चीन के प्रति भारत के दृष्टिकोण पर पुनर्विचार: रणनीतिक विचार | 24 Nov 2023

यह एडिटोरियल 22/11/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “India should not talk to China — even if Biden talks to Xi” लेख पर आधारित है। इसमें चीन के साथ क्वाड साझेदारों की संलग्नता की दिशा में हालिया प्रगति के बारे में चर्चा की गई है और चीन के साथ संलग्नता के भारत के दृष्टिकोण के पुनर्मूल्यांकन का आह्वान किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

क्वाड (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) , अक्साई चिन, मैकडॉनल्ड लाइन, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC), चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), ‘सलामी स्लाइसिंग’ रणनीति, ऋण जाल कूटनीति, ‘फाइव फिंगर्स ऑफ तिब्बत’ , तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (TAR), स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, I2U2, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), G7, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, नेकलेस ऑफ डायमंड, हिमालयन क्वाड

मेन्स के लिये:

भारत-चीन संबंधों के बीच प्रमुख विवाद, चीन के दावे के पीछे की भू-राजनीति, चीनी आक्रामकता पर भारत की प्रतिक्रिया, बदलती अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से भारत-चीन संबंधों का प्रभावित होना, आगे की राह।

हाल के हफ़्तों में भारत के क्वाड साझेदारों—ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने चीन के साथ उच्च-स्तरीय राजनीतिक अंतःक्रिया को फिर से शुरू किया है। हालाँकि भारत तब तक चीन के साथ राजनीतिक एवं आर्थिक चर्चा फिर से शुरू करने को तैयार नहीं है जब तक कि वर्ष 2020 के वसंत में शुरू हुए लद्दाख सैन्य गतिरोध का संतोषजनक समाधान प्राप्त नहीं हो जाता।

इस परिदृश्य ने इस संबंध में चर्चा को गर्म किया है कि भारत को विभिन्न जटिल विवादों के समाधान के लिये चीन से संलग्न होने के अपने मौजूदा दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिये या नहीं।

भारत-चीन संबंधों में मौजूद प्रमुख विवाद 

  • सीमा विवाद:
    • पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख):
      • अंग्रेज़ों द्वारा प्रस्तावित जॉनसन रेखा (Johnson Line) ने अक्साई चिन को जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा बनाया था।
      • चीन ने जॉनसन रेखा को अस्वीकार कर दिया और मैकडॉनल्ड रेखा (McDonald Line) का समर्थन करते हुए अक्साई चिन पर नियंत्रण का दावा किया।
      • वर्तमान में अक्साई चीन का प्रशासन चीन के पास है लेकिन भारत का इस मुद्दे पर आधिकारिक रुख यह है कि चूँकि यह जम्मू-कश्मीर (लद्दाख) का एक भाग है, इसलिये भारत का अभिन्न अंग है।
    • मध्य क्षेत्र (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड):
      • मध्य क्षेत्र में अपेक्षाकृत मामूली विवाद मौजूद है, जहाँ भारत और चीन के बीच मानचित्रों के आदान-प्रदान में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर मोटे तौर पर सहमति है।
    • पूर्वी क्षेत्र (अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम):
      • चीन मैकमोहन रेखा (McMahon Line) को अवैध एवं  अस्वीकार्य मानता है और दावा करता है कि जिन तिब्बती प्रतिनिधियों ने वर्ष 1914 में शिमला में आयोजित कन्वेंशन ((जहाँ मैकमोहन रेखा को मानचित्र पर निरुपित किया गया था) पर हस्ताक्षर किये थे, उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं था।
  • सीमा पर घुसपैठ:
    • भारत और चीन के बीच सीमा अपनी समग्रता में स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं है और कुछ हिस्सों में कोई पारस्परिक रूप से सहमत वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) मौजूद नहीं है।
    • इस क्षेत्र में वर्ष 2014 में डेमचोक , 2015 में देपसांग, 2017 में डोकलाम और 2020 में गलवान जैसे सीमा संघर्ष के कई दृष्टांत सामने आये हैं।
  • जल बँटवारा:
    • चीन की लाभप्रद भौगोलिक स्थिति एक विषमता पैदा करती है जहाँ उसे हाइड्रोलॉजिकल डेटा पर भारत जैसे अनुप्रवाह देशों की निर्भरता का लाभ उठाने की अनुमति मिलती है।
    • ब्रह्मपुत्र सहित अन्य सीमा-पारीय नदियों पर चीन की बाँध निर्माण गतिविधियाँ भारत के लिये चिंता का कारण हैं , जिससे दोनों देशों के बीच जल बँटवारे के मुद्दों पर तनाव उत्पन्न हो गया है।
  • तिब्बत का मुद्दा:
    • भारत निर्वासित तिब्बत सरकार और आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की मेजबानी करता है, जो चीन के साथ विवाद का एक मुद्दा रहा है।
    • चीन भारत पर तिब्बती अलगाववाद का समर्थन करने का आरोप लगाता है, जबकि भारत का कहना है कि वह ‘एक चीन’ की नीति का सम्मान करता है, लेकिन तिब्बती समुदाय को भारत में रहने की नैतिक अनुमति देता है।
  • व्यापार असंतुलन:
    • चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2022 में 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
    • जटिल विनियामक आवश्यकताएँ, बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन और व्यापारिक लेनदेन में पारदर्शिता की कमी चीनी बाज़ार तक पहुँच की इच्छा रखने वाले भारतीय व्यवसायों के लिये चुनौतियाँ पेश करती हैं।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर चिंताएँ:
    • BRI पर भारत की मुख्य आपत्ति यह है कि इसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) शामिल है, जो पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुज़रता है, जिस पर भारत अपना दावा करता है।
    • भारत का यह भी मानना है कि BRI परियोजनाओं को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों, विधि के शासन और वित्तीय स्थिरता का सम्मान करना चाहिये तथा मेजबान देशों के लिये ऋण जाल (debt trap) या पर्यावरणीय एवं सामाजिक जोखिम पैदा नहीं करना चाहिये।

