लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

कृषि

भारत के कृषि क्षेत्र का पुनर्निर्माण

  • 22 Nov 2024
  • 28 min read

यह संपादकीय 22/11/2024 को ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Why farmers remain unhappy with the government” पर आधारित है। इस आलेख में भारत के कृषि क्षेत्र, जो 40% आबादी का भरण-पोषण करता है, के समक्ष तकनीकी प्रगति और पारंपरिक पद्धतियों के बीच संतुलन बनाने में आने वाली चुनौतियों को उजागर किया गया है। यह एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए किसानों की ज़रूरतों के साथ नवाचार को जोड़ता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का कृषि क्षेत्र, कृषि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, हीट वेव्स, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, e-NAM, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, NPK उर्वरक, मृदा कार्बनिक कार्बन, पराली दहन, सूखा सहिष्णु फसल किस्में 

मेन्स के लिये:

भारत के कृषि क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ, भारत के कृषि क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिये उपाय अपनाए जा सकते हैं। 

भारत का कृषि क्षेत्र, जिसमें 42.3% आबादी कार्यरत है, एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है जहाँ नीति कार्यान्वयन को महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जैव प्रौद्योगिकी से लेकर आधुनिक कृषि समाधानों तक तकनीकी अंगीकरण के बीच के अंतर को पारंपरिक कृषि पद्धतियों और किसानों की स्वीकृति के साथ सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता है। मूलभूत चुनौती एक स्थायी कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने में निहित है जो राष्ट्र के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वैज्ञानिक नवाचारों, ज़मीनी स्तर पर कार्यान्वयन और किसानों की आवश्यकताओं के बीच के अंतर को प्रभावी ढंग से कम कर सके।

वर्तमान में भारत का कृषि क्षेत्र कैसा प्रदर्शन कर रहा है?

  • प्रमुख कृषि मीट्रिक्स और विकास: सत्र 2022-23 की अवधि में, भारत ने 330.5 मिलियन मीट्रिक टन (MT) का खाद्यान्न उत्पादन हासिल किया, जिससे वैश्विक स्तर पर दूसरे सबसे बड़े उत्पादक के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी।
    • इसके अतिरिक्त, बागवानी उत्पादन रिकॉर्ड 351.92 मिलियन टन (MT) तक पहुँच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 1.37% की वृद्धि दर्शाता है।
  • बाज़ार प्रदर्शन: अनुमान है कि भारतीय कृषि क्षेत्र का बाज़ार आकार वर्ष 2025 तक 24 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा। भारतीय खाद्य एवं किराना बाज़ार विश्व स्तर पर छठा सबसे बड़ा बाज़ार है, जहाँ खुदरा बिक्री का योगदान 70% है।
    • खरीफ सीज़न 2023-24 के लिये खाद्यान्न उत्पादन 148.5 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो प्रमुख कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि को दर्शाता है।
  • निवेश और निर्यात रुझान:
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक कृषि सेवा क्षेत्र ने 3.08 बिलियन अमेरीकी डॉलर का FDI आकर्षित किया। 
      • कृषि के एक प्रमुख क्षेत्र, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में 12.58 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ, जो कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 1.85% है।
    • कृषि निर्यात: भारत का कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का निर्यात वर्ष 2024-25 (अप्रैल-मई) में 4.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। प्रमुख निर्यातों में शामिल हैं:
      • समुद्री उत्पाद: 1.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर
      • चावल (बासमती और गैर-बासमती): 1.96 बिलियन अमेरिकी डॉलर
      • मसाले: 769.22 मिलियन अमेरिकी डॉलर

