गुणवत्तापूर्ण एवं समावेशी शिक्षा का मार्ग | 31 Jan 2025

यह एडिटोरियल 30/01/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “India’s learning report card: ASER 2024 highlights big worries in literacy and numeracy skills” पर आधारित है। इस लेख में भारत की शिक्षा प्रणाली में क्षेत्रीय असमानताओं को उजागर किया गया है, जिसमें केरल उत्कृष्ट है जबकि झारखंड जैसे राज्य पिछड़ रहे हैं, जो फिनलैंड से प्रेरित होकर मूल्यांकन और शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

प्रिलिम्स के लिये:

वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER), NIPUN भारत मिशन, NEP-2020, EWS आरक्षण, जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस (GATI), PM eVidya, ARPIT (शिक्षण में वार्षिक पुनश्चर्या कार्यक्रम), राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF) 2023, गुजरात का GIFT सिटी, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, BharatNet परियोजना, DIKSHA मंच, एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (ABC) 

मेन्स के लिये:

भारतीय शिक्षा प्रणाली में प्रमुख विकास, भारतीय शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे।

वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER)- 2024 भारत की शिक्षा प्रणाली के जटिल परिदृश्य को दर्शाती है, जिसमें बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता में महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय असमानताएँ हैं। एक ओर केरल, हिमाचल प्रदेश और मिज़ोरम जैसे राज्य कक्षा 5 के छात्रों में 64% से अधिक प्रभावशाली शैक्षणिक स्तर के साथ अग्रणी हैं, झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य बुनियादी शैक्षिक परिणामों के साथ संघर्ष करना जारी रखते हैं। रटने की शैक्षणिक निरंतरता, शिक्षक स्वायत्तता की कमी और अपर्याप्त मूल्यांकन प्रणाली पूरे देश में प्रमुख चुनौतियाँ बनी हुई हैं। अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं, विशेष रूप से फिनलैंड के शिक्षा मॉडल से प्रेरणा लेते हुए, भारत को कौशल-आधारित व्यावहारिक मूल्यांकन और उन्नत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की ओर स्थानांतरित करने के लिये तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

भारतीय शिक्षा प्रणाली में प्रमुख विकास क्या हैं? 

