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जैव विविधता और पर्यावरण

वाॅटर सर्कुलरिटी

  • 18 Mar 2025
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, वाॅटर सर्कुलरिटी, उद्योग 4.0, 3G इथेनॉल उत्पादन, अमृत 2.0, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

मेन्स के लिये:

भारत में जल संकट और प्रबंधन, भारत में अपशिष्ट जल उपचार और पुन: उपयोग, सर्कुलर इकोनॉमी

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन, "वेस्ट टू वर्थ: मैनेजिंग इंडियाज़ अर्बन वाटर क्राइसिस थ्रू वेस्टवाटर रीयूज़", में जल अभाव और पर्यावरणीय क्षरण दोनों के समाधान के रूप में उपचारित अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग किये जाने द्वारा वाॅटर सर्कुलरिटी (जल संसाधनों का पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण) की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग पर अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • भारत में जल का बढ़ता अभाव: प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता के मामले में भारत विश्व स्तर पर 132वें स्थान पर है (भारत-WRIS), जहाँ अलवणीय जल संसाधनों में वर्ष 1951 के 5,200 क्यूबिक मीटर (m³) में 73% की कमी हुई है।
    • केंद्रीय जल आयोग के अनुमान अनुसार वर्ष 2021 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1,486 m³ थी, जो वर्ष 2031 तक घटकर 1,367 m³ हो जाएगी।
    • भारत पहले से ही जल-संकटग्रस्त राष्ट्र है (प्रति व्यक्ति 1,700 m³ से कम) तथा यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो इसके जल-विरल (प्रति व्यक्ति 1,000 m³ से कम) होने का खतरा है।
    • भारत पृथ्वी के 2% भूभाग पर विस्तृत है, लेकिन वैश्विक अलवणीय जल संसाधनों का केवल 4% ही इसके पास है, जबकि यहाँ विश्व की 18% जनसंख्या और 15% पशुधन का भरण-पोषण होता है, जिससे इसकी जल आपूर्ति पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।

Water_Scarcity

  • अपशिष्ट जल उत्पादन संकट: वर्ष 2020-21 में, भारत के नगरीय क्षत्रों से 72,368 मिलियन लीटर प्रति दिन (MLD) सीवेज उत्पन्न हुआ, लेकिन केवल 44% (31,841 MLD) ही उपचार योग्य था, जिसकी परिचालन क्षमता 26,869 MLD थी। 
    • परिणामस्वरूप, केवल 28% (20,236 MLD) का उपचार किया गया, जबकि 72% अनुपचारित रहा, जिससे जल क्षेत्र और भूमि प्रदूषित हुई।
    • आगामी 25 वर्षों में अपशिष्ट जल उत्पादन में 75-80% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जो वर्ष 2050 तक सालाना 48 BCM हो जाएगा, जो वर्तमान उपचार क्षमता का 3.5 गुना है।
    • अपशिष्ट जल एक अप्रयुक्त संसाधन है जो पर्यावरण प्रदूषण को कम करते हुए अलवणीय जल की आपूर्ति को पूरक बना सकता है।

Wastewater_Generation

  • जल विनियमन संबंधी चुनौतियाँ: भारत के नगर जल के लिये दूरवर्ती नदियों (बंगलुरु (कावेरी) और हैदराबाद (कृष्णा, गोदावरी)) पर अत्यधिक निर्भर हैं। इस निर्भरता से लागत बढ़ती है और विशेषकर नगरोपांत क्षेत्रों और अनौपचारिक बस्तियों में जल अभाव और असमान पहुँच की समस्या उत्पन्न होती है।
    • NITI आयोग समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार 16 राज्यों का स्कोर 100 में से 50 से कम है, जो खराब जल प्रबंधन को दर्शाता है। अधिकांश शहर जल क्षेत्रों में अनुपचारित अथवा आंशिक रूप से उपचारित सीवेज का निपटान करते हैं।
    • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के आदेशानुसार शहरों द्वारा अपने उपचारित जल का कम से कम 20% पुनः उपयोग किया जाना अनिवार्य है किंतु इसका उचित अनुपालन न नहीं किया जाता है।
    • अपशिष्ट जल का कृषि और उद्योग में अनौपचारिक रूप से पुनः उपयोग किया जाता है, लेकिन इसके लिये कोई संरचित नीति नहीं बनाई जाती। किसान स्वास्थ्य को खतरे में डालकर अनुपचारित सीवेज़ का उपयोग करते हैं।
    • बड़ी सिंचाई परियोजनाओं को शहरी क्षेत्रों में जलापूर्ति के लिये पुनः तैयार किया गया है (नर्मदा परियोजना (गुजरात), बीसलपुर परियोजना (राजस्थान)), जिससे कृषि के लिये जल की उपलब्धता कम हो गई है।

वाॅटर सर्कुलरिटी क्या है?

  • परिचय: वाॅटर सर्कुलरिटी, लोगों, प्रकृति और व्यवसायों के लिये मूल्य को अधिकतम करने हेतु जल उपचार चक्र के भीतर संसाधनों के पुनर्चक्रण, पुनः उपयोग और पुनर्प्राप्ति की प्रथा है। इससे अपशिष्ट कम होता है, प्रदूषण कम होता है, तथा प्राकृतिक प्रणालियों का पुनरुद्धार होता है।

Water_circularity

  • वाॅटर सर्कुलरिटी के लाभ: उपचारित अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण करने से औद्योगिक जल लागत कम हो जाती है, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मॉडल पर चलने वाले विद्युत संयंत्रों और डेटा केंद्रों में, क्योंकि इससे शीतलन के लिये स्वच्छ जल का उपयोग किया जाता है और उद्योग 4.0 को समर्थन मिलता है।
    • भारत में, प्रति वर्ष उत्पन्न होने वाले लगभग 317 वर्ग किलोमीटर नगरपालिका अपशिष्ट जल से संभावित रूप से 40 मिलियन हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकती है, जो कुल सिंचित भूमि का 10% है।
    • एक अध्ययन में पाया गया है कि ताप विद्युत संयंत्रों में अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण से प्रतिवर्ष 10 मिलियन क्यूबिक मीटर जल की बचत हो सकती है तथा प्रतिवर्ष 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर का लाभ हो सकता है।
    • भारत के श्रेणी I और II के शहर प्रतिदिन 2,500 टन पोषक तत्त्व (6,400 MLD सीवेज़ जल से) उत्पन्न करते हैं, जिसका मूल्य 19.5 मिलियन रुपए है। उपचारित सीवेज से पोषक तत्त्वों (नाइट्रोजन, फास्फोरस) को पुनः प्राप्त करके जैविक उर्वरकों का उत्पादन किया जा सकता है, कृत्रिम विकल्पों पर निर्भरता कम की जा सकती है, मृदा स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है, तथा फसल उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।
    • कृत्रिम भूजल पुनर्भरण के लिये उपचारित सीवेज़ का उपयोग करना, घटते जलभृतों को फिर से भरने में मदद करना और जल सुरक्षा में सुधार करना।
    • अपशिष्ट जल से बायोगैस निष्कर्षण जल संचालित सेवाओं को शक्ति प्रदान कर सकता है, जबकि शैवाल जैव ईंधन उत्पादन (जिसे 3G इथेनॉल उत्पादन के रूप में जाना जाता है) पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है और भारत की जलवायु नीतियों का समर्थन कर सकता है।

भारत में अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • वाटर क्रेडिट: वाटर रीयूज़ क्रेडिट उद्योगों को कार्बन ट्रेडिंग प्रणालियों के समान जल-कुशल प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार: विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार प्रणालियाँ (घर, समुदाय, संस्थान) केंद्रीकृत बड़े सीवेज़ उपचार संयंत्रों (STP) पर दबाव को कम कर सकती हैं और स्थानीय पुन: उपयोग को बढ़ा सकती हैं।
  • अमृत ​​2.0 के अंतर्गत स्मार्ट शहरों में स्थानीय अपशिष्ट जल उपचार और पुनः उपयोग प्रणालियों को एकीकृत करना।
  • उद्योग एवं विद्युत संयंत्र: STP के 50 किमी के भीतर ताप विद्युत संयंत्रों में 100% उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को लागू करना (विद्युत टैरिफ नीति 2016 के अनुसार)।
    • उपलब्ध उपचारित अपशिष्ट जल के बावजूद अभी भी स्वच्छ जल का उपयोग करने वाले उद्योगों पर जल निष्कर्षण शुल्क आरोपित करना।
  • अपशिष्ट जल वितरण नेटवर्क: अप्रयुक्त नहर नेटवर्क को अपशिष्ट जल आपूर्ति चैनलों में परिवर्तित करना (उदाहरण के लिये, सिंचाई के लिये उपचारित अपशिष्ट जल को चैनल में लाने की उत्तर प्रदेश की पहल के समान)।
  • कर एवं वित्तीय प्रोत्साहन: अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण में निजी निवेश के लिये कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करना तथा शून्य तरल निर्वहन (ZLD) प्रणाली (जो तरल अपशिष्ट निर्वहन को समाप्त करती है) को अपनाने के लिये प्रोत्साहन देना।
  • नियंत्रण एवं विनियमन: नियमित ऑडिट के साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के उत्सर्जन मानकों को लागू करना तथा वास्तविक समय जल गुणवत्ता निगरानी के लिये सभी STP में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) आधारित सेंसर विकसित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021)

(a) धौलावीरा
(b) कालीबंगा
(c) राखीगढ़ी
(d) रोपड़

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • धौलावीरा शहर कच्छ के रण में खादिर बेट द्वीप पर स्थित था, जहाँ स्वच्छ जल तथा उपजाऊ मिट्टी थी। कुछ अन्य हड़प्पाकालीन शहरों, जिन्हें दो भागों में विभाजित किया गया था, के विपरीत धौलावीरा को तीन भागों में विभाजित किया गया था, साथ ही प्रत्येक भाग विशाल पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ था, जिसमें विशाल प्रवेश द्वार बनाए गए थे।
  • बस्ती में एक बड़ा खुला क्षेत्र भी था, जहाँ सार्वजनिक समारोह आयोजित किये जाते थे। अन्य खोजों में हड़प्पा लिपि के बड़े अक्षर शामिल हैं जो सफेद पत्थर से उकेरे गए थे, साथ ही ये शायद लकड़ी से जड़े हुए थे। यह एक अनोखी खोज थी क्योंकि सामान्य रूप से हड़प्पाकालीन लिपि मुहरों जैसी छोटी वस्तुओं पर प्राप्त की गई थी।
  • अब तक खोजे गए 1,000 से अधिक हड़प्पा स्थलों में से छठा सबसे बड़ा होने के साथ 1,500 वर्षों से अधिक समय तक अधिकार में रहने वाला धौलावीरा न केवल मानव जाति की इस प्रारंभिक सभ्यता के उत्थान और पतन के पूरे प्रक्षेप पथ का साक्षी है, बल्कि शहरी संदर्भ में इसकी बहुमुखी उपलब्धियों को भी प्रदर्शित करता है। यह शहरी योजना, निर्माण तकनीक, जल प्रबंधन, सामाजिक शासन के साथ विकास, कला, विनिर्माण, व्यापार एवं विश्वास प्रणाली को प्रदर्शित करता है।
  • अत्यंत समृद्ध कलाकृतियों के साथ धौलावीरा की उचित रूप से संरक्षित शहरी बस्ती अपनी विशेषताओं के साथ क्षेत्रीय केंद्र का एक ज्वलंत चित्र दर्शाती है, जो समग्र रूप से हड़प्पा सभ्यता के वर्तमान ज्ञान में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
  • अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।

प्रश्न 2.  'वाटर क्रेडिट' (WaterCredit) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)

  1. यह जल और स्वच्छता क्षेत्र में कार्य करने के लिये माइक्रोफाइनेंस टूल का इस्तेमाल करता है।
  2.  यह विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में शुरू की गई एक वैश्विक पहल है।
  3.  इसका उद्देश्य गरीब लोगों को सब्सिडी पर निर्भर हुए बिना उनकी जल की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं?

 (a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

 उत्तर: (d)

  • वाटरक्रेडिट (WaterCredit) एक ऐसा कार्यक्रम है जो सुरक्षित जल और स्वच्छता के लिये प्रमुख बाधाओं में से एक यानी 'किफायती वित्तपोषण' को संबोधित करता है। WaterCredit उन लोगों के लिये छोटे ऋण (माइक्रोफाइनेंस) लाने में मदद करता है जिन्हें (गरीब लोगों) घरेलू पानी और शौचालय समाधान को वास्तविकता बनाने के लिये किफायती वित्तपोषण और संसाधनों तक पहुँच की आवश्यकता होती है। वाटरक्रेडिट जल और स्वच्छता क्षेत्र में काम करने के लिये माइक्रोफाइनेंस उपकरणों का इस्तेमाल करने वाला पहला कार्यक्रम है। अतः कथन 1 सही है।
  • यह मॉडल लोगों को विकासशील देशों में अपनी खुद की पानी और स्वच्छता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सशक्त बनाता है, जिनकी अक्सर पारंपरिक क्रेडिट बाज़ारों तक पहुँच नहीं होती है। यह सब्सिडी की आवश्यकता को समाप्त करता है। अतः कथन 3 सही है।
  • वाटरक्रेडिट water.org द्वारा शुरू की गई एक वैश्विक पहल है। यह, दुनिया में जल एवं स्वच्छता लाने के लिये कार्य कर रहा, एक गैर-लाभकारी संगठन है। अतः कथन 2 सही नहीं है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न 1 जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?  (वर्ष 2020)

प्रश्न 2. घटते जल-परिदृश्य को देखते हुए जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय सुझाएँ ताकि इसका विवेकपूर्ण उपयोग किया जा सके।  (वर्ष 2020)

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