कार्बन क्रेडिट के माध्यम से कृषि को समर्थन | 12 Oct 2024

यह संपादकीय 08/10/2024 को ‘द हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित “ Ways for India to realise carbon credits potential” पर आधारित है। यह बाज़ार की चुनौतियों से निपटने, संधारणीय कृषि को बढ़ावा देने और कार्बन क्रेडिट जारी करने में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करके भारत की कार्बन क्रेडिट क्षमता को अधिकतम करने की आवश्यकता पर बल देता है।

प्रिलिम्स के लिये:

क्योटो प्रोटोकॉल, कृषि, जलवायु-अनुकूल कृषि, कार्बन क्रेडिट (CC), कार्बन सिक्वेसट्रेशन, जलवायु परिवर्तन, शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य, कार्बन क्रेडिट बाज़ार, ग्रीनहाउस गैस (GHG), नवीकरणीय ऊर्जा सुविधाएँ 

मेन्स के लिये:

कृषि पद्धतियों के लिये कार्बन क्रेडिट आधारित कृषि का महत्त्व।

क्योटो प्रोटोकॉल के तहत ग्रीनहाउस गैस (GHG) को कम करने के उद्देश्य से वित्तीय नवाचार के रूप में कार्बन क्रेडिट (CC) की नींव रखी गईकार्बन बाज़ार निगमों को उन परियोजनाओं से कार्बन क्रेडिट खरीदने की अनुमति देता है जो वनीकरण, नवीकरणीय ऊर्जा और मीथेन कैप्चर सहित विभिन्न पद्धतियों से उत्सर्जन को कम करते हैं। 

खरीदे गए प्रत्येक कार्बन क्रेडिट (CC) से उत्सर्जक को एक टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अनुमति मिलती है, जिससे वे स्वयं को कार्बन उदासीन के रूप में बाज़ार में स्थापित कर सकते हैं। कृषि को भारत में कार्बन-उत्सर्जन के एक प्रमुख योगदानकर्त्ता के रूप में उजागर किया गया है, जिसमें प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के माध्यम से उत्सर्जन को कम करने की क्षमता है। 

इन पद्धतियों को अपनाने से जोतधारकों/किसानों की इनपुट लागत कम हो सकती है और मृदा स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है, जिससे वे कार्बन क्रेडिट प्राप्त करने के योग्य हो सकते हैं। हालाँकि, कार्बन क्रेडिट बनाने वाली व्यवहार्य कृषि परियोजना विकसित करने में चुनौतियाँ हैं, जिनमें उच्च लागत और कार्यान्वयन के लिये विस्तारित समयसीमा शामिल हैं।

क्योटो प्रोटोकॉल:

  • इसमें तीन तंत्रों का प्रावधान है जो देशों, या विकसित देशों में ऑपरेटरों को ग्रीनहाउस गैस न्यूनीकरण क्रेडिट प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं:
    • संयुक्त कार्यान्वयन (JI) के अंतर्गत, घरेलू ग्रीनहाउस कटौती की अपेक्षाकृत उच्च लागत वाले एक विकसित देश को किसी अन्य विकसित देश में परियोजना स्थापित करना होगा।
    • स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) के तहत, एक विकसित देश किसी विकासशील देश में ग्रीनहाउस गैस कटौती परियोजना को ‘प्रायोजित’ कर सकता है, जहाँ ग्रीनहाउस गैस कटौती परियोजना गतिविधियों की लागत आमतौर पर बहुत कम होती है, लेकिन वायुमंडलीय प्रभाव वैश्विक रूप से समतुल्य होता है। विकसित देश को अपने उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये क्रेडिट दिया जाएगा, जबकि विकासशील देश को पूंजी निवेश और स्वच्छ प्रौद्योगिकी या भूमि उपयोग में लाभकारी परिवर्तन प्राप्त होगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार (IET) के तहत, देश निर्दिष्ट राशि इकाइयों (Assigned Amount Units- AAU) में अपनी कमी को पूरा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट बाज़ार में व्यापार कर सकते हैं। अधिशेष इकाइयों वाले देश उन्हें उन देशों को बेच सकते हैं जो क्योटो प्रोटोकॉल के अनुलग्नक B के तहत अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को पार कर रहे हैं।

कार्बन क्रेडिट क्या है?

  • कार्बन क्रेडिट के संदर्भ में: कार्बन क्रेडिट, जिसे कार्बन ऑफसेट भी कहा जाता है, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये क्रेडिट का प्रतिनिधित्व करता है जिसे उत्सर्जन में कमी परियोजना के माध्यम से वायुमंडल से कम किया गया है या हटा दिया गया है। 
    • इन क्रेडिट का उपयोग सरकारें, उद्योग या व्यक्ति कहीं और (किसी अन्य क्षेत्र में) होने वाले उत्सर्जन की क्षतिपूर्ति/भरपाई के लिये कर सकते हैं। जिन संस्थाओं को अपने उत्सर्जन को कम करना चुनौतीपूर्ण लगता है, वे उच्च वित्तीय लागत पर भी परिचालन जारी रख सकती हैं।
  • मुख्य विशेषताएँ: कार्बन क्रेडिट कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम का हिस्सा हैं, जहाँ सरकारें कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर एक सीमा निर्धारित करती हैं। जो कंपनियाँ अपने उत्सर्जन को निर्दिष्ट सीमा से नीचे ले जाती हैं, वे अपने अतिरिक्त क्रेडिट को उन अन्य कंपनियों को बेच सकती हैं जो अपनी सीमा से अधिक उत्सर्जन करती हैं।
  • बाज़ार के प्रकार:
    • अनुपालन बाज़ार: राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय कानून द्वारा शासित, जैसे कि यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार योजना (EU ETS), जहाँ कंपनियों को उत्सर्जन सीमाओं का पालन करना अनिवार्य है।
  • स्वैच्छिक बाज़ार: व्यक्तियों और कंपनियों को अपने उत्सर्जन की भरपाई के लिये स्वैच्छिक रूप से कार्बन क्रेडिट खरीदने की अनुमति देते हैं। इसे प्रायः निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहलों या स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अपनाया जाता है।
  • कार्बन क्रेडिट का महत्त्व:
    • जलवायु परिवर्तन में कमी: कार्बन क्रेडिट ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में योगदान देते हैं और पेरिस समझौते जैसे समझौतों में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं।
    • सतत् विकास को वित्तपोषित करना: कार्बन क्रेडिट की बिक्री से प्राप्त राजस्व को सतत् प्रथाओं, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं और पर्यावरण संरक्षण एवं अनुकूलता को बढ़ावा देने वाली अन्य पहलों में पुनर्निवेशित किया जा सकता है।
    • आर्थिक अवसर: कार्बन क्रेडिट बाज़ार पर्यावरण सेवाओं, नवीकरणीय ऊर्जा और संधारणीय कृषि में विशेषज्ञता रखने वाली कंपनियों के लिये नए व्यावसायिक अवसर प्रदान करता है।

कृषि में कार्बन क्रेडिट की क्या भूमिका है?

  • किसानों के लिये आर्थिक प्रोत्साहन: NITI आयोग के अनुसार, भारतीय कृषि देश के सकल उत्सर्जन में 13% का योगदान देती है। उत्सर्जन को कम करने या कार्बन सिक्वेसट्रेशन (कार्बन अवशोषण व संग्रहण) को बढ़ाने वाली स्थायी प्रथाओं को अपनाकर किसान कार्बन क्रेडिट अर्जित कर सकते हैं
  • बाज़ार के अवसर: वैश्विक कार्बन क्रेडिट बाज़ार बढ़ रहा है, कार्बन क्रेडिट की कीमतें 15 से 50 अमेरिकी डॉलर प्रति टन तक हैं। यह किसानों के लिये उनके संधारणीयता प्रयासों को मुद्रीकृत करने का एक आकर्षक अवसर प्रस्तुत करता है।
  • पर्यावरण अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना: कार्बन क्रेडिट कार्यक्रम किसानों को कृषि वानिकी, कवर क्रॉपिंग, कम जुताई और जैविक कृषि जैसी संधारणीय कृषि पद्धतियों को लागू करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं। ये प्रथाएँ न केवल कार्बन क्रेडिट सृजन करती हैं बल्कि जैव विविधता और मृदा स्वास्थ्य में भी सुधार करती हैं।
    • संधारणीय कृषि पद्धतियाँ: इसमें वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की पर्याप्त मात्रा को पृथक् (Sequester) करने की क्षमता है, जिससे अन्य क्षेत्रों में उत्पन्न उत्सर्जन को संतुलित करने में मदद मिलती है।
    • मृदा स्वास्थ्य सुधार: कार्बन क्रेडिट सृजन से जुड़ी पद्धतियाँ प्रायः मृदा कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मृदा स्वस्थ होती है, जो उच्च फसल उपज को सहारा दे सकती है।
  • राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के लिये समर्थन: भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। कार्बन क्रेडिट कृषि क्षेत्र को इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।
  • भारत समेत कई देशों ने पेरिस समझौते जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के तहत अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता जताई है। कार्बन क्रेडिट कृषि क्षेत्र को इन प्रतिबद्धताओं में योगदान करने के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।

वैश्विक कार्बन कृषि पहल (Global Carbon Farming Initiative) क्या हैं?

  • कार्बन ट्रेडिंग: अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और कनाडा जैसे कुछ देशों में स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार उभर रहे हैं।
    • ये प्लेटफॉर्म किसानों को सत्यापित कार्बन सिक्वेसट्रेशन (कार्बन अवशोषण व संग्रहण) प्रयासों में संलग्न होकर अतिरिक्त आय अर्जित करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे कार्बन कृषि तकनीकों को अपनाने को प्रोत्साहन मिलता है।
  • अन्य वैश्विक प्रयास: 'प्रति 1000 पर 4' जैसी पहल ।
    • केन्या की कृषि कार्बन परियोजना (विश्व बैंक द्वारा समर्थित) को पेरिस में वर्ष 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में प्रस्तुत किया गया था।
    • ऑस्ट्रेलिया की कार्बन फार्मिंग पहल, वैश्विक स्तर पर कार्बन फार्मिंग का समर्थन करती है।
  • भारत का कानूनी फ्रेमवर्क: भारत सरकार ने वर्ष 2022 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में एक संशोधन पारित किया, जो भारतीय कार्बन बाज़ार की नींव रखता है। इसके बाद काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) ने उद्योग हितधारकों की चिंताओं और दृष्टिकोणों को समझने के लिये एक चर्चा आयोजित की।
    • यह अंक संक्षेप में कार्बन बाज़ारों के दो प्रमुख प्रकारों - परियोजना-आधारित/ऑफसेट और उत्सर्जन व्यापार योजना (ETS) बाज़ारों का विश्लेषण करता है तथा उनकी प्रमुख विशेषताओं को रेखांकित करता है जो उनकी पर्यावरणीय अक्षुण्णता और कार्यात्मक सीमाओं को निर्धारित करती हैं।

कृषि में कार्बन क्रेडिट की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कार्बन लेखांकन की जटिलता: मृदा, मौसम और कृषि तकनीकों में भिन्नता के कारण कृषि में कार्बन सिक्वेसट्रेशन (कार्बन अवशोषण व संग्रहण) और उत्सर्जन में कमी को सटीक रूप से निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है। 
    • मानकीकृत पद्धतियों के अभाव के कारण ऋण मूल्यांकन में विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने इस प्रक्रिया में दोहरी गणना और ग्रीनवाशिंग को लेकर चिंता जताई है।
  • निधि की आवश्यकता: कार्बन क्रेडिट सृजन करने वाली संधारणीय प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रायः प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण और अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है, जो जोतधारकों के लिये एक बाधा हो सकती है।
    • इसके अलावा, ऐसी प्रथाओं को अपनाने से प्रारंभ में नुकसान हो सकता है; उदाहरण के लिये श्रीलंका में जैविक कृषि की ओर रुख करने से गंभीर खाद्य संकट उत्पन्न हो गया।
  • बाज़ार तक पहुँच और भागीदारी: कई किसान कार्बन क्रेडिट कार्यक्रमों और इसमें भागीदारी की प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं, जो संभावित राजस्व तक उनकी पहुँच को सीमित करता है। इसके अतिरिक्त, उन्हें प्रशासनिक बोझ, सीमित संसाधनों और परियोजना पैमाने की आवश्यकताओं को पूरा करने में कठिनाइयों के कारण कार्बन बाज़ारों में प्रवेश करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • विनियामक और नीतिगत अनिश्चितता: कार्बन क्रेडिट से संबंधित सरकारी नीतियों और विनियमों में परिवर्तन किसानों एवं निवेशकों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न कर सकता है, जिससे कार्बन क्रेडिट कार्यक्रमों में भागीदारी हतोत्साहित हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तनशीलता का प्रभाव: चरम मौसमी घटनाएँ और जलवायु परिवर्तन, कार्बन को प्रभावी रूप से संग्रहित करने की कृषि पद्धतियों की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे कार्बन क्रेडिट सृजन खतरे में पड़ सकता है।
    • उदाहरण के लिये भारी वर्षा या अत्यधिक तापमान से मृदा अपरदन, मृदा की कार्बन अवशोषण-संग्रहण क्षमता को कम कर सकता है, जिससे कृषि पद्धतियों से प्राप्त कार्बन क्रेडिट मूल्य और विश्वसनीयता में अनिश्चितता बढ़ सकती है।

कृषि में कार्बन क्रेडिट को प्रभावी ढंग से किस प्रकार अपनाया जा सकता है?

  • वित्तीय संसाधनों तक पहुँच:
    • सूक्ष्म वित्त और अनुदान: कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने वाली स्थायी प्रथाओं में निवेश करने के इच्छुक जोतधारकों के लिये सूक्ष्म ऋण, अनुदान या सब्सिडी तक पहुँच को सुगम बनाना।
      • उदाहरण के लिये केन्या में किसानों ने अफ्रीकी कृषि पूंजी कोष जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सूक्ष्म ऋण प्राप्त किया है, जिससे उन्हें मृदा कार्बन सिक्वेसट्रेशन में सुधार करने वाली पद्धतियों को लागू करने में सहायता मिली है।
    • भागीदारी के लिये प्रोत्साहन: सरकारें कार्बन क्रेडिट सृजन में योगदान देने वाली पद्धतियों को अपनाने वाले किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन दे सकती हैं।
      • दिसंबर 2023 में, भारत सरकार ने कार्बन ट्रेडिंग तंत्र को लागू करने और कृषि क्षेत्र में स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार (VCM) को बढ़ावा देने के लिये कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना शुरू की।
        • इस तरह के कार्यक्रम भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये अतिरिक्त राजस्व स्रोत प्रदान कर सकते हैं।
  • मानकीकरण और प्रमाणन :
    • स्पष्ट कार्यप्रणाली स्थापित करना: कृषि में कार्बन सिक्वेसट्रेशन और उत्सर्जन में कमी को निर्धारित करने व सत्यापित करने के लिये मानकीकृत कार्यप्रणाली विकसित करना, जिससे किसानों के लिये कार्बन क्रेडिट कार्यक्रमों में भाग लेना आसान हो सके।
    • प्रमाणन निकाय: पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिये प्रतिष्ठित प्रमाणन निकायों की स्थापना महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के लिये वेरा (Verra) का सत्यापित कार्बन मानक (VCS) कृषि कार्बन क्रेडिट को प्रमाणित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि वे सख्त गुणवत्ता और रिपोर्टिंग मानकों को पूरा करते हैं।
  • मौजूदा कृषि नीतियों के साथ एकीकरण :
    • कार्बन क्रेडिट कार्यक्रमों को राष्ट्रीय नीतियों के साथ संरेखित करना: राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ सुसंगत समर्थन और संरेखण सुनिश्चित करने के लिये कार्बन क्रेडिट पहलों को मौजूदा कृषि एवं पर्यावरण नीतियों में एकीकृत करना।
    • स्थिरता लक्ष्यों को बढ़ावा देना: किसानों को व्यापक संधारणीयता उद्देश्यों, जैसे मृदा स्वास्थ्य और जैव विविधता में सुधार, के भाग के रूप में कार्बन क्रेडिट प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • सामुदायिक सहभागिता और भागीदारी:
    • स्थानीय समुदायों को शामिल करना: समुदाय-आधारित पहलों को प्रोत्साहित करना जो किसानों को सामूहिक रूप से कार्बन क्रेडिट कार्यक्रमों में शामिल होने, संसाधनों और ज्ञान को साझा करने के लिये सशक्त बनाती हैं।
    • हितधारक सहयोग: कार्बन क्रेडिट अपनाने के लिये एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने हेतु किसानों, सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्र के भागीदारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. कृषि क्षेत्र में कार्बन व्यापार के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये क्या रणनीति अपनाई जा सकती है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आए और संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिल सके?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ‘कार्बन के सामाजिक मूल्य’ पद का सर्वोत्तम रूप से वर्णन करता है? आर्थिक मूल्य के रूप में यह निम्नलिखित में से किसका माप है? (2020) 

(a) प्रदत्त वर्ष में एक टन CO2 के उत्सर्जन से होने वाली दीर्घकालीन क्षति     
(b) किसी देश की जीवाश्म ईंधनाें की आवश्यकता, जिन्हें जलाकर देश अपने नागरिकाें को वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करता है
(c) किसी जलवायु शरणार्थी (Climate Refugee) द्वारा किसी नए स्थान के प्रति अनुकूलित होने हेतु किये गए प्रयास 
(d) पृथ्वी ग्रह पर किसी व्यक्ति विशेष द्वारा अंशदत कार्बन पदचिह्न

उत्तर: (a)


प्रश्न 2. ‘कार्बन क्रेडिट’ के संबंध में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है? (2011)

(a) कार्बन क्रेडिट प्रणाली को क्योटो प्रोटोकॉल के साथ अनुमोदित किया गया था। 
(b) कार्बन क्रेडिट उन देशों या समूहों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने ग्रीनहाउस गैसों को अपने उत्सर्जन कोटा से नीचे घटा दिया है। 
(c) कार्बन क्रेडिट प्रणाली का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की वृद्धि को सीमित करना है। 
(d) कार्बन क्रेडिट का व्यापार संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा समय-समय पर तय की गई कीमत पर किया जाता है। 

उत्तर: (d)


मेन्स

Q. क्या यू.एन.एफ.सी.सी.सी. के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्वों का अनुसरण जारी रखा जाना चाहिये, यद्यपि कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आयी है? आर्थिक संवृद्धि के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की दृष्टि से चर्चा कीजिये। (2014)