  • नामांकन में वृद्धि और स्कूल छोड़ने की दर में कमी: वर्ष 2018 से पूर्व-प्राथमिक शिक्षा में नामांकन में लगातार वृद्धि हुई है, जिसमें 3 वर्षीय बच्चों का नामांकन वर्ष 2024 तक 68.1% से बढ़कर 77.4% (ASER-2024) हो गया है। 
    • महिला नामांकन में 38.4% की वृद्धि हुई, जो 1.57 करोड़ से बढ़कर 2.18 करोड़ हो गई, जो शिक्षा में लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • 15-16 वर्ष के बच्चों की स्कूल छोड़ने की दर वर्ष 2018 में 13.1% से घटकर वर्ष 2024 में 7.9% हो गई, साथ ही लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर भी घटकर 8.1% हो गई।
  • आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) को मज़बूत करना: भारत ने संरचित शिक्षण पद्धति और शिक्षक प्रशिक्षण पहलों के साथ प्रारंभिक शिक्षा परिणामों में सुधार के लिये आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) पर ज़ोर दिया है।
    • NIPUN भारत मिशन का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2026-27 तक कक्षा 3 तक सभी बच्चे FLN कौशल प्राप्त कर लें। 
    • ASER- 2024 से पता चलता है कि सरकारी स्कूलों में कक्षा 3 के छात्रों की अधिगम क्षमता वर्ष 2022 में 16.3% से बढ़कर वर्ष 2024 में 23.4% हो गई। 
  • बहुविषयक शिक्षा पर अधिक ज़ोर: NEP-2020 लचीले विषय विकल्प, कला-एकीकृत शिक्षा और अंतःविषयक शिक्षा को बढ़ावा देता है। 
    • चार वर्षीय स्नातक डिग्री, एकाधिक प्रवेश-निकास विकल्प तथा अकादमिक क्रेडिट बैंक अधिक शिक्षण लचीलापन प्रदान करते हैं। 
      • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF)- 2023 समालोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करने के लिये स्कूली पाठ्यपुस्तकों में सुधार कर रही है।
    • CUET (कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट) 250 से अधिक विश्वविद्यालयों में मानकीकृत पहुँच सुनिश्चित करता है। 
  • सीमांत समुदायों के लिये उच्च शिक्षा के अवसरों का विस्तार: भारत सरकार ने उच्च शिक्षा को अधिक समावेशी बनाने के लिये छात्रवृत्ति, आरक्षण और सहायता कार्यक्रमों का बहुत अधिक विस्तार किया है।
    • EWS आरक्षण, SC/ST/OBC सीटों में वृद्धि, तथा निशुल्क कोचिंग कार्यक्रम जैसी पहलों से वंचित समूहों के अभिगम में सुधार हुआ है।  
      • अब अधिक संख्या में ग्रामीण और प्रथम पीढ़ी के विद्यार्थी विश्वविद्यालयों में प्रवेश ले रहे हैं, जिससे ऐतिहासिक असमानताएँ समाप्त हो रही हैं। 
      • परिणामस्वरूप, उच्च शिक्षा में SC/ST छात्रों का नामांकन वर्ष 2014 से वर्ष 2023 तक 44% (AISHE- 2023 के अनुसार) बढ़ गया।
    • जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस’ (GATI) जैसी लक्षित नीतियाँ STEM क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देती हैं।
      • STEM क्षेत्रों में महिला विद्यार्थियों का प्रतिशत 40% से अधिक हो गया। 
  • वैश्विक मान्यता और विश्वविद्यालय रैंकिंग में सुधार: भारतीय विश्वविद्यालय वैश्विक मान्यता प्राप्त कर रहे हैं, और अधिक संस्थान QS और टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग में शामिल हो रहे हैं। 
    • IIT, IIM, IISc और AIIMS ने अनुसंधान योगदान, संकाय सहयोग एवं अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी के कारण अपनी वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ किया है। 
    • सरकार की उत्कृष्ट संस्थान’(IoE) पहल ने चयनित विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने में मदद की है। 
    • भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बेंगलुरु को विश्व विश्वविद्यालय रैंकिंग वर्ष 2025 में 96वाँ स्थान मिला है, जिससे उसे कंप्यूटर विज्ञान के लिये शीर्ष 100 संस्थानों में स्थान प्राप्त हुआ है।
    • भारत के दो संस्थान QS एशिया रैंकिंग- 2025 में शीर्ष 50 में तथा सात संस्थान शीर्ष 100 में हैं।
  • निजी विश्वविद्यालयों और विदेशी सहयोग की बढ़ती उपस्थिति: निजी विश्वविद्यालय पहुँच का विस्तार करने, पाठ्यक्रम को आधुनिक बनाने और अंतर्राष्ट्रीय संकाय को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 
    • अशोका विश्वविद्यालय और शिव नादर विश्वविद्यालय जैसे संस्थान उदार कला, प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। 
    • भारत विदेशी विश्वविद्यालयों को भी अपने परिसर स्थापित करने की अनुमति दे रहा है, जिससे भारतीय छात्रों को वैश्विक विशेषज्ञता प्राप्त होगी।
    • ऑस्ट्रेलिया की डीकिन यूनिवर्सिटी और वॉलोन्गॉन्ग यूनिवर्सिटी गुजरात के GIFT सिटी में अपने परिसर स्थापित कर रही हैं।
  • बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा: NEP- 2020 क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देता है, जिससे गैर-अंग्रेज़ी पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिये पाठ्यक्रम सुलभ हो जाते हैं।
    • AICTE ने 12 भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की पाठ्यपुस्तकें शुरू की हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र तकनीकी शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकेंगे। 
    • नई NCERT पाठ्यपुस्तकें 22 भाषाओं में विकसित की जाएंगी, जिससे उनकी पहुँच आसान होगी। 
  • शिक्षक प्रशिक्षण में वृद्धि: भारत ने आधुनिक शिक्षण तकनीकों, डिजिटल शिक्षाशास्त्र और अनुसंधान कौशल में संकाय को प्रशिक्षित करने के लिये कई पहल शुरू की हैं।