चीन के दावे के पीछे क्या भू-राजनीति है?

  • चीन की ‘सलामी स्लाइसिंग’ रणनीति:
    • सैन्य शब्दावली में ‘सलामी स्लाइसिंग’ (Salami Slicing) फूट डालो और जीतो की रणनीति (divide-and-conquer strategy) को संदर्भित करती है जहाँ विरोध पर काबू पाने और नए क्षेत्रों का अधिग्रहण करने के लिये वृद्धिशील भयादोहन एवं गठबंधनों का इस्तेमाल किया जाता है।
    • चीन के मामले में, सलामी स्लाइसिंग की रणनीति दक्षिण चीन सागर और हिमालयी क्षेत्र, दोनों में क्षेत्रीय विस्तार के उसके दृष्टिकोण में स्पष्ट है, जहाँ डोकलाम गतिरोध को प्रायः हिमालय में चीन की सलामी स्लाइसिंग रणनीति की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है।
  • चीन की ऋण जाल कूटनीति:
    • चीन की ऋण जाल कूटनीति (Debt Trap Diplomacy) एक ऐसी रणनीति को संदर्भित करती है जिसमें चीन विकासशील देशों को प्रायः अवसंरचना परियोजनाओं के लिये ऋण देता है ताकि वे चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर बन जाएँ।
    • इसके परिणामस्वरूप यदि देनदार अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ रहता है तो चीन उसकी प्रमुख परिसंपत्तियों पर रणनीतिक लाभ या नियंत्रण हासिल कर सकता है। आलोचकों का तर्क है कि यह दृष्टिकोण चीन को उधार लेने वाले देशों की आर्थिक कमज़ोरियों का फायदा उठाकर विश्व स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने की अनुमति देता है।
  • चीन की फाइव फिंगर्स ऑफ तिब्बत रणनीति:
    • ‘फाइव फिंगर्स ऑफ तिब्बत’ पद का उपयोग तिब्बत के संबंध में चीन के क्षेत्रीय दावों और रणनीतिक दृष्टिकोण का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • यह रूपक या मेटाफर तिब्बत को एक हथेली के रूप में वर्णित करता है, जहाँ चीन इसके आसपास के पाँच क्षेत्रों (फाइव फिंगर्स) को नियंत्रित या प्रभावित करने की इच्छा रखता है।
    • फाइव फिंगर्स निम्नलिखित क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं:
      • लद्दाख: लद्दाख पर नियंत्रण हासिल करने से चीन को पाकिस्तान तक निर्बाध पहुँच प्राप्त हो जाएगी।
      • नेपाल: नेपाल पर अपना प्रभाव स्थापित करने से चीन को भारत के हृदय स्थल तक रणनीतिक पहुँच प्राप्त हो जाएगी।
      • सिक्किम: सिक्किम पर नियंत्रण से चीन को भारत के ‘चिकेन नेक’ (सिलीगुड़ी कॉरिडोर) को अलग करने का सामरिक लाभ प्राप्त होगा, जहाँ पूर्वोत्तर राज्य प्रभावी रूप से भारतीय मुख्य भूमि से पृथक किये जा सकते हैं।
      • भूटान: भूटान पर नियंत्रण हासिल करने से चीन बांग्लादेश के निकट पहुँच जाएगा, जिससे उसे बंगाल की खाड़ी तक एक संभावित मार्ग उपलब्ध हो जाएगा और चीन का क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ जाएगा।
      • अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश पर नियंत्रण हासिल करने से चीन भारत के पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र पर हावी हो जाएगा, जिससे क्षेत्र में उसकी सैन्य पहुँच और रणनीतिक प्रभाव की वृद्धि होगी।
  • चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ द्वारा भारत की रणनीतिक घेराबंदी:
    • चीन का ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) एक भू-राजनीतिक और रणनीतिक पहल को संदर्भित करता है जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र में विभिन्न रणनीतिक स्थानों पर चीन द्वारा वित्तपोषित, स्वामित्व या नियंत्रित बंदरगाहों और अन्य समुद्री अवसंरचना सुविधाओं के एक नेटवर्क का निर्माण करना शामिल है।
    • चीन के स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स से जुड़े कुछ उल्लेखनीय स्थानों में पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह, श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह, बांग्लादेश का चटगांव बंदरगाह और ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ का जिबूती शामिल हैं।

