भारत का नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण | 13 Jul 2024

यह एडिटोरियल 11/07/2024 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “A blueprint for RE ambitions” लेख पर आधारित है। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा की ओर भारत के सहज संक्रमण की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया गया है, जहाँ महत्त्वाकांक्षी स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिये भूमि अधिग्रहण, अवसंरचना, नीति स्थिरता, ग्रिड एकीकरण, वित्तपोषण और घरेलू विनिर्माण से संबद्ध चुनौतियों के समाधान के महत्त्व पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता, राष्ट्रीय सौर मिशन, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी, पर्यावरण, सामाजिक और शासन, ग्रीन बॉण्ड, भारतीय सौर ऊर्जा निगम, अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी, प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य), ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (GEC), राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन (NSGM) और स्मार्ट स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम, इलेक्ट्रिक वाहनों के विकल्प के रूप में हाइब्रिड वाहन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना

मेन्स के लिये:

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण को प्रभावित करने वाले कारक, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन में निहित प्रमुख बाधाएँ।

भारत अपनी नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy- RE) क्षमता का विस्तार करने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी यात्रा पर निकल पड़ा है, जहाँ वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट (GW) और वर्ष 2035 तक 1 टेरावाट (TW) क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। यह प्रयास जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये जीवाश्म ईंधन से दूर जाने के साथ-साथ बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने की आवश्यकता से प्रेरित है। मई 2024 तक 191 गीगावाट की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के साथ (जिसमें 85 गीगावाट सौर ऊर्जा शामिल है) देश ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। इस वृद्धि को राष्ट्रीय सौर मिशन (National Solar Mission) जैसी सरकारी पहलों द्वारा बढ़ावा दिया गया है।

हालाँकि इन वृहत लक्ष्यों की प्राप्ति के मार्ग में विभिन्न चुनौतियों भी मौजूद हैं। इनमें भूमि अधिग्रहण संबंधी मुद्दे, अपर्याप्त बिजली निकासी अवसंरचना, असंगत नीतियाँ, ग्रिड एकीकरण संबंधी समस्याएँ और अगले एक दशक में 350-400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बड़े निवेश की आवश्यकता शामिल है। भारत को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा महत्त्वाकांक्षाओं को साकार करने और अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये इस संबंध में श्रमपूर्ण और रणनीतिक रूप से कार्य करने की आवश्यकता है।

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण को कौन-से कारक प्रेरित कर रहे हैं?

  • ऊर्जा सुरक्षा और स्वतंत्रता: भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का 80% से अधिक आयात करता है, जिससे वह वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा इस निर्भरता को कम करने का एक मार्ग प्रदान करती है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 तक भारत की सौर क्षमता में 85 गीगावाट की वृद्धि ने जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करना शुरू कर दिया है।
  • आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर सौर ऊर्जा, पारंपरिक स्रोतों की तुलना में लागत-प्रतिस्पर्द्धी हो गई है।
    • उदाहरण के लिये, दिसंबर 2020 में गुजरात ऊर्जा विकास निगम (GUVNL) (चरण XI) की 500 मेगावाट सौर परियोजनाओं की नीलामी ने 1.99 रुपए (0.025 अमेरिकी डॉलर)/kWh के न्यूनतम टैरिफ का रिकॉर्ड बनाया।
      • यह आर्थिक लाभ नवीकरणीय ऊर्जा में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के निवेश को बढ़ावा दे रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रतिबद्धताएँ: COP26 में भारत ने वर्ष 2030 तक अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन (net-zero emissions) प्राप्त करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • इन प्रतिबद्धताओं के लिये नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेज़ी से संक्रमण की आवश्यकता है। वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य इन जलवायु लक्ष्यों का प्रत्यक्ष परिणाम है।
  • रोज़गार सृजन की क्षमता: नवीकरणीय क्षेत्र वृहत रोज़गार अवसर प्रदान करता है।
    • CEEW-NRDC रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2030 तक 238 गीगावाट सौर और 101 गीगावाट नई पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के साथ संभावित रूप से लगभग 3.4 मिलियन रोज़गार अवसर (अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक) पैदा कर सकता है।
    • सोलर मॉड्यूल के लिये PLI योजना जैसी पहलों के माध्यम से घरेलू विनिर्माण पर सरकार का ध्यान इस रोज़गार सृजन क्षमता का लाभ उठाने पर केंद्रित है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और दबाव: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) में भारत के नेतृत्व और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance- GBA) तथा भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एवं जलवायु भागीदारी (India-US Clean Energy and Climate Partnership) जैसी साझेदारियों ने ज्ञान साझाकरण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को गति प्रदान की है।
    • ये सहयोग निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय ध्यान और दबाव भी आकर्षित करते हैं।
  • जल की कमी: थर्मताप विद्युत संयंत्रों को वृहत जल संसाधनों की आवश्यकता होती है। जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा अधिक संवहनीय विकल्प प्रदान करती है।
    • उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का एक कारण बार-बार पड़ने वाला सूखा है, जिससे ताप विद्युत उत्पादन प्रभावित होता है।
  • निवेशक दबाव और ESG संबंधी विचार: वैश्विक निवेशक पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social, and Governance- ESG) कारकों को अधिकाधिक प्राथमिकता देने लगे हैं।
    • इसने भारतीय कंपनियों और सरकार को नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण में तेज़ी लाने के लिये प्रेरित किया है।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने वर्ष 2021 के 11 माह में 6.11 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के ‘ग्रीन बॉण्ड’ जारी किये। यह वर्ष 2015 में पहली बार ग्रीन बॉण्ड जारी किये जाने के बाद से उनका सबसे बड़ा निर्गमन था।

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण की राह की प्रमुख बाधाएँ:

  • भूमि अधिग्रहण में बाधाएँ: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये वृहत भूमि की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये, 1 गीगावाट के सोलर प्लांट के लिये लगभग 2,000 हेक्टेयर भूमि की ज़रूरत होती है।
    • हाल के संघर्षों में राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में चरागाह भूमि पर अतिक्रमण कर रहे बड़े सौर पार्कों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन जैसी घटनाएँ शामिल हैं।
      • ये मुद्दे विकास आवश्यकताओं और स्थानीय सामुदायिक अधिकारों के बीच के जटिल अंतर्संबंध को उजागर करते हैं।
  • फँसी परिसंपत्तियों के ज़ोखिम (Stranded Asset Risk) और कोयला क्षेत्र के श्रमिकों के लिये खतरा: भारत ने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में महत्त्वपूर्ण निवेश किया है।
    • इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) के अनुसार, अप्रैल 2023 तक भारत में 8 कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र बंद पड़े हैं।
    • तीव्र नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण के कारण फँसी हुई परिसंपत्तियों की संख्या में वृद्धि हो सकती है, जिससे आर्थिक और सामाजिक चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं (विशेष रूप से झारखंड एवं छत्तीसगढ़ जैसे कोयला-निर्भर क्षेत्रों में)।
    • इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भिन्न कौशल की आवश्यकता होती है, जिससे कोयला जैसे पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्रों में विद्यमान कार्यबल के साथ असंतुलन उत्पन्न होता है।
      • अकेले कोल इंडिया लिमिटेड में 270,000 से अधिक लोग कार्यरत हैं।
  • ग्रिड एकीकरण और स्थिरता के मुद्दे: जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा का प्रवेश बढ़ता जाता है, ग्रिड स्थिरता एक प्रमुख चिंता का विषय बन जाती है।
    • उदाहरण के लिये, तमिलनाडु में पवन ऊर्जा उत्पादन के आरंभ में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जहाँ TANGEDCO (Tamil Nadu Generation and Distribution Corporation) ने ग्रिड स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये उत्पादन में कटौती की है।
    • गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों द्वारा पूर्वानुमान और समय-निर्धारण विनियमों का कार्यान्वयन इस समस्या के समाधान की दिशा में एक कदम है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
  • अंतराल और भंडारण संबंधी चुनौतियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की परिवर्तनशील प्रकृति के कारण बड़े पैमाने पर भंडारण समाधान की आवश्यकता होती है।
    • हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2030 तक भारत को 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लागत-कुशल एवं विश्वसनीय एकीकरण के लिये 38 गीगावाट के चार-घंटे बैटरी भंडारण क्षमता और 9 गीगावाट के तापीय संतुलन बिजली परियोजनाओं की आवश्यकता होगी।
    • वर्ष 2021 में भारतीय सौर ऊर्जा निगम (Solar Energy Corporation of India) द्वारा पहली बार पेश वृहत-स्तरीय बैटरी भंडारण निविदा (1000 MWh) आगे की ओर एक कदम है, लेकिन इसका विस्तार करना एक चुनौती बनी हुई है।
  • ई-अपशिष्ट और जीवन-अंत प्रबंधन: सौर पैनलों और बैटरियों की बड़े पैमाने पर तैनाती के साथ ई-अपशिष्ट (E-waste) प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है।
    • अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IREA) के अनुसार, अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत सौर पैनल अपशिष्ट का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक बन जाएगा।
    • भारत में वर्तमान में सौर पैनल पुनर्चक्रण के लिये एक व्यापक नीति का अभाव है, हालाँकि MNRE ने वर्ष 2022 में नियमों का मसौदा तैयार किया था।
      • बड़े पैमाने पर पुनर्चक्रण सुविधाओं का अभाव पर्यावरणीय जोखिम पैदा करता है।
  • भू-राजनीतिक संसाधन निर्भरता: भारत का नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण मुख्य रूप से लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्वों जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों पर निर्भर करता है, जो मुख्य रूप से कुछ देशों द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिये:
    • चीन विश्व के 80% दुर्लभ मृदा तत्वों का प्रसंस्करण करता है।
    • कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य वैश्विक स्तर पर निष्कर्षित कोबाल्ट के 70% की आपूर्ति करता है।
    • यह निर्भरता भारत की नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में कमज़ोरियाँ पैदा करती है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक संप्रभुता पर संभावित रूप से असर पड़ता है।
  • जैव ईंधन भूमि उपयोग दुविधा: भारत का महत्त्वाकांक्षी जैव ईंधन लक्ष्य (वर्ष 2025 तक 20% इथेनॉल सम्मिश्रण) खाद्य उत्पादन के साथ प्रतिस्पर्द्धारत है।
    • उदाहरण के लिये, इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने से गन्ने की खेती में वृद्धि हुई है, जिसमें जल की अधिक आवश्यकता होती है।
    • इससे खाद्य-जल-ऊर्जा संबंध की जटिल चुनौती उत्पन्न होती है, विशेष रूप से महाराष्ट्र जैसे जल-संकटग्रस्त राज्यों में।
  • जलवायु परिवर्तन का नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना पर प्रभाव: विडंबना यह है कि जलवायु परिवर्तन स्वयं नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना के लिये जोखिम उत्पन्न करता है:
    • तटीय क्षेत्रों में चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति से अपतटीय पवन परियोजनाओं के लिये खतरा पैदा किया है।
    • वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन से जलविद्युत क्षमता प्रभावित होती है, जैसा कि वर्ष 2021 में उत्तराखंड में आई बाढ़ में देखा गया, जहाँ कई जलविद्युत परियोजनाएँ क्षतिग्रस्त हो गईं।
  • शहरी नियोजन और नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण: भारत का तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण के लिये अनूठी चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। शहरों में छत पर सौर ऊर्जा के लिये सार्वभौमिक भवन संहिता का अभाव इसकी पुष्टि करता है।
    • सघन शहरी क्षेत्रों में सीमित खुले स्थान वृहत-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को प्रतिबंधित करते हैं, जैसा कि मुंबई में सौर ऊर्जा अंगीकरण में हो रही कठिनाईयों में देखा जा सकता है।

नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें:

नवीकरणीय ऊर्जा की ओर सुगम संक्रमण के लिये भारत क्या उपाय कर सकता है?

  • फ्लोटिंग सोलर क्रांति (Floating Solar Revolution): भारत जलाशयों, झीलों और तटीय क्षेत्रों पर बड़े पैमाने पर फ्लोटिंग सोलर परियोजनाओं का विकास कर अपने विशाल जलीय स्थान का दोहन कर सकता है।
    • इस उपाय से मूल्यवान भूमि का संरक्षण होगा और जल वाष्पीकरण एवं शैवाल वृद्धि में कमी आएगी।
    • मौजूदा जलविद्युत अवसंरचना के साथ एकीकरण से संयुक्त विद्युत उत्पादन प्रणालियों का निर्माण किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन अधिकतम हो सकता है।
    • फ्लोटिंग सोलर पर ध्यान केंद्रित कर, भारत भूमि की कमी के मुद्दों को हल करते हुए अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है।
  • भूमि पट्टा क्रांति (Land Leasing Revolution): भारत भूमि अधिग्रहण संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये ‘सौर खेती’ (Solar Farming) मॉडल को लागू कर सकता है:
    • दीर्घकालिक भूमि पट्टा कार्यक्रम शुरू किया जाए जहाँ भूमि पर किसानों का स्वामित्व बना रहे और वे नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं से स्थिर आय अर्जित करें।
    • इसके अलावा, एग्री-वोल्टेइक प्रणालियाँ (agrivoltaic systems) विकसित की जाएँ जो ऊँचाई पर स्थित सौर पैनलों के नीचे कृषि गतिविधियों की अनुमति दें।
  • नवीकरणीय ऊर्जा विशेष आर्थिक क्षेत्र (RE-SEZs): नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास के लिये सुव्यवस्थित विनियमन और प्रोत्साहन के साथ समर्पित क्षेत्रों की स्थापना से भारत में संक्रमण की प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है।
    • ये RE-SEZs कच्चे माल के प्रसंस्करण से लेकर तैयार उत्पाद संयोजन तक संपूर्ण नवीकरणीय ऊर्जा पारितंत्र का निर्माण करेंगे।
    • वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा कंपनियों को आकर्षित कर और घरेलू नवाचार केंद्रों को बढ़ावा देकर भारत स्वयं को नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में एक विनिर्माण महाशक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है।
      • इस कदम से न केवल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये एक सुदृढ़ घरेलू आपूर्ति शृंखला भी सुनिश्चित होगी।
  • कोयला से स्वच्छ ऊर्जा की ओर कार्यबल का संक्रमण: नवीकरणीय ऊर्जा रोज़गार के लिये कोयला क्षेत्र के श्रमिकों को पुनः प्रशिक्षित करने हेतु ‘ग्रीन कॉलर’ पहल का शुभारंभ किया जाए।
    • वैकल्पिक रोज़गार सृजित करने के लिये कोयला-निर्भर क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण केंद्र स्थापित किये जाएँ।
    • क्रमिक कार्यबल अनुकूलन के लिये स्पष्ट समयसीमा के साथ चरणबद्ध संक्रमण योजना लागू की जाए।
  • ब्लॉकचेन-संचालित विकेंद्रीकृत ऊर्जा व्यापार: ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग कर पीयर-टू-पीयर ऊर्जा व्यापार प्लेटफॉर्मों को लागू करने से भारत के ऊर्जा बाज़ार में क्रांति आ सकती है। 
    • यह प्रणाली प्रोज्यूमर्स (prosumers) को अतिरिक्त ऊर्जा प्रत्यक्षतः पड़ोसियों या ग्रिड को बेचने में सक्षम बनाएगी, जिससे समग्र ग्रिड लचीलेपन की वृद्धि होगी।
    • लघु-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण को प्रोत्साहित करने के रूप में यह कदम देश भर में वितरित ऊर्जा संसाधन परिनियोजन में तेज़ी ला सकता है।
      • इस प्रणाली की विकेंद्रीकृत प्रकृति ग्रिड लचीलेपन को बढ़ाएगी और पारेषण/ट्रांसमिशन घाटे को कम करेगी।
  • शहरी परिवेश के लिये VAWTs: शहरों में वर्टिकल एक्सिस विंड टर्बाइन (Vertical Axis Wind Turbines- VAWTs) के अंगीकरण को बढ़ावा देने से शहरी पवन ऊर्जा क्षमता को साकार किया जा सकता है।
    • ये टर्बाइन अशांत शहरी पवन पैटर्न के लिये अधिक उपयुक्त हैं और इन्हें भवनों एवं पुलों जैसे मौजूदा शहरी अवसंरचना में एकीकृत किया जा सकता है।
    • VAWTs पारंपरिक पवन टर्बाइनों से जुड़े दृश्य प्रभाव और ध्वनि प्रदूषण को भी कम करते हैं, जिससे वे घनी आबादी वाले क्षेत्रों के लिये अधिक अनुकूल सिद्ध होते हैं। 
    • यह शहरी पवन ऊर्जा रणनीति रूफटॉप सोलर इनस्टॉलेशन का पूरक बन सकती है, जिससे भारत के शहरी नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में विविधता आएगी।
  • हरित हाइड्रोजन राजमार्ग (Green Hydrogen Highways): भारत प्रमुख परिवहन गलियारों के साथ हरित हाइड्रोजन उत्पादन एवं वितरण केंद्रों के एक नेटवर्क का निर्माण कर सकता है।
    • ये हरित हाइड्रोजन राजमार्ग हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिये अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करेंगे, जिससे लंबी दूरी के ट्रकों एवं बसों को ईंधन मिल सकेगा।
    • इस प्रणाली में हाइड्रोजन फिलिंग स्टेशन, भंडारण सुविधाएँ और समर्पित हाइड्रोजन-संचालित सार्वजनिक परिवहन शामिल हो सकते हैं।
      • यह पहल नवीकरणीय ऊर्जा में भंडारण संबंधी चुनौती का समाधान करेगी, साथ ही परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाएगी।
  • सौर तापीय मरुद्यान (Solar Thermal Oases): शुष्क क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर संकेंद्रित सौर ऊर्जा (Concentrated Solar Power- CSP) संयंत्रों का विकास किया जाए जिन्हें ग्रीनहाउस कृषि के साथ एकीकृत करते हुए सौर तापीय मरुद्यान का निर्माण किया जा सकता है।
    • ये प्रतिष्ठान CSP से प्राप्त अतिरिक्त ऊष्मा का उपयोग विलवणीकरण (desalination) के लिये करेंगे, जिससे आस-पास के ग्रीनहाउस में उगाई जाने वाली फसलों के लिये जल उपलब्ध हो सकेगा।
    • ग्रीनहाउस का नियंत्रित वातावरण वर्ष भर उच्च मूल्यवान फसलों की खेती का अवसर प्रदान करेगा।
      • यह सहक्रियात्मक दृष्टिकोण ऊर्जा, जल और खाद्य सुरक्षा चुनौतियों को एक साथ संबोधित कर सकेगा।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा सर्कुलर पार्क (Waste-to-Energy Circular Parks): एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा उत्पादन प्रतिष्ठानों या अपशिष्ट से ऊर्जा सर्कुलर पार्क का सृजन दोनों ही क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
    • ये उद्यान विभिन्न अपशिष्ट क्षेत्रों के प्रबंधन के लिये अवायवीय पाचन, गैसीकरण और पायरोलिसिस जैसी विभिन्न प्रौद्योगिकियों का संयोजन करेंगे।
    • यहाँ उत्पादित ऊर्जा से स्वयं प्रतिष्ठान को ऊर्जा प्राप्त होगी और ग्रिड को भी ऊर्जा योगदान किया जा सकेगा, जबकि बायोचार (biochar) जैसे सह-उत्पादों का उपयोग कृषि में किया जा सकेगा।
      • यह समग्र दृष्टिकोण अपशिष्ट प्रबंधन को लागत केंद्र से ऊर्जा एवं संसाधन सृजक में बदल सकेगा।

अभ्यास प्रश्न: आर्थिक एवं सामाजिक चुनौतियों को संबोधित करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा की ओर सुगम एवं प्रभावी संक्रमण को सुनिश्चित करने के लिये भारत कौन-से रणनीतिक उपाय कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कम्पनी है।
  2. यह एक ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी है।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर:  (c)


मेन्स:

प्रश्न. सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)।