भारतीय शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • माध्यमिक और उच्च शिक्षा में स्कूल छोड़ने की उच्च दर: जबकि प्राथमिक शिक्षा में नामांकन लगभग सार्वभौमिक है, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में स्कूल छोड़ने की दर में तेज़ी से वृद्धि हुई है, विशेष रूप से लड़कियों एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों में। 
    • वित्तीय बाधाएँ, बुनियादी अवसंरचना की कमी, कम उम्र में विवाह और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह जैसे कारक इस समस्या में योगदान करते हैं।
    • ASER- 2024 से पता चलता है कि 15-16 वर्ष के बच्चों में स्कूल छोड़ने की दर 7.9% बनी हुई है, जबकि लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर थोड़ी अधिक (8.1%) है। 
  • शिक्षकों की कमी और गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ: भारत में योग्य शिक्षकों की भारी कमी है, तथा कई स्कूल अप्रशिक्षित या कम योग्य शिक्षकों के साथ चल रहे हैं।
    • शिक्षकों की अनुपस्थिति, पुरानी शैक्षणिक पद्धति तथा अत्यधिक गैर-शिक्षण कर्त्तव्य (जैसे: चुनाव कार्य, जनगणना कार्य) अधिगम की प्रक्रिया को और भी कमज़ोर करते हैं।
    • शिक्षा मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार प्राथमिक, प्राइमरी, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर के सरकारी स्कूलों में लगभग 10 लाख शिक्षक पद रिक्त हैं।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच में असमानताएँ: ग्रामीण और शहरी शिक्षा के साथ-साथ सरकारी एवं निजी स्कूलों के बीच भी गहरा अंतर है।
    • यद्यपि शहरी क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी अवसंरचना, डिजिटल उपकरण और योग्य शिक्षकों की पहुँच है, कई ग्रामीण स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं जैसे: पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं और इंटरनेट की सुलभता का अभाव है।
    • ASER- 2024 में बताया गया है कि सरकारी स्कूलों में नामांकन वर्ष 2022 में 72.9% से घटकर वर्ष 2024 में 66.8% हो गया है, जो गुणवत्ता में अंतर के कारण निजी स्कूलों के प्रति प्राथमिकता को दर्शाता है। 
      • केवल 66% स्कूलों में कार्यात्मक खेल के मैदान हैं, तथा बालिकाओं के लिये उपयोग योग्य शौचालयों में सुधार किया गया है, लेकिन अभी भी यह आँकड़ा केवल 72% है।
  • रटने पर आधारित अधिगम और परीक्षा-उन्मुख प्रणाली: भारतीय शिक्षा प्रणाली वैचारिक समझ और आलोचनात्मक सोच के बजाय रटकर याद करने पर अधिक केंद्रित है।
    • उच्च-दाँव वाली परीक्षाओं (बोर्ड परीक्षा, JEE, NEET) का दबाव रचनात्मकता और नवाचार को हतोत्साहित करता है तथा कौशल-आधारित शिक्षा को सीमित करता है।
    • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF)- 2023 का लक्ष्य योग्यता-आधारित शिक्षा की ओर बढ़ना है, लेकिन कार्यान्वयन अभी भी धीमा है।
  • अपर्याप्त डिजिटल अवसंरचना और डिजिटल डिवाइड: यद्यपि डिजिटल शिक्षा का विस्तार हो रहा है, कई छात्रों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उपकरणों और इंटरनेट कनेक्टिविटी तक पहुँच की कमी है। 
    • इससे ई-लर्निंग अपनाने, हाइब्रिड शिक्षा और डिजिटल साक्षरता में शहरी-ग्रामीण विभाजन उत्पन्न होता है।
    • ASER- 2024 से पता चलता है कि 14-16 वर्ष के 90% बच्चों के पास स्मार्टफोन तक पहुँच है, लेकिन केवल 57% ही शिक्षा के लिये इसका उपयोग करते हैं, जो डिजिटल साक्षरता और निर्देशित शिक्षा में अंतर को दर्शाता है। 
      • BharatNet परियोजना का लक्ष्य 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ना है, लेकिन इसकी प्रगति धीमी रही है।
  • शिक्षा एवं रोज़गार योग्यता के बीच कौशल अंतर और असंतुलन: उच्च शिक्षा में नामांकन बढ़ने के बावजूद, कई स्नातक व्यावहारिक कौशल की कमी के कारण रोज़गार योग्य नहीं हो पाते हैं। 
    • पाठ्यक्रम प्रायः उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होता, जिसके परिणामस्वरूप कार्यबल की उत्पादकता कम होती है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में बताया गया है कि देश के केवल 51.25% युवा ही रोज़गार योग्य हैं।
  • अनुसंधान एवं विकास निवेश का अभाव: भारत विश्वविद्यालय-संचालित अनुसंधान में पिछड़ा हुआ है, जहाँ अधिकांश अनुसंधान एवं विकास कार्य शैक्षणिक संस्थानों में नहीं, बल्कि सरकारी प्रयोगशालाओं में हो रहा है।
    • विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच सहयोग की कमी के कारण पेटेंट और नवाचार कम होते हैं। फंडिंग अपर्याप्त है और कई PhD धारकों को फंडिंग की कमी के कारण उचित शोध सहायता नहीं मिल पाती है।
    • भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.64% अनुसंधान एवं विकास पर व्यय करता है, जो दक्षिण कोरिया (4.8%) और चीन (2.4%) जैसे देशों से पीछे है।

