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भारत में दिव्यांगजन: हाशिये से मुख्यधारा की ओर

  • 16 Jul 2024
  • 26 min read

यह एडिटोरियल 14/07/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The Supreme Court ruling on portrayal of disability in films” लेख पर आधारित है। इसमें दृश्य मीडिया में दिव्यांगजनों के विरुद्ध रूढ़िवादिता और भेदभाव पर रोक के लिये सर्वोच्च न्यायालय के हाल के दिशा-निर्देशों के बारे में चर्चा की गई है, जहाँ कंटेंट निर्माण में दिव्यांगजनों के सटीक प्रतिनिधित्व और भागीदारी पर बल दिया गया है। इसमें मौजूदा दिव्यांगजन अधिकार कानूनों के उचित कार्यान्वयन की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

दिव्यांगजनों से संबंधित भारत के सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2017, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016, भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम, 1992, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017, पीएम-दक्ष (दिव्यांग कौशल विकास एवं पुनर्वास योजना),  सुगम्य भारत अभियान, दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना, दिव्यांगजनों के लिये सहायक यंत्रों/उपकरणों की खरीद/फिटिंग में सहायता की योजना, दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप

मेन्स के लिये:

भारत में दिव्यांगजनों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ, भारत में दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने के उपाय

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दृश्य या विजुअल मीडिया में दिव्यांगजनों (PwDs) के विरुद्ध रूढ़िवादिता और भेदभाव पर रोक के लिये ऐतिहासिक दिशा-निर्देश जारी किये हैं। यह ढाँचा कलंकित करने वाली भाषा से बचने, सटीक प्रतिनिधित्व प्रदान करने और कंटेंट निर्माण में PWDs को शामिल करने पर बल देता है। यह निर्णय दिव्यांगजन अधिकार नियम 2017 जैसे मौजूदा कानून पर आधारित है, जो एक ऐसे मानवाधिकार मॉडल की ओर संक्रमण को प्रतिबिंबित करता है जहाँ PWDs को समान अधिकार रखने वाले समाज के अभिन्न सदस्य के रूप में देखा जाता है।

यद्यपि यह न्यायिक हस्तक्षेप महत्त्वपूर्ण है, इसके क्रियान्वयन और सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने से जुड़ी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। ये दिशा-निर्देश मुख्य रूप से दृश्य मीडिया पर केंद्रित हैं, लेकिन सभी क्षेत्रों में इनके व्यापक अनुप्रयोग की आवश्यकता है। दिव्यांगजन अधिकारों के पैरोकार ध्यान दिलाते हैं कि प्रगतिशील कानूनों के बावजूद दिव्यांगजनों को प्रायः समानता के बजाय दया के नज़रिए से देखा जाता है।

भारत को विधायी मंशा और सामाजिक यथार्थ के बीच की खाई को दूर करने के लिये कठोर श्रम करने की आवश्यकता है, ताकि जीवन के सभी पहलुओं में दिव्यांगजनों के लिये पूर्ण समावेशन और सम्मान सुनिश्चित किया जा सके।

भारत में दिव्यांगजनों की वर्तमान स्थिति:

  • परिचय: जनगणना 2011 के अनुसार, देश में दिव्यांगजनों की संख्या 2.68 करोड़ है, जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21% है।
    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के अनुसार 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को चिह्नित किया गया है, जिनमें लोकोमोटर या चलन संबंधी दिव्यांगता, दृश्य दिव्यांगता, श्रवण दिव्यांगता, वाणी एवं भाषा दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, बहु दिव्यांगता, मस्तिष्क पक्षाघात, बौनापन आदि शामिल हैं।
  • दिव्यांगता अधिकारों के मॉडल: दिव्यांगता अधिकारों को प्रायः विभिन्न मॉडलों के माध्यम से देखा जाता है:
    • चिकित्सा मॉडल: यह व्यक्ति की निःशक्तता पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • सामाजिक मॉडल: यह दिव्यांगजनों को समाज का अभिन्न अंग मानता है, जिन्हें अन्य लोगों के समान अधिकार प्राप्त हैं।
      • मानवाधिकार मॉडल: यह सामाजिक मॉडल का परिष्कृत रूप है, जो इस बात पर बल देता है कि दिव्यांगजनों को सभी मानवाधिकार समान रूप से प्राप्त होने चाहिये।
        • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त ढाँचा इस मॉडल के अनुरूप है, जो सरकार और निजी निकायों दोनों को समाज में दिव्यांगजनों की पूर्ण एवं प्रभावी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने का दायित्व सौंपता है।
  • दिव्यांगता अधिकार प्रदान करने वाले प्रमुख कानून:
    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (RPwD Act), 2016: यह व्यापक कानून 19 अप्रैल 2017 को लागू हुआ जिसने वर्ष 1995 के अधिनियम को प्रतिस्थापित किया।
      • इसका उद्देश्य दिव्यांगजनों के लिये समान अवसर, अधिकारों की सुरक्षा और पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करना है।
    • राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (National Trust Act), 1999: स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांगता से ग्रस्त व्यक्तियों (Persons with Autism, Cerebral Palsy, Mental Retardation and Multiple Disabilities) के कल्याण और उससे संबंधित मामलों या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक निकाय के गठन के लिये इस अधिनियम का निर्माण किया गया।
    • भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम (Rehabilitation Council of India Act), 1992: यह अधिनियम दिव्यांगता पुनर्वास के क्षेत्र में कार्यरत पेशेवरों के प्रशिक्षण और पंजीकरण को नियंत्रित करता है।
    • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (Mental Health Care Act), 2017: यह अधिनियम मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करता है।
  • कलंक और भेदभाव को रोकने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के हालिया दिशा-निर्देश: 
    • भाषा का प्रयोग: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त रूपरेखा में ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचने पर बल दिया गया है जो संस्थागत भेदभाव को बढ़ावा देते हैं और नकारात्मक आत्म-छवि में योगदान करते हैं।
    • रूढ़िबद्धता (Stereotyping): दृश्य मीडिया और फिल्मों में दिव्यांगजनों के बारे में व्याप्त रूढ़िबद्धता को समाप्त करने का आह्वान किया गया है और क्रिएटर्स से निःशक्तता का उपहास करने के बजाय सटीक चित्रण प्रस्तुत करने का आग्रह किया गया है।
    • समावेशी भाषा: असहाय या पीड़ित जैसे शब्दों के प्रयोग से बचा जाए जो दिव्यांगता को व्यक्तिगत बनाते हैं और सामाजिक बाधाओं की अनदेखी करते हैं।
    • समावेशी सहयोग: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा “Nothing About Us Without Us” (दिव्यांगजन संगठनों द्वारा प्रयुक्त एक प्रमुख नारा जो इस बात पर बल देता है कि उनके बारे में किसी भी नीति या विधि के निर्माण में उनकी संलग्नता सुनिश्चित की जाए) के सिद्धांत पर प्रकाश डाला गया है, ताकि दृश्य मीडिया कंटेंट के सृजन एवं मूल्यांकन में दिव्यांगजनों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके।

भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ:

