भारतीय अर्थव्यवस्था
आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका
- 18 Sep 2019
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महिलाओं की भूमिका तथा उनके समक्ष विद्यमान चुनौतियों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
पिछले कुछ दिनों में वित्त मंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक से केंद्र को 1.76 लाख करोड़ रुपए के हस्तांतरण से लेकर राज्य स्वामित्व वाले बैंकों के वृहत विलय तक कई व्यापक कदम उठाए हैं। इसके बावजूद वित्त मंत्री के कार्यों को सृजनकर्त्ताओं की सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो सकी है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्तमान परिदृश्य
- चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 5 प्रतिशत रह गई, जो छह वर्षों में सबसे निम्न स्तर है।
- पिछले 15 महीनों में विनिर्माण का विस्तार अपनी सबसे सुस्त गति से हुआ।
- विदेशी निवेशकों पर आरोपित एक अविवेचित शुल्क को तत्परता से वापस ले लेने के बावजूद बाज़ार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के पलायन की आशंका जता रहे हैं।
- डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्य में गिरावट के बावजूद निर्यात में तेज़ी के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। जुलाई में निर्यात में मात्र 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
आर्थिक सुधारों की विफलता का कारण
विकास को बढ़ावा देने के लिये जिन ‘सुधारों’ की घोषणा की गई है, वे लक्ष्य प्राप्त करने में बिल्कुल ही विफल रहे हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि अधिकांश सुधार वास्तव में अतीत की कुछ गलतियों में किया गया सुधार है (जैसे कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा CSR व्यय को पूरा करने में विफलता को गैर-आपराधिक बनाना, यद्यपि यह अभी भी एक नागरिक दायित्व बना हुआ है और इसलिये कॉरपोरेट लाभ पर अप्रत्यक्ष रूप से कर लगाया गया है) अथवा कुछ ऐसे नियंत्रणों में छूट दी गई है जिन नियंत्रणों का लागू होना आरंभ से ही उपयुक्त नहीं था (जैसे ई-कॉमर्स और सिंगल-ब्रांड रिटेल पर आरोपित नियंत्रण)। यहाँ तक कि प्रत्यक्ष कार्रवाई, जैसे कि सरकारी विभागों को नई गाड़ियाँ खरीदने की अनुमति देना, ऑटोमोबाइल क्षेत्र को अपनी मौजूदा भारी मंदी से बाहर निकलने में शायद ही कोई मदद कर सके।
अर्थव्यवस्था को विकास के पथ पर लाने हेतु विकल्प
निस्संदेह अर्थव्यवस्था को विकास के पथ पर लाने के लिये कुछ उपाय किये जा सकते हैं:
- एक सार्थक कर रियायत के माध्यम से उपभोक्ताओं के हाथों में कुछ वास्तविक धनराशि का हस्तांतरण करें अथवा
- उपभोग को गंभीरता से प्रोत्साहित किया जाए (जैसा कि वर्षों पहले होम फाइनेंस पर कर कटौती ने रियल एस्टेट में उछाल को प्रोत्साहित किया था) अथवा
- एक वृहत आय हस्तांतरण योजना (जैसे यूनिवर्सल बेसिक इनकम) की शुरुआत की जाए।
लेकिन समस्या यह है कि भले ही हम एक महत्त्वाकांक्षी मध्यम-आय वाले देश हैं, हमारा कर संग्रह उस स्तर का नहीं हैं जो इस तरह के व्यापक लाभ प्रदान करने के लिये आवश्यक है। एक ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था संरचनात्मक और चक्रीय, दोनों तरह की समस्याओं से ग्रस्त है, यह कह पाना मुश्किल है कि आवश्यक वित्त उपलब्ध होने के बावजूद उपरोक्त में से कोई उपाय काम आता है अथवा नहीं।
अन्य कौन से सुधार किये जा सकते हैं?
- संभवतः यह उपयुक्त समय है जब हमारे नीति निर्माताओं को तात्कालिक और अल्पकालिक सुधारों का पीछा करना बंद कर देना चाहिये और इसके बजाय कुछ अन्य दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान देना चाहिये जिससे विकास के स्तर में स्थायी और निरंतर वृद्धि हो सकती है।
- सरकार द्वारा किये जाने वाले दो बड़े सुधार ये हो सकते हैं कि प्रत्यक्ष कर संहिता का पुनर्निर्माण किया जाए और वस्तु एवं सेवा कर की खामियों को दूर किया जाए।
आँकड़ों में असमानता
- हमारे पास सबसे बड़े संसाधन का एक ही विकल्प बचता है वह है– मानव संसाधन। शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल में प्रणालीगत विफलताओं के कारण भारत के कथित बड़े जनसांख्यिकीय लाभांश का दक्षतापूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है और प्रत्येक वर्ष कार्यबल में शामिल होने योग्य लाखों युवा बेरोज़गार ही रह जाते हैं।
- ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे आकर्षक नारे के बावजूद जनसांख्यिकीय लाभांश के सबसे बड़े घटक- महिलाओं को अभी तक अधिकांशतः उपेक्षित ही रखा गया है। यू.एन. इंडिया बिज़नेस फोरम की फैक्टशीट के निम्नलिखित आँकड़ों पर विचार विचार किया जाना चाहिये जो लैंगिक परिदृश्य पर प्रकाश डालते हैं:
- सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं के योगदान के मामले में वैश्विक औसत 37 प्रतिशत की तुलना में भारत में महिलाओं का योगदान मात्र 17 प्रतिशत है।
- यदि महिलाएँ भी पुरुषों के समान अर्थव्यवस्था में भागीदारी करें तो इससे वर्ष 2025 तक भारत की वार्षिक जीडीपी में 2.9 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धिहो सकती है।
- केवल 14 प्रतिशत भारतीय व्यवसाय महिलाओं द्वारा संचालित हैं। भारत में महिलाओं द्वारा किये गए 51 प्रतिशत से अधिक कार्य अवैतनिक हैं और 95 प्रतिशत कार्य अनौपचारिक/असंगठित हैं।
- कृषि श्रम में महिला कृषकों की संख्या 38.87 प्रतिशत है, लेकिन अभी तक भारत में केवल 9 प्रतिशत भूमि पर उनका नियंत्रण है, जबकि 60 प्रतिशत महिलाओं (पुरुषों के अनुपात का दोगुना) के नाम पर भूमि या आवास जैसी कोई मूल्यवान संपत्ति नहीं है।
कृषि में महिलाएँ
10वीं कृषि जनगणना (2015-16) के अनुसार, कृषि में महिलाओं का परिचालन स्वामित्त्व वर्ष 2010-11 के 13% से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 14% हो गया है।
महिला किसानों की चुनौतियाँ
- भूमि पर स्वामित्व का अभाव
- वित्तीय ऋण तक पहुँच का अभाव
- संसाधनों और आधुनिक उपकरणों का अभाव
- कम वेतन के साथ कार्य का अत्यधिक बोझ
आगे की राह
- महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित कर उन्हें सक्षम बनाने वाले नीतिगत ढाँचे का निर्माण किया जाना चाहिये, जहाँ महिलाओं के समक्ष आने वाली लैंगिक बाधाओं के प्रति सक्रिय जागरूकता मौजूद हो। इस क्रम में लैंगिक असमानता को दूर करने वाली प्रभावी नीतियों को विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
- यदि महिलाएँ आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर हों तो इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। उदाहरण के लिये, 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं के पास सेलफोन नहीं है और 80 प्रतिशत सेलफोन उपयोगकर्त्ता महिलाओं के पास इंटरनेट तक पहुँच की कमी है (वर्ष 2016 का आँकड़ा)। अगर महिलाओं के पास भी पुरुषों के समान ही समुचित संख्या में फोन हों तो यह अकेले ही अगले पाँच वर्षों में फोन कंपनियों के लिये 17 बिलियन डॉलर का राजस्व पैदा कर सकता है। इसके लिये शिक्षा और कौशल विकास प्रणाली में महिलाओं की उपस्थिति में भी महत्त्वपूर्ण सुधार करना होगा। डेलॉइट (Deloitte) के एक अध्ययन, जिसमें भारत के लैंगिक असंतुलन के निवारण के लिये चतुर्थ औद्योगिक क्रांति (Industry 4.0) की क्षमता पर विचार किया गया था, में भी लगभग यही निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया।
निष्कर्ष:
महिलाओं के समक्ष विद्यमान निराशाजनक आर्थिक असमानता के परिदृश्य में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है क्योंकि वे अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान दे सकती हैं। भारत की महिलाओं की क्षमताओं को उजागर किये जाने से ही भारत की आर्थिक क्षमता को पूर्ण रूप से साकार किया जा सकता है।
प्रश्न: क्या आप इस बात से सहमत हैं कि भारत का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय लाभांश इसकी महिलाओं में निहित है, लेकिन इस क्षमता का अब तक उपयोग नहीं किया गया है। अपने उत्तर के पक्ष में उचित तर्क प्रस्तुत कीजिये।