चीन के आक्रामक कदमों पर भारत की प्रतिक्रिया 

  • वैश्विक रणनीतिक गठबंधन:
    • भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिये समान विचारधारा वाले देशों के साथ सक्रिय रूप से संलग्न हुआ है।
    • क्वाड (QUAD): यह चार लोकतांत्रिक देशों—भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान का समूह है। सभी चार राष्ट्र लोकतांत्रिक राष्ट्र होने का एक समान आधार रखते हैं और निर्बाध समुद्री व्यापार एवं सुरक्षा के साझा हित का समर्थन करते हैं।
    • I2U2: यह भारत, इज़राइल, अमेरिका और यूएई का एक नया समूह है। इन देशों के साथ गठबंधन के निर्माण से क्षेत्र में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ हुई है।
  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEC):
    • वैकल्पिक व्यापार और कनेक्टिविटी गलियारे के रूप में लॉन्च किये गए IMEC का लक्ष्य अरब सागर और मध्य-पूर्व में भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करना है।
    • वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिये साझेदारी (Partnership for Global Infrastructure Investment- PGII) द्वारा वित्तपोषित IMEC, G7 देशों के समर्थन से चीन के  बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के प्रति-पहल के रूप में अपनी भूमिका निभाएगा।
  •  अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor- INSTC):
    • भारत, ईरान और रूस के बीच एक समझौते के माध्यम से स्थापित INSTC 7200 किलोमीटर के व्यापक मल्टी-मोड परिवहन नेटवर्क का सृजन करता है जो हिंद महासागर, फारस की खाड़ी और कैस्पियन सागर को आपस में जोड़ता है।
    • ईरान में स्थित चाहबहार बंदरगाह इसका प्रमुख नोड है जो अरब सागर और होर्मुज जलडमरूमध्य में चीन की गतिविधियों पर रणनीतिक रूप से नज़र रखता है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के ग्वादर बंदरगाह का एक विकल्प प्रदान करता है। 
  • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA):
    • यह हिंद महासागर की सीमा से लगे देशों के बीच आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
    • IORA के सदस्य देश हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में व्यापार, निवेश और सतत विकास से संबंधित विभिन्न पहलों पर कार्य करते हैं।
  • भारत की ‘नेकलेस ऑफ डायमंड’ रणनीति:
    • चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति के जवाब में भारत ने ‘नेकलेस ऑफ डायमंड’ (Necklace of Diamonds) रणनीति अपनाई है, जहाँ अपनी नौसैनिक उपस्थिति को बढ़ाकर, सैन्य अड्डों का विस्तार कर और क्षेत्रीय देशों के साथ राजनयिक संबंधों को मज़बूत कर चीन को घेरने पर बल दिया गया है।
      • इस रणनीति का उद्देश्य हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्रों में चीन के सैन्य नेटवर्क एवं प्रभाव का मुक़ाबला करना है।