  • अगम्य अवसंरचना (Inaccessible Infrastructure): मौजूदा अवसंरचना दिव्यांगजनों के लिये प्रायः अगम्य या दुर्गम्य है। सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और यहाँ तक कि कई निजी इमारतों में उपयुक्त रैंप, लिफ्ट या टैक्टाइल पैविंग का अभाव पाया जाता है।
    • दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (Department of Empowerment of Persons with Disabilities) की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 3% इमारतें ही पूरी तरह से अभिगम्य पाई गईं।
    • भवन संरचना संबंधी यह भेदभाव दिव्यांगजनों की गतिशीलता और स्वतंत्रता को गंभीर रूप से सीमित करता है।
  • शैक्षिक अपवर्जन: शिक्षा का अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के बावजूद कई दिव्यांगजनों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • समावेशी स्कूलों, प्रशिक्षित शिक्षकों और सहायक प्रौद्योगिकियों की कमी से ज्ञान में अंतराल पैदा होता है।
    • लगभग 45% दिव्यांगजन निरक्षर हैं और 03 से 35 आयु वर्ग के केवल 62.9% दिव्यांगजन कभी भी नियमित स्कूल गए हैं।
      • यह शैक्षिक असमानता रोज़गार के अवसरों में कमी और आर्थिक वंचना के दुष्चक्र को बनाए रखती है।
  • पूर्वाग्रह की ‘ग्लास सीलिंग’: दिव्यांगजनों को सार्थक रोज़गार प्राप्त करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ‘ग्लास सीलिंग’ का मेटाफोर या रूपक यह बताता है कि हाशिये पर स्थित लोगों को प्रगति करने से किस प्रकार निषिद्ध किया जाता है। 
    • कार्यस्थल पर भेदभाव, उचित सुविधाओं का अभाव और सामाजिक पूर्वाग्रह एक प्रकार की ग्लास सीलिंग या बाधा उत्पन्न करते हैं।
    • भारत में लगभग 3 करोड़ दिव्यांगजन हैं, जिनमें से लगभग 1.3 करोड़ रोज़गार योग्यता रखते हैं, लेकिन उनमें से केवल 34 लाख को ही रोज़गार प्राप्त हुआ है।
  • स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बाधाएँ: उपयुक्त स्वास्थ्य देखभाल तक अभिगम्यता दिव्यांगजनों के लिये एक गंभीर चुनौती बनी हुई है ।
    • कई स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में दिव्यांगजनों के अनुकूल उपकरणों या विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव पाया जाता है।
    • कोविड-19 महामारी ने इन भेद्यताओं को और उजागर कर दिया, जहाँ दिव्यांगजनों को अधिक जोखिम का सामना करना पड़ा और आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुँच में कमी आई।
  • सामाजिक कलंक की अदृश्य जंजीरें: दिव्यांगता के बारे में गहन रूप से व्याप्त सामाजिक कलंक और गलत धारणाएँ दिव्यांगों को हाशिये पर धकेलती रहती हैं।
    • उन्हें प्रायः भेदभाव, सामाजिक गतिविधियों से अपवर्जन और यहाँ तक कि हिंसा का भी सामना करना पड़ता है।
    • यह सामाजिक अपवर्जन उनके मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की समग्र गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
  • डिजिटल डिवाइड- अपवर्जन का एक नया मोर्चा: जैसे-जैसे भारत तेज़ी से डिजिटल होता जा रहा है, विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रौद्योगिकियों की अगम्यता के कारण दिव्यांगजन पीछे छूटते जा रहे हैं।
    • वेबसाइट्स, ऐप्स और डिजिटल सेवाओं में अक्सर स्क्रीन रीडर या क्लोज्ड कैप्शन जैसी सुविधाओं का अभाव होता है।
    • वेब एक्सेसिबिलिटी वार्षिक रिपोर्ट (2020) में पाया गया कि 98% वेबसाइट दिव्यांगजनों के लिये अभिगम्यता संबंधी आवश्यकताओं का पालन करने में विफल रहे थे।
    • यह डिजिटल डिवाइड शिक्षा, रोज़गार एवं सामाजिक भागीदारी में पहले से मौजूद असमानताओं को और बढ़ाता है।
  • विधिक और नीति कार्यान्वयन संबंधी अंतराल – पेपर टाइगर सिंड्रोम: यद्यपि भारत में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 जैसे प्रगतिशील कानून मौजूद हैं, फिर भी इनका कार्यान्वयन एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
    • कई उपबंध बस काग़ज़ पर ही रह गए हैं, जिससे ‘पेपर टाइगर सिंड्रोम’ जैसी स्थिति पैदा हो गई है।
    • उदाहरण के लिये, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग की 2019 की रिपोर्ट से उज़ागर हुआ कि 35 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 23 ने ही दिव्यांगता पर राज्य सलाहकार बोर्ड का गठन किया था, जैसा कि अधिनियम द्वारा अनिवार्य बनाया गया है।
    • कार्यान्वयन में यह अंतराल विधिक संरक्षण के संभावित प्रभाव को कमज़ोर करता है।

दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिये प्रमुख पहलें:

भारत में दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • दिव्यांगजनों के अनुकूल अवसंरचना: सार्वजनिक अवसंरचना को दिव्यांगजनों के अनुकूल बनाने के लिये उन्नत करना, जिसमें स्पष्ट रूप से चिह्नित रैम्प, टैक्टाइल पैथ, सुगम्य सार्वजनिक परिवहन और कार्यस्थलों पर एडेप्टिव प्रौद्योगिकी का उपयोग शामिल होंगे।
    • स्कूल, अस्पताल और डिजिटल सेवाओं को सभी के लिये आसानी से सुलभ बनाने के लिये सख्त दिशानिर्देश लागू किये जाएँ।
  • कृत्रिम अंगों के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास: भारत में दिव्यांगजनों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये कृत्रिम अंगों के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास (R&D) में वृद्धि करना महत्त्वपूर्ण है।
    • कृत्रिम अंगों में नवाचार के लिये समर्पित सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों से वित्तपोषण को बढ़ाकर यह हासिल किया जा सकता है।
    • विशिष्ट राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कृत्रिम अंग अनुसंधान केंद्रों की स्थापना से अत्याधुनिक विकास के लिये केंद्रित वातावरण उपलब्ध होगा।
  • दिव्यांगजनों की स्पष्ट पहचान: यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि केवल वास्तविक दिव्यांगजनों को ही लाभ मिले और इसके लिये एक सख्त पहचान एवं सत्यापन प्रणाली का कार्यान्वयन किया जाए।
    • एक केंद्रीकृत डिजिटल डाटाबेस के सृजन के साथ इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, जो बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण और नियमित ऑडिट के माध्यम से दिव्यांगता प्रमाणपत्रों को रिकॉर्ड करेगा तथा उन्हें सत्यापित करेगा।
    • इस डेटाबेस को नियमित रूप से अद्यतन करने तथा अन्य सरकारी अभिलेखों के साथ इसके मिलान से झूठे दावों के मामलों की पहचान करने तथा उन्हें रद्द करने में मदद मिलेगी।
  • दिव्यांगजनों के बारे में प्रचलित धारणाओं में बदलाव लाना: ‘विकलांग’ के स्थान पर ‘दिव्यांग’ जैसे सशक्तीकारी शब्दों के प्रयोग को बढ़ावा देकर सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाया जाए।
    • अधिक समावेशी और सम्मानकारी समाज को बढ़ावा देने के लिये मीडिया, कला और सार्वजनिक मंचों के माध्यम से दिव्यांगजनों की क्षमताओं एवं उपलब्धियों को उजागर किया जाना चाहिये।
    • ‘बढ़ते कदम’ पहल इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • AI-संचालित सुगम्यता ऑडिट: शहरी योजना-निर्माण में AI-संचालित सुगम्यता ऑडिट क्रियान्वित किया जाए।
    • शहरी अवसंरचना का विश्लेषण करने के लिये मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग किया जाए, जहाँ तत्काल अभिगम्यता संबंधी अंतराल की पहचान की जा सकती है।
    • इसमें सुगम्य मार्गों का मानचित्रण करने, बाधाओं का पता लगाने और सुधार का सुझाव देने के लिये सेंसर नेटवर्क तथा कंप्यूटर विज़न सिस्टम की तैनाती करना भी शामिल हो सकता है।
      • ऐसी प्रणाली को निरंतर अपडेट किया जा सकता है, जिससे नगर नियोजकों और दिव्यांगजनों दोनों को गतिशील सुगम्यता संबंधी सूचना मिलती रहेगी।
  • ‘यूनिवर्सल डिज़ाइन इनोवेशन हब’: दिव्यांगजनों और नीति निर्माताओं को एक साथ लाकर एक राष्ट्रीय यूनिवर्सल डिज़ाइन इनोवेशन हब की स्थापना की जाए।
    • यह हब उत्पादों, सेवाओं और अवसंरचना के लिये नवोन्मेषी एवं लागत प्रभावी सार्वभौमिक डिज़ाइन समाधानों के विकास एवं विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
    • यह व्यापक कार्यान्वयन से पहले नई सुगम्यता प्रौद्योगिकियों के लिये परीक्षण स्थल के रूप में भी कार्य कर सकता है।
