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भारतीय न्यायपालिका में ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र

  • 07 Jul 2022
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 05/07/2022 को ‘लाइव मिंट’ में प्रकाशित “A disruption that India’s legal profession sorely needs” लेख पर आधारित है। इसमें ऑनलाइन विवाद समाधान और संबंधित अनुप्रयोगों के बारे में चर्चा की गई है।

भारत में न्यायिक प्रणाली भारी कार्य दबाव का सामना कर रही है। मई 2022 तक की स्थिति के अनुसार, न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों के न्यायालयों में 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित थे जिनमें से लगभग 1,82,000 मामले 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं।

मुकदमेबाजी की बढ़ती प्रवृत्ति के बीच अधिकाधिक लोग और संगठन न्यायालयों का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं। न्याय विभाग के एक डेटाबेस राष्‍ट्रीय न्‍यायिक डाटा ग्रिड से उजागर होता है कि दिसंबर 2019 से अप्रैल 2022 के बीच न्यायालयों में लंबित मामलों में 27% से अधिक की वृद्धि हुई।

अपर्याप्त आधारभूत संरचना के कारण न्यायालयों का बोझ बढ़ गया है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर मामलों के ‘बैकलॉग’ की स्थिति बनी हुई है। इस संदर्भ में यह विचार करना प्रासंगिक होगा कि भारतीय न्यायपालिका के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ किस प्रकार उठाया जा सकता है।

भारतीय न्यायिक प्रणाली में वर्तमान में विद्यमान प्रौद्योगिकी अवसंरचना

  • NICNET:
    • वर्ष 1990 में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre) ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के संबंध में कम्प्यूटरीकरण का कार्य शुरू किया था।
    • सभी उच्च न्यायालयों को कम्प्यूटरीकृत कर दिया गया है और NIC के उपग्रह आधारित कंप्यूटर-संचार नेटवर्क NICNET के माध्यम से उन्हें आपस में जोड़ा गया है।
      • NIC ने सभी उच्च न्यायालयों में ‘लिस्ट ऑफ बिज़नेस इन्फॉर्मेशन’ (LOBIS) को भी कार्यान्वित किया है।
  • प्रोजेक्ट -कोर्ट:
    • इसका उद्देश्य न्यायिक उत्पादकता को गुणात्मक एवं मात्रात्मक दोनों रूप से बढ़ाना और न्याय वितरण प्रणाली को वहनीय, सुलभ, लागत-प्रभावी, पूर्वानुमेय, विश्वसनीय एवं पारदर्शी बनाना है।
      • यह कुशल और समयबद्ध नागरिक-केंद्रित सेवा आपूर्ति भी करता है जिसका विवरण ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के लिटिगेंट चार्टर में मौजूद है।
  • इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट सिस्टम (ICMS):
    • इसे देश के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को एकीकृत करने और पूरे देश में ई-फाइलिंग सुविधा को सक्षम करने के लिये वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया था।
    • वर्तमान में दिल्ली, पंजाब, बम्बई, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और इलाहाबाद उच्च न्यायालयों सहित देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों ने अपने वाणिज्यिक प्रभागों में इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर साक्ष्य की ई-फाइलिंग और प्रस्तुति को सक्षम बनाया है।
  • ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) प्रणाली की ओर संक्रमण:
    • ODR विवाद समाधान (विशेष रूप से अल्प महत्त्व और मध्यम महत्त्व के मामलों में) की एक प्रणाली है जो डिजिटल प्रौद्योगिकी और वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternate Dispute Resolution) की तकनीकों का उपयोग करती है।
      • ODR को सरकार, व्यवसायों और यहाँ तक कि न्यायिक प्रक्रियाओं में कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न बाधाओं से निपटने के लिये प्रोत्साहन दिया गया है।

ऑनलाइन विवाद समाधान प्रणाली के क्या लाभ हैं?

  • समय और लागत का प्रबंधन:
    • ODR में मामले के समाधान में लगने वाले समय को कम करके और चुनिंदा श्रेणियों के मामलों में कानूनी सलाह की आवश्यकता को दूर करके कानूनी लागत को कम करने की क्षमता है।
  • लचीली प्रकृति:
    • लंबे समय तक अनुपालित कठोर अदालती प्रक्रियाओं की तुलना में ODR बहुमुखी और अनौपचारिक तरीके से त्वरित समाधान को प्रोत्साहित करता है।
    • यह यात्रा और शेड्यूल के सामंजस्य की आवश्यकता को समाप्त करता है।
  • समझौता वार्ता को प्रोत्साहन:
    • ऑनलाइन समझौता वार्ता और मध्यस्थता जैसे ODR उपाय पारस्परिक रूप से एक समझौते तक पहुँचने पर आधारित हैं जो विवाद समाधान प्रक्रिया को पक्षकारों के लिये कम प्रतिकूल और जटिल बनाते हैं।
  • पहुँच की आसानी:
    • पक्षकारों की सुविधा और आवश्यकता के अनुसार ODR किसी भी समय और कहीं भी अभिगम्य है यदि वहाँ इंटरनेट सुविधा उपलब्ध हो।
  • रिकॉर्ड संग्रहण:
    • दस्तावेज़ या रिकॉर्ड का संग्रहण भारतीय न्यायालयों के समक्ष मौजूद एक आम चुनौती है और ODR तंत्र ने इस आवश्यकता को भी प्रतिस्थापित किया है।

ऑनलाइन विवाद समाधान से संबद्ध प्रमुख समस्याएँ

  • संरचनात्मक समस्याएँ:
    • डिजिटल अवसंरचना की कमी:
      • ODR एकीकरण के लिये एक पूर्व शर्त यह है कि देश भर में सुदृढ़ प्रौद्योगिकी अवसंरचना का निर्माण किया जाए।
        • इसमें कम से कम सार्थक सुनवाई की अवधि तक कंप्यूटर, स्मार्ट फोन और मध्यम से उच्च बैंडविड्थ के इंटरनेट कनेक्शन तक पहुँच शामिल है।
        • इन आवश्यकत सुविधाओं की कमी उन लोगों के लिये अलाभकर हो सकती है जो डिजिटल अवसंरचना तक सीमित पहुँच रखते हैं।
    • डिजिटल साक्षरता का अभाव:
      • इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार भारत में केवल 38% परिवार ही डिजिटल रूप से साक्षर हैं।
        • शहरी क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता 61% के स्तर पर है जो ग्रामीण क्षेत्रों के 25% की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है।
      • इंटरनेट इंडिया रिपोर्ट 2019 के अनुसार, भारत में इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र एक तिहाई है।
      • इसलिये ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता है जो ODR सेवाओं तक पहुँच के लिये आवश्यक बुनियादी कौशल सेट को लोकप्रिय बनाने हेतु समर्पित पहल के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट पहुँच को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करें।
  • कार्यान्वयन संबंधी समस्याएँ:
    • निजता और गोपनीयता संबंधी चिंताएँ:
      • इसमें ऑनलाइन इम्पर्सनैशन (वास्तविक व्यक्ति के बदले किसी और का उपस्थित होना), ODR प्रक्रियाओं के दौरान साझा किये गए दस्तावेजों एवं डेटा के संचलन द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन, डिजिटल साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ या डिजिटल रूप से प्रदत्त अवार्ड/समझौते जैसी समस्याएँ शामिल हैं।
    • ODR प्रक्रिया के निर्णय का प्रवर्तन:
      • भारत में मध्यस्थ निर्णयों का प्रवर्तन जटिल और बोझिल रहा है।
      • अधिकांश राज्यों में इसके लिये स्टांप शुल्क की आवश्यकता होती है। दस्तावेज़ के साथ एक ई-स्टाम्प प्रमाणपत्र संलग्न करने की पुरातन आवश्यकता अन्यथा पूरी तरह से ऑनलाइन प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है।
  • व्यवहारगत समस्याएँ:
    • ODR सेवाओं में भरोसे की कमी:
      • प्रौद्योगिकी की क्षमता पर संदेह से लेकर ODR निर्णयों की प्रवर्तनीयता को लेकर आशंका तक, कई स्तरों पर भरोसे की कमी मौजूद है।
    • पक्षकारों की आपसी सहमति:
      • ODR की स्वीकार्यता या ग्राह्यता (Admissibility) प्रमुख और महत्त्वपूर्ण समस्याओं में से एक है।
      • ODR प्रक्रिया को सक्रिय करने के लिये पक्षकारों की आपसी सहमति आवश्यक है (चाहे वह एक स्पष्ट संविदात्मक खंड के माध्यम से निर्मित हो या पक्षकारों के बीच एक अलग आपसी समझौते के माध्यम से), अन्यथा निष्पक्ष रूप से किया गया कोई भी निर्णय कानूनी रूप से वैध और पक्षकारों पर बाध्यकारी नहीं होता।

हम ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र में सुधार कैसे ला सकते हैं?

  • डिजिटल अवसंरचना तक पहुँच में वृद्धि:
    • प्रौद्योगिकी और आधारभूत संरचना तक भौतिक पहुँच में वृद्धि केवल दो प्रमुख हितधारकों—सरकार और न्यायपालिका के संयुक्त प्रयासों से ही की जा सकती है।
      • राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति 2018 और राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने और वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रभावी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने पर लक्षित हैं।
  • डिजिटल साक्षरता बढ़ाना:
    • प्रौद्योगिकी और आधारभूत संरचना तक भौतिक पहुँच डिजिटल अवसंरचना तक पहुँच का केवल एक पहलू है। इसकी वास्तविक क्षमता को साकार करने के लिये ऐसी प्रौद्योगिकी के उपयोगकर्त्ताओं को डिजिटल रूप से साक्षर होना चाहिये।
      • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) समाज के सबसे दूरस्थ और सबसे वंचित वर्गों की भी न्याय तक पहुँच सुनिश्चित कर सकने के लिये दीर्घकालिक योगदान करेगा।
  • नवाचार मंच:
    • पहुँच को अधिकतम करने के लिये ODR प्लेटफॉर्म को मोबाइल में उपयोग हेतु अनुकूल रूप में डिज़ाइन किया जाना चाहिये ताकि उन्हें व्यापक रूप से अपनाया जा सके। इसके अलावा, यह भी वांछनीय है कि डिजिटल साक्षरता की सीमाओं को देखते हुए इसमें ‘वॉयस प्रॉम्प्ट’ प्रौद्योगिकी को भी शामिल किया जाए।
      • LIMBS भारत की केंद्र सरकार से संबद्ध मामलों की अधिक प्रभावी और पारदर्शी तरीके से निगरानी के लिये एक वेब-आधारित ऐप्लिकेशन है।
        • यह विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधि कार्य विभाग की एक पहल है।
  • क्षमता निर्माण:
    • पूरे देश में सभी ODR पेशेवरों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने, समुदायों के भीतर अर्द्ध-न्यायिक सेवाओं को प्रबल करने और प्रदर्शन एवं अनुकरण के माध्यम से व्यावहारिक कौशल पर आधारित सार्वभौमिक प्रशिक्षण मानकों को लागू करने की आवश्यकता है।
  • उपयुक्त विनियमन:
    • यह आवश्यक है कि भारत द्वारा अपनाया गया नियामक मॉडल अंतिम उपयोगकर्त्ताओं के अधिकारों की रक्षा करता हो, जबकि साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि अति-विनियमन नवाचार को बाधित नहीं करे। कुछ श्रेणी के मामलों में अनिवार्य प्री-लिटिगेशन ऑनलाइन मध्यस्थता शुरू करने के लिये ODR को शामिल करने हेतु मौजूदा कानूनों में संशोधन करने की भी आवश्यकता है।
      • हाल ही में ODR-सक्षम जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना पर विचार करने के लिये मंत्रियों के एक समूह का गठन किया गया।
        • यह न्यायाधिकरण एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करेगा। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 111 स्पष्ट करती है कि जीएसटी न्यायाधिकरण के पास अपनी स्वयं की प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति होगी।
  • -स्टाम्पिंग को मुख्यधारा में शामिल करना:
    • चूँकि ODR प्रायः अंतर-राज्यीय विवादों से संबोधित होता है जहाँ विवादित पक्ष अलग-अलग न्यायिक क्षेत्राधिकारों के वासी होते हैं, विभिन्न राज्यों में स्टाम्प-शुल्क और प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • ऑनलाइन नोटरीकरण की अनुमति देना:
      • सुरक्षित ई-हस्ताक्षर और इलेक्ट्रॉनिक नोटरी सील के माध्यम से ऑनलाइन नोटरीकरण (online notarisation) इस चुनौती का समाधान कर सकता है और प्रमाणीकरण एवं सत्यापन के लिये एक ऑनलाइन साधन प्रदान कर सकता है।
      • ऑनलाइन नोटरीकरण के माध्यम से नोटरी किये गए दस्तावेजों के लिये सभी आवश्यक रिकॉर्ड के संग्रहण और रखरखाव के लिये नोटरियों को डिजिटल लॉकर प्रदान किये जा सकते हैं।
  • ब्लॉक-चेन प्रौद्योगिकी:
    • किसी हेरफेर से ई-साक्ष्य की सुरक्षा के लिये इसका लाभ उठाया जा सकता है और इस प्रकार साक्ष्य का हेरफेर-रहित संग्रहण उपलब्ध कराया जा सकता है।
  • सरकार की भागीदारी:
    • भारत में सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) सबसे बड़े वादियों (litigants) में शामिल हैं।
      • अंतर-सरकारी और अंतरा-सरकारी विवादों के समाधान के लिये ODR को अपनाया जाना इस प्रक्रिया में भरोसा बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
      • यह स्वतः ODR प्रक्रियाओं और निर्णयों में भरोसे की समस्या को संबोधित कर सकेगा।

विश्व में अन्य कौन-से ODR तंत्र कार्यान्वित हैं?

  • यूनाइटेड किंगडम:
    • यूनाइटेड किंगडम में स्थानीय काउंटी कोर्ट प्रबंधन प्रणाली के एक अंग के रूप में CASEMAN मामलों के पंजीकरण के लिये आरंभिक कोर्ट रिकॉर्ड के सृजन, सम्मन जारी करने एवं उनकी निगरानी करने, साक्ष्यों की इलेक्ट्रॉनिक प्रतियों के संग्रहण, कॉज-लिस्ट के निर्माण, रिकॉर्ड अपडेट करने, कोर्ट डायरी के रखरखाव और स्वचालित रूप से अन्य प्रासंगिक दस्तावेज एवं रिकॉर्ड तैयार करने जैसे अनगिनत कार्यों को पूरा करता है।
  • ऑस्ट्रेलिया:
    • ऑस्ट्रेलिया के फेडरल कोर्ट में -लॉजमेंट सिस्टम (e-Lodgment system) पर किसी भी समय कहीं से भी इलेक्ट्रॉनिक रूप से दस्तावेज़ दाखिल किये जा सकते हैं। उन्हें फिर इलेक्ट्रॉनिक रूप से सीलबंद या स्टाम्प कर दिया जाता है।
  • कनाडा:
    • कनाडा ने अपना ऑनलाइन सिविल रिजॉल्यूशन ट्रिब्यूनल (CRT) पेश किया है जो ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में छोटे दावों के विवादों के साथ-साथ किसी भी राशि की संपत्ति संबंधी विवादों पर विचार करता है।
  • रवांडा:
    • रवांडा पेपर-रहित कोर्ट सेवाओं की ओर आगे बढ़ते हुए इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग सिस्टम (EFS) का उपयोग कर रहा है।

अभ्यास प्रश्न: भारतीय न्यायिक प्रणाली में ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण करें और इसके कार्यान्वयन से संबद्ध प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालें। (150 शब्द)

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