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव भारत-चीन संबंधों को कैसे प्रभावित कर रहा है?

  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
  • जापान:
    • भारत ने जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चीन पर निर्भरता कम करने के लिये आपूर्ति शृंखला प्रत्यास्थता पहल (Supply Chain Resilience Initiative) की शुरुआत की है।
  • क्वाड:
    • वैश्विक शक्ति समीकरण में भारत चीनी एकपक्षीयता का मुक़ाबला करने के लिये क्वाड (QUAD) के माध्यम से सक्रिय रूप से संलग्न हो रहा है, जबकि चीन अमेरिकी नेतृत्व वाली उदार विश्व व्यवस्था को चुनौती देने के लिये रूस, पाकिस्तान, ईरान और तुर्की के साथ सहयोग कर रहा है।
    • हाल ही में भारत के क्वाड साझेदार ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका चीन के साथ नए सिरे से उच्चस्तरीय राजनीतिक चर्चा में शामिल हुए हैं।
  • हिमालयन क्वाड (Himalayan QUAD):
    • इस परियोजना में QUAD के प्रतिकार के रूप में चीन, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान शामिल हुए हैं।
  • पाकिस्तान:
    • पाकिस्तान ने वर्ष 2013 में एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये, जो BRI की प्रमुख परियोजना CPEC की दीर्घकालिक योजना एवं विकास के लिये एक ऐतिहासिक समझौता था।
    • चीन के लिये पाकिस्तान न केवल एक ‘क्लाएंट स्टेट’ (client state) के रूप में कार्य करता है, बल्कि भारत को नियंत्रित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन भी है।
  • श्रीलंका:
    • BRI के तहत श्रीलंका को भी बड़े पैमाने पर वित्तपोषण प्राप्त हुआ है। श्रीलंका चीन को हिंद महासागर में कार्यकरण के लिये विभिन्न नौसैनिक क्षमताएँ प्रदान करता है।
    • चीन ने श्रीलंका से रणनीतिक हंबनटोटा बंदरगाह हासिल कर लिया है जिससे उसके ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ रणनीति को मज़बूती मिली है।
    • चीन द्वारा बनाए जा रहे कोलंबो पोर्ट सिटी को भारत और श्रीलंका के रणनीतिक विशेषज्ञों द्वारा ‘चाइनीज़ कॉलोनी’ कहा जा रहा है।
  • बांग्लादेश:
    • बांग्लादेश वर्ष 2016 में BRI में शामिल हुआ और तब से चीन के साथ उसके द्विपक्षीय संबंध बढ़ रहे हैं, जो भारत के लिये निराशाजनक है।
    • बांग्लादेश को चीन से मदद मिल रही है, लेकिन भारत-बांग्लादेश की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक निकटता हावी रहेगी। भारत और बांग्लादेश के आपसी मुद्दे और हित हैं जिनका उपयोग भारत किसी भी समय संबंधों को मज़बूत करने के लिये कर सकता है।
  • नेपाल:
    • नेपाल वर्ष 2017 में चीन के साथ BRI समझौते में शामिल हुआ।
    • चीन नेपाल के साथ राजनीतिक संबंध विकसित करने का लक्ष्य रखता है, लेकिन भारत के प्रभुत्वशाली सांस्कृतिक प्रभाव के कारण भारत का प्रभाव मज़बूत बना हुआ है।
  • मालदीव:
    • पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ल्ला यामीन के नेतृत्व में मालदीव का चीन की ओर झुकाव बढ़ा था जो भारी मात्रा में चीनी निवेश से रेखांकित हुआ। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के आने के साथ भारत विरोधी रुख बढ़ने की प्रवृत्ति स्पष्ट हो रही है।
    • भारत-मालदीव संबंधों को तब झटका लगा जब मालदीव ने वर्ष 2017 में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) संपन्न किया।
    • भारत ने क्षेत्र में अपना प्रभाव मज़बूत करने के लिये नए सिरे से आर्थिक सहायता प्रदान की है, अवसंरचना परियोजनाएँ शुरू की हैं और रक्षा सहयोग का विस्तार किया है।
  • भूटान:
    • भूटान ने भारत के साथ मज़बूत राजनीतिक एवं आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देते हुए BRI भागीदारी को अस्वीकार कर दिया है।
    • भारत भूटान को जलविद्युत परियोजनाओं में सहायता करता है और क्षेत्रीय पहलों का प्रस्ताव करता है।
  • अफगानिस्तान:
    • अफगानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण के बाद तालिबान ने देश के पुनर्निर्माण प्रयासों में चीन को ‘सबसे महत्त्वपूर्ण भागीदार’ बताया है।

