अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाएँ | 19 Sep 2024

यह संपादकीय 18/09/2024 को द हिंदू बिजनेस लाइन में प्रकाशित “ Securing India’s semiconductor future ” पर आधारित है। यह लेख आयात पर निर्भरता कम करने और अर्द्धचालक मिशन और PLI योजना द्वारा संचालित राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये स्वदेशी अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने के लिये भारत के सामरिक प्रयास पर प्रकाश डालता है। यद्यपि, उच्च निवेश लागत और संसाधन प्रबंधन के मुद्दे जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, परंतु वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य शृंखला में स्थान सुरक्षित करने के लिये यह प्रयास महत्त्वपूर्ण है।

प्रिलिम्स के लिये:

अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्रअर्द्धचालक मिशन , उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना, सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम, अभिकल्प संबद्ध प्रोत्साहन (DLI) योजना , 5G, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, विशेष आर्थिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत में अर्द्धचालक उद्योग की वर्तमान स्थिति, अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाएँ में प्रमुख बाधाएँ।

भारत आयात पर निर्भरता कम करने और वैश्विक आपूर्ति शृंखला के दोषों को कम करने की आवश्यकता से प्रेरित होकर स्वदेशी अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिये एक सामरिक प्रयास कर रहा है। सरकार ने वर्ष 2021 में 10 बिलियन अमरीकी डालर के निवेश के साथ अर्द्धचालक मिशन शुरू किया है। यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर रक्षा और दूरसंचार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। हाल के भू-राजनीतिक तनाव और कोविड-19 महामारी ने विदेशी अर्द्धचालक आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भरता के जोखिमों को प्रकट किया है, विशेष रूप से ताइवान, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से।

जबकि भारत ने उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी पहलों के साथ प्रगति की है, फिर भी महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। अर्द्धचालक संविरचन संयंत्र स्थापित करना पूंजी-प्रकृष्ट है, जिसके लिये अरबों डॉलर के निवेश की आवश्यकता होती है एवं संसाधन प्रबंधन की चुनौतियाँ प्रकट होती हैं, विशेष रूप से जल उपयोग के संबंध में। इन बाधाओं के बावजूद, अर्द्धचालक में भारत का कदम एक दीर्घकालिक सामरिक प्रयास है जिसका उद्देश्य वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य शृंखला में अपना स्थान सुनिश्चित करना और तकनीकी आत्मनिर्भरता में वृद्धि करना है।

भारत में अर्द्धचालक उद्योग की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • भारत में अर्द्धचालक उद्योग की वर्तमान स्थिति
    • वर्ष 2022 के बाज़ार का आकार: 26.3 बिलियन अमरीकी डॉलर
    • अनुमानित वृद्धि: वर्ष 2032 तक 26.3% की CAGR के साथ 271.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • आयात-निर्यात परिदृश्य
    • आयात:
      • वर्ष 2021: 5.36 बिलियन अमरीकी डॉलर
      • भारत शुद्ध आयातक बना हुआ है, यद्यपि निर्भरता कम करने के प्रयास जारी हैं।
    • निर्यात:
      • वर्ष 2022: 0.52 बिलियन अमेरिकी डॉलर (अब तक का उच्चतम)।
  • सरकारी पहल
    • भारत अर्द्धचालक मिशन (ISM): एक सुदृढ़ अर्द्धचालक और प्रदर्श पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने के लिये डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन के तहत एक समर्पित प्रभाग।
      • अर्द्धचालक संविरचन संयंत्र और प्रदर्श संविरचन संयंत्र के लिये परियोजना लागत का 50% राजकोषीय समर्थन।
    • सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम : अर्द्धचालक और प्रदर्श विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये ₹76,000 करोड़ ($9.2 बिलियन) के आवंटन के साथ दिसंबर 2021 में शुरू किया गया।
      • आगे के विकास को समर्थन देने हेतु वित्त वर्ष 24 के लिये बजट बढ़ाकर ₹ 6,903 करोड़ ($ 833.7 मिलियन) कर दिया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • यूरोपीय संघ-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद के हिस्से के रूप में अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के लिये यूरोपीय आयोग के साथ समझौता ज्ञापन।
    • दोनों देशों के बीच अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता में वृद्धि हेतु जापान के साथ सहयोग ज्ञापन पर हस्ताक्षर।

भारत के लिये अर्द्धचालक का क्या महत्त्व है? 

  • आर्थिक विकास और औद्योगिक विकास: अर्द्धचालक भारत के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र में। 
    • वैश्विक अर्द्धचालक बाज़ार वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है और भारत का लक्ष्य इसमें महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी प्राप्त करना है। 
    • वर्ष 2021 में शुरू किये गए सरकार के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अर्द्धचालक मिशन से 35,000 उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियाँ और 100,000 लोगों के लिये अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजन की उम्मीद है। 
    • सफल कार्यान्वयन से वर्ष 2026 तक भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है। 
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता: अर्द्धचालक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से रक्षा और दूरसंचार क्षेत्रों में। 
    • राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता में अर्द्धचालकों की भूमिका लगातार महत्त्वपूर्ण होती जा रही है, क्योंकि ये छोटे इलेक्ट्रॉनिक घटक स्मार्टफोन तथा कंप्यूटर से लेकर उन्नत सैन्य प्रणालियों और महत्त्वपूर्ण अवसंरचना तक, हर चीज को शक्ति प्रदान करते हैं।
    • स्वदेशी अर्द्धचालक क्षमताओं का विकास करके भारत महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों और सुरक्षित संचार नेटवर्क के लिये स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है। 
  • तकनीकी आत्मनिर्भरता और नवाचार: एक सुदृढ़ अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने से भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। 
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला एकीकरण: भारत की अर्द्धचालक पहल का उद्देश्य देश को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति शृंखला में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करना है। 
    • वर्तमान में, भारत वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण मूल्य शृंखला में केवल 3% का योगदान देता है।
    • उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) सहित सरकार की नीतियाँ वैश्विक अभिकर्त्ताओं को आकर्षित करने और भारत को अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति नेटवर्क में एकीकृत करने के लिये तैयार की गई हैं। 
  • रोज़गार सृजन और कौशल विकास: अर्द्धचालक उद्योग, यद्यपि पूंजी-प्रकृष्ट है, परंतु इसमें भारत में उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियाँ सृजित करने और कौशल विकास को बढ़ावा देने की क्षमता है। 
    • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इससे अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में कुशल कार्यबल के विकास को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • चिप अभिकल्पना, नैनोफैब्रिकेशन और उन्नत पैकेजिंग जैसे क्षेत्रों में विशेष कौशल की उद्योग की आवश्यकताओं से भारतीय संस्थानों में STEM शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा मिलने की संभावना है। 

अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाएँ में प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?

  •  अवसंरचना की चुनौतियाँ: भारत के विशाल भौगोलिक क्षेत्र और असमान विकास ने अर्द्धचालक उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। 
    • विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति का अभाव, जल की कमी और अपर्याप्त परिवहन सुविधाएँ अर्द्धचालक विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना और संचालन में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, हाल ही में वर्ष 2024 में भारत में हीटवेब के दौरान, कई क्षेत्रों में विद्युत् आपूर्ति की कमी का अनुभव हुआ, जिससे अर्द्धचालक विनिर्माण सहित औद्योगिक गतिविधियाँ प्रभावित हुईं।
  • प्रतिभा की कमी: अर्द्धचालक उद्योग को विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि चिप अभिकल्पना, विनिर्माण और परीक्षण में विशेषज्ञता वाले अत्यधिक कुशल पेशेवरों की आवश्यकता होती है।
    • भारत में अभियांत्रिकी प्रतिभाओं की विशाल उपलब्धता के बावजूद अर्द्धचालक विशेषज्ञों की कमी है। 
      • एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि भारत को वर्ष 2027 तक 250,000 से 300,000 अर्द्धचालक पेशेवरों की कमी का सामना करना पड़ेगा।
    • यह अंतर एक सुदृढ़ अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है और वैश्विक अर्द्धचालक निर्माताओं को आकर्षित करने की देश की क्षमता को सीमित कर सकता है।
  • उच्च विनिर्माण लागत: अर्द्धचालक विनिर्माण एक पूंजी-प्रकृष्ट उद्योग है जिसकी परिचालन लागत उच्च है। 
    • भारत में अर्द्धचालक निर्माण संयंत्र स्थापित करने और परिचालन लागत ताइवान, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे स्थापित विनिर्माण केंद्रों की तुलना में काफी अधिक हो सकती है। 
      • आयात अर्द्धचालक विनिर्माण मूल्य सूचकांक वर्ष 2021 में 4.9% बढ़ा और वर्ष 2022 में 2.4% की और वृद्धि हुई।
    • यह लागत अंतर वैश्विक अर्द्धचालक कंपनियों के लिये भारत को कम आकर्षक बना सकता है, जिससे देश में उनका निवेश सीमित हो सकता है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला गतिशीलता: अर्द्धचालक उद्योग अत्यधिक रूप से परस्पर संबंधित है और वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर निर्भर है। 
    • इस आपूर्ति शृंखला में व्यवधान, जैसे कि भू-राजनीतिक तनाव या प्राकृतिक आपदाओं के कारण, अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाओं पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। 
      • चिप विनिर्माण के लिये आवश्यक निऑन आपूर्ति पर रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रभाव ने इस दोष को प्रकट किया।
    • कच्चे माल, घटकों और प्रौद्योगिकी की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने की भारत की क्षमता अर्द्धचालक उद्योग में उसकी सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: अर्द्धचालक उद्योग ऊर्जा-प्रधान है और इसका पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है, जैसे जल की खपत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन। 
    • अर्द्धचालक विनिर्माण वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 31% का योगदान देता है और इलेक्ट्रॉनिक चिप्स का बढ़ता उपयोग इस प्रवृत्ति को बढ़ा रहा है।
      • स्मार्ट मीटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन के लिये पर्याप्त मात्रा में विद्युत् और जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता होती है।
    • सतत् विकास को प्रोत्साहित करने और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने के भारत के प्रयास अर्द्धचालक क्षेत्र के लिये अतिरिक्त चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
  • अन्य उभरते बाज़ारों से प्रतिस्पर्द्धा: भारत को अन्य उभरते बाज़ारों, जैसे वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो अर्द्धचालक निवेश आकर्षित करना चाहते हैं। 
    • मलेशिया ने अर्द्धचालक प्रतिस्पर्द्धा के प्रथम चरण में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है और इंफिनिऑन जैसी कंपनियों को सफलतापूर्वक आकर्षित किया है।
    • ये देश अधिक अनुकूल प्रोत्साहन, अवसंरचना और प्रतिभा पूल की पेशकश कर सकते हैं, जिससे वे वैश्विक अर्द्धचालक कंपनियों के लिये अधिक आकर्षक बन जाएंगे।

अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत अपने लक्ष्य को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिये क्या कदम उठा सकता है?

  • अर्द्धचालक संबंधी शिक्षा और प्रशिक्षण का संवर्द्धन: भारत को विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में अर्द्धचालक अभियांत्रिकी कार्यक्रमों का पर्याप्त विस्तार और उन्नयन करना चाहिये। 
    • इसमें उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रम विकसित करने और व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये वैश्विक अर्द्धचालक कंपनियों के साथ साझेदारी शामिल हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, बेंगलूरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड के साथ मिलकर एक विशेष अर्द्धचालक विनिर्माण कार्यक्रम तैयार कर सकता है, जिसमें व्यावहारिक शिक्षा के लिये अत्याधुनिक स्वच्छ कक्ष सुविधा भी शामिल होगी।
  • स्वदेशी चिप अभिकल्प क्षमताओं का विकास: भारत को अपनी मौजूदा सॉफ्टवेयर विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए चिप अभिकल्प क्षमताओं में भारी निवेश करना चाहिये।
    • सरकार बेंगलूरु, हैदराबाद और पुणे जैसे प्रौद्योगिकी केंद्रों में समर्पित चिप अभिकल्प केंद्र स्थापित कर सकती है, जो स्टार्टअप्स और स्थापित कंपनियों के लिये अवसंरचना और प्रोत्साहन प्रदान करेगी। 
    • उदाहरण के लिये, आईआईटी मद्रास द्वारा विकसित ओपन-सोर्स RISC-V प्रोसेसर-शक्ति की हाल की सफलता इस क्षेत्र में भारत की क्षमता को प्रदर्शित करती है। ऐसी पहलों का विस्तार करने से विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये भारत-विशिष्ट चिप अभिकल्पों का विकास हो सकता है।
  • एक सुदृढ़ अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला का निर्माण: भारत को देश के भीतर एक व्यापक अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला का निर्माण करने की आवश्यकता है। 
    • इसमें कच्चे माल के उत्पादन से लेकर उन्नत पैकेजिंग तक विभिन्न क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करना शामिल है।
    • भारत अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिये समर्पित विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) स्थापित कर सकता है तथा एप्लाइड मैटेरियल्स या लैम रिसर्च जैसी वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने के लिये कर में छूट और सुव्यवस्थित विनियमन प्रदान कर सकता है।
  • सॉवरेन सेमीकंडक्टर फंड की स्थापना: भारत विशेष रूप से अर्द्धचालक निवेश के लिये एक समर्पित सॉवरेन फंड का निर्माण कर सकता है। 
    • यह निधि अर्द्धचालक परियोजनाओं के लिये दीर्घकालिक पूंजी उपलब्ध कराएगा, जिससे विदेशी निवेश पर निर्भरता कम होगी। 
    • यह दृष्टिकोण दक्षिण कोरिया जैसे देशों में सफल रहा है, जहाँ एक सुदृढ़ अर्द्धचालक उद्योग के निर्माण में सरकार का सक्रिय वित्तीय समर्थन महत्त्वपूर्ण रहा है। 
    • यह निधि 3nm और 2nm चिप निर्माण जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्राथमिकता दे सकता है, जिससे भारत अर्द्धचालक नवाचार में अग्रणी स्थान पर आ जाएगा।
  • "चिप राजनय" सामरिक नीति का कार्यान्वयन: भारत को अग्रणी अर्द्धचालक देशों के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और साझेदारी पर समझौता करने के लिये अपनी भू-राजनीतिक स्थिति और बड़े बाज़ार का लाभ उठाना चाहिये। 
    • इसमें अर्द्धचालक प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता के बदले में अधिमानी बाज़ार अभिगम्यता या सामरिक साझेदारी की पेशकश शामिल हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, भारत उन्नत पैकेजिंग प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए  जापान के साथ मिलकर एक संयुक्त अर्द्धचालक अनुसंधान केंद्र स्थापित कर सकता है।
    • यह उपागम प्रौद्योगिकी रूप से उन्नत देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने के भारत के हालिया प्रयासों के अनुरूप है और इससे स्वतंत्र रूप से अर्द्धचालक प्रौद्योगिकी प्राप्त करने में आने वाली कुछ चुनौतियों से निपटने में सहायता मिल सकती है।
  • "हरित अर्द्धचालक" पहल का विकास: भारत स्वयं को पर्यावरणीय दृष्टि से संवहनीय अर्द्धचालक विनिर्माण में अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है। 
    • यह पहल ऐसी प्रौद्योगिकियों के विकास और कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करेगी जो जल उपयोग को कम करें, ऊर्जा खपत को कम करें तथा अर्द्धचालक उत्पादन में रासायनिक अपशिष्ट को न्यूनतम करें। 
    • उदाहरण के लिये, भारत एप्लाइड मैटेरियल्स जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी कर सकता है, ताकि एक दक्ष और पथप्रदर्शी संविरचन संयंत्र स्थापित किया जा सके, जो पुनर्नवीनीकृत जल और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करता है। 
      • यह उपागम न केवल पर्यावरण संबंधी चिंताओं को संबोधित करता है, बल्कि संवहनीय विनिर्माण के प्रति वैश्विक रुझानों के अनुरूप भी है, जो संभावित रूप से पर्यावरण के प्रति जागरूक निवेशकों और भागीदारों को आकर्षित करता है।
  • नेशनल सेमीकंडक्टर कॉमन्स की स्थापना: भारत को अर्द्धचालक अनुसंधान और प्रतिकृति के लिये एक साझा अवसंरचना मॉडल का निर्माण करना चाहिये। 
    • यह "सेमीकंडक्टर कॉमन्स" महँगे उपकरणों और सुविधाओं तक अभिगम्यता प्रदान करेगा, जिन्हें स्टार्टअप कंपनियाँ या संस्थान वहन करने में सक्षम नहीं हो सकते।
    • उदाहरण के लिये, अमेरिका में राष्ट्रीय नैनो प्रौद्योगिकी अवसंरचना नेटवर्क (NNIN) के समान, नैनोफैब्रिकेशन सुविधाओं का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित किया जा सकता है।
    • इससे स्टार्टअप्स और शोधकर्ताओं के लिये प्रवेश की बाधाएं कम होंगी तथा चिप अभिकल्प और विनिर्माण प्रक्रियाओं में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। 
    • यह कॉमन्स अकादमिक जगत, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग के लिये  एक मंच के रूप में भी कार्य कर सकता है, जिससे भारत में अर्द्धचालक संबंधी नवाचार की गति में तेज़ी आएगी। 

निष्कर्ष

अपनी अर्द्धचालक संबंधी महत्त्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिये, भारत को चिप अभिकल्प के क्षेत्र में शिक्षण और प्रशिक्षण को संवर्द्धित करना होगा, एक सुदृढ़ स्वदेशी आपूर्ति शृंखला विकसित करनी होगी और सामरिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग को अग्रेषित करना होगा। अवसंरचना और प्रतिभा की कमी को दूर करके, साथ ही संवहनीय प्रथाओं को संवर्द्धित करके भारत वैश्विक अर्द्धचालक उद्योग में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में अपना स्थान सुनिश्चित कर सकता है और तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत में एक सुदृढ़ अर्द्धचालक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के महत्त्व पर चर्चा कीजिये तथा इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु आवश्यक नीतिगत उपायों को बताते हुए संबंधित चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक:

निम्नलिखित में से कौन-सा लेज़र प्रकार लेज़र प्रिंटर में उपयोग किया जाता है? (2008)

(a) डाई लेज़र 
(b) गैस लेज़र
(c) सेमीकंडक्टर लेज़र 
(d) एक्साइमर लेज़र

उत्तर: (c)