लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

शासन व्यवस्था

इस्पात क्षेत्र में हरित हाइड्रोजन का उपयोग

  • 17 Feb 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, इस्पात क्षेत्र, ग्रीन हाइड्रोजन, डीकार्बोनाइज़ेशन

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप और उनकी रूपरेखा एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने "राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत इस्पात क्षेत्र में ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग के लिये केंद्रक/पायलट परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिये योजना दिशा-निर्देश” शीर्षक से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

  • इसका उद्देश्य इस्पात क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन और जीवाश्म ईंधन-आधारित फीडस्टॉक्स के स्थान पर ग्रीन हाइड्रोजन एवं उसके डेरिवेटिव को उपयोग में लाना है।
  • यह योजना वित्त वर्ष 2029-30 तक निर्धारित परिव्यय के साथ कार्यान्वित की जाएगी।

दिशा-निर्देशों से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • प्रमुख क्षेत्र:
    • इस्पात क्षेत्र में केंद्रक परियोजनाओं के लिये निम्नलिखित तीन क्षेत्रों को प्रमुख क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया है:
      • प्रत्यक्ष रूप से कम किये गए लौह निर्माण (डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरनमेकिंग) प्रक्रिया में हाइड्रोजन का उपयोग।
      • ब्लास्ट फर्नेस में हाइड्रोजन का उपयोग।
      • क्रमिक तरीके से जीवाश्म ईंधन के स्थान पर हरित हाइड्रोजन का उपयोग।
    • यह योजना लौह और इस्पात उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये हाइड्रोजन के किसी अन्य नवीन उपयोग से संबंधित केंद्रक पायलट परियोजनाओं का भी समर्थन करेगी।
  • हाइड्रोजन मिश्रण दृष्टिकोण:
    • इस्पात संयंत्रों को वर्तमान में अपनी प्रक्रियाओं में हरित हाइड्रोजन के एक छोटे प्रतिशत को मिश्रित करके तथा लागत अर्थशास्त्र में सुधार और प्रौद्योगिकी में विकास के साथ हाइड्रोजन के मिश्रण अनुपात को धीरे-धीरे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
  • नये संयंत्रों में समावेशन:
    • दिशा-निर्देशों के अनुसार संभावित इस्पात हरित हाइड्रोजन के साथ कार्य करने में सक्षम होंगे जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये संयंत्र भविष्य के वैश्विक निम्न-कार्बन इस्पात बाज़ारों में भाग लेने में सक्षम हैं।
    • यह योजना शत-प्रतिशत पर्यावरण-अनुकूल स्टील के उद्देश्य वाली ग्रीनफील्ड परियोजनाओं का भी समर्थन करेगी।

हरित हाइड्रोजन क्या है?

  • परिचय:
    • यह हाइड्रोजन एक प्रमुख औद्योगिक ईंधन है जिसके अमोनिया (प्रमुख उर्वरक), इस्पात, रिफाइनरियों और विद्युत उत्पादन सहित विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोग हैं।
    • हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है लेकिन शुद्ध हाइड्रोजन की मात्रा अत्यंत ही कम है। यह लगभग हमेशा ऑक्सीजन के साथ H2O तथा अन्य यौगिकों में मौजूद होता है।
    • जब विद्युत धारा जल से गुजरती है, तो यह इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से इसे मूल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में खंडित करती है। यदि इस प्रक्रिया के लिये उपयोग की जाने वाली विद्युत का स्रोत पवन अथवा सौर जैसे नवीकरणीय स्रोत है तो इस प्रकार उत्पादित हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन कहा जाता है।
    • हाइड्रोजन के साथ दर्शाए गए रंग हाइड्रोजन अणु को प्राप्त करने के लिये उपयोग की जाने वाली विद्युत स्रोत को संदर्भित करते हैं। उदाहरणार्थ यदि कोयले का उपयोग किया जाता है तो इसे ब्राउन हाइड्रोजन कहा जाता है।

  • हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की आवश्यकता:
    • प्रति इकाई भार में उच्च ऊर्जा सामग्री के कारण हाइड्रोजन ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है, यही कारण है कि इसका उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में किया जाता है।
    • विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन लगभग शून्य उत्सर्जन के साथ ऊर्जा के सबसे स्वच्छ स्रोतों में से एक है। इसका उपयोग कारों के लिये फ्यूल सेल अथवा उर्वरक एवं इस्पात विनिर्माण जैसे ऊर्जा खपत वाले उद्योगों में किया जा सकता है।
    • विश्व भर के देश हरित हाइड्रोजन क्षमता के वृद्धि हेतु कार्य कर रहे हैं क्योंकि यह ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी मदद कर सकता है।
    • हरित हाइड्रोजन वैश्विक चर्चा का विषय बन गया है, विशेष रूप से जब विश्व अपने सबसे बड़े ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है एवं जलवायु परिवर्तन का खतरा वास्तविकता में बदल रहा है।
  • अक्षय/नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित पहल:

इस्पात संयंत्रों में हरित हाइड्रोजन के उपयोग से संबंधित क्या चुनौतियाँ हैं?