भारत के कृषि क्षेत्र के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता: चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति भारत भर में फसल की पैदावार और खेती के पैटर्न को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। 
    • हीट वेव्स, अनियमित वर्षा और बेमौसम वर्षा ने पारंपरिक कृषि कैलेंडर तथा फसल विकल्पों के लिये गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी हैं।
    • वर्ष 2023 में, भारत ने रिकॉर्ड पर अपने दूसरे सबसे गर्म वर्ष का अनुभव किया। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में बताया गया है कि चरम मौसम, जलाशयों के स्तर में कमी और फसल क्षति ने पिछले दो वर्षों में कृषि उत्पादन को प्रभावित किया है तथा खाद्य कीमतों को बढ़ाया है।
  • जल तनाव और सिंचाई अकुशलता: भारत का कृषि क्षेत्र अभी भी जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता बना हुआ है, जबकि सिंचाई दक्षता का स्तर बहुत कम है।
    • प्रवाह सिंचाई पद्धतियों का प्रभुत्व बना हुआ है, भले ही उनमें जल की बर्बादी अधिक होती है, जबकि सूक्ष्म सिंचाई का उपयोग कम ही होता है। 
    • भारत कई विकसित और विकासशील देशों की तुलना में 1 टन फसल उत्पादन के लिये 2-3 गुना अधिक जल का प्रयोग करता है।
      • उल्लेखनीय है कि भारत की केवल 11% कृषि भूमि ही सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत है।
  • भूमि का विखंडन और खेतों के आकार में गिरावट: कृषि भूमि का निरंतर विभाजन कृषि कार्यों और प्रौद्योगिकी अपनाने की आर्थिक व्यवहार्यता पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। 
    • औसत कृषि आकार छोटा हो गया है, जिससे मशीनीकरण और आधुनिक कृषि पद्धतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना कठिन होता जा रहा है। 
    • देश में किसानों के पास कृषि के लिये औसत भूमि जोत सत्र 2016-17 में 1.08 हेक्टेयर से घटकर सत्र 2021-22 में केवल 0.74 हेक्टेयर रह गई। 
  • बाज़ार अभिगम और मूल्य प्राप्ति: किसानों को कई बिचौलियों और अपर्याप्त बाज़ार बुनियादी अवसंरचना के कारण अपनी उपज के लिये उचित मूल्य पाने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • e-NAM की स्थापना और विभिन्न बाज़ार सुधारों के बावजूद, खेत से लेकर खुदरा बिक्री तक के बीच मूल्य का अंतर अभी भी उच्च बना हुआ है। 
    • RBI के एक अध्ययन से पता चलता है कि किसानों को फलों और सब्ज़ियों के लिये उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई गई कीमत का केवल एक तिहाई ही मिलता है।
    • वर्ष 2021 में निरस्त किये गए तीन कृषि कानूनों ने बाज़ार पहुँच और उचित मूल्य निर्धारण के चल रहे मुद्दों को उजागर किया, जिसमें किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों की कमी तथा बाज़ारों पर कॉर्पोरेट नियंत्रण की चिंताओं का विरोध किया, जिससे सुदृढ़ सुधारों की आवश्यकता को बल मिला।
  • प्रौद्योगिकी अपनाने में अंतर: वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम होने के बावजूद, भारत में कृषि प्रौद्योगिकी का अभिगम कम है और नई प्रौद्योगिकियों के प्रति काफी प्रतिरोध है। 
    • डिजिटल डिवाइड और तकनीकी ज्ञान की कमी आधुनिक कृषि पद्धति के अंगीकरण में बाधा बन रही है। 
    • वर्ष 2023 तक, केवल 30% भारतीय किसान कृषि में डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करेंगे तथा ग्रामीण डिजिटल साक्षरता केवल 25% ही रहेगी।
  • फसल-उपरांत बुनियादी अवसंरचना की कमी: भारत को अपर्याप्त भंडारण, प्रसंस्करण और कोल्ड चेन बुनियादी अवसंरचना के कारण फसल-उपरांत बहुत बड़ा नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
    • यह अंतर विशेष रूप से शीघ्र खराब होने वाले खाद्यान्न को प्रभावित करता है तथा किसानों की बेहतर कीमतों के लिये उपज को अपने पास भंडारण करने की क्षमता को कम करता है। 
    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के वर्ष 2022 के अध्ययन के अनुसार, भारत में फसल-उपरांत होने वाला नुकसान लगभग 1,52,790 करोड़ रुपए सालाना है।
    • इसके अतिरिक्त, भारत का 90% से अधिक कोल्ड चेन लॉजिस्टिक्स क्षेत्र खंडित और निजी स्वामित्व वाला है तथा इसमें मानकीकरण का अभाव है।
  • ऋण और बीमा कवरेज: कृषि के लिये संस्थागत ऋण प्रवाह में महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, छोटे और सीमांत किसान अभी भी औपचारिक ऋण तक पहुँच के लिये संघर्ष करते हैं। 
    • अपर्याप्त बीमा कवरेज और विलंबित दावा निपटान किसानों की जोखिम प्रबंधन क्षमताओं को प्रभावित कर रहे हैं। 
    • केवल 41% छोटे और सीमांत किसानों को बैंक ऋण प्राप्त हुआ, जबकि कृषि क्षेत्र में सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ 9.8% तक पहुँच गईं।
  • मृदा स्वास्थ्य क्षरण: रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग और एकल फसल उत्पादन के कारण प्रमुख कृषि क्षेत्रों में मृदा का गंभीर क्षरण हुआ है।  
    • NPK उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से गंभीर पोषक असंतुलन उत्पन्न हो गया है, जिससे दीर्घकालिक मृदा उत्पादकता प्रभावित हो रही है। 
    • भारत की लगभग 30% भूमि बढ़ती उर्वरक खपत, उर्वरकों के असंतुलित उपयोग और गलत मृदा प्रबंधन के कारण क्षरण का अनुभव कर रही है।
    • भारत में मृदा ऑर्गेनिक कार्बन (SOC) की मात्रा पिछले 70 वर्षों में 1% से घटकर 0.3% हो गई है, जिससे कृषि क्षेत्र के लिये चिंता बढ़ गई है (राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण)।
    • इसके अतिरिक्त, पराली दहन से वायु प्रदूषण बढ़ता है और मृदा स्वास्थ्य में गिरावट आती है, जिससे कृषि उत्पादकता पर भी असर पड़ता है।
  • फसल विविधीकरण की चुनौतियाँ: नीतिगत प्रयासों के बावजूद, सुनिश्चित खरीद प्रणाली और न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण किसान अब भी अधिक जल की खपत वाले गेहूँ-चावल के चक्र में फँसे हुए हैं। 
    • दलहन, तिलहन और बागवानी फसलों में विविधीकरण को बाज़ार अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है। 
    • यद्यपि भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है, फिर भी दालों का उत्पादन 22.42 मिलियन टन की बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • कृषि का स्त्रैणीकरण: भारतीय कृषि के स्त्रैणीकरण के कारण कृषि कार्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ गई है, जबकि भूमि, ऋण और प्रौद्योगिकी जैसे संसाधनों तक उनकी पहुँच सीमित है। 
    • अखिल भारतीय स्तर पर कृषि क्षेत्र में लगभग 63% श्रमिक महिलाएँ हैं, लेकिन महिलाओं के पास केवल 11-13% परिचालन भूमि है, जो उनके निर्णय लेने की शक्ति को सीमित करती है। 
    • संसाधनों और अवसरों तक पहुँच में यह लैंगिक असमानता कृषि में महिलाओं की उत्पादकता तथा आर्थिक सुरक्षा को सीमित करती है। 
    • इसके अतिरिक्त उनके योगदान को प्रायः कम आँका जाता है और मान्यता नहीं दी जाती है, जिससे उनके सशक्तीकरण में बाधा उत्पन्न होती है। 

