वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का भारत का लक्ष्य | 10 Aug 2024
यह एडिटोरियल 07/08/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Powering up to get to the $30-trillion economy point” लेख पर आधारित है। इसमें वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के भारत के लक्ष्य की चर्चा की गई है, जिसके लिये निम्न-कुशल विनिर्माण को बढ़ावा देने, महिला श्रम भागीदारी को बढ़ाने और संरक्षणवादी नीतियों से बचने के रूप में मध्यम-आय जाल से बाहर निकलना आवश्यक है। लेख में इस बात पर बल दिया गया है कि सतत् विकास के लिये अवसंरचना में सुधार करना और बाज़ार संचालित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
प्रिलिम्स के लिये:उदारीकरण के बाद की अर्थव्यवस्था, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक 2023, श्रम बल भागीदारी, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, गति शक्ति योजना, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, जन धन योजना, पंचामृत, सौर मिशन, राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड। मेन्स के लिये:समावेशी और सतत् विकास के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि का महत्त्व। |
भारत की आर्थिक वृद्धि पर किसी समीक्षा में प्रायः एक अतिशय आशावादी स्वर या विजयोन्माद प्रकट होता है। भारत की प्रभावशाली 7% से अधिक जीडीपी वृद्धि दर और वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से विकास करती वृहत अर्थव्यवस्था के रूप में इसकी स्थिति के साथ माना जाता है कि भारत की आर्थिक उन्नति अपरिहार्य है। हालाँकि, ऐसी ऐतिहासिक मिसालें मौजूद हैं जो दिखाती है कि कई देश इसी स्तर तक पहुँचने के बावजूद विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने में विफल रहे। वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के सरकार के स्वप्न को साकार करने के लिये भारत को उदार आर्थिक नीतियों के माध्यम से तीव्र आर्थिक विकास बनाए रखना चाहिये और निजी क्षेत्र की क्षमता का दोहन करना चाहिये।
जबकि भारत वर्ष 2047 में अपनी स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाने की ओर अग्रसर है, विकासशील से विकसित अर्थव्यवस्था में परिणत होने का इसका स्वप्न चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है। विविधतापूर्ण और गतिशील आर्थिक परिदृश्य के साथ, भारत को इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये गंभीर चुनौतियों का समाधान करते हुए अपनी क्षमता का लाभ उठाना चाहिये। यहाँ नवीनतम डेटा और अनुमानों से समृद्ध एक विस्तृत रोडमैप प्रदान किया गया है, जहाँ बताया गया है कि भारत वर्ष 2047 तक किस प्रकार एक विकसित अर्थव्यवस्था में परिणत हो सकता है।
वर्ष 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल करने की राह की चुनौतियाँ:
- गरीबी और असमानता:
- वर्ष 1947 में स्वतंत्रता से लेकर वर्ष 1991 तक गरीबी कम करने के उद्देश्य से समाजवादी नीतियों के क्रियान्वयन के बावजूद भारत की गरीबी दर 50% के आसपास बनी रही।
- हालाँकि, उदारीकरण के बाद (1991-2011) गरीबी लगभग 20% तक कम हो गई, जहाँ 350 मिलियन लोग गरीबी से बाहर आ गए।
- मध्यम-आय जाल:
- विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार, मध्यम-आय जाल (Middle-Income Trap) से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जिसमें एक मध्यम-आय देश बढ़ती लागत और घटती प्रतिस्पर्द्धा के कारण उच्च-आय अर्थव्यवस्था में परिवर्तित होने में विफल रहता है।
- भारत के लिये भी मध्यम-आय जाल में फँसने का खतरा है, जहाँ देश मध्यम-आय से उच्च-आय की स्थिति में पहुँचने में विफल हो जाते हैं।
- वर्ष 1960 में 101 मध्यम-आय अर्थव्यवस्थाओं में से केवल 23 ही वर्ष 2018 तक उच्च-आय अर्थव्यवस्था बन सके।
- ऐसी आशंकाएँ व्यक्त की जाती हैं कि विकसित अर्थव्यवस्था की राह पर आगे बढ़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था मध्यम-आय जाल में फँस सकती है। माना जाता है कि 5,000-6,000 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति आय तक पहुँचने के बाद यह अधिक तेज़ी से आगे नहीं बढ़ पाएगी।
- वृद्ध होती आबादी:
- भारत की आबादी, जो वर्तमान में लगभग 1.4 बिलियन है, वर्ष 2048 तक 1.64 बिलियन के सर्वोच्च स्तर पर पहुँचने के बाद बाद वर्ष 2100 तक घटकर 1.45 बिलियन रह जाएगी।
- इसके परिणामस्वरूप, भारत को वृद्ध होती आबादी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल पर बढ़ते खर्च, बढ़ती पेंशन देनदारियाँ और संभावित श्रम की कमी शामिल हैं।
- गतिहीन कृषि:
- कृषि क्षेत्र भारत की लगभग 46% आबादी को रोज़गार प्रदान करता है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 16.5% है।
- हालाँकि, अप्रभावी भूमि सुधारों, अवैज्ञानिक अभ्यासों, संस्थागत ऋण प्रवाह की कमी और जलवायु अनिश्चितताओं के कारण यह गतिहीन एवं निम्न उत्पादक क्षेत्र बना हुआ है।
- विनिर्माण क्षेत्र का पिछड़ापन:
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र भारत के केवल 11.4% कार्यबल को रोज़गार प्रदान करता है।
- इसके अलावा, विनिर्माण क्षेत्र को उच्च इनपुट लागत और अस्थिर मांग के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- अकुशल लॉजिस्टिक्स:
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 से पता चलता है कि भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद के 14-18% के बीच है, जो वैश्विक बेंचमार्क 8% से अधिक है। इसके साथ ही, लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक (LPI) 2023 में भारत 38वें स्थान पर है।
- रोज़गारहीनता और प्रच्छन्न बेरोज़गारी:
- आईटी सेवाओं में उछाल से प्रेरित भारत के उच्च विकास वर्षों (2000-10) के बावजूद 46% श्रम शक्ति अभी भी कृषि में संलग्न है, जो सकल घरेलू उत्पाद में केवल 18% का योगदान देती है। इसकी उत्पादकता कम है और यह अल्प-रोज़गार (underemployment) की समस्या से भी ग्रस्त है।
- इसके अलावा, CMIE के अनुसार भारत में बेरोज़गारी दर मई 2024 में 7% से तेज़ी से बढ़कर जून 2024 में 9.2% हो गई।
- श्रम बल गतिशीलता:
- महिला श्रम बल भागीदारी मात्र 37% है, हालाँकि वर्ष 2019 में 26% की तुलना में इसमें सुधार हुआ है। फिर भी, यह स्तर अन्य तेज़ी से विकास करते देशों की तुलना में कम है।
- वैश्विक आर्थिक मंदी:
- वैश्विक आर्थिक मंदी, वस्तुओं की अस्थिर कीमतें, भू-राजनीतिक तनाव और कठिन होती वित्तीय स्थितियाँ निर्यात में कमी, आयात लागत में वृद्धि तथा विकास परियोजनाओं के लिये भर्ती एवं वित्तपोषण में कमी लाकर भारत के आर्थिक निवेश विकास में बाधा उत्पन्न कर रही हैं।
सरकार द्वारा कौन-से प्रमुख कदम उठाए गए हैं?
- पूंजीगत व्यय में वृद्धि: पिछले वर्ष की तुलना में वित्त वर्ष 24 में पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure- CAPEX) में 28.2% की वार्षिक वृद्धि हुई है, जहाँ अवसंरचना विकास और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- ऋण विकास: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण वितरण 20.2% की वृद्धि के साथ 164.3 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जो व्यय में वृद्धि को दर्शाता है। इसके अलावा, सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात सुधरकर 2.8% हो गया, जो 12 वर्ष का न्यूनतम स्तर है।
- अवसंरचनात्मक विकास:
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण की गति वित्त वर्ष 2014 में 11.7 किमी प्रति दिन से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 तक 34 किमी प्रति दिन हो गई है।
- इसके अलावा, गति शक्ति योजना या मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी योजना के लिये राष्ट्रीय मास्टर प्लान को कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिये अवसंरचनात्मक परियोजनाओं हेतु समन्वित योजना-निर्माण एवं निष्पादन सुनिश्चित करना है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण की गति वित्त वर्ष 2014 में 11.7 किमी प्रति दिन से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 तक 34 किमी प्रति दिन हो गई है।
- राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetisation Pipeline- NMP): इसमें चार वर्ष की अवधि (वित्त वर्ष 2022 से 2025) में सड़क, रेलवे, बिजली, तेल एवं गैस पाइपलाइन, दूरसंचार, नागरिक उड्डयन जैसे क्षेत्रों में केंद्र सरकार की प्रमुख परिसंपत्तियों को पट्टे/लीज़ पर देने के माध्यम से 6 लाख करोड़ रुपए की कुल मुद्रीकरण क्षमता की परिकल्पना की गई है ।
- डिजिटल इंडिया पहल: इसका उद्देश्य डिजिटल अवसंरचना विकास के माध्यम से राष्ट्रीय सशक्तीकरण करना, जीवन स्तर को ऊपर उठाना और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति और ‘स्किल इंडिया’ मिशन: सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने और देश की जनसांख्यिकी को कुशल बनाने के लिये इन पहलों को क्रियान्वित कर रही है।
- प्रत्यक्ष लाभ प्रदान करना: प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) और जन धन योजना से राजकोषीय दक्षता बढ़ी और ‘लीकेज’ कम हुआ, जिससे लोगों की व्यय क्षमता में वृद्धि हुई।
- संवहनीयता और जलवायु प्रत्यास्थता को बढ़ावा देना: भारत ‘पंचामृत’ लक्ष्यों और सौर मिशन तथा राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति जैसी अनेक योजनाओं के माध्यम से संवहनीय आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रहा है।
एक विकसित देश के रूप में भारत के लिये क्या चुनौतियाँ होंगी?
- आर्थिक भेद्यता:
- विकसित अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक वित्तीय प्रणालियों और बाज़ारों में अधिक एकीकृत होती हैं, जिससे वे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
- उदाहरण के लिये, विकसित देशों को वर्ष 2007-08 के सबप्राइम संकट और कोविड-19 मंदी के बाद अधिक आर्थिक आघातों का सामना करना पड़ा।
- जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ेगा, उसे वैश्विक वित्तीय संकटों, व्यापार व्यवधानों और अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी मूल्यों में बदलाव का अधिक सामना करना पड़ेगा।
- विकसित अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक वित्तीय प्रणालियों और बाज़ारों में अधिक एकीकृत होती हैं, जिससे वे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
- जलवायु संवेदनशीलता में वृद्धि:
- भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में जलवायु संबंधी मुद्दों को संबोधित करने के लिये अत्यधिक दबाव का सामना करना पड़ेगा। इसमें अवसंरचना, कृषि और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का प्रबंधन करना शामिल है।
- अपनी विविध भौगोलिक स्थिति के कारण भारत अनेक प्रकार के जलवायु जोखिमों (जैसे गंभीर बाढ़, ग्रीष्म लहरें और चक्रवात शामिल) के प्रति संवेदनशील है, जो आर्थिक स्थिरता और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं।
- रोज़गार वृद्धि:
- विकसित अर्थव्यवस्थाओं मे ऑटोमेशन, उद्योग की बदलती आवश्यकताओं और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के कारण कभी-कभी रोज़गार सृजन की गति आर्थिक वृद्धि से पीछे रह जाती है। भारत को औद्योगिकीकरण और आधुनिकीकरण के विस्तार के साथ-साथ गतिहीन रोज़गार सृजन की संभावना को संबोधित करने की आवश्यकता होगी।
- अर्थव्यवस्था में तीव्र तकनीकी प्रगति और संरचनात्मक परिवर्तनों के कारण कौशल असंतुलन उत्पन्न हो सकता है, जहाँ उपलब्ध रोज़गार कार्यबल के कौशल के अनुरूप नहीं होते हैं।
- वि-वैश्वीकरण:
- वि-वैश्वीकरण (Deglobalization) का तात्पर्य वैश्विक व्यापार और निवेश पर निर्भरता कम करने की प्रवृत्ति से है, जो प्रायः संरक्षणवाद और व्यापार बाधाओं में वृद्धि की विशेषता रखता है। इसका असर भारत के निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर पड़ सकता है।
- वैश्विक व्यापार नीतियों में परिवर्तन और भू-राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव अंतर्राष्ट्रीय निवेश तथा व्यापार संबंधों के लिये अनिश्चितताएँ पैदा कर सकते हैं।
आगे की राह:
- औद्योगिक संकुलों का विकास: सरकार को व्यापक सहायता प्रणालियों के साथ औद्योगिक संकुलों (Industrial Clusters) का विकास कर अवसंरचनात्मक सुधार के अपने प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिये।
- संकुल या क्लस्टर आधारित मॉडल, जहाँ विशिष्ट क्षेत्रों में विनियमों में ढील दी जाती है, विनिर्माण के लिये अनुकूल वातावरण का निर्माण कर सकता है।
- इसके अतिरिक्त, सरकार को उच्च टैरिफ के अधिरोपण से बचना चाहिये, जिससे स्थानीय निर्माताओं के लिये अलाभ की स्थिति बन सकती है और निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- विकास की गति को बनाए रखना: वित्त वर्ष 2024 में भारत की वास्तविक जीडीपी में 8.2% की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की गई, जो चार में से तीन तिमाहियों में 8% से अधिक रही। विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल करने के लिये भारत को इस मज़बूत विकास प्रक्षेपवक्र को बनाए रखना होगा।
- मध्यम-आय जाल को संबोधित करना और विकास सुनिश्चित करना: भारत को मध्यम-आय जाल से बचने के लिये एक बाज़ार-आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है जो न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप के साथ निजी उद्यम का समर्थन करती हो। अर्थव्यवस्था का फोकस ‘कारोबार सुगमता’ (ease of doing business) को बढ़ाने और आर्थिक सुधारों को जारी रखने पर होना चाहिये।
- विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट 2024 के अनुसार नीतियों को ‘3i’ रणनीति की ओर बढ़ने की आवश्यकता है, यानी मध्यम-आय जाल से बचने के लिये निवेश, प्रेरणा और नवाचार (Investment, Infusion, and Innovation)।
- दक्षिण कोरिया 3i रणनीति के सभी तीन चरणों से गुज़रने और इस विकास पथ पर आगे बढ़ने के मामले में एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- अवसंरचना का विस्तार: परिवहन, शहरी विकास और डिजिटल अवसंरचना में निवेश जारी रखने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय राजमार्गों और नए हवाई अड्डे टर्मिनलों के निर्माण की गति में वृद्धि एक सकारात्मक प्रवृत्ति को दर्शाती है।
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण और शहरी संपर्क को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- वित्तीय क्षेत्र और मौद्रिक स्थिरता को बढ़ावा देना: बैंकिंग क्षेत्र के स्वास्थ्य और वित्तीय मध्यस्थता को बढ़ाने की आवश्यकता है, जहाँ इसे दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (IBC) जैसे विधिक समर्थन प्राप्त हों।
- कौशल विकास और रोज़गार पर ध्यान केंद्रित करना: शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण में निवेश कर कौशल अंतराल को दूर किया जाए; बेहतर रोज़गार परिणाम और उच्च कार्यबल भागीदारी का लक्ष्य रखा जाए।
- अध्ययनों से पता चलता है कि कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से देश को व्यापक लाभ प्राप्त हो सकता है। IMF का सुझाव है कि भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर को पुरुषों के बराबर करने से भारत की जीडीपी में 27% की वृद्धि हो सकती है।
- जनसांख्यिकीय लाभांश को साकार करना: भारत की कार्यशील आयु जनसंख्या की क्षमता को साकार करने के लिये निम्न-कुशल, रोजगार-गहन विनिर्माण क्षेत्र रोज़गार अवसरों की आवश्यकता है। दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे ‘एशियन टाइगर्स' द्वारा ऐसी ही रणनीतियाँ अपनाई गई हैं।
- विविधता और विस्तार: फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे प्रमुख उद्योगों में वृद्धि का समर्थन करना जारी रखें। वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी को और बढ़ाने के लिये सेवाओं में भारत की शक्ति का लाभ उठाएँ।
- नवाचार को बढ़ावा देना: स्टार्ट-अप और गिग अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित किया जाए, जो नए व्यापार मॉडल और तकनीकी उन्नति को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
- हरित संक्रमण: स्वच्छ ऊर्जा और संवहनीय अभ्यासों में निवेश की वृद्धि की जाए। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार जारी रखते हुए ऊर्जा आवश्यकताओं में अनुमानित वृद्धि को संबोधित किया जाए।
निष्कर्ष
चूँकि भारत का लक्ष्य वर्ष 2047 तक एक विकसित देश बनना है, इसलिये उसे केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय समग्र विकास सुनिश्चित करने की आवश्कयता है। इसका अर्थ है कि न केवल आर्थिक कारकों बल्कि सामाजिक, पर्यावरणीय और संस्थागत कारकों पर भी ध्यान देना होगा। भारत निम्नलिखित तरीकों से समग्र विकास सुनिश्चित कर सकता है:
- जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कौशल विकास के माध्यम से मानव पूंजी में निवेश करना।
- संवहनीय और न्यायसंगत विकास को बढ़ावा देना जिससे आय असमानता कम हो और सभी को अवसर मिले।
- जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और संसाधनों की कमी से निपटने के लिये पर्यावरणीय पहलुओं को विकास योजनाओं में एकीकृत करना।
- समावेशी और पारदर्शी निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये लोकतांत्रिक संस्थाओं, शासन व्यवस्था और विधि के शासन को मज़बूत करना।
- एक विविध अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना जो विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करे, न कि केवल कुछ उद्योगों पर निर्भर रहे।
- भारत एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर संतुलित और सतत् विकास प्राप्त कर सकता है जो उसके नागरिकों के समग्र कल्याण को बढ़ावा देगा।
अभ्यास प्रश्न: वर्ष 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत को गतिहीन रोज़गार सृजन और कौशल असंतुलन को संबोधित करने के लिये क्या उपाय करने चाहिये? रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने में शिक्षा सुधार, व्यावसायिक प्रशिक्षण और उभरते उद्योगों के लिये समर्थन की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: (c) प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में FDI की आवश्यकता की पुष्टि कीजिये। हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों तथा वास्तविक FDI के बीच अन्तर क्यों है? भारत में वास्तविक FDI को बढ़ाने के लिये सुधारात्मक कदम सुझाइये। (2016) |