आगे की राह

  • ‘शांति के लिये युद्ध’:
    • भारत को चीन के साथ संघर्ष की संभावना के लिये तैयार रहने की ज़रूरत है और इसके लिये अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा देना चाहिये।
    • रक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने अनुशंसा की है कि भारत की निवारक/प्रतिरोधक स्थिति को बनाए रखने के लिये रक्षा हेतु आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद का 3% होना चाहिये।
    • सीमा पर सड़कों और पुलों जैसे बुनियादी ढाँचे के विकास से दोनों देशों को दूरदराज के इलाकों तक पहुँचने में मदद मिल सकती है और इससे किसी भी गलतफहमी या संघर्ष की संभावना कम हो सकती है।
  • सामर्थ्य की स्थिति से कूटनीतिक संवाद:
    • मुद्दों का विभाजन: भिन्न-भिन्न चुनौतियों को पृथक कर वार्ताकार प्रत्येक विशेष पहलू के अनुरूप समाधान विकसित कर सकते हैं
    • सीमा विवादों को संबोधित करना: राजनयिक साधनों और समझौता वार्ताओं के माध्यम से जारी सीमा विवादों को हल करने को प्राथमिकता दी जाए।
    • उच्च-स्तरीय वार्ता में शामिल होना: दोनों देशों को मौजूदा मुद्दों पर चर्चा करने और इन्हें हल करने के लिये उच्च-स्तरीय राजनयिक वार्ताओं में शामिल होना चाहिये।
      • भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने लद्दाख सीमा पर तनाव कम करने के लिये वर्ष 2020 में मॉस्को में ‘पांच सूत्री’ समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
      • विश्वास-निर्माण उपाय (CBMs) लागू करें: गलतफहमी और आकस्मिक तनाव वृद्धि को रोकने के लिये दोनों देशों के सैन्य बलों के बीच संचार चैनलों में सुधार करें।
  • विदेशी मामलों में रणनीतिक स्वायत्तता:
    • भारत की चीन नीति के भू-राजनीतिक निहितार्थों का अपना एक स्वतंत्र तर्क है।
    • भारत को एकमात्र क्वाड राष्ट्र या महत्त्वपूर्ण शक्ति नहीं बने रहना चाहिये जो चीन के साथ संवाद में शामिल नहीं है।
    • अमेरिका-चीन संबंधों में संभावित बदलाव के बारे में आशंका व्यक्त करने के बजाय भारत को अमेरिका और पश्चिम के साथ मौजूदा अवसरों का लाभ उठाने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • रणनीतिक फोकस में वैश्विक शक्ति पदानुक्रम में भारत का तेज़ी से उभार, चीन के साथ रणनीतिक अंतराल को कम करना और सैन्य निरोध को मज़बूत करना शामिल होना चाहिये।
  • आर्थिक सहयोग:
    • आयात में विविधता लाना: भारत को वियतनाम, दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान और इंडोनेशिया जैसे अन्य देशों से अपने आयात में विविधता लाकर चीनी आयात पर अपनी निर्भरता कम करने की आवश्यकता है।
    • निर्यात को बढ़ावा: भारत चीन को अपना निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। भारत को इंजीनियरिंग वस्तुओं, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और रसायन जैसे उच्च मूल्य उत्पादों के निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • घरेलू उद्योगों का विकास करना: भारत को आयात पर निर्भरता कम करने के लिये अपने घरेलू उद्योगों को विकसित करने की आवश्यकता है। इससे न केवल व्यापार असंतुलन को कम करने में मदद मिलेगी बल्कि भारत में रोज़गार के अवसर भी पैदा होंगे।
    • FTAs की समीक्षा करना: भारत को निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने के लिये चीन के साथ FTA पर हस्ताक्षर करने पर भी विचार करना चाहिये।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना:
    • लोगों के परस्पर संपर्क को प्रोत्साहित करना: भारत और चीन के लोगों के बीच समझ को बढ़ावा देने के लिये सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षिक कार्यक्रमों और पर्यटन को प्रोत्साहित करें।
    • ट्रैक II संवादों को बढ़ावा देना: नए दृष्टिकोण और विचारों में योगदान के लिये विद्वानों, चिंतक समूह (थिंक टैंक) और नागरिक समाज को शामिल करते हुए गैर-सरकारी आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया जाए।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में शामिल होना:
    • वैश्विक मुद्दों पर सहयोग करना: विश्व मंच पर संयुक्त नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए जलवायु परिवर्तन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और आतंकवाद-विरोध जैसी वैश्विक चुनौतियों पर मिलकर कार्य करें।
    • बहुपक्षीय मंचों में शामिल होना: साझा चिंताओं को दूर करने और क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बहुपक्षीय मंचों में संलग्न होना चाहिये।
  • हाईटेक - नई विदेश नीति:
    • संयुक्त अनुसंधान और नवाचार: दोनों देशों के आर्थिक और प्रौद्यिगिकीय लाभ के लिये प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं नवाचार में सहयोग को प्रोत्साहित करना।
    • पर्यावरणीय मुद्दों पर संयुक्त प्रयास: साझा हितों को उजागर करने के लिये वायु प्रदूषण और जल प्रबंधन जैसे पर्यावरणीय पहलों पर सहयोग करें।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नेट सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरना:
    • समुद्री सुरक्षा: भारत को महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों में नौवहन की सुरक्षा एवं स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के प्रयासों में भागीदारी करनी चाहिये, जिससे हिंद-प्रशांत में समग्र सुरक्षा वास्तुकला में योगदान दिया जा सके।
    • मानवीय सहायता: भारत को मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेकर क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखनी चाहिये।