कृषि से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल क्या हैं? 

भारत के कृषि क्षेत्र को सशक्त करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र: मृदा परीक्षण से लेकर बाज़ार अभिगम तक सभी कृषि सेवाओं को जोड़ने वाला एक एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
    • आपूर्ति शृंखला पारदर्शिता और उचित मूल्य खोज़ के लिये ब्लॉकचेन को लागू किये जाने की आवश्यकता है। सटीक नीतिगत हस्तक्षेप को सक्षम करने के लिये भूमि रिकॉर्ड, फसल पैटर्न और क्रेडिट इतिहास को जोड़ने वाला एक एकीकृत डेटाबेस बनाए जाने चाहिये। 
    • क्षेत्रीय भाषाओं में स्थानीयकृत सामग्री के साथ मोबाइल-आधारित विस्तार सेवाएँ शुरू की जानी चाहिये। 
      • सत्र 2024-25 की पहली तिमाही में सरकार के ई-नाम प्लेटफॉर्म पर व्यापार 18,990 करोड़ रुपए को पार कर गया, जो कृषि के डिजिटलीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि: मौसम आधारित कृषि सलाह को प्रत्यक्ष किसान संदेश प्रणालियों के साथ एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है। 
    • प्रदर्शन भूखंडों के माध्यम से सूखा सहिष्णु फसल किस्मों और जल-कुशल कृषि तकनीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। जलवायु-सहिष्णु किस्मों के लिये समुदाय-प्रबंधित बीज बैंकों को लागू किया जाना चाहिये। 
      • भारत के प्रधानमंत्री द्वारा हाल ही में कृषि फसलों की 109 मौसम-सहिष्णु, उच्च उपज देने वाली और जैव-संवर्द्धित बीज किस्मों को जारी करना एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • जल प्रबंधन क्रांति: प्रोत्साहन-आधारित नीतियों के माध्यम से जल-गहन फसलों के लिये सूक्ष्म सिंचाई को अनिवार्य बनाये जाने की आवश्यकता है। 
    • जल उपलब्धता के आधार पर समुदाय-नेतृत्व वाली जल बजट और फसल योजना को लागू किया जाना चाहिये।
      • FPO द्वारा प्रबंधित कस्टम हायरिंग सेंटर के माध्यम से सटीक सिंचाई प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। स्पष्ट परिणाम मीट्रिक्स के साथ नीरांचल वाटरशेड कार्यक्रम जैसे सफल वाटरशेड विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया जाना चाहिये
  • कृषक उत्पादक संगठनों (FPO) को सुदृढ़ करना: FPO को इनपुट आपूर्ति, प्रसंस्करण और विपणन का प्रबंधन करने वाली व्यापक व्यावसायिक संस्थाओं में बदलने की आवश्यकता है। 
    • समर्पित व्यवसाय विकास सहायता और बाज़ार संपर्क प्रदान किया जाना चाहिये। औपचारिक ऋण तक उनकी पहुँच में सुधार के लिये FPO के लिये एक विशेष क्रेडिट रेटिंग प्रणाली बनाए जाने चाहिये। FPO द्वारा प्रबंधित प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता नियंत्रण केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये। 
      • तमिलनाडु में "विरुथाई मिलेट्स फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड (VMFPOL)" जो कदन्न उत्पादन, मूल्य संवर्द्धन और विपणन में विशेषज्ञता रखती है, एक आदर्श मॉडल हो सकती है।
  • फसलोपरांत अवसंरचना विकास: गाँव और ब्लॉक स्तर पर भंडारण अवसंरचना के लिये हब-एंड-स्पोक मॉडल की स्थापना किये जाने की आवश्यकता है। 
    • सुनिश्चित खरीद लिंकेज के साथ कोल्ड चेन विकास के लिये PPP मॉडल लागू किये जाने चाहिये। गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं के साथ बहु-वस्तु भंडारण सुविधाएँ बनाए जाने चाहिये।  
      • पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) की पहल, जिसने पंजाब में धान की पराली प्रबंधन प्रणाली शुरू की, का विस्तार देश के अन्य भागों में भी किया जा सकता है। 
