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भारतीय अर्थव्यवस्था

FTA के माध्यम से वैश्विक व्यापार बाधाओं को पार करना

  • 01 Mar 2025
  • 32 min read

यह एडिटोरियल 27/02/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Rise of protectionism and the free trade conundrum” पर आधारित है। इस लेख में संरक्षणवाद की ओर वैश्विक बदलाव का उल्लेख किया गया है, विशेषकर अमेरिका में, जहाँ ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे का पुनरुत्थान बहुपक्षीय व्यापार से दूरी का संकेत देता है।

प्रिलिम्स के लिये:

मुक्त व्यापार समझौता, संरक्षणवादी आर्थिक नीतियाँ, UAE के साथ CEPA, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ, मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, भारत-कोरिया गणराज्य व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता, खनिज सुरक्षा भागीदारी, वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट- 2024, व्यापक एवं प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी समझौता 

मेन्स के लिये:

भारत के भू-आर्थिक परिदृश्य में FTA की भूमिका, भारत के भू-आर्थिक परिदृश्य में संरक्षणवाद से उत्पन्न प्रमुख मुद्दे। 

मुक्त व्यापार के लिये व्यापक समर्थन के बावजूद, बढ़ती संरक्षणवादी आर्थिक नीतियों ने वैश्विक गति पकड़ी है, विशेष रूप से अमेरिका जैसे विकसित देशों में हाल के चुनावों ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे को वापस ला दिया है, जो व्यापारिक सिद्धांतों, उच्च टैरिफ और WTO जैसे स्थापित बहुपक्षीय कार्यढाँचे के बाहर द्विपक्षीय साझेदारी की ओर वापसी का संकेत देता है। भारत को द्विपक्षीय, बहुपक्षीय द्विपक्षीय व्यापार संबंधों और समग्र भू-आर्थिक दृष्टिकोण में अपने हितों की रक्षा के लिये सावधानीपूर्वक साझेदारी एवं प्रभावी सौदाकारी रणनीतियों के माध्यम से इस बदलते परिदृश्य को समायोजित करने की आवश्यकता है।

भारत के भू-आर्थिक परिदृश्य में मुक्त व्यापार समझौते क्या भूमिका निभाते हैं? 

  • निर्यात और बाज़ार पहुँच को बढ़ावा: FTA भारतीय निर्यातकों को तरजीही बाज़ार अभिगम प्रदान करते हैं, टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करते हैं, जिससे भारतीय उत्पाद वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनते हैं। 
    • यह वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण है, जहाँ भारत को तुलनात्मक लाभ प्राप्त है। 
    • बढ़ते वैश्विक व्यापार विखंडन के साथ, FTA भारतीय उद्योगों को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करने में मदद करते हैं, जिससे निर्यात-आधारित विकास को बढ़ावा मिलता है। 
      • उदाहरण के लिये, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ CEPA के तहत, संयुक्त अरब अमीरात को भारत का निर्यात वर्ष 2022-23 में 31.3 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2021-22 में 28 बिलियन डॉलर से 12% की वृद्धि को दर्शाता है।
  • रोज़गार सृजन और औद्योगिक विकास: बाज़ार के अवसरों का विस्तार करके, FTA विनिर्माण विस्तार को प्रोत्साहित करते हैं, तथा वस्त्र, चमड़ा और कृषि जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोज़गार को बढ़ावा देते हैं। 
    • FTA के तहत शुल्क मुक्त आयात के कारण कम इनपुट लागत से MSME को आगे बढ़ने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद मिलती है। 
    • FTA के माध्यम से घरेलू उद्योगों को सुदृढ़ करना भारत की उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के अनुरूप है, जो विदेशी निवेश को आकर्षित करता है।
    • भारत का वस्त्र उद्योग, जो एक समय असफलता का सामना कर रहा था, अब विस्तार की कगार पर है तथा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 तक कुल वस्त्र निर्यात 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा, जिसका श्रेय मुख्य रूप से भारत के बढ़ते व्यापार समझौतों को जाता है। 
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की स्थिति को मज़बूत करना: FTA मध्यवर्ती वस्तुओं में व्यापार को बढ़ावा देकर वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में एकीकरण की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे चीन जैसे एकल स्रोतों पर निर्भरता कम होती है। 
    • यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' के तहत स्वयं को एक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहता है। 
    • ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और कनाडा के साथ भारत की FTA वार्ता का उद्देश्य ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं IT सेवाओं जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना है, जिससे भारत की GVC भागीदारी बढ़ेगी। 
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का आकर्षण: FTA एक स्थिर व्यापार वातावरण सुनिश्चित करके निवेशकों का विश्वास बढ़ाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विशेष रूप से विनिर्माण और सेवाओं में FDI प्रवाह में वृद्धि होती है। 
    • टैरिफ रियायतों की पेशकश करके भारत अपने बड़े घरेलू बाज़ार तक पहुँच बनाने के इच्छुक साझेदार देशों से निवेश आकर्षित करता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत-कोरिया गणराज्य व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता दोनों देशों के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर प्रतिबंधों को आसान बनाता है।  
    • इसके अलावा, अक्तूबर 2021 में, UAE ने स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने में मदद के लिये भारत को 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संप्रभु निधि आवंटित करने का वचन दिया।
  • ऊर्जा सुरक्षा और कच्चे माल तक अभिगम: व्यापार समझौते कच्चे तेल, LNG और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे महत्त्वपूर्ण कच्चे माल के शुल्क मुक्त या रियायती आयात की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलन सुनिश्चित होता है। 
    • यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत का लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा का अंगीकरण तथा कुछ देशों पर आयात निर्भरता कम करना है। 
    • भारत सक्रिय रूप से खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP) जैसी पहलों में शामिल होकर, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ साझेदारी के माध्यम से दुर्लभ तत्त्वों को सुरक्षित करने का प्रयास कर रहा है।
  • कृषि और डेयरी क्षेत्र का विकास: FTA से चावल, मसाले और समुद्री उत्पादों जैसे भारतीय कृषि निर्यात के लिये नए बाज़ार खुलेंगे, जिससे किसानों की आय एवं ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलेगा। 
    • हालाँकि, डेयरी जैसे कमज़ोर क्षेत्रों को अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा से बचाने के लिये वार्ता की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत-जापान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) दोनों देशों के बीच व्यापार किये जाने वाले लगभग 90% उत्पादों पर से शुल्क हटा देता है, जिनमें कई कृषि उत्पाद भी शामिल हैं।
  • सामरिक और भू-राजनीतिक लाभ: FTA आर्थिक कूटनीति के लिये महत्त्वपूर्ण साधन हैं, जो भारत के वैश्विक प्रभाव को मज़बूत करते हैं और चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता को कम करते हैं। 
    • विविध साझेदारों के साथ जुड़कर भारत क्षेत्रीय व्यापार में चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करता है तथा अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत ने हाल ही में वर्ष 2024 में EFTA (स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड, लिकटेंस्टीन) के साथ एक व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी समझौते (TEPA) पर हस्ताक्षर किये, जिससे आर्थिक समुत्थानशीलन बढ़ेगा।

India's Free Major FTA

भारत के भू-आर्थिक परिदृश्य में संरक्षणवाद के कारण कौन से प्रमुख मुद्दे उत्पन्न हुए हैं? 

  • निर्यात अवसरों में कमी और व्यापार बाधाएँ: चूँकि प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिये उच्च टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएँ लगा रही हैं, इसलिये भारतीय निर्यातकों को बाज़ार अभिगम और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी का सामना करना पड़ रहा है। 
    • इससे विशेष रूप से श्रम-प्रधान क्षेत्र जैसे वस्त्र, रत्न व आभूषण तथा कृषि उत्पाद प्रभावित होते हैं, जिससे भारत की वैश्विक व्यापार का विस्तार करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
    • स्थानीयकरण नियमों और अमेरिका एवं यूरोपीय संघ में बढ़े हुए टैरिफ जैसी संरक्षणवादी नीतियों ने भारतीय निर्माताओं को नुकसान पहुँचाया, जिससे निर्यात वृद्धि में मंदी आई।
    • उदाहरण के लिये, भारत यूरोपीय संघ के उस प्रस्ताव का विरोध कर रहा है जिसमें जनवरी 2026 से स्टील, एल्युमीनियम और सीमेंट सहित उच्च कार्बन वस्तुओं पर 20% से 35% तक का उच्च टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है।
      • यूरोपीय संघ ने अभी तक किसी राहत का संकेत नहीं दिया है तथा कहा है कि उच्च टैरिफ उसके स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों का हिस्सा हैं।
  • व्यापार युद्ध और प्रतिशोधात्मक शुल्क: प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार संघर्षों का बढ़ना, जैसे कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, वैश्विक व्यापार प्रवाह को बाधित करते हैं तथा अप्रत्यक्ष रूप से भारत के निर्यात और निवेश को प्रभावित करता है। 
    • जवाबी टैरिफ लगाने वाले देश भारतीय वस्तुओं को महंगा बना देते हैं, जिससे अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख बाज़ारों में मांग कम हो जाती है। 
    • इसके अतिरिक्त, प्रमुख साझेदारों के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ सकता है, क्योंकि संरक्षणवादी उपाय संतुलित व्यापार समझौतों को बाधित करते हैं। 
      • उदाहरण के लिये, विस्तारित संरक्षणवाद उपायों के कारण, चीन को भारत का निर्यात अप्रैल 2023-जनवरी 2024 में 13.48 बिलियन डॉलर से 14.85% घटकर अप्रैल 2024-जनवरी 2025 में 11.48 बिलियन डॉलर रह गया।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और पूंजी प्रवाह में कमी: विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कड़े निवेश प्रतिबंध, विशेष रूप से विदेशी अधिग्रहणों पर, भारतीय कंपनियों के लिये वैश्विक स्तर पर विस्तार करना और पूंजी आकर्षित करना कठिन बना देते हैं। 
    • अमेरिका और यूरोपीय संघ विदेशी निवेश जाँच तंत्र को सख्त बना रहे हैं, जिससे विदेश में प्रौद्योगिकी एवं कारोबार हासिल करने की इच्छुक भारतीय कंपनियाँ प्रभावित हो रही हैं। 
    • वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट- 2024 के अनुसार, आर्थिक मंदी और बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के दौरान वर्ष 2023 में वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 2% घटकर 1.3 ट्रिलियन डॉलर रह गया। 
      • वित्त वर्ष 2024 में भारत में कुल (या सकल) FDI प्रवाह 16% घटकर 70.9 बिलियन डॉलर (6 लाख करोड़ रुपए) रह गया।
  • IT और सेवा निर्यात पर प्रतिबंध: कई विकसित देश कार्य वीज़ा नीतियों को कड़ा कर रहे हैं और डेटा स्थानीयकरण कानूनों को लागू कर रहे हैं, जिसका सीधा असर भारत के IT एवं आउटसोर्सिंग क्षेत्रों पर पड़ रहा है। 
    • अमेरिका और यूरोप में H-1B वीज़ा के सख्त मानदंडों और आउटसोर्सिंग विरोधी बढ़ती भावना के कारण भारतीय तकनीकी पेशेवरों के लिये प्रमुख बाज़ारों तक पहुँच कठिन हो गई है।
      • अक्तूबर 2022 से सितम्बर 2023 के दौरान जारी किये गए सभी H-1B वीज़ा में से केवल 72.3% ही भारतीय कुशल श्रमिकों को प्राप्त हुए।
    • इससे वैश्विक IT क्षेत्र में भारत का प्रभुत्व कमज़ोर होता है तथा रोज़गार और विदेशी मुद्रा आय प्रभावित होती है। 
  • आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान और उच्च आयात लागत: वैश्विक संरक्षणवादी उपाय आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करते हैं, जिससे भारत के लिये अर्द्धचालक, दुर्लभ मृदा तत्त्वों एवं ऊर्जा संसाधनों जैसे महत्त्वपूर्ण कच्चे माल का स्रोत प्राप्त करना कठिन हो जाता है। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का लगभग 65-70% आयात मुख्य रूप से चीन से करता है, जो कि चिंता का विषय है।
    • अमेरिका और चीन जैसे देशों में आयात प्रतिबंधों से भारतीय निर्माताओं की लागत बढ़ जाती है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा एवं नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्र प्रभावित होते हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत अभी भी अपनी आवश्यकता का 85% कच्चा तेल आयात करता है और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया, जिससे भारत का आयात बिल बढ़ गया। 
  • भारतीय फार्मा निर्यात और जेनेरिक दवा बाज़ार की बढ़ती लागत: चूँकि विकसित देश बौद्धिक संपदा (IP) कानूनों को सख्त बना रहे हैं और फार्मास्यूटिकल्स पर सख्त नियामक मानक लागू कर रहे हैं, इसलिये भारतीय जेनेरिक दवा निर्यात को उच्च अनुपालन लागत का सामना करना पड़ रहा है। 
    • अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देश भारतीय दवा कंपनियों पर निगरानी बढ़ा रहे हैं, मंजूरी में विलंब कर रहे हैं और बाज़ार तक पहुँच सीमित कर रहे हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में निर्मित कफ सिरप को गाम्बिया में 66 बच्चों की तीव्र किडनी फेलियर और मृत्यु से जोड़ा है, जिससे भारत की विश्वसनीयता पर और भी प्रश्नचिह्न लग गया है।
  • बहुपक्षीय व्यापार समझौतों में भारत की भूमिका कमज़ोर होना: बढ़ते संरक्षणवाद के साथ, विकसित अर्थव्यवस्थाएँ व्यापक एवं प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी (CPTPP) समझौते जैसे क्षेत्रीय व्यापार ब्लॉकों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जिससे वैश्विक व्यापार वार्ता में भारत को दरकिनार किया जा रहा है। 
    • इन समझौतों तक अभिगम की कमी से भारत प्रतिस्पर्द्धात्मक रूप से नुकसान में रहता है, क्योंकि इन ब्लॉक के देशों की तुलना में इसके निर्यात को अधिक टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 
    • RCEP से भारत के बाहर होने के कारण पहले ही व्यापार घाटा हो चुका है तथा आगामी संरक्षणवादी रुझान भारत को आर्थिक रूप से अलग-थलग कर सकते हैं। 
  • सस्ते आयात तक सीमित पहुँच के कारण मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: जब देश संरक्षणवादी नीतियाँ लागू करते हैं, तो खाद्य, ईंधन और औद्योगिक इनपुट जैसी आवश्यक वस्तुओं की वैश्विक कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे भारत में मुद्रास्फीति संबंधी दबाव बढ़ जाता है। 
  • वैश्विक व्यापार नीति में भारत के भू-राजनीतिक प्रभाव पर प्रभाव: जैसे-जैसे देश आर्थिक राष्ट्रवाद को अपना रहे हैं, भारत को वैश्विक व्यापार प्रशासन में अग्रणी के रूप में अपनी स्थिति स्थापित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा एकतरफा संरक्षणवादी उपायों के बढ़ते प्रयोग से विश्व व्यापार संगठन के नेतृत्व वाली वार्ताओं की प्रासंगिकता कम हो रही है तथा निष्पक्ष व्यापार नीतियों को आकार देने में भारत का प्रभाव सीमित हो रहा है। 
    • वर्ष 2023 में भारत की G20 अध्यक्षता में विश्व व्यापार संगठन में सुधारों पर विचार के बावजूद, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने एकतरफा टैरिफ लगाना जारी रखा, जिससे बहुपक्षवाद के लिये भारत का प्रयास दरकिनार हो गया।

बदलते भू-आर्थिक परिदृश्य में भारत अपने आर्थिक हितों की रक्षा किस प्रकार कर सकता है?

  • बाज़ार विविधीकरण के लिये मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) में तीव्रता: भारत को प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ FTA पर वार्ता और कार्यान्वयन में तीव्रता लानी चाहिये ताकि अधिमान्य बाज़ार अभिगम सुनिश्चित की जा सके तथा टैरिफ बाधाओं को कम किया जा सके। 
    • यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा और GCC जैसे क्षेत्रों के साथ व्यापार संबंधों को सुदृढ़ करने से विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ते संरक्षणवाद का मुकाबला करने में मदद मिलेगी। 
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करते हुए घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
      • FTA में सेवा व्यापार, डिजिटल अर्थव्यवस्था की शर्तों और निवेश संरक्षण को प्राथमिकता देने से दीर्घकालिक आर्थिक समुत्थानशीलन सुनिश्चित होगा।
  • घरेलू विनिर्माण और वैश्विक मूल्य शृंखला एकीकरण को मज़बूत करना: भारत को घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाकर और आयात पर निर्भरता कम करके वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में अपनी भागीदारी को प्रबल करना चाहिये।
    • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को सुदृढ़ करना तथा लॉजिस्टिक्स एवं आपूर्ति शृंखलाओं को सरल बनाना भारतीय उद्योगों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने में सहायक होगा। 
    • सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स और हरित प्रौद्योगिकी जैसे उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने से रणनीतिक क्षेत्रों में कमज़ोरियाँ कम होंगी। 
      • निर्यातोन्मुख विनिर्माण के साथ व्यापार नीतियों को संरेखित करने से भारत को वैश्विक व्यापार में बड़ा हिस्सा प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  • व्यापार कूटनीति और रणनीतिक आर्थिक गठबंधनों को बढ़ाना: भारत को बढ़ते संरक्षणवाद का मुकाबला करने और प्रमुख साझेदारों के साथ अनुकूल व्यापार शर्तों पर वार्ता करने के लिये एक सक्रिय व्यापार कूटनीति रणनीति अपनानी चाहिये। 
    • G20, विश्व व्यापार संगठन और BRICS जैसे मंचों में भागीदारी को सुदृढ़ करने से वैश्विक व्यापार नियमों को आयाम देने में मदद मिलेगी जो भारत के आर्थिक हितों के अनुरूप होंगे। 
    • अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने से वैकल्पिक बाज़ार उपलब्ध होंगे तथा पारंपरिक व्यापारिक साझेदारों पर निर्भरता कम होगी।
      • व्यापार विवादों को सुलझाने के लिये कूटनीतिक माध्यमों का लाभ उठाने तथा अनुचित व्यापार प्रथाओं के विरुद्ध पैरवी करने से भारत के निर्यातकों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
  • सेवा व्यापार और डिजिटल अर्थव्यवस्था सहयोग का विस्तार: भारत को सेवा व्यापार का विस्तार करने और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में संरक्षणवादी नीतियों का मुकाबला करने के लिये IT, फिनटेक और डिजिटल सेवाओं में अपनी ताकत का लाभ उठाना चाहिये।
    • FTA में उदार वीज़ा व्यवस्था पर वार्ता से भारतीय पेशेवरों की सुचारू गतिशीलता सुनिश्चित होगी तथा वैश्विक आउटसोर्सिंग में भारत का प्रभुत्व बना रहेगा।
    • व्यक्तिगत डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम को सुदृढ़ करने और वैश्विक डिजिटल व्यापार कार्यढाँचे के साथ संरेखित करने से सीमा पार डिजिटल सेवाओं में भारत की स्थिति में सुधार होगा। 
      • घरेलू फिनटेक स्टार्टअप को बढ़ावा देना और वैश्विक बाज़ारों में वित्तीय सेवाओं का विस्तार करना दीर्घकालिक आर्थिक विकास सुनिश्चित करेगा।
  • विविधीकरण और हरित परिवर्तन के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करना: भारत को अस्थिर वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों पर निर्भरता कम करने के लिये दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति समझौते सुनिश्चित करने होंगे और नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना में निवेश करना होगा।
    • विविध आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ तेल और गैस आयात के लिये साझेदारी का विस्तार करने से स्थायी ऊर्जा मूल्य निर्धारण एवं आपूर्ति सुरक्षा सुनिश्चित होगी। 
    • घरेलू सौर, पवन और हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन को सुदृढ़ करने से जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम होगी एवं संवहनीयता बढ़ेगी। 
    • स्वच्छ ऊर्जा और बैटरी भंडारण में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने से भारत को हरित अर्थव्यवस्था में बदलने में मदद मिलेगी। 
  • कृषि व्यापार को सुदृढ़ बनाना और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भूमिका बढ़ाना: भारत को अपने कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण करना चाहिये और घरेलू किसानों को अनुचित व्यापार बाधाओं से बचाते हुए कृषि-निर्यात को बढ़ावा देने के लिये अनुकूल व्यापार शर्तों पर वार्ता करनी चाहिये।
    • कृषि-तकनीक, शीत भंडारण अवसंरचना और कृषि मशीनीकरण में निवेश से उत्पादकता एवं निर्यात गुणवत्ता में सुधार होगा। 
    • विकसित देशों द्वारा दी जा रही अनुचित सब्सिडी और प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियों का मुकाबला करने के लिये विश्व व्यापार संगठन की वार्ता को सुदृढ़ करने से भारतीय किसानों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
      • संधारणीय कृषि पद्धतियों और निर्यातोन्मुखी कृषि को बढ़ावा देने से भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा में अग्रणी बन सकता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करना और औद्योगिक नीति को सुदृढ़ बनाना: भारत को उच्च विकास वाले क्षेत्रों में वैश्विक पूंजी आकर्षित करने के लिये एक पूर्वानुमानित, निवेशक-अनुकूल विनियामक वातावरण बनाने की आवश्यकता है।
    • भूमि अधिग्रहण, कराधान नीतियों एवं श्रम कानूनों को सरल बनाने से विदेशी कंपनियों को भारत में विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
    • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संरक्षण को दृढ़ करने तथा इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस सुनिश्चित करने से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा। 
    • विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) और औद्योगिक गलियारों के विस्तार से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी विनिर्माण केंद्रों का निर्माण होगा। 
  • वैश्विक झटकों के विरुद्ध वित्तीय और मौद्रिक समुत्थानशक्ति को सुदृढ़ करना: भारत को सुदृढ़ विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखते हुए, मुद्रास्फीति का प्रबंधन करते हुए तथा अपने व्यापार मुद्रा बास्केट में विविधता लाते हुए व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करनी चाहिये।
    • भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने और व्यापार निपटान के लिये अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने से आर्थिक संप्रभुता बढ़ेगी।
    • रुपया आधारित व्यापार समझौतों के माध्यम से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार निपटान तंत्र को सुदृढ़ करने से मुद्रा अस्थिरता के जोखिम कम हो जाएंगे। 
      • फिनटेक नवाचारों और डिजिटल बैंकिंग को प्रोत्साहित करने से वित्तीय समावेशन एवं बाहरी वित्तीय झटकों के प्रति समुत्थानशक्ति में वृद्धि होगी।

निष्कर्ष: 

संरक्षणवाद की ओर तीव्रता से बढ़ रहे विश्व में, भारत को बाज़ार अभिगम बढ़ाने, वैश्विक मूल्य शृंखलाओं को सुदृढ़ करने और निवेश आकर्षित करने के लिये FTA का रणनीतिक रूप से लाभ उठाना चाहिये। वैश्विक व्यापार व्यवधानों से निपटने के लिये घरेलू उद्योग संरक्षण और व्यापार उदारीकरण के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है। विनिर्माण को मज़बूत करना, अनुकूल व्यापार शर्तों पर वार्ता करना और आर्थिक कूटनीति को बढ़ावा देना भारत को अपने भू-आर्थिक हितों को सुरक्षित करने में मदद करेगा। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत की व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने में FTA की भूमिका पर चर्चा कीजिये। भारत अपने साझेदार अर्थव्यवस्थाओं में संरक्षणवादी उपायों से उत्पन्न जोखिमों को किस प्रकार कम कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. निरपेक्ष तथा प्रति व्यत्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करतीं, यदि  (2018)

(a)    औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b)    कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c)    निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d)    निर्यातों की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं।

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2.  कनाडा
  3.  चीन
  4.  भारत
  5.  जापान
  6.  यू.एस.ए.

उपर्युत्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुक्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं?

(a)1, 2, 4 और 5    
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5   
(d) 2, 3, 4 और 6

उत्तर: (c)

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