  • तकनीकी अनुकूलन:
    • पारंपरिक इस्पात निर्माण प्रक्रियाओं से हाइड्रोजन-आधारित प्रक्रियाओं पर स्विच करने के लिये प्रमुख तकनीकी समायोजन की आवश्यकता होती है। डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरनमेकिंग में हाइड्रोजन को प्रमुख कारक के रूप में उपयोग करने के लिये, मौजूदा इस्पात संयंत्रों को पूर्ण रूप से पुनः डिज़ाइन करने अथवा उनमें महत्त्वपूर्ण बदलाव करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • अवसंरचना संबंधी आवश्यकताएँ:
    • हाइड्रोजन के उत्पादन, भंडारण और परिवहन के लिये अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण विकास की आवश्यकता है। हाइड्रोजन उत्पादन सुविधाएँ, भंडारण टैंक और वितरण नेटवर्क स्थापित करने से इस्पात संयंत्र संचालन में जटिलता एवं लागत बढ़ जाती है।
  • लागत प्रभाव:
    • हाइड्रोजन-आधारित प्रक्रियाओं को अपनाने से पारंपरिक तरीकों की तुलना में प्रारंभिक पूंजी की लागत अधिक आ सकती है। नवीन उपकरण, बुनियादी ढाँचे एवं प्रौद्योगिकी में निवेश और साथ ही मौजूदा परिचालन व्यय, इस्पात उत्पादकों के लिये वित्तीय चुनौतियाँ, विशेषकर बाज़ार की उतार-चढ़ाव वाली स्थितियों में, उत्पन्न कर सकते हैं।
  • आपूर्ति शृंखला संबंधी बाधाएँ:
    • निर्बाध इस्पात संयंत्र संचालन के लिये कच्चे माल की सोर्सिंग और उत्पादन स्तर में निरंतरता तथा हाइड्रोजन की एक विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। बाह्य आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता तथा आपूर्ति शृंखला में संभावित व्यवधान लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियाँ पेश कर सकते हैं।
  • कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS):
    • यद्यपि हाइड्रोजन-आधारित इस्पात उत्पादन कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं किंतु इस प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित CO2 में कैप्चर और स्टोरेज संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
    • शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के लिये इस्पात संयंत्र संचालन के साथ संगत लागत प्रभावी CCS प्रौद्योगिकियों का विकास करना भी महत्त्वपूर्ण है।

हरित इस्पात उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये क्या प्रयास किये गए हैं? 

  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय के पक्षकारों (COPs) के 28वें सम्मेलन के दौरान भारत ने LEAD-IT पहल के तहत स्वीडन के साथ अपनी साझेदारी की घोषणा की जो विशेष रूप से इस्पात क्षेत्र के औद्योगिक डीकार्बोनाइज़ेशन पर केंद्रित था।
      • स्वीडिश कंपनी SSAB वर्ष 2018 में हाइड्रोजन के माध्यम से स्टील का उत्पादन करने वाली विश्व की पहली कंपनी बनी।
      • एक अन्य स्वीडिश कंपनी, H2-ग्रीन स्टील भी वर्ष 2025 तक हाइड्रोजन का उपयोग करके हरित इस्पात का अपना पहला बैच तैयार करने की योजना कर रही है।
      • इसी प्रकार की पहल जापान में निप्पॉन स्टील और फ्राँस और जर्मनी में अन्य कंपनियों द्वारा की जा रही है।
  • घरेलू कंपनियाँ:
    • घरेलू स्तर पर, टाटा स्टील और आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया जैसी कंपनियों ने हाइड्रोजन के उपयोग की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है।
    • जनवरी 2024 में आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया ने महाराष्ट्र सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये, जिसमें महाराष्ट्र में 6 मिलियन टन प्रतिवर्ष का ग्रीन स्टील प्लांट स्थापित करने का प्रस्ताव है, इसमें कोयले के जगह हाइड्रोजन का उपयोग करने की योजना है।
  • सरकारी योजनाएँ:

आगे की राह

  • सहायक नीतियाँ और विनियम विकसित करना: भारत को हरित हाइड्रोजन के संबंध में एक व्यापक और सुसंगत नीति ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है जिसमें लक्ष्य निर्धारित करने, प्रोत्साहन प्रदान करने, मानक विकसित करने तथा नियम कार्यान्वित करने जैसे पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिये। भारत जर्मनी, फ्राँस और स्वीडन जैसे अन्य देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं एवं अनुभवों से भी सीख ले सकता है।
  • केंद्रक परियोजनाएँ और स्केल-अप: भारत को इस्पात संयंत्रों में हरित हाइड्रोजन के उपयोग संबंधी केंद्रक परियोजनाओं के कार्यान्वन की आवश्यकता है जिसमें प्राकृतिक गैस अथवा कोयले के साथ हाइड्रोजन का मिश्रण, डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरनमेकिंग और ब्लास्ट फर्नेस