  • कृषि ऋण सुधार: फसल चक्र और कृषक आय के अनुरूप लचीले ऋण मॉडल लागू किये जाने की आवश्यकता है।
    • लक्ष्य निर्धारण में सुधार हेतु ब्याज अनुदान के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण को लागू किया जाना चाहिये। नवीन कृषि पद्धतियों के लिये एक विशेष ऋण गारंटी निधि का गठन किया जाना चाहिये। संबद्ध गतिविधियों और कृषि मशीनीकरण के लिये ऋण मॉडल विकसित किये जाने चाहिये। 
      • केरल का किसान-हितैषी ऋण मॉडल फलों और सब्ज़ियों के उत्पादन को बढ़ाता है, एक व्यवहार्य मॉडल प्रस्तुत करता है।
  • मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन: PoS प्रणाली के माध्यम से उर्वरक बिक्री से जुड़े मृदा स्वास्थ्य कार्ड को अनिवार्य रूप से लागू किये जाने की आवश्यकता है। 
    • स्थानीय उत्पादन इकाइयों के माध्यम से जैव-उर्वरकों और जैविक इनपुट को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। प्रशिक्षित ग्रामीण युवाओं द्वारा प्रबंधित ग्राम-स्तर की मृदा परीक्षण सुविधाएँ बनाई जानी चाहिये।
    • मृदा ऑर्गेनिक कार्बन पदार्थ में सुधार के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन शुरू किया जाना चाहिये।
  • कृषि में सतत् ऊर्जा: सामुदायिक स्वामित्व मॉडल के माध्यम से सौर पंप सेट को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है। फसल अवशेषों का उपयोग करके बायोमास आधारित विद्युत ऊर्जा उत्पादन को लागू किया जा सकता है।
    • अक्षय ऊर्जा का उपयोग करके ऊर्जा-कुशल कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ स्थापित की जानी चाहिये। ग्रामीण-स्तर पर सौर ऊर्जा से चलने वाली प्रसंस्करण इकाइयों को विकसित किया जाना चाहिये। 
      • गुजरात के मेहसाणा ज़िले का मोढेरा गाँव भारत का पहला सौर ऊर्जा से चलने वाला गाँव है, जो एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है। 
  • परिपत्र कृषि अर्थव्यवस्था: कृषि अवशेषों को मूल्यवर्द्धित उत्पादों में परिवर्तित करने के लिये अपशिष्ट से संपत्ति कार्यक्रम लागू करने की आवश्यकता है। 
    • जैविक उर्वरक उत्पादन के लिये महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा प्रबंधित कम्पोस्ट क्लस्टर स्थापित किये जाने चाहिये।
    • स्थानीय ऊर्जा उत्पादन के लिये फसल अपशिष्ट का उपयोग करके ग्राम स्तर पर बायोगैस संयंत्र बनाए जाने चाहिये।
  • वैकल्पिक कृषि प्रणालियाँ: कम लागत वाली हाइड्रोपोनिक प्रणालियों का उपयोग करके शहरी क्षेत्रों में रूफटॉप खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • छोटे किसानों के लिये मात्स्यिकी और सब्ज़ी उत्पादन को मिलाकर एक्वापोनिक्स प्रणाली लागू किया जाना चाहिये।
    • शहरी खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय के लिये रूफटॉप फार्मिंग मॉडल विकसित किया जाना चाहिये।
      • मुंबई के उपनगरीय रूफटॉप खेती की सफलता व्यवहार्य विकल्प दर्शाती है।
  • कृषि में महिला सशक्तीकरण: महिलाओं के नेतृत्व में कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण केंद्र बनाए जाने की आवश्यकता है।
    • महिला किसानों के लिये सरलीकृत दस्तावेज़ीकरण के साथ विशेष ऋण योजनाएँ लागू की जानी चाहिये।
      • दीनदयाल अंत्योदय योजना-NRLM (DAY-NRLM) के एक उप घटक "महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना" (MKSP) को और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष: 