निष्कर्ष

महान शक्ति समीकरण में परिवर्तन का आकलन करना और प्रतिक्रियाएँ तैयार करना किसी भी देश की विदेश नीति का एक बुनियादी पहलू है। भारत के लिये, मुख्य ध्यान इस पर होना चाहिये कि अमेरिका के साथ अपने गठबंधन को आगे बढ़ाने के लिये उभरते अवसरों के लाभ उठाए और चीन के साथ जटिल संबंधों के बीच कुशलता से आगे बढ़े। अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में भारत का उत्थान उसे महान शक्ति संबंधों में किसी भी अप्रत्याशित बदलाव को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की स्थिति प्रदान करता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत और चीन के बीच विवाद के मुख्य बिंदु कौन-से हैं और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थापित करने के लिये चीन क्या रणनीति अपना रहा है? बदलते शक्ति समीकरण के परिदृश्य में भारत की विदेश नीति के लिये आप कौन-से राजनयिक दृष्टिकोण अपनाने के सुझाव देंगे?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव  का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016) 

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को चीन की बड़ी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के मुख्य उपसमुच्चय के रूप में देखा जाता है। CPEC का संक्षिप्त विवरण दीजिये और उन कारणों का उल्लेख कीजिये जिनकी वज़ह से भारत ने खुद को इससे दूर किया है। (2018)