  • न्यूरो-एडेप्टिव लर्निंग प्लेटफॉर्म: न्यूरो-एडेप्टिव लर्निंग प्लेफॉर्म विकसित करने में निवेश करें जो विभिन्न शिक्षण दिव्यांगता रखने वाले छात्रों के लिये शैक्षिक सामग्री को वैयक्तिकृत करने हेतु इलेक्ट्रोएंसेफेलोग्राम (EEG) का उपयोग करते हैं।
    • ये प्लेटफॉर्म तत्काल छात्र के संज्ञानात्मक भार, ध्यान के स्तर और सीखने की शैली के अनुसार समायोजित हो सकते हैं, जिससे दिव्यांगजनों के लिये शिक्षा अधिक सुगम्य एवं प्रभावी हो जाएगी।
      • EEG एक परीक्षण है जो मस्तिष्क में विद्युत गतिविधि की माप करता है।
      • यह दिव्यांगता के लिये प्रासंगिक है, क्योंकि यह उन तंत्रिका संबंधी स्थितियों का निदान करने में मदद कर सकता है, जिनके परिणामस्वरूप दिव्यांगता उत्पन्न हो सकती है।
        • उदाहरण के लिये, EEG का उपयोग मिर्गी (जो संज्ञानात्मक हानि का कारण बन सकता है) या मस्तिष्क की चोट (जिसके कारण मोटर या संवेदी दिव्यांगता उत्पन्न हो सकती है) का पता लगाने के लिये किया जाता है।
  • गिग इकॉनमी समावेशन पहल: मौजूदा गिग इकॉनमी ऐप्स के भीतर एक समर्पित प्लेटफॉर्म का निर्माण किया जाए जो विशेष रूप से दिव्यांगजनों को सेवा प्रदान करे और उन्हें लचीला तथा उनके कौशल के अनुरूप रोज़गार के अवसर प्रदान करे।
    • इसमें साइन-लैंग्वेज सपोर्ट और AI-असिस्टेड टास्क मैचिंग जैसी सुविधाएँ शामिल हो सकती हैं।
    • गिग इकॉनमी के प्रमुख खिलाड़ियों के साथ साझेदारी कर इस पहल को तेज़ी से आगे बढ़ाया जा सकता है।
  • दिव्यांगता समावेशी आपदा प्रबंधन प्रणाली: एक व्यापक, टेक-संचालित आपदा प्रबंधन प्रणाली का सृजन किया जाए जो दिव्यांगजनों की आवश्यकताओं की पूर्ति करे।
    • इसमें तत्काल सुगम्य एमरजेंसी एलर्ट, GPS-ट्रैक्ड निकासी सहायता और प्रथम प्रत्युत्तरकर्ताओं के लिये दिव्यांगजनों की अवस्थिति एवं विशिष्ट आवश्यकताओं के संबंध में डेटाबेस शामिल हो सकता है।
  • एडेप्टिव स्पोर्ट्स टेक्नोलॉजी हब: अनुकूली खेल प्रौद्योगिकी केंद्र: पैरा-एथलीटों के लिये अत्याधुनिक सहायक प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिये एक राष्ट्रीय एडेप्टिव स्पोर्ट्स टेक्नोलॉजी हब की स्थापना की जाए।
    • इसमें AI-संचालित कृत्रिम अंग, स्मार्ट व्हीलचेयर और VR प्रशिक्षण प्रणालियाँ शामिल हो सकती हैं।
    • भारत में खेलों पर बढ़ते ध्यान के साथ, यह पहल पैरा-खेलों में भागीदारी और प्रदर्शन को बढ़ावा दे सकती है, साथ ही दिव्यांगजनों के लिये दैनिक जीवन के लिये उपयोगी नवाचारों को भी जन्म दे सकती है।
  • समावेशी डिजिटल शासन प्लेटफॉर्म: सार्वभौमिक सुगम्यता पर ध्यान केंद्रित करते हुए ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म को पुनः डिज़ाइन किया जाए।
    • इसमें सभी सरकारी सेवाओं के लिये मल्टी-मॉडल इंटरफेस (वॉइस, टेक्स्ट, वीडियो) का सृजन करना, विभिन्न सहायक प्रौद्योगिकियों के साथ संगतता सुनिश्चित करना और वीडियो-आधारित सेवाओं के लिये रियल-टाइम साइन लैंग्वेज व्याख्या प्रदान करना शामिल होगा।

अभ्यास प्रश्न: भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये और समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करते हुए उन्हें सशक्त बनाने के प्रभावी उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.  भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा।  
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन।  
  3. सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1                 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3        
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: d

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