भारत के कृषि क्षेत्र, जो इसकी अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा का आधार है, को सरकारी नीतियों, निजी क्षेत्र के निवेश एवं किसान-नेतृत्व वाले नवाचार को मिलाकर एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ताकि इस क्षेत्र की पूरी क्षमता को उजागर किया जा सके। संधारणीय प्रथाओं को अपनाकर, किसानों को सशक्त बनाकर और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर, भारत न केवल अपनी घरेलू खाद्य ज़रूरतों को पूरा कर सकता है, बल्कि एक वैश्विक कृषि महाशक्ति के रूप में भी उभर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में, कृषि नीति ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदलती ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विकसित की गई है। किसानों, खाद्य सुरक्षा और स्थिरता की चिंताओं को दूर करने में भारत की कृषि नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न.  जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत में 'जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)' दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
  2. सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आइ.ए. आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय फ्राँस में है।
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आइ.सी.आर. आइ.एस.ए.टी.), सी.जी.आइ.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)

कार्यक्रम/परियोजना

मंत्रालय

1. सूखा-प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम

: कृषि मंत्रालय

2. मरुस्थल विकास कार्यक्रम

: पर्यावरण एवं वन मंत्रालय

3. वर्षापूरित क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जलसंभर विकास परियोजना

: ग्रामीण विकास मंत्रालय

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं 

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत में, निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020) 

  1. सभी फसलों के कृषि उत्पाद के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना
  2. प्राथमिक कृषि साख समितियों का कंप्यूटरीकरण
  3. सामाजिक पूँजी विकास
  4. कृषकों को निशुल्क बिजली की आपूर्ति
  5. बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋण की माफी
  6. सरकारों द्वारा शीतागार सुविधाओं को स्थापित करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1,2 और 5
(b) केवल 1,3, 4 और 5
(c) केवल 2, 3 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016)

प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2