भारत में स्थानीय शासन | 16 Nov 2024

यह संपादकीय 14/11/2024 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित "Modest means: Time to strengthen and reimagine India's local bodies" पर आधारित है। यह लेख भारत में नगर निगमों की चुनौतियों पर प्रकाश डालता है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 60% योगदान करते हैं, लेकिन राजस्व में केवल 0.6% प्राप्त करते हैं। यह उनकी राजकोषीय क्षमता बढ़ाने और स्वायत्तता प्रदान करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, ताकि प्रभावी स्थानीय शासन तथा बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।

प्रिलिम्स के लिये:

नगर निगम, संपत्ति कर, सातवीं अनुसूची, अनुच्छेद 243(G), 73वाँ संविधान संशोधन, बलवंतराय मेहता की रिपोर्ट (वर्ष 1957), अशोक मेहता समिति, केंद्रीय वित्त आयोग, 15वाँ वित्त आयोग, स्मार्ट सिटी मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, स्वयं सहायता समूह, सामान्य सेवा केंद्र, जैवविविधता (संशोधन) अधिनियम, 2023 

मेन्स के लिये:

भारत में स्थानीय शासन की वर्तमान संरचना, विकास को मज़बूत करने में स्थानीय निकायों की भूमिका, स्थानीय निकायों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ।

RBI की रिपोर्ट भारत में शहरीकरण की एक बड़ी चुनौती को उजागर करती है। नगर निगम देश के सकल घरेलू उत्पाद का 60% योगदान करते हैं और वर्ष 2050 तक आधी आबादी को आवास प्रदान करेंगे, लेकिन उन्हें राजस्व के रूप में केवल 0.6% प्राप्त होता है। यह राजस्व असमानता नगर निगमों की वित्तीय स्थिति और उनके कार्यान्वयन की क्षमता को सीमित करती है, जिससे शहरी बुनियादी ढाँचे और सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है। वे अनुदान पर बहुत अधिक निर्भर हैं और संपत्ति कर जैसे राजस्व स्रोतों का उपयोग कम करते हैं। उल्लेखनीय रूप से, 10 नगर निगमों के पास 60% राजस्व है, जो संसाधन असमानताओं को उजागर करता है। 3F (कार्य, वित्त, कार्यकर्त्ता) के पूर्ण अंतरण के बिना, ज़मीनी स्तर पर शासन कमज़ोर रहता है। बेहतर स्थानीय शासन और जवाबदेही के लिये राजकोषीय शक्तियों तथा स्वायत्तता को मज़बूत करना आवश्यक है।

भारत में स्थानीय शासन की वर्तमान संरचना क्या है? 

  • स्थानीय निकाय के संदर्भ में: स्थानीय निकाय स्वशासन की संस्थाएँ हैं जो ग्रामीण (पंचायत) और शहरी (नगर पालिका) क्षेत्रों में योजना, विकास और प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • वे ज़मीनी स्तर पर नियामक, सेवा प्रदाता, कल्याण एजेंट और विकास के सुविधाप्रदाता के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • संवैधानिक ढाँचा: स्थानीय सरकार संविधान की सातवीं अनुसूची (सूची II) के तहत राज्य का विषय है। 
    • अनुच्छेद 243जी स्थानीय निकायों को शक्तियों का हस्तांतरण प्रदान करता है, जिससे वे बुनियादी ढाँचे और सेवाएँ प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभा सकेंगे।
  • स्थानीय निकायों का विकास:
    • ब्रिटिश शासन के दौरान प्रारंभ हुए पंचायती राज की परिकल्पना महात्मा गांधी ने "ग्राम स्वराज" के रूप में की थी।
    • वर्ष 1952 के सामुदायिक विकास कार्यक्रम जैसे प्रारंभिक प्रयास जन भागीदारी के अभाव के कारण असफल हो गए।
    • बलवंतराय मेहता की 1957 की रिपोर्ट में सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये ग्राम-स्तरीय संगठनों का समर्थन किया गया था।
    • अशोक मेहता समिति (1977) ने पंचायतों को सशक्त बनाने पर ज़ोर दिया, जिससे "दूसरी पीढ़ी की पंचायतें" उत्पन्न हुई।
    • 73वाँ संविधान संशोधन(1992) ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया, उन्हें स्थानीय स्वशासन का तीसरा स्तर बनाया। इसने ग्यारहवीं अनुसूची में 29 विषयों पर स्थानीय आर्थिक और सामाजिक विकास के लिये योजनाएँ बनाने और क्रियान्वित करने की शक्तियाँ दीं, जिससे ग्रामीण स्वायत्तता एवं समावेशी विकास को बढ़ावा मिला।
  • पंचायतों के लिये वित्तपोषण स्रोत:
    • केंद्रीय वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित स्थानीय निकाय अनुदान
    • केंद्र प्रायोजित योजनाओं से धन।
    • राज्य वित्त आयोगों के माध्यम से राज्य सरकार का आवंटन।