भारत की शिक्षा प्रणाली को मज़बूत करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • व्यावसायिक और कौशल-आधारित शिक्षा का विस्तार: छात्रों को रोज़गार योग्य बनाने के लिये शिक्षा प्रणाली को उद्योग-संरेखित कौशल विकास की ओर स्थानांतरित करना चाहिये।
    • कक्षा 6 से अनिवार्य व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करने से कौशल अंतर को समाप्त किया जा सकेगा। 
    • NSDC, ITI और निजी कंपनियों के साथ सहयोग से इंटर्नशिप एवं वास्तविक विश्व का अनुभव प्राप्त किया जा सकता है। 
    • एक राष्ट्रीय क्रेडिट कार्यढाँचे से छात्रों को शैक्षणिक और व्यावसायिक पथों के बीच निर्बाध रूप से संक्रमण की सुविधा मिलनी चाहिये।
  • शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षण पद्धति में सुधार: शिक्षकों को प्रभावी शिक्षण पद्धतियाँ तैयार करने के लिये निरंतर व्यावसायिक विकास और स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये।
    • डिजिटल संसाधनों को पारंपरिक शिक्षण के साथ मिलाकर एक मिश्रित शिक्षण दृष्टिकोण को सभी स्कूलों में अनिवार्य बनाया जाना चाहिये। 
    • राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय शिक्षक मार्गदर्शन कार्यक्रमों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि अनुभवी शिक्षक युवा शिक्षकों का मार्गदर्शन करें। 
      • DIKSHA प्लेटफॉर्म को AI- संचालित व्यक्तिगत प्रशिक्षण मॉड्यूल के साथ विस्तारित किया जाना चाहिये। 
  • रटने की पद्धति को कम करना और मूल्यांकन में सुधार करना: रटने की पद्धति से वैचारिक और विश्लेषणात्मक सोच की ओर स्थानांतरित होने से शैक्षिक परिणामों में सुधार होगा।
    • बोर्ड परीक्षाओं और प्रवेश परीक्षाओं में याद करने के बजाय अनुप्रयोग-आधारित प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
      • एक मॉड्यूलर मूल्यांकन प्रणाली, जिसमें छात्रों की पूरे वर्ष में कई बार परीक्षा ली जाती है, परीक्षा तनाव को कम कर सकती है। 
    • खुली किताब वाली परीक्षाओं और समस्या समाधान परियोजनाओं को प्रोत्साहित करने से वास्तविक दुनिया में अधिगम को बढ़ावा मिलेगा।
    • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF)- 2023 को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिये, जिसमें अनुभवात्मक शिक्षा और बहु-विषयक अध्ययन पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • डिजिटल अवसंरचना का विस्तार और डिजिटल डिवाइड को कम करना: ग्रामीण विद्यालयों में उच्च गति इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिये भारतनेट और PM ई-विद्या पहलों का विस्तार करके डिजिटल डिवाइड को कम किया जा सकता है।
    • बेहतर शिक्षण अनुभव के लिये प्रत्येक स्कूल को स्मार्ट कक्षाओं, इंटरैक्टिव बोर्ड और डिजिटल लाइब्रेरी से सुसज्जित किया जाना चाहिये।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को किफायती टैबलेट और लैपटॉप उपलब्ध कराए जा सकते हैं। 
    • व्यक्तिगत शैक्षिक सामग्री प्रदान करने के लिये AI-संचालित अनुकूली शिक्षण प्लेटफॉर्म विकसित किये जाने चाहिये।
      • स्कूलों को अभिभावकों के लिये डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण आयोजित करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि घर पर प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।
  • उच्च शिक्षा को अधिक सुलभ और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी बनाना: विश्वविद्यालयों को छात्रों को विविध कॅरियर विकल्प प्रदान करने के लिये NEP- 2020 द्वारा अनुशंसित लचीले, बहु-विषयक डिग्री कार्यक्रमों को अपनाना चाहिये।
    • एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (ABC) का विस्तार करने से छात्रों को विभिन्न संस्थानों में क्रेडिट स्थानांतरित करने की सुविधा मिलेगी। 
      • वैश्विक शैक्षणिक प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिये विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने परिसर स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
    • कमज़ोर वर्गों के छात्रों की सहायता के लिये अधिक छात्रवृत्तियाँ और कम ब्याज दर वाले विद्यार्थी ऋण शुरू किये जाने चाहिये।
