे दूर-दराज के क्षेत्रों में कारख़ानों के विकास को बढ़ावा मिला और इन राज्यों की आर्थिक संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
    • निम्न सामाजिक प्रगति: सामाजिक प्रगति सूचकांक (Social Progress Index- SPI) रैंकिंग से पता चलता है कि पूर्वी क्षेत्र का कोई भी राज्य सामाजिक प्रगति के उच्च स्तरों (टियर 1 और टियर 2) में स्थान नहीं रखता है।
      • आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा टियर 4 और 5 में शामिल हैं, जो निम्न-मध्यम एवं निम्न सामाजिक प्रगति को इंगित करता है।
      • बिहार और झारखंड टियर 6 में हैं, जो सामाजिक प्रगति में अत्यंत निम्न प्रदर्शन को इंगित करता है।
    • आकांक्षी ज़िले: 112 आकांक्षी ज़िलों (Aspirational Districts) के विश्लेषण से पता चलता है कि बिहार और झारखंड के अधिकांश ज़िले देश भर के सबसे निचले 20 ज़िलों में शामिल हैं।
      • ये निष्कर्ष इन राज्यों में विद्यमान सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयों को उजागर करते हैं और पूर्वी भूभाग के भीतर भी पर्याप्त असमानताओं की पुष्टि करते हैं।
    • श्रम बाज़ार संबंधी मुद्दे: अधिकांश पूर्वी राज्यों में वर्ष 2022-23 में 15-59 आयु वर्ग की आबादी के लिये श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 60% से अधिक पाया गया।
      • इनमें बिहार का LFPR महज 50.9% पाया गया, जो निम्न श्रम बल भागीदारी को इंगित करता है।
    • कार्यबल की गुणवत्ता: इन राज्यों में 83% से अधिक कार्यबल अर्द्ध-कुशल श्रेणी के हैं।
      • इससे पता चलता है कि निम्न-कुशल श्रमिकों की प्रधानता है, जो उत्पादकता और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में कठिनाई का सामना कर सकते हैं।
    • कृषि पर निर्भरता: कृषि—जो प्रायः निम्न उत्पादकता और अभी भी पुरातन कृषि पद्धतियों के प्रयोग से ग्रस्त है, पर अत्यधिक निर्भरता ने इन राज्यों में आर्थिक विकास एवं आय स्थिरता में बाधा उत्पन्न की है।
      • जलवायु परिवर्तन एवं बाज़ार में उतार-चढ़ाव के प्रति कृषि क्षेत्र की संवेदनशीलता आर्थिक अस्थिरता को और बढ़ा देती है।
  • सामाजिक एवं मानव विकास संबंधी मुद्दे:
    • निम्न साक्षरता दर: विशेष रूप से बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में लगातार निम्न बनी रही साक्षरता दर ने कौशल विकास और कार्यबल गुणवत्ता में बाधा उत्पन्न की है।
      • इस शैक्षिक घाटे ने निम्न-कुशल श्रम बल, निम्न उत्पादकता और सीमित आर्थिक अवसरों के एक दुष्चक्र का निर्माण किया है।
    • नीति आयोग का SDG इंडिया इंडेक्स 2023-24: 57 अंकों के साथ बिहार निम्नतम प्रदर्शनकर्ता राज्य रहा, जबकि 62 अंकों के साथ झारखंड दूसरे स्थान पर रहा।
    • उच्च गरीबी दर: लगातार बनी रही गरीबी ने सामाजिक गतिशीलता और आर्थिक प्रगति में बाधा उत्पन्न की है।
      • उच्च गरीबी दर ने जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को निम्न शिक्षा, बदतर स्वास्थ्य और सीमित आर्थिक अवसरों के चक्र में फँसा रखा है, जहाँ पीढ़ीगत गरीबी (intergenerational poverty) से बाहर निकलना कठिन हो गया है।
  • ऐतिहासिक एवं भौगोलिक कारक:
    • औपनिवेशिक विरासत: भारत के पूर्वी राज्य शोषणकारी औपनिवेशिक नीतियों के स्थायी प्रभाव को अभी भी झेल रहे हैं, जिसने व्यवस्थित रूप से उनके औद्योगिक विकास और आर्थिक प्रगति को अवरुद्ध कर दिया।
      • ब्रिटिश शासन ने दीर्घकालिक विकास में निवेश किये बिना इन क्षेत्रों से संसाधनों के निष्कर्षण पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे आर्थिक पिछड़ेपन की नींव पड़ी, जो स्वतंत्रता के बाद भी लंबे समय तक बनी रही।
    • भौगोलिक अलगाव: इन राज्यों के कई क्षेत्रों की दुर्गम अवस्थिति (जिनमें घने जंगल, पहाड़ी क्षेत्र और व्यापक नदी प्रणालियाँ शामिल हैं) के कारण संपर्क या कनेक्टिविटी की स्थिति खराब है।
      • इस भौगोलिक अलगाव ने बाज़ारों और संसाधनों तक पहुँच को व्यापक रूप से सीमित किया है, जिससे देश के अधिक विकसित क्षेत्रों के साथ आर्थिक एकीकरण में बाधा उत्पन्न हुई है।
    • प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता: पूर्वी राज्य विशेष रूप से चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अतिसंवेदनशील हैं।
      • उदाहरण के लिये, पश्चिम बंगाल और ओडिशा राज्य नियमित रूप से गंभीर चक्रवातों का सामना करते हैं (जैसे कि वर्ष 2020 में भयंकर चक्रवात अम्फान), जबकि बिहार प्रायः विनाशकारी बाढ़ का सामना करता है।
      • इन बार-बार आने वाली आपदाओं ने विकास प्रयासों एवं आर्थिक गतिविधियों को लगातार बाधित किया है, अवसंरचना एवं आजीविका को क्षति पहुँचाई है और प्रगतिशील विकास के बजाय निरंतर पुनर्निर्माण की आवश्यकता उत्पन्न की है।

शासन एवं राजनीति संबंधी चुनौतियाँ:

  • राजनीतिक अस्थिरता: सरकार और नीति-निर्देशों में लगातार परिवर्तन ने इनमें से कई राज्यों में दीर्घकालिक विकास योजना को बाधित किया है।
    • इस अस्थिरता के कारण असंगत नीतियों, परित्यक्त परियोजनाओं और विकास प्रयासों में निरंतरता के अभाव की स्थिति उत्पन्न हुई है।
  • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद: प्रतिस्पर्द्धी संघवाद (Competitive Federalism) मौजूदा असमानताओं को बढ़ाने के रूप में भारत के गरीब राज्यों के लिये हानिकारक सिद्ध हुआ है। बेहतर अवसंरचना और संसाधनों के साथ अमीर राज्य अधिक निवेश एवं कुशल श्रम को आकर्षित करने में सफल होते हैं, जिससे गरीब राज्यों को प्रतिस्पर्द्धा करने में संघर्ष करना पड़ता है।
    • इससे विकास अंतराल बढ़ता है, क्योंकि गरीब राज्यों को आवश्यक सेवाओं के वित्तपोषण और आर्थिक अवसरों को आकर्षित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • भ्रष्टाचार और नौकरशाही की अकुशलता: व्यापक भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अकुशलता ने विकास कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न की है।
    • इन समस्याओं ने लक्षित लाभार्थियों की ओर से संसाधनों का विचलन किया है, सार्वजनिक व्यय के प्रभाव को कम कर दिया है और निजी निवेश को बाधित किया है।
  • नक्सली विद्रोह: पूर्वी राज्यों के कुछ क्षेत्रों में नक्सली विद्रोह ने शासन और विकास प्रयासों को गंभीर रूप से बाधित किया है।
    • इस जारी संघर्ष ने सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ पैदा की हैं, निवेश को बाधित किया है और विकास के बजाय सुरक्षा उपायों की ओर सरकारी संसाधनों का विचलन किया है।

पूर्वी राज्यों का वर्तमान आर्थिक परिदृश्य: 

  • GDP अवलोकन: पूर्वी क्षेत्र का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2022-23 में 579 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2011-12 में 185 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा था। इस अवधि के दौरान भारत के कुल GDP में इस भूभाग का योगदान लगभग 17% पर गतिहीन बना रहा।
    • यह वृद्धि दर भारत को उसके विकास लक्ष्यों की ओर अग्रसर करने के लिये आवश्यक वृद्धि दर से कम है।
  • विकास अनुमान: यदि पूर्वी क्षेत्र 9% की वार्षिक दर से विकास करता है तो वर्ष 2047 तक इसका उत्पादन लगभग 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
    • लेकिन यदि विकास दर 5% के निम्न स्तर पर बनी रहती है तो वर्ष 2047 तक इसका सकल घरेलू उत्पाद केवल 1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक ही पहुँच पाएगा।
    • इससे इस भूभाग के विकास को राष्ट्रीय लक्ष्य से संरेखित करने के लिये तत्काल नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।

पूर्वी राज्यों के विकास के लिये सरकार द्वारा कौन-से कदम उठाए गए हैं?

  • पूर्वोदय - पूर्वी क्षेत्र का विकास: बजट 2024-25 में घोषित पूर्वोदय पहल का उद्देश्य पूर्वी राज्यों- बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश को निम्नलिखित प्रयासों के माध्यम से राष्ट्र के ‘विकास इंजन’ में परिणत करना है: 
    • औद्योगिक विकास: अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारे के अंतर्गत गया में एक औद्योगिक केंद्र का निर्माण किया जाएगा, जिसमें ‘विकास भी - विरासत भी’ के मॉडल के तहत सांस्कृतिक विरासत को आधुनिक आर्थिक विकास के साथ संयुक्त किया जाएगा।
    • सड़क संपर्क परियोजनाएँ: भू-भाग में अवसंरचना की वृद्धि करने और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न सड़क संपर्क परियोजनाएँ कार्यान्वित की जाएँगी।
      • इनमें पटना-पूर्णिया एक्सप्रेस-वे, बक्सर-भागलपुर एक्सप्रेस-वे और बोधगया, राजगीर, वैशाली एवं दरभंगा के लिये परिवहन संपर्क के निर्माण के साथ ही बक्सर में गंगा नदी पर एक अतिरिक्त 2-लेन पुल का निर्माण करना शामिल है।
    • विद्युत एवं अवसंरचना परियोजनाएँ: विद्युत परियोजनाओं पर वृहत निवेश किया जाएगा, जैसे कि बिहार के पीरपैंती में 2400 मेगावाट के नए विद्युत संयंत्र की स्थापना।
      • अवसंरचना विकास संबंधी अन्य पहलों में बिहार में नए हवाई अड्डे, मेडिकल कॉलेज और खेल सुविधाएँ शामिल होंगी।
  • आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम: सरकार आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम में उल्लिखित प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के लिये प्रतिबद्ध है। बजट 2024-25 में घोषित प्रमुख पहलों में शामिल हैं:
    • बहुपक्षीय विकास एजेंसियों के माध्यम से राजधानी के विकास के लिये विशेष वित्तीय सहायता, जो चालू वित्त वर्ष में 15,000 करोड़ रुपए है।
    • किसानों को सहायता प्रदान करने तथा राज्य में खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिये पोलावरम सिंचाई परियोजना को समय पर पूरा करने की प्रतिबद्धता।
    • विशाखापत्तनम-चेन्नई औद्योगिक गलियारे पर कोप्पार्थी नोड और हैदराबाद-बेंगलुरु औद्योगिक गलियारे पर ओर्वाकल नोड के लिये अवसंरचनात्मक निवेश।
    • रायलसीमा, प्रकाशम और उत्तरी तटीय आंध्र के पिछड़े क्षेत्रों के लिये अनुदान आवंटित किया गया है।
  • प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान:
    • इसका उद्देश्य जनजाति बहुल ग्रामों और आकांक्षी ज़िलों में जनजातीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना है, जिसके दायरे में 63,000 से अधिक ग्राम और 5 करोड़ से अधिक जनजातीय लोग शामिल होंगे।
    • यह योजना पूर्वी राज्यों की जनजातीय आबादी के सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करेगी।
  • पूर्वी भारत में हरित क्रांति लाना (Bringing Green Revolution to Eastern India- BGREI): यह राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) की एक उप-योजना है और इसे असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • यह कार्यक्रम किसानों को चावल एवं गेहूँ संबंधी प्रदर्शन (डेमो) आयोजन, बीज उत्पादन, पोषक तत्व एवं मृदा प्रबंधन, कीट नियंत्रण, प्रशिक्षण, कृषि मशीनरी, सिंचाई, स्थल-विशिष्ट गतिविधियों और पोस्ट-हार्वेस्ट विपणन के लिये सहायता प्रदान करता है।
  • ऊर्जा गंगा गैस पाइपलाइन परियोजना: यह परियोजना बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लोगों को स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • नक्सलवाद पर नियंत्रण: समाधान सिद्धांत एवं पुनर्वास नीति (SAMADHAN Doctrine and Rehabilitation Policy) के प्रभावी कार्यान्वयन से वर्ष 2010 की तुलना में वर्ष 2022 में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसक घटनाओं की संख्या में 76% कमी आई है।

पूर्वी राज्यों के विकास के लिये क्या रणनीतियाँ अपनाई जानी चाहिये?

  • आर्थिक विकास पहलें: पूर्वी राज्यों को कनेक्टिविटी में सुधार और आर्थिक गतिविधियों की सुगमता के लिये अवसंरचना में लक्षित निवेश की आवश्यकता है। ऐसी नीतियाँ आवश्यक हैं, जो निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करे और औद्योगीकरण को बढ़ावा दे।
    • ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से कनेक्टिविटी बढ़ाने से माल की आवाजाही सुगम हो सकती है और परिवहन लागत में कमी आ सकती है, जिससे यह क्षेत्र औद्योगिक निवेश के लिये अधिक आकर्षक बन सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, खनिज संपदा से समृद्ध ओडिशा और झारखंड जैसे राज्य मूल्यवर्द्धित उद्योगों (जैसे कि खनन क्षेत्रों के निकट इस्पात संयंत्र और रिफाइनरियाँ स्थापित करना) को बढ़ावा देने वाली नीतियों से लाभान्वित हो सकते हैं।
  • सामाजिक विकास पर ध्यान देना: पूर्वी राज्यों में कार्यबल की गुणवत्ता में सुधार के लिये व्यापक कौशल विकास कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अलावा सामाजिक संकेतकों, विशेष रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी संकेतकों में सुधार के लिये पहलें की जानी चाहिये।
    • बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में ऐसे कार्यक्रमों के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिये और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है कि स्थानीय कार्यबल उभरते उद्योगों की मांगों को पूरा कर सके।
    • स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक संकेतकों में सुधार करना अत्यंत आवश्यक है। आयुष्मान भारत जैसी पहलों और सर्व शिक्षा अभियान की पहुँच बढ़ाने से स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी असमानताओं को दूर किया जा सकता है तथा सुनिश्चित किया जा सकता है कि आबादी स्वस्थ एवं सुशिक्षित हो।
  • श्रम बाज़ार में सुधार: श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाने के उपाय, विशेषकर महिलाओं के बीच, आवश्यक हैं। उद्यमिता और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देने से रोज़गार के अधिक अवसर पैदा हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, पश्चिम बंगाल में AMFI-WB (Association of Microfinance Institutions in West Bengal) की सहायता से सूक्ष्म-वित्त कार्यक्रमों के सफल कार्यान्वयन ने महिलाओं को छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिये सशक्त बनाया है, जिससे परिवार की आय में सुधार हुआ है और वित्तीय स्वतंत्रता बढ़ी है।
    • स्टार्ट-अप इंडिया जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करना और छोटे व्यवसायों के लिये ऋण तक पहुँच प्रदान करना रोज़गार के वृहत अवसर उत्पन्न कर सकता है। यह दृष्टिकोण बिहार जैसे राज्यों में प्रभावी सिद्ध हुआ है, जहाँ लघु उद्योगों को समर्थन देने की पहल से महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजन हुआ है।
  • सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism): केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिये संसाधनों एवं विशेषज्ञता को अधिक प्रभावी ढंग से आवंटित किया जा सकता है।
    • यह दृष्टिकोण नीति कार्यान्वयन, अवसंरचना विकास और सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों में साझा उत्तरदायित्वों को प्रोत्साहित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि पूर्वी राज्यों को चुनौतियों पर काबू पाने के लिये आवश्यक समर्थन प्राप्त हो।
  • शासन और नीति: विकास कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय शासन संरचनाओं को सुदृढ़ करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिये राज्य और केंद्र सरकारों के बीच सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं।
    • कालिया योजना (Krushak Assistance for Livelihood and Income Augmentation- KALIA) ओडिशा सरकार का एक कार्यक्रम है जो किसानों को उनकी कृषि का विस्तार करने, उनकी आय बढ़ाने और उनके ऋण को कम करने में सहायता प्रदान करता है।
    • इसी प्रकार, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा वर्ष 2013 में शुरू की गई कन्याश्री प्रकल्प योजना आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि की बालिकाओं की शैक्षिक एवं आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने पर लक्षित एक प्रभावी नीति एवं सुशासन का उदाहरण है।
  • क्षेत्रीय असमानताओं को संबोधित करना: पूर्वी क्षेत्र की राज्य सरकारों को क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने और समतामूलक विकास को बढ़ावा देने के लिये अपने प्रयासों को तेज़ करना चाहिये। इसमें सामाजिक संकेतकों को बेहतर बनाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक नीतियों को लागू करना शामिल है।
    • पूर्वी क्षेत्र की राज्य सरकारों को ऐसी नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है जो समतामूलक विकास को बढ़ावा दें।
    • बिहार विकास मिशन के माध्यम से सामाजिक संकेतकों में सुधार के लिये बिहार सरकार के प्रयासों से शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
  • क्षमता को साकार करना: पूर्वी राज्यों के पास विकास का इंजन बनने का अवसर है, जो देश को उसके लक्ष्यों की ओर आगे ले जाने में अहम भूमिका निभाएगा। उनके विशाल खनिज संसाधन, रणनीतिक अवस्थिति और अब तक अप्रयुक्त क्षमता उन्हें भारत के आर्थिक रूपांतरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकने के लिये एक विशिष्ट स्थिति प्रदान करते हैं।
    • पूर्वी राज्यों में भारत की आर्थिक वृद्धि के महत्त्वपूर्ण चालक बनने की क्षमता है। झारखंड और ओडिशा के समृद्ध खनिज संसाधन इस्पात, एल्युमीनियम एवं सीमेंट जैसे उद्योगों के विकास के लिये अवसर प्रदान करते हैं, जो देश के औद्योगिक उत्पादन में योगदान कर सकते हैं।
  • MSMEs को बढ़ावा देना: भारत के पूर्वी राज्यों में MSMEs को बढ़ावा देने के लिये वित्तपोषण एवं ऋण सुविधाओं तक पहुँच का विस्तार किया जाना चाहिये, साथ ही प्रौद्योगिकी और कौशल विकास के मामले में व्यापक समर्थन दिया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, सुव्यवस्थित विनियमनों और बेहतर अवसंरचना के माध्यम से अनुकूल कारोबारी माहौल को बढ़ावा देने से इस भू-भाग में MSMEs विकास एवं संवहनीयता को और बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष: 

  • भारत की विकास यात्रा में पूर्वी राज्यों के विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। उनके विशाल प्राकृतिक संसाधन, रणनीतिक अवस्थिति और अप्रयुक्त मानव क्षमता उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था के नए विकास इंजन बन सकने की विशिष्ट स्थिति प्रदान करती है। पूर्वी राज्यों के समावेशी विकास को बढ़ावा देने, क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने और इन राज्यों की अव्यक्त क्षमता को उन्मुक्त करने के रूप में भारत एक विकसित राष्ट्र बनने के लिये अधिक संतुलित एवं संवहनीय मार्ग सुनिश्चित कर सकेगा।
  • पूर्वी राज्यों के लिये आने वाले दशक विकास की खाई को भरने और अपने विकास पथ को राष्ट्रीय उद्देश्यों के साथ संरेखित करने के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगे। उनकी सफलता भारत के भविष्य को आकार देने में सहायक सिद्ध होगी; इस प्रकार, पूर्वी राज्यों का विकास न केवल एक क्षेत्रीय आकांक्षा है, बल्कि विकसित राष्ट्र का दर्जा पाने की दिशा में भारत की यात्रा की आधारशिला भी है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के पूर्वी राज्यों के समक्ष विद्यमान प्रमुख विकास संबंधी चुनौतियाँ कौन-सी हैं? भारत के विकास हेतु उनकी क्षमता को साकार करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारतीय राज्य-व्यवस्था में, निम्नलिखित में से कौन-सी अनिवार्य विशेषता है, जो यह दर्शाती है कि उसका स्वरूप संघीय है?

(a) न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुरक्षित है।
(b) संघ की विधायिका में संघटक इकाइयों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं।
(c) केन्द्रीय मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय पार्टियों के निर्वाचित प्रतिनिधि हो सकते हैं।
(d) मूल अधिकार न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं।

उत्तर:  (a)


मेन्स: 

प्रश्न: हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में मौजूद असुविधाओं के बारे में बताते हुए सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालें। (2015)

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