ईरान-इज़राइल संघर्ष: मध्य पूर्व में अस्थिरता | 22 Apr 2024

यह एडिटोरियल 17/04/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Step back: On Iran-Israel tensions” पर आधारित है। इसमें इज़राइल पर ईरान के ड्रोन एवं मिसाइल हमले के बाद अस्थिर पश्चिम एशिया क्षेत्र में तनाव की वृद्धि से संबद्ध भू-राजनीतिक चिंताओं के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

ईरान, इज़राइल, मध्य पूर्व, 1979 की इस्लामिक क्रांति, स्टक्सनेट (Stuxnet), गाजा पट्टी, लाल सागर संकट, इज़राइली वायु रक्षा प्रणाली, ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन), टू स्टेट समाधान, खाड़ी सहयोग परिषद, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA)

मेन्स के लिये:

ईरान और इज़राइल के बीच संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, प्रमुख घटनाएँ जिनके कारण ईरान ने इज़राइल पर हमला किया, ईरान-इज़राइल संघर्ष का विश्व पर प्रभाव

ईरान ने 170 ड्रोन, क्रूज़ मिसाइलों और 120 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलों सहित 300 से अधिक प्रोजेक्टाइल के साथ इज़राइल पर एक गंभीर हमला किया। ईरान की इस कार्रवाई को व्यापक रूप से सीरिया के दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर इज़राइल के घातक हमले के प्रतिशोध के रूप में देखा गया।

यह हमला इज़राइल और हमास से संबद्ध पिछली झड़पों से आगे बढ़ते हुए इज़राइल और ईरान के बीच जारी संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण वृद्धि का संकेत देता है। यह घटना मध्य-पूर्व के दो प्रबल विरोधियों के बीच बढ़ते तनाव को उजागर करती है और क्षेत्र में आगे संघर्ष बढ़ने की संभावना को रेखांकित करती है।

ईरान और इज़राइल के बीच संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

  • वर्ष 1979 से पूर्व के ईरान-इज़राइल संबंध:
    • वर्ष 1948 में इज़राइल के गठन के बाद ईरान इस क्षेत्र के उन पहले देशों में से एक था जिसने इज़राइल को मान्यता दी थी।
    • वर्ष 1948 में ही अरब राज्यों द्वारा इज़राइल के विरोध के कारण पहला अरब-इज़राइल युद्ध छिड़ गया। ईरान उस संघर्ष का भागीदार नहीं बना था और इज़राइल की जीत के बाद उसने नवगठित यहूदी राज्य के साथ अपने संबंध स्थापित किये।
    • ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट (Brookings Institute) के एक विश्लेषण के अनुसार, इज़राइल ने अपने पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन (David Ben Gurion) के नेतृत्व में मध्य-पूर्व में गैर-अरब (मुख्य रूप से मुस्लिम देशों) के साथ गठबंधन का निर्माण कर अरब शत्रुता का मुक़ाबला करने के लिये ‘परिधि सिद्धांत’ (periphery doctrine) को अपनाया। यह रणनीति तुर्की और ईरान (क्रांति से पूर्व का ईरान) जैसे देशों के साथ साझेदारी बनाने पर केंद्रित थी, जो पश्चिम-समर्थक रुझान साझा करते थे और इस क्षेत्र में अलग-थलग महसूस करते थे।
    • मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी, जिसने वर्ष 1941 से 1979 तक ईरान पर शासन किया था, ने पश्चिम समर्थक विदेश नीति (pro-Western foreign policy) अपनाई। अरब देशों से आर्थिक बहिष्कार का सामना करने के बावजूद ईरान ने इज़राइल के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखे और इस अवधि के दौरान इज़राइल को तेल की बिक्री करना भी जारी रखा।
  • वर्ष 1979 की क्रांति:
    • वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति में शाह की सत्ता को उखाड़ फेंकने के बाद ईरान में एक धार्मिक राज्य की स्थापना हुई। इसके साथ ही इज़राइल के प्रति शासन का दृष्टिकोण बदल गया और इसे फ़िलिस्तीनी भूमि पर कब्ज़ा करने वाले आक्रामक देश के रूप में देखा जाने लगा।
    • ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी (Ayatollah Khomeini) ने इज़राइल और संयुक्त राज्य अमेरिका को क्षेत्र में हस्तक्षेप करने वाले पक्षों के रूप में चिह्नित करते हुए इन्हें क्रमशः ‘छोटा शैतान’ और ‘बड़ा शैतान’ कहा।
    • ईरान ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का भी प्रयास किया जहाँ क्षेत्र की दो प्रमुख शक्तियों सऊदी अरब और इज़राइल (जहाँ दोनों अमेरिकी सहयोगी थे) को चुनौती दी।
  • वर्ष 1979 के बाद एक ‘छाया युद्ध’ (Shadow War):
    • इसके परिणामस्वरूप देशों के संबंध और बिगड़ गए। उल्लेखनीय है कि इज़राइल और ईरान कभी भी प्रत्यक्ष सैन्य टकराव में संलग्न नहीं हुए हैं, लेकिन दोनों ने छद्म आभिकर्ताओं (proxies) और सीमित रणनीतिक हमलों के माध्यम से एक दूसरे को क्षति पहुँचाने का प्रयास किया है।
    • वर्ष 2010 के दशक की शुरुआत में इज़राइल ने ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने के लिये उसके कई प्रतिष्ठानों और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया।
    • माना जाता है कि वर्ष 2010 में अमेरिका और इज़राइल द्वारा एक दुर्भावनापूर्ण कंप्यूटर वायरस ‘स्टक्सनेट’ (Stuxnet) विकसित किया था। इसका उद्देश्य ईरान के नैटान्ज़ (Natanz) परमाणु स्थल पर अवस्थित यूरेनियम संवर्द्धन प्रतिष्ठान पर हमला करना था। इसे किसी औद्योगिक मशीनरी पर पहले सार्वजनिक रूप से ज्ञात साइबर हमले के रूप में देखा गया।
    • दूसरी ओर, ईरान को इस क्षेत्र में कई आतंकवादी समूहों—जैसे लेबनान में हिजबुल्लाह और गाज़ा पट्टी में हमास, के वित्तपोषण और समर्थन के लिये ज़िम्मेदार माना जाता है जो इज़राइल और अमेरिका विरोधी समूह हैं।
    • इस समर्थन के कारण ही पिछले कुछ माहों से एक व्यापक संघर्ष या टकराव की चिंताएँ व्यक्त की जा रही थीं।

ईरान द्वारा इज़राइल पर हमले के पीछे के प्रमुख घटनाक्रम

  • ईरान के परमाणु समझौते से अमेरिका का पीछे हटना: इज़राइल एवं अन्य विश्व शक्तियों द्वारा ईरान के परमाणु समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने के लिये कई वर्षों से पैरोकारी की जा रही थी और वर्ष 2018 में अंततः अमेरिका के पीछे हटने के डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय की ‘एक ऐतिहासिक कदम’ के रूप में सराहना की गई।
  • ईरान के सैन्य जनरल की हत्या: वर्ष 2020 में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की विदेशी शाखा के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की बगदाद में अमेरिकी ड्रोन हमले द्वारा हत्या का इज़राइल ने स्वागत किया। तब ईरान ने अमेरिकी सैन्य उपस्थिति वाले इराकी ठिकानों पर मिसाइल हमले कर जवाबी प्रतिक्रिया दी थी।
  • हमास द्वारा मिसाइल हमला: अक्टूबर 2023 में ईरान समर्थित फ़िलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास ने इज़राइल पर मिसाइल हमला किया। इसके जवाब में इज़राइल ने गाज़ा पर हवाई हमले किये।
  • इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीन के चिकित्सा प्रतिष्ठानों पर छापे और हमले: नवंबर 2023 में इज़राइल ने फ़िलिस्तीन के चिकित्सा प्रतिष्ठानों पर छापे मारने और हमले करने शुरू कर दिये क्योंकि हमास कथित रूप से इन अस्पताल भवनों का इस्तेमाल करते हुए युद्ध को आगे बढ़ा रहा था।
  • ‘लाल सागर संकट’: नवंबर 2023 में यमन के ईरान समर्थित हूती (Houthi) समूह ने गैलेक्सी लीडर मालवाहक जहाज़ पर तब अपना हेलीकॉप्टर उतारा जब वह लाल सागर से गुज़र रहा था। इसने ‘लाल सागर संकट’ ('Red Sea Crisis) की शुरुआत को चिह्नित किया, जिसने अंततः आपूर्ति शृंखला के मुद्दों को जन्म दिया।
  • इज़राइल की ज़मीनी कार्रवाइयों में वृद्धि: दिसंबर 2023 में गाज़ा पट्टी में इज़राइल की ज़मीनी कार्रवाइयों (छापे और हमले) में तेज़ वृद्धि हुई। इससे हताहतों और शरणार्थियों की संख्या बढ़ी। भारत ने दोनों युद्धरत पक्षों के बीच ‘शीघ्र एवं स्थायी समाधान’ का आह्वान किया।
  • ईरानी दूतावास पर हवाई हमला: दमिश्क (सीरिया) में ईरानी दूतावास परिसर में एक संदिग्ध हवाई हमले में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड के दो वरिष्ठ कमांडरों सहित सात अधिकारी मारे गए। इज़राइल ने इस हमले की न तो ज़िम्मेदारी ली, न ही इसमें संलिप्तता से इनकार किया।
  • ईरान द्वारा इज़राइल पर मिसाइल हमला: अप्रैल 2024 में ईरान ने इज़राइल पर मिसाइल हमला किया। यह हमला कथित रूप से सीरिया में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर संदिग्ध इज़राइली हमले की प्रतिक्रिया में किया गया। यह ईरान द्वारा अपने घरेलू क्षेत्र से प्रत्यक्ष रूप से इज़राइल को निशाना बनाने का पहला उदाहरण है।
  • इज़राइल की बहुस्तरीय वायु रक्षा: इज़राइल रक्षा बल (IDF) ने दावा किया कि इज़राइली वायु रक्षा प्रणाली ने ईरान से आने वाले 99% प्रोजेक्टाइल को ‘इंटरसेप्ट’ या अवरुद्ध कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस और अन्य मध्य-पूर्वी सहयोगियों ने भी इज़राइल की रक्षा में मदद की।

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ईरान-इज़राइल युद्ध का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

  • संभावित इज़रायली प्रतिक्रिया से क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है:
    • इज़राइल की व्यापक रूप से मौजूद इस धारणा को देखते हुए कि परमाणु-सशस्त्र ईरान इज़राइल के अस्तित्व के लिये एक संभावित खतरा है, उसके द्वारा प्रतिशोध की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता।
    • तनाव कम करने या शांतिपूर्ण समाधान के लिये संवाद के कूटनीतिक प्रयासों की विफलता के बाद फिर सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प बचेगा, जिससे क्षेत्रीय तनाव वृद्धि की संभावना बढ़ जाएगी।
  • तेल आपूर्ति बाधित होने की संभावना:
    • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ‘ओपेक (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) के भीतर ईरान कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। अगर ईरान और इज़राइल के बीच तनाव और बढ़ा तो कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित हो जाएगी।
    • इससे भारतीय शेयर बाज़ार प्रभावित होगा क्योंकि भारत कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता एवं आयातक देश है, जो अपनी कच्चे तेल की ज़रूरतों का 80% से अधिक आयात से पूरा करता है।
  • मुद्रास्फीति और पूंजी बहिर्प्रवाह में वृद्धि:
    • यदि भू-राजनीतिक तनाव बढ़ता है तो आपूर्ति में व्यवधान के कारण कमोडिटी की कीमतें बढ़ जाएँगी। वैश्विक स्तर पर, भू-राजनीतिक तनाव के कारण मुद्रास्फीति उच्च बनी रहेगी क्योंकि इससे कच्चे तेल की कीमतें और तांबा, जस्ता, एल्युमीनियम, निकेल आदि अन्य वस्तुओं की कीमतें प्रभावित होंगी।
    • इन चिंताओं के परिणामस्वरूप निवेशक अधिक सतर्क हो जाएँगे और वे अपना पैसा भारतीय शेयरों जैसी जोखिमपूर्ण आस्तियों से निकालकर स्वर्ण (बुलियन) जैसे सुरक्षित विकल्पों में लगाने के लिये प्रेरित हो सकते हैं।
    • कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिये लाभप्रदता की कमी और अनिश्चिता की वृद्धि से बॉण्ड की कीमतें गिर सकती हैं, कंपनियों के लिये ऋण की लागत बढ़ सकती है और शेयर बाज़ार लुढ़क सकते हैं।
  • व्यापार और यात्रा व्यवधान:
    • तेल कीमतों के प्रभावित होने के अलावा, इज़राइल-ईरान युद्ध की संभावना से व्यापार और यात्रा क्षेत्र भी प्रभावित हो सकते हैं। विमानन और शिपिंग क्षेत्र में भी व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
    • वस्तुतः ईरान, जॉर्डन, इराक़, लेबनान और इज़राइल सहित क्षेत्र के कई देशों ने अस्थायी रूप से अपने हवाई क्षेत्र बंद भी कर दिए थे, जिन्हें बाद में नियंत्रणों के साथ पुनः खोला गया।
    • विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान-इज़राइल के बीच नवीन तनाव के मद्देनजर यूरोप में भारत का निर्यात बाधित होगा।
  • भारत की रणनीतिक दुविधा:
    • ईरान और इज़राइल दोनों के साथ भारत के दीर्घकालिक रणनीतिक संबंध नीति और परिचालन दोनों मोर्चों पर इसके लिये चुनौतियाँ पेश करते हैं।
    • भारत इज़राइल के साथ अपनी रणनीतिक भागीदारी को महत्त्व देता है, जिसमें रक्षा सहयोग, प्रौद्योगिकी आदान-प्रदान और खुफिया सूचना की साझेदारी शामिल है। इसके साथ ही भारत ईरान के साथ ऐतिहासिक एवं आर्थिक संबंध रखता है, जिसमें ऊर्जा आयात और आधारभूत संरचना परियोजनाएँ भी शामिल हैं।
    • भारत ऊर्जा सुरक्षा और प्रवासी भारतीयों के कल्याण सहित अपने विभिन्न हितों की रक्षा के लिये मध्य-पूर्व में स्थिरता की इच्छा रखता है।

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ईरान-इज़राइल संघर्ष को कम करने के संभावित समाधान क्या हो सकते हैं?

  • संवहनीय युद्धविराम और दो-राज्य समाधान:
    • इज़राइल को जल्द से जल्द गाज़ा में एक संवहनीय युद्धविराम को स्वीकार करना चाहिये, गाज़ा के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहायता हेतु इसकी सीमाएँ खोलनी चाहिये और टू-स्टेट समाधान (Two-State Solution) को साकार करने के रूप में 70 वर्ष पुराने संकट को समाप्त करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का सम्मान करना चाहिये।
    • क्षेत्र में दीर्घकालिक सुरक्षा, शांति एवं स्थिरता के लिये दो-राज्य समाधान ही एकमात्र संभव विकल्प है। यह कोई आसान लक्ष्य नहीं है, लेकिन दोनों पक्ष इससे संबद्ध चुनौतियों और अवसरों से परिचित हैं।
  • संवाद और कूटनीति:
    • इज़राइल और ईरान के बीच एक संवहनीय युद्धविराम के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पहल को मध्यस्थता करनी चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थों की सहायता से दोनों देशों को प्रत्यक्ष संवाद में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करने से विश्वास और सहमति निर्माण में मदद मिल सकती है।
    • यूरोपीय संघ (EU) या संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसे तटस्थ तीसरे पक्ष की सहायता से ईरान और इज़राइल प्रत्यक्ष वार्ता में शामिल हो सकते हैं।
  • परमाणु प्रसार संबंधी चिंताओं को संबोधित करना:
    • ईरान, संयुक्त व्यापक कार्य योजना (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) की शर्तों का पालन करने और समझौते का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु  अपने परमाणु प्रतिष्ठानों के अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति देने के रूप में आगे कदम बढ़ा सकता है।
    • बदले में, इज़राइल ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के अधिकार को मान्यता प्रदान कर सकता है और ईरानी परमाणु सुविधाओं के विरुद्ध सैन्य हमलों से बचने की प्रतिबद्धता जता सकता है।
  • क्षेत्रीय सहयोग:
    • अरब लीग और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) जैसे क्षेत्रीय संगठनों के ढाँचे के भीतर ईरान और इज़राइल के बीच सहयोग को बढ़ावा देने से साझा सुरक्षा चिंताओं को दूर करने तथा मध्य-पूर्व में स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
    • मध्य-पूर्व में सभी हितधारकों की चिंताओं को संबोधित करने वाले एक व्यापक क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना के विकास से स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा तथा ईरान और इज़राइल के बीच संघर्ष की संभावना को कम किया जा सकेगा।
  • मध्य-पूर्व के लिये दीर्घकालिक दृष्टिकोण:
    • क्षेत्रीय शक्तियाँ मध्य-पूर्व के लिये एक व्यापक सुरक्षा संरचना स्थापित करने के लिये मिलकर कार्य कर सकती हैं, जिसमें विश्वास-निर्माणकारी उपाय, हथियार नियंत्रण समझौते और संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिये तंत्र शामिल होंगे।
    • ऐतिहासिक शिकायतों, क्षेत्रीय विवादों और धार्मिक अतिवाद जैसे अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने से शांति एवं सुलह के लिये अनुकूल माहौल का निर्माण करने में मदद मिल सकती है।
  • संबंधों का सामान्यीकरण:

निष्कर्ष

मध्य-पूर्व में जारी अस्थिरता का असर ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) और वैश्विक शासन (Global Governance) तक विस्तृत है। इसलिये, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि वह सभी पक्षों से हिंसा से दूर रहने और समाधान के लिये राजनयिक वार्ता को प्राथमिकता देने का आग्रह करे। दीर्घकालिक अस्थिरता को रोकने और क्षेत्र के संकट को कम करने के लिये उत्तरदायी और संतुलित नीतियों को अपनाना आवश्यक है।

अभ्यास प्रश्न: वैश्विक शांति और स्थिरता पर ईरान-इज़राइल संघर्ष के संभावित प्रभावों पर चर्चा कीजिये। मध्य-पूर्व क्षेत्र में दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भूमध्य सागर निम्नलिखित में से किस देश की सीमा है? (2017)

  1. जॉर्डन
  2.  इराक
  3.  लेबनान
  4.  सीरिया

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3 और 4
(d) केवल 1, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक नहीं फैला है? (2015)

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़रायल

उत्तर: (b)


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में "टू स्टेट सॉल्यूशन" शब्द का उल्लेख किस संदर्भ में किया जाता है? (2018)

(a) चीन
(b) इज़राइल
(c) इराक
(d) यमन

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018)