  • शिक्षा में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना: गुणवत्ता में सुधार सुनिश्चित करने के लिये सरकार को शिक्षा पर व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 6% तक बढ़ाना चाहिये, जैसा कि NEP- 2020 द्वारा अनुशंसित किया गया है।
    • वित्तपोषण प्रदर्शन पर आधारित होना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बेहतर शिक्षण परिणाम दिखाने वाले राज्यों को अतिरिक्त संसाधन प्राप्त हों। 
    • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत अधिक धनराशि शिक्षा पर व्यय की जानी चाहिये, विशेष रूप से वंचित छात्रों के लिये। 
      • व्यय दक्षता की निगरानी के लिये एक पारदर्शी निधि उपयोग ट्रैकिंग प्रणाली शुरू की जानी चाहिये।
  • महिला शिक्षा और लैंगिक समानता को सुदृढ़ बनाना: महिला छात्राओं के लिये छात्रवृत्ति और वित्तीय प्रोत्साहन, विशेष रूप से STEM क्षेत्रों में, का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • समानता को बढ़ावा देने और सामाजिक रूढ़िवादिता को तोड़ने के लिये स्कूलों को लैंगिक-संवेदनशील पाठ्यक्रम शुरू करना चाहिये।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के लिये छात्रावास सुविधाओं और परिवहन सेवाओं का विस्तार करने से माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी में सुधार होगा। 
      • उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये स्कूलों में मासिक धर्म स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम तथा निःशुल्क सैनिटरी उत्पाद उपलब्ध कराए जाने चाहिये।
  • शिक्षा में प्रशासनिक बाधाओं और राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना: शिक्षा नीतियों को वैज्ञानिक अनुसंधान और साक्ष्य-आधारित मॉडल के आधार पर तैयार किया जाना चाहिये, न कि राजनीतिक विचारों के आधार पर। 
    • निजी स्कूलों और विश्वविद्यालयों के लिये अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने से नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिल सकता है। 
      • राज्य और केंद्र सरकारों को चुनावी चक्र से परे शिक्षा के लिये दीर्घकालिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करते हुए सहयोगात्मक रूप से काम करना चाहिये।
  • अनुभवात्मक और समुदाय-आधारित शिक्षा: पाठ्यपुस्तक-आधारित शिक्षा से आगे बढ़ते हुए, स्कूलों को अनुभवात्मक शिक्षण मॉडल को एकीकृत करना चाहिये, जहाँ छात्र वास्तविक दुनिया की समस्याओं से जुड़ते हैं। 
    • स्कूल कृषि-आधारित शिक्षा, विरासत भ्रमण, वित्तीय साक्षरता परियोजनाओं और पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से ‘लर्निंग बाय डूइंग’ के दृष्टिकोण को अपना सकते हैं।
    • सामुदायिक शिक्षण केंद्र, जहाँ छात्र स्थानीय कारीगरों, उद्यमियों और पेशेवरों के साथ समन्वय करते हैं, शिक्षा को अधिक व्यावहारिक एवं कॅरियर-उन्मुख बना सकते हैं। 
  • सहकर्मी शिक्षण और क्रॉस-एज लर्निंग: संरचित सहकर्मी शिक्षण कार्यक्रमों को शुरू किया जाना चाहिये, जहाँ बड़े छात्र छोटे छात्रों को मार्गदर्शन देते हैं, अवधारण में सुधार कर सकते हैं तथा नेतृत्व कौशल को बढ़ावा दे सकते हैं। 
    • इससे न केवल प्रशिक्षकों के लिये अधिगम को सुदृढ़ किया जाता है, बल्कि धीमी गति से अधिगम वाले बच्चों को सरलीकृत सहकर्मी स्पष्टीकरण के माध्यम से अवधारणाओं को अधिक प्रभावी ढंग से समझने में भी मदद मिलती है।
    • जापान और डेनमार्क जैसे देशों में बहु-ग्रेड कक्षाओं में क्रॉस-एज लर्निंग सफल सिद्ध हुई है, जहाँ छात्र विभिन्न आयु समूहों में सहयोगात्मक रूप से शिक्षा प्राप्त हैं। 
  • स्थानीय ज्ञान प्रणालियों और स्वदेशी शिक्षा को पुनर्जीवित करना: भारत में स्वदेशी ज्ञान की समृद्ध परंपरा है, जिसे औपचारिक शिक्षा प्रणाली में एकीकृत किया जाना चाहिये। 
    • स्कूल व्यावहारिक शिक्षा के भाग के रूप में आयुर्वेद, जैविक कृषि, हथकरघा तकनीक और स्थानीय वास्तुकला पद्धतियों जैसे पारंपरिक भारतीय विज्ञानों को शामिल कर सकते हैं।
    • पंचतंत्र, जातक कथाएँ और आदिवासी लोककथाओं सहित विभिन्न भारतीय समुदायों की कहानी कहने की परंपराओं का उपयोग नैतिक एवं आचार-विचार का पाठ पढ़ाने के लिये किया जा सकता है। 