भारत में विकास को सशक्त करने में स्थानीय निकाय क्या भूमिका निभाते हैं?

  • वित्तीय विकेंद्रीकरण और संसाधन प्रबंधन: 15 वें वित्त आयोग ने वर्ष 2021-26 के लिये स्थानीय निकायों को 4.36 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, जो उनकी वित्तीय स्वायत्तता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। 
    • नगर निगम तेज़ी से नवीन वित्तपोषण विधियों की खोज कर रहे हैं, इंदौर नगर निगम ने सौर परियोजनाओं के लिये वर्ष 2022 में ग्रीन बॉण्ड के माध्यम से 244 करोड़ रुपए जुटाए हैं।
    • वर्ष 2023 में लागू की जाने वाली बेंगलुरु की GIS-आधारित प्रणाली जैसे संपत्ति कर सुधारों से राजस्व में वृद्धि की संभावना दिखाई दी है।
  • शहरी नियोजन और बुनियादी ढाँचे का विकास: स्थानीय निकाय स्मार्ट सिटी मिशन जैसी पहलों के माध्यम से परिवर्तन की अगुवाई कर रहे हैं, जिसके तहत 100 शहरों में 2.05 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया जा रहा है।
    • नगरपालिकाएँ जलवायु-अनुकूल अवसंरचना योजना अपना रही हैं, जिसका उदाहरण सूरत की बाढ़ प्रबंधन प्रणाली है
    • इंदौर के अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र जैसी नवोन्मेषी परियोजनाएँ, सतत् विकास के लिये स्थानीय निकायों की क्षमता को प्रदर्शित करती हैं। 
  • सामाजिक कल्याण और सार्वजनिक सेवा वितरण: ग्राम पंचायतों ने मनरेगा कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे वित्त वर्ष 2022-23 में कुल 293.70 करोड़ व्यक्ति दिवस सृजित हुए हैं। 
    • कोविड-19 के दौरान स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे में स्थानीय निकायों की भागीदारी महत्त्वपूर्ण साबित हुई, शहरी स्थानीय निकायों द्वारा टीकाकरण केंद्रों का प्रबंधन किया गया। 
    • पंचायतों के माध्यम से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी योजनाओं के अभिसरण से 90 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों के गठन में मदद मिली है। 
  • पर्यावरणीय स्थिरता और जलवायु कार्रवाई: शहरी स्थानीय निकाय भारत के पहले सौर शहर दीव जैसे पहलों के माध्यम से जलवायु कार्रवाई का नेतृत्व कर रहे हैं, जहाँ 100% दिन के समय सौर ऊर्जा प्राप्त की जा रही है। 
    • नगर पालिकाएँ तेज़ी से हरित भवन संहिता को अपना रही हैं, हैदराबाद में नए निर्माणों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य किया गया है।
  • सहभागी लोकतंत्र और नागरिक सहभागिता: स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये 50% आरक्षण से जमीनी स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है।
    • कुल पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या 45.6% है। (RBI रिपोर्ट )
    • पुणे जैसी सहभागी बजट पहल लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मज़बूत कर रही है। 
    • चेन्नाई जैसे शहरों में लागू की गई क्षेत्र सभा प्रणाली ने पड़ोस स्तर पर लोकतांत्रिक इकाइयों का निर्माण किया है।
    • ग्राम सभाओं ने महत्त्वपूर्ण निर्णयों में 85% उपस्थिति हासिल की है
  • आर्थिक विकास और आजीविका सृजन: पीएम स्वनिधि योजना के माध्यम से, नगरपालिकाओं ने 65.75 लाख से अधिक ऋण की सुविधा प्रदान की है, जिससे 50 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर लाभान्वित हुए हैं।
    • कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) ने युवाओं को व्यावसायिक शिक्षा और कौशल संवर्धन के अवसर प्रदान करने के लिए योग्यता मोबाइल फोन एप्लीकेशन लॉन्च किया है ।

भारत में स्थानीय निकायों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अपर्याप्त वित्तीय संसाधन: स्थानीय निकायों में वित्तीय स्वतंत्रता का अभाव है, वे राज्य और केंद्र के हस्तांतरण पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जो अक्सर विलंबित या सशर्त होते हैं। 
    • आरबीआई की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी स्थानीय निकायों (ULB) ने अपने स्वयं के स्रोत राजस्व (OSR) के रूप में सकल राज्य घरेलू उत्पाद का केवल 0.6% ही उत्पन्न किया, जो ब्राज़ील के 7% से काफी कम है। 
    • कर लगाने और एकत्र करने की सीमित क्षमता समस्या को और बढ़ा देती है। 
    • 15 वें वित्त आयोग ने वर्ष 2021-26 के लिये स्थानीय निकायों को 4.36 लाख करोड़ रुपए दिये, लेकिन समय पर उपयोग चिंता का विषय बना हुआ है।
    • इसके अलावा, राज्य वित्त आयोगों की स्थापना समय पर नहीं की जाती है। इस देरी से राज्य स्तर पर संसाधनों के प्रभावी वितरण एवं उचित वित्तीय नियोजन में बाधा आती है।
  • कार्यात्मक चुनौतियाँ और राजनीतिक हस्तक्षेप: बार-बार राजनीतिक हस्तक्षेप स्थानीय निकायों के कामकाज को कमज़ोर करता है, तथा उनकी स्वायत्तता और जवाबदेही को बाधित करता है। 
    • राज्य सरकारें अक्सर निर्वाचित परिषदों को समय से पहले भंग कर देती हैं या स्थानीय चुनावों में देरी करती हैं, जैसा कि महाराष्ट्र में देखा गया, जहाँ 2023 में सभी 27 नगर निगम निर्वाचित निकायों के बिना संचालित हुए। 
    • इसके अतिरिक्त, दलीय राजनीति स्थानीय निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करती है तथा लोक कल्याण को दरकिनार कर देती है। 
    • कर्नाटक सरकार द्वारा बेलगावी नगर निगम को वर्ष 2023 में बर्खास्त करने का नोटिस इस हस्तक्षेप को उजागर करता है। 
      • इस तरह की कार्रवाइयाँ न केवल स्थानीय लोकतंत्र को कमज़ोर करती हैं, बल्कि अपशिष्ट प्रबंधन जैसे महत्त्वपूर्ण शहरी सुधारों में भी देरी करती हैं। 
  • क्षमता निर्माण और मानव संसाधन की कमी:  स्थानीय निकाय गंभीर रूप से कम कर्मचारियों, तकनीकी विशेषज्ञता की कमी और मौजूदा कर्मचारियों के अपर्याप्त प्रशिक्षण से ग्रस्त हैं
    • इससे उनकी योजना बनाने, परियोजनाओं को लागू करने और शासन के लिये आधुनिक तकनीक का उपयोग करने की क्षमता प्रभावित होती है। विशेषज्ञ विभागों की अनुपस्थिति कुशल सेवा वितरण में बाधा डालती है।
    • वर्ष 2023 के एक अध्ययन में पाया गया कि नगर निगमों में 35% पद रिक्त हैं
  • शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे पर दबाव: तेज़ी से हो रहे शहरीकरण ने स्थानीय निकायों पर बोझ बढ़ा दिया है, जिससे आवास, पानी और स्वच्छता जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने की उनकी क्षमता पर दबाव पड़ा है। 
    • कुल शहरी आबादी में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों की संख्या 17% है। वहीं, शहरी भारत में 11 मिलियन खाली घर हैं। (ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन)
    • बेंगलुरु में, 2022 की बाढ़ ने जल निकासी चैनलों पर अतिक्रमण का प्रबंधन करने में  शहरी स्थानीय निकायों की विफलता को उजागर किया ।
    • इसी तरह, मुंबई की झुग्गियों में पानी की लगातार कमी बनी रहती है, जो खराब शहरी नियोजन को दर्शाता है। सक्रिय नियोजन के बिना, स्थानीय निकाय तेज़ी से बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये संघर्ष करते हैं।
  • पर्यावरण प्रबंधन चुनौतियाँ: स्थानीय निकायों के लिये अपशिष्ट और प्रदूषण का प्रबंधन एक गंभीर चुनौती बनी हुई है, क्योंकि अनुपालन और बुनियादी ढाँचे में काफी अंतराल है।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का अनुमान है कि कुल नगरीय कचरे का केवल 75-80% ही एकत्र किया जाता है तथा इसमें से केवल 22-28% का ही प्रसंस्करण एवं उपचार किया जाता है, तथा दिल्ली में गाजीपुर जैसे लैंडफिल स्थलों की संख्या बढ़ती जा रही है। 
    • खराब अपशिष्ट प्रबंधन भी वायु प्रदूषण को बढ़ाता है; उदाहरण के लिये स्थानीय स्तर पर कमज़ोर प्रवर्तन के कारण  पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना जारी है।
  • सामुदायिक भागीदारी और जवाबदेही: संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, शासन में सामुदायिक भागीदारी न्यूनतम बनी हुई है, जिससे स्थानीय जवाबदेही कमज़ोर हो रही है।
    • हाल ही के एक अध्ययन में कहा गया है कि जनवरी, 2023 तक अधिसूचित वार्ड समिति नियमों वाले 16 राज्यों में से केवल 8 ने सक्रिय समितियों की सूचना दी। 
    • स्थानीय निकाय अक्सर ग्राम सभाओं जैसे तंत्रों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में विफल रहते हैं (आंशिक रूप से जैविक विविधता (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत कम शक्तियों के कारण), जिसके परिणामस्वरूप ऊपर से नीचे तक निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। 
  • विभिन्न एजेंसियों के साथ समन्वय: स्थानीय निकायों को अक्सर क्षेत्राधिकारों के अतिव्यापन तथा अर्द्ध-सरकारी एजेंसियों या विशेष प्रयोजन माध्यमों के साथ खराब समन्वय की समस्या से जूझना पड़ता है। 
    • एक ही तरह के कार्यों को संभालने वाले कई प्राधिकरणों के कारण परियोजना कार्यान्वयन में अकुशलता और देरी होती है। विखंडित संस्थागत ढाँचे के कारण योजना बनाना जटिल हो जाता है।
    • उदाहरण के लिये दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और दिल्ली नगर निगम (MCD) को शहरी नियोजन, भूमि अधिग्रहण और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के मामले में अक्सर समन्वय के मुद्दों का सामना करना पड़ता है।

भारत में स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • कानूनी ढाँचे को मज़बूत बनाना: स्थानीय निकायों को अधिक स्वायत्तता और अधिकार प्रदान करने के लिये राज्य नगरपालिका विधानों में व्यापक संशोधन की आवश्यकता है। 
    • एल.एम. सिंघवी समिति की सिफारिशों के बाद, स्थानीय निकाय विवादों को शीघ्रता से निपटाने के लिये समर्पित न्यायाधिकरण स्थापित किये जाने चाहिये। 
    • राज्य और स्थानीय निकायों के बीच कार्यों के स्पष्ट चित्रण के लिये विस्तृत गतिविधि मानचित्रण के माध्यम से कानूनी समर्थन की आवश्यकता है। 
    • स्थानीय निकायों की प्रवर्तन शक्तियों को विशेष रूप से योजना उल्लंघनों और राजस्व संग्रहण के क्षेत्रों में मज़बूत करने की आवश्यकता है। 
    • नगरपालिका ऋण और वैकल्पिक वित्तपोषण के लिये कानूनी ढाँचे की स्थापना की आवश्यकता है।
  • वित्तीय सशक्तीकरण: GIS और बाज़ार से जुड़ी दरों का उपयोग करते हुए  डिजिटल एकीकरण एवं आधुनिक संपत्ति कर सुधार के साथ एक व्यापक नगरपालिका वित्त प्रबंधन प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
    • म्यूनिसिपल बॉण्ड बाज़ार का विकास करना तथा क्रेडिट रेटिंग तंत्र के साथ प्रत्यक्ष बाज़ार ऋण को सक्षम बनाना, नए वित्तपोषण चैनल सृजित कर सकता है। 
    • मज़बूत वित्तीय शक्तियों के लिये एलएम सिंघवी समिति की सिफारिश को राज्य वित्त आयोगों और नियमित राजकोषीय हस्तांतरण के माध्यम से लागू किया जाना चाहिये। 
    • स्थानीय निकायों को बेहतरी शुल्क, प्रभाव शुल्क और भूमि मुद्रीकरण जैसे विविध स्रोतों के माध्यम से अपना राजस्व उत्पन्न करने के लिये सशक्त बनाया जाना चाहिये।
    • केरल का विकेंद्रीकरण मॉडल पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को राज्य स्तरीय योजना में सफलतापूर्वक शामिल करता है, जिससे शासन में ज़मीनी स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित होती है, जिसे अन्य राज्यों में भी दोहराया जा सकता है। 
  • प्रशासनिक सुधार: जी.वी.के राव समिति के व्यावसायिकीकरण पर ज़ोर देने के बाद, शहरी योजनाकारों और विशेषज्ञों सहित स्थायी तकनीकी स्टाफिंग के साथ एक विशेष शहरी प्रशासनिक सेवा संवर्ग की स्थापना की जानी चाहिये।
    • जवाबदेही और दक्षता सुनिश्चित करने के लिये प्रदर्शन-आधारित कर्मचारी मूल्यांकन और पदोन्नति प्रणालियों के कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
    • समर्पित संस्थानों के माध्यम से सभी स्तर के कर्मचारियों के लिये नियमित क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम अनिवार्य किया जाना चाहिये।
    • ई-गवर्नेंस प्लेटफार्मों को प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना चाहिये, साथ ही पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिये तथा भ्रष्टाचार को कम करना चाहिये। 
  • योजना प्राधिकरण में वृद्धि: स्थानीय निकायों को राज्य के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत योजना स्वायत्तता की आवश्यकता है, जिसमें अनिवार्य दीर्घकालिक मास्टर प्लान शामिल हों, जिन्हें नियमित रूप से अद्यतन किया जाता रहे।
    • महानगर नियोजन समितियों को वास्तविक शक्तियों से सशक्त बनाने से समन्वित क्षेत्रीय विकास संभव होगा।
    • शहर विकास योजनाओं में वार्ड स्तर की योजनाओं को एकीकृत करने से बलवंत राय मेहता समिति के दृष्टिकोण के अनुरूप योजना सुनिश्चित होती है। 
    • प्रत्येक नगर पालिका में पेशेवर योजनाकारों से सुसज्जित समर्पित योजना प्रकोष्ठों से योजना की गुणवत्ता और कार्यान्वयन में वृद्धि होगी।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: व्यापक डिजिटल प्लेटफार्मों को सेवा वितरण और राजस्व संग्रह के लिये वास्तविक समय निगरानी प्रणालियों के साथ सभी नगरपालिका सेवाओं को एकीकृत करना चाहिये।
    • कुशल परिसंपत्ति प्रबंधन के लिये IoT सेंसर और स्वचालित प्रणालियों सहित स्मार्ट बुनियादी ढाँचा प्रबंधन समाधान लागू किये जाने चाहिये।
    • वित्तीय दक्षता और पारदर्शिता में सुधार के लिये डिजिटल भुगतान और संग्रह प्रणालियों को सार्वभौमिक कार्यान्वयन की आवश्यकता है। 
    • शिकायत निवारण तंत्र के साथ नागरिक सहभागिता मंच अनिवार्य होना चाहिये। 
    • स्वच्छ भारत मिशन को दृढ़तापूर्वक क्रियान्वित किया जाना चाहिये। 
  • सहभागी शासन: वार्ड समितियों को वास्तविक शक्तियों और बजट के साथ मज़बूत बनाने की आवश्यकता है, तथा एल.एम. सिंघवी समिति के ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र के दृष्टिकोण को लागू करना होगा।
    • पारदर्शी बजट के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के साथ-साथ वार्ड स्तर के निर्णयों के लिये निश्चित प्रतिशत आवंटन के साथ भागीदारी बजट तंत्र अनिवार्य होना चाहिये।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म और सामाजिक ऑडिट के माध्यम से परियोजनाओं की नागरिक निगरानी को संस्थागत बनाने की आवश्यकता है। पारदर्शिता के लिये नियमित वार्ड सभाओं और क्षेत्र सभाओं को ऑनलाइन स्ट्रीमिंग के साथ अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • पर्यावरण प्रबंधन: सभी शहरी स्थानीय निकायों के लिये अनिवार्य जलवायु कार्य योजनाओं को समर्पित वित्त पोषण और कार्यान्वयन तंत्र द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये।
    • अपशिष्ट से ऊर्जा रूपांतरण के साथ एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को सभी शहरों में मानकीकृत किया जाना चाहिये। 
    • वास्तविक समय वायु गुणवत्ता डेटा और प्रदूषण नियंत्रण उपायों  के साथ पर्यावरण निगरानी कक्षों की स्थापना की आवश्यकता है।
    • शहरी वनों और जल संरक्षण सहित हरित अवसंरचना विकास अनिवार्य होना चाहिये। सभी विकास योजनाओं में सतत् शहरी नियोजन दिशा-निर्देशों को एकीकृत करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

भारत के स्थानीय शासन को मज़बूत करने के लिये वित्तीय स्वायत्तता, प्रशासनिक सुधार और स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने के लिये मज़बूत कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है। लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के माध्यम से स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने से प्रभावी शहरी और ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलेगा। सक्रिय नागरिक भागीदारी और प्रौद्योगिकी एकीकरण अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा दे सकता है। 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

भारत में स्थानीय निकायों को 3F (कार्य, वित्त और कार्यकर्ता) के अपर्याप्त हस्तांतरण के कारण शासन में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। स्थानीय शासन के कामकाज को बेहतर बनाने के लिये शक्तियों, संसाधनों और कर्मियों के हस्तांतरण को कैसे मज़बूत किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017)

(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का
(c) प्रशासकीय प्रत्यायोजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

उत्तर: (b)

प्रश्न 2. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)

  1. विकास में जन-भागीदारी
  2.  राजनीतिक जवाबदेही
  3.  लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  4.  वित्तीय संग्रहण (फ़ाइनेंशियल मोबिलाइज़ेशन)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न 1. भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती हैं? (2018)

प्रश्न 2. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022)

प्रश्न 3. सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ' मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही हैं न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिये। (2015)