भारत-म्याँमार संबंध: मुक्त आवागमन पर नियंत्रण | 05 Feb 2024
यह एडिटोरियल 01/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Finding light in Myanmar’s darkness” लेख पर आधारित है। इसमें भारत और म्याँमार के बीच राजनयिक संबंधों में विद्यमान समकालीन कठिनाइयों एवं चुनौतियों पर विचार किया गया है तथा संभावित समाधानों का प्रस्ताव किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:मुक्त आवाजाही व्यवस्था (FMR), एक्ट ईस्ट पॉलिसी, ASEAN, BIMSTEC, भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना, कलादान मल्टीमॉडल पारगमन परिवहन परियोजना, भारत-म्याँमार द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास, सितवे बंदरगाह। मेन्स के लिये:भारत-म्याँमार संबंधों का महत्त्व, भारत-म्याँमार संबंधों के प्रमुख मुद्दे। |
हाल ही में भारतीय गृह मंत्री ने लोगों की मुक्त आवाजाही को रोकने के लिये भारत-म्याँमार सीमा की पूरी लंबाई में बाड़ लगाने के निर्णय की घोषणा की है। इस निर्णय का उद्देश्य मणिपुर, मिज़ोरम, असम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों को स्पर्श करती 1,643 किलोमीटर लंबी भारत-म्याँमार सीमा पर लोगों की निर्बाध आवाजाही को नियंत्रित करना है।
इस पहल के एक भाग के रूप में म्याँमार के साथ वर्तमान में मौजूद मुक्त आवाजाही व्यवस्था (Free Movement Regime- FMR) समझौते की समीक्षा की जा रही है। बाड़ लगाने का भारत का यह प्रस्ताव स्पष्ट रूप से उसकी सुरक्षा चिंताओं में निहित है, लेकिन आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसे विरोध का सामना करना पड़ सकता है और इसका संभावित रूप से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
भारत-म्याँमार सीमा पर मुक्त आवाजाही व्यवस्था (FRM):
- परिचय: FRM दोनों देशों के बीच एक पारस्परिक रूप से सहमत व्यवस्था है जो सीमा के दोनों ओर रहने वाली जनजातियों (tribes) को बिना वीज़ा के दूसरे देश के अंदर 16 किमी. तक जा सकने की अनुमति देती है। इसे वर्ष 2018 में भारत सरकार की ‘एक्ट ईस्ट’ (Act East) नीति के एक अंग के रूप में लागू किया गया था।
- इसकी तार्किकता: भारत-म्याँमार सीमा के विभाजन का इतिहास वर्ष 1826 से शुरू होता है जब ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों द्वारा स्थानीय निवासियों की राय पर विचार किये बिना सीमांकन किया गया था। इस सीमांकन के परिणामस्वरूप सीमा के दोनों ओर निवास करने वाली उस आबादी में विभाजन पैदा हुआ जो मज़बूत जातीय एवं पारिवारिक बंधन साझा करते हैं।
- महत्त्व: लोगों के परस्पर संपर्क को बढ़ावा देने के अलावा, स्थानीय व्यापार एवं व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये इस मुक्त आवाजाही व्यवस्था की परिकल्पना की गई थी। इस क्षेत्र में सीमा शुल्क और सीमा हाटों द्वारा सुगम बनाये गए सीमा-पार वाणिज्य की एक समृद्ध परंपरा पाई जाती है।
भारत-म्याँमार संबंध क्यों महत्त्वपूर्ण है?
भू-राजनीतिक महत्त्व:
- दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार: म्याँमार दक्षिण एशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने वाले भूमि सेतु के रूप में कार्य करता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से म्याँमार की निकटता एक रणनीतिक संबंध स्थापित करती है और क्षेत्रीय संपर्क (कनेक्टिविटी) की सुविधा प्रदान करती है।
- बंगाल की खाड़ी में कनेक्टिविटी: बंगाल की खाड़ी में भारत और म्याँमार द्वारा साझा की जाती समुद्री सीमा समुद्री सहयोग के अवसरों को बढ़ाती है तथा आर्थिक एवं रणनीतिक सहयोग को संपोषित करती है।
- क्षेत्रीय शक्ति संतुलन: क्षेत्र में विद्यमान भू-राजनीतिक जटिलताओं को देखते हुए, म्याँमार के साथ एक सुदृढ़ संबंध भारत को किसी भी ऐसे संभावित क्षेत्रीय शक्ति असंतुलन से बचने में मदद करता है जो अन्य प्रमुख खिलाड़ियों के प्रभाव से उत्पन्न हो सकता है। म्याँमार के साथ भारत की सक्रिय संलग्नता इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के प्रति संतुलन का कार्य करती है।
रणनीतिक महत्त्व:
- रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण पड़ोस: म्याँमार एक बड़ा बहु-जातीय राष्ट्र है, जो भारत के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण पड़ोस में स्थित है। म्याँमार के भीतर के घटनाक्रम का इसके पाँच पड़ोसी देशों—चीन, लाओस, थाईलैंड, बांग्लादेश और भारत पर प्रभाव पड़ता है।
- ‘नेवरहुड फर्स्ट’ नीति: भारत की ‘नेवरहुड फर्स्ट’ (Neighbourhood First) नीति के तहत म्याँमार के प्रति इसका दृष्टिकोण एक सुदृढ़, सहकारी एवं पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग विकसित करने के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- ‘एक्ट ईस्ट’ नीति: म्याँमार भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक प्रमुख घटक है। यह नीति एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ आर्थिक, रणनीतिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य की गई राजनयिक पहल है।
- बहुपक्षीय संलग्नता: सार्क (SAARC), आसियान (ASEAN), बिम्सटेक (BIMSTEC) और मेकांग-गंगा सहयोग (Mekong Ganga Cooperation) में म्याँमार की सदस्यता ने द्विपक्षीय संबंधों में एक क्षेत्रीय आयाम पेश किया है और भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के संदर्भ में अतिरिक्त महत्त्व प्रदान किया है।
सहकार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र:
- द्विपक्षीय व्यापार: भारत म्याँमार का पाँचवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जहाँ वर्ष 2021-22 में दोनों देश का द्विपक्षीय व्यापार 1.03 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- दोनों देश कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, सूचना प्रौद्योगिकी और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में उद्योगों के लिये आर्थिक अवसर सृजित करते हुए द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं।
- ऊर्जा सहयोग: म्याँमार भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के ऊर्जा पोर्टफोलियो के साथ, म्याँमार दक्षिण-पूर्व एशिया में तेल एवं गैस क्षेत्र में भारत के निवेश का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता है।
- अवसंरचना निवेश: कलादान मल्टी-मोडल पारगमन परिवहन परियोजना (Kaladan Multi-Modal Transit Transport Project) और सितवे बंदरगाह (Sittwe Port) जैसी अवसंरचना परियोजनाओं का उद्देश्य संपर्क, व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा देना है।
- कलादान मल्टीमॉडल पारगमन परिवहन परियोजना: इस परियोजना का लक्ष्य पूर्वी भारत के कोलकाता बंदरगाह को म्याँमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ना है।
- भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना: इस परियोजना का लक्ष्य तीन देशों के बीच सड़क संपर्क स्थापित करना है, जहाँ यह राजमार्ग भारत के मणिपुर राज्य के मोरेह (Moreh) से शुरू होकर म्याँमार से गुज़रते हुए थाईलैंड के माई सॉट (Mae Sot) पर समाप्त होगा।
- रणनीतिक रक्षा साझेदारी: भारत और म्याँमार गहन रक्षा साझेदारी रखते हैं, जहाँ भारत सैन्य प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करता है और म्याँमार सेना के साथ संयुक्त अभ्यास आयोजित करता है।
- भारत-म्याँमार द्विपक्षीय सेना अभ्यास (India-Myanmar Bilateral Army Exercise- IMBAX) का उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के साथ घनिष्ठ संबंध का निर्माण करना और उसे बढ़ावा देना है।
क्षमता निर्माण के प्रयास:
- विकासात्मक सहायता: भारत ने ‘सॉफ्ट लोन’ के रूप में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विस्तार किया है। इसने म्याँमार के प्रति निर्देशात्मक होने के बजाय उसकी आवश्यकता एवं रुचि के क्षेत्रों में विकासात्मक सहायता देने की पेशकश की है।
- भारत उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान के लिये संस्थान स्थापित करने में भी सहायता प्रदान कर रहा है, जिसमें म्याँमार सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, उन्नत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा केंद्र आदि शामिल हैं।
- भारत ने आपदा जोखिम शमन में क्षमता निर्माण के साथ-साथ म्याँमार के राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया तंत्र को सबल करने में सहायता प्रदान करने की भी पेशकश की है।
- मानवीय सहायता: संकट के दौरान म्याँमार को भारत की मानवीय सहायता (जैसे कि COVID-19 के दौरान प्रदत्त सहायता) द्विपक्षीय संबंधों की शक्ति को प्रदर्शित करती है और क्षेत्रीय कल्याण के प्रति भारतीय प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- भारत ने म्याँमार में चक्रवात मोरा (2017), कोमेन (2015) और शान राज्य में भूकंप (2010) जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता प्रदान करने में तुरंत एवं प्रभावी प्रतिक्रिया दी थी।
- सांस्कृतिक संपर्क:
- सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: भारत और म्याँमार बौद्ध विरासत और उपनिवेशवाद के साझा इतिहास के संदर्भ में सांस्कृतिक संबंध रखते हैं। ये संबंध मज़बूत राजनयिक संबंधों और आपसी समझ की नींव का निर्माण करते हैं।
- भारतीय प्रवासी: म्याँमार में भारतीय मूल के लोग देश की कुल आबादी का लगभग 4% हैं। भारतीय प्रवासी व्यापारिक उद्यमों, व्यापार और निवेश के माध्यम से म्याँमार की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत-म्याँमार संबंधों में विद्यमान प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- आंतरिक सुरक्षा चिंता:
- भारत-म्याँमार सीमा अत्यधिक खुली होने के साथ यहाँ निगरानी की कमी है और यह एक सुदूर, अविकसित, उग्रवाद-प्रवण क्षेत्र के साथ ही एक अफ़ीम उत्पादक क्षेत्र के निकट स्थित है।
- इस भेद्यता का भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में सक्रिय उग्रवादी संगठनों एवं विद्रोही समूहों द्वारा लाभ उठाया गया है। इस खुली सीमा के माध्यम से प्रशिक्षित कर्मियों की आपूर्ति और हथियारों की तस्करी के मामले सामने आए हैं।
- पूर्वोत्तर भारत के विद्रोही समूहों ने म्याँमार के सीमावर्ती ग्रामों और क़स्बों में अपने शिविर स्थापित कर रखे थे।
- सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज़ (CLAWS) की अनुराधा ओइनम (Anuradha Oinam) द्वारा प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA), यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA), नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN) जैसे कई विद्रोही समूहों और कुकी एवं ज़ोमिस लोगों के कुछ छोटे समूहों ने म्याँमार के सगैंग प्रभाग (Sagaing Division), काचिन राज्य (Kachin State) और चिन राज्य (Chin State) में शिविर स्थापित किये हैं।
- मुक्त आवाजाही व्यवस्था (FRM): भारत सरकार म्याँमार के साथ FRM समाप्त करने पर विचार कर रही है।
- FRM के स्थानीय आबादी के लिये लाभप्रद और भारत-म्याँमार संबंधों को बढ़ाने में सहायक होने के बावजूद, अवैध आप्रवासन, नशीली दवाओं की तस्करी एवं हथियारों के व्यापार को अवसर देने में इसकी भूमिका के कारण इसकी आलोचना भी होती रही है।
- म्याँमार में त्रिकोणीय सत्ता संघर्ष: सैन्य तख्तापलट (जिसने म्याँमार की मामूली लोकतांत्रिक उपलब्धियों को भी नष्ट कर दिया) के तीन वर्ष बाद भी देश आंतरिक कलह में उलझा हुआ है।
- ‘दक्षिण-पूर्व एशिया का मरीज’ (Sick Man of Southeast Asia): म्याँमार में सुधार के संकेत नहीं दिख रहे हैं, जहाँ सैन्य शासन, राजनीतिक संस्थाएँ और जातीय संगठन हिंसक संघर्ष के चक्र में संलग्न हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह नागरिक अशांति इसमें शामिल किसी भी पक्ष के लिये निर्णायक जीत की अत्यंत सीमित संभावना प्रस्तुत करती है।
- नागरिक स्वतंत्रता सूचकांक (Civil Liberty Index): म्याँमार को नागरिक स्वतंत्रता सूचकांक—जो मापता है कि नागरिक किस हद तक नागरिक स्वतंत्रता का उपभोग कर रहे हैं, में शून्य का स्कोर दिया गया है।
- चीन का प्रभाव: चीन म्याँमार का सबसे बड़ा निवेशक होने के साथ-साथ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है। चीन ने न केवल आर्थिक संबंधों और व्यापार के माध्यम से, बल्कि ‘सॉफ्ट पावर’ का लाभ उठाकर (विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण अवसंरचना परियोजनाओं के माध्यम से) म्याँमार में अपने प्रभाव को मज़बूत कर लिया है।
- म्याँमार के भीतर चीन के प्रभाव को कम करने का कार्य भारत के लिये चुनौतीपूर्ण सिद्ध हुआ है।
- अवसंरचना परियोजनाओं में देरी: समय के साथ भारत-म्याँमार संबंधों में भरोसे की कमी उभर कर सामने आई है, जो विविध परियोजनाओं के कार्यान्वयन में लगातार देरी करने की भारत की बन गई छवि से प्रेरित है।
- सहयोगात्मक अवसंरचना परियोजनाओं, विशेष रूप से कलादान मल्टी-मोडल पारगमन परिवहन परियोजना एवं सितवे बंदरगाह (जो संपर्क/कनेक्टिविटी को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं) के समय पर निष्पादन में व्यापक देरी ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने में बाधा उत्पन्न की है।
- रोहिंग्या संकट: रोहिंग्या संकट एक मानवीय और मानवाधिकार संबंधी त्रासदी है जिसने भारत और म्याँमार के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है। उल्लेखनीय है कि म्याँमार में उत्पीड़ित रोहिंग्या आबादी ने बांग्लादेश और भारत जैसे पड़ोसी देशों में शरण ली है।
- कुछ रोहिंग्या लोगों और आतंकवादी समूहों के बीच कथित संबंध से उत्पन्न सुरक्षा चिंताओं के साथ ही देश के संसाधनों और सामाजिक सद्भाव पर बोझ का हवाला देते हुए भारत ने इस मामले पर एक विशिष्ट रुख अपनाया है।
आगे की राह
रणनीतिक कूटनीति:
- मुक्त आवाजाही व्यवस्था का बेहतर विनियमन: FRM को सीमा-पार संपर्क को संरक्षित करते हुए आवाजाही के प्रभावी प्रबंधन में सक्षम होना चाहिये। अवसंरचना को उन्नत करने और निर्दिष्ट प्रवेश बिंदुओं पर व्यापार को औपचारिक बनाने से कुछ प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सकता है।
- स्थानीय आबादी के हितों को ध्यान में रखते हुए, FRM को पूरी तरह से हटाना या सीमा की पूर्ण घेरेबंदी करना उपयुक्त कदम नहीं होगा।
- विविध हितधारकों के साथ संलग्नता: भारत को लोकतंत्र का समर्थन करने वाले विभिन्न हितधारकों के साथ भागीदारी के अवसरों का विस्तार करते हुए सैन्य सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों का संपोषण करने के रूप में एक नाजुक संतुलन बनाए रखना चाहिये।
- चीन के प्रभाव को संतुलित करना: म्याँमार की संप्रभुता का सम्मान करते हुए, भारत को क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिये रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक सहयोग में संलग्न होना चाहिये। भारत की भूमिका को सुदृढ़ करने के लिये संयुक्त परियोजनाओं और पहलों को आगे बढ़ाया जा सकता है।
सहकार्यात्मक साधनों का उपयोग करना:
- दोतरफा व्यापार को बढ़ावा देना: व्यापार संबंधों में विविधता लाने और म्याँमार द्वारा भारत को अधिक निर्यात कर सकने के अवसरों की खोज करने के माध्यम से व्यापार असंतुलन को दूर करना होगा। निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और सहयोग के पारंपरिक क्षेत्रों से परे के क्षेत्रों का भी पता लगाना चाहिये।
- भारत सरकार ने यांगून के पास थानलिन क्षेत्र में एक पेट्रोलियम रिफाइनरी परियोजना के निर्माण के लिये 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश का प्रस्ताव दिया है।
- अवसंरचना परियोजनाओं को समय पर पूरा करना: कलादान मल्टी-मोडल पारगमन परिवहन परियोजना और सितवे बंदरगाह जैसी संयुक्त अवसंरचना परियोजनाओं को समय पर पूरा करना सुनिश्चित किया जाए। इससे संपर्क और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा, जिससे दोनों देशों को लाभ प्राप्त होगा।
- सुरक्षा सहयोग को बेहतर बनाना: सीमा पर विद्रोही समूहों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिये दोनों देश आतंकवाद विरोधी उपायों में परस्पर सहयोग करें। खुफिया जानकारी की साझेदारी और संयुक्त अभियान से क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति सशक्त की जा सकती है।
ट्रैक II कूटनीति को सुगम बनाना:
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान का उपयोग करना: दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक बंधन को मज़बूत करने के लिये सांस्कृतिक संपर्क और लोगों के परस्पर संपर्क को बढ़ावा दिया जाए। आदान-प्रदान कार्यक्रम, संयुक्त सांस्कृतिक कार्यक्रम और शैक्षिक सहयोग आपसी समझ को बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं।
- इस साझा विरासत पर आगे बढ़ते हुए, भारत बागन (Bagan) में स्थित आनंद मंदिर के जीर्णोद्धार और बड़ी संख्या में क्षतिग्रस्त पैगोडा की मरम्मत एवं संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय पहलें कर रहा है।
- शांति सम्मेलनों का आयोजन करना: भारत एक ‘शांति सभा’ (Peace Assembly) आयोजित करने पर विचार कर सकता है, जिसमें ‘क्वाड’ के सदस्य देशों और ‘आसियान ट्रोइका’ (इंडोनेशिया, लाओस एवं मलेशिया) के वरिष्ठ अधिकारियों एवं प्रबुद्ध नागरिकों को साथ लाया जाए।
- यह सभा म्याँमार में मानवाधिकार के मुद्दों का निष्पक्ष मूल्यांकन कर सकती है, एक व्यापक योजना तैयार कर सकती है और सुरक्षा एवं स्थिरता की दिशा में प्रगति के लिये व्यावहारिक समर्थन प्रदान कर सकती है।
- यह सभा, क्षेत्र के लिये अधिक आशाजनक भविष्य की संभावनाओं को उजागर करने में लोकतंत्रवादी नेत्री आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, उनकी अविलंब रिहाई के लिये दबाव भी बना सकती है।
निष्कर्ष:
भारत को म्याँमार से बहुत कुछ प्राप्त करना है और म्याँमार को बहुत कुछ देना भी है। यह पारस्परिक गतिशीलता दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों का आधार बनाती है। इन प्रक्षेपपथों के साथ प्रगति करते हुए, भारत और म्याँमार में क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए सहयोगात्मक प्रयासों में सक्रिय रूप से संलग्न होकर एक दूरदर्शी गठबंधन को आकार दे सकने की क्षमता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत और म्याँमार के बीच द्विपक्षीय संबंधों में विद्यमान चुनौतियों पर विचार कीजिये और इन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. मेकांग-गंगा सहयोग जो कि छह देशों की एक पहल है, का निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा-पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की विवेचना भी कीजिये। |