भारत अन्य देशों की शिक्षा प्रणालियों से क्या सीख सकता है?

देश

प्रमुख शिक्षा नीतियाँ

शिक्षा 

दक्षिण कोरिया

-  सप्ताह में सातों दिन स्कूल

-  शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 5.3% व्यय 

एक मज़बूत आधार तैयार करना और शिक्षकों को अच्छा वेतन देना

फिनलैंड

- औपचारिक स्कूली शिक्षा 7 वर्ष की आयु से शुरू होती है

- हाई स्कूल तक कोई होमवर्क या मानकीकृत परीक्षण नहीं

- निशुल्क कॉलेज शिक्षा, जिसमें स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट भी शामिल है

विलंब के बावजूद भी स्कूल में प्रवेश की सुविधा और उच्च शिक्षा की सुलभता लाभदायक सिद्ध होगी 

स्विट्ज़रलैंड

- बहुभाषी शिक्षा (4 राष्ट्रीय भाषाएँ)

- अनुभवात्मक शिक्षा पर ज़ोर (3 वर्ष की आयु से कला, संगीत)

- प्राथमिक विद्यालय के बाद प्रशिक्षुता कार्यक्रम

- वैकल्पिक माध्यमिक विद्यालय

सभी के लिये सुलभ लचीली शिक्षा प्रणाली

नीदरलैंड

- 10 वर्ष की आयु तक न्यूनतम या कोई गृहकार्य नहीं 

- साथियों के साथ कोई प्रतिस्पर्द्धा या ग्रेडिंग नहीं

- व्यावहारिक शिक्षा और अनुभव-आधारित शिक्षण पर ज़ोर

मानसिक स्वास्थ्य और व्यावहारिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना 

निष्कर्ष: 

भारत की शिक्षा प्रणाली को मज़बूत करने के लिये, कौशल-आधारित शिक्षा, शिक्षक सशक्तीकरण और संसाधनों तक समान पहुँच पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। नीतिगत हस्तक्षेपों को क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना चाहिये, रटने पर आधारित अधिगम को कम करना चाहिये और डिजिटल प्रगति को अपनाना चाहिये। समावेशी, व्यावहारिक और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी शिक्षा को बढ़ावा देकर, भारत अपनी वास्तविक क्षमता को अनलॉक कर सकता है। शिक्षा को प्राथमिकता देना भारत के लिये सतत् विकास और समृद्ध भविष्य की कुंजी है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत की शिक्षा प्रणाली के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। NEP- 2020 और NIPUN भारत मिशन जैसे हालिया सुधार इन मुद्दों का समाधान करने में कितने प्रभावी रहे हैं? भारत में शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच में सुधार के लिये अतिरिक्त उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स  

प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं?

  1. राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
  3. पंचम अनुसूची
  4. षष्ठ अनुसूची
  5. सप्तम अनुसूची

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न 1.  जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये।

प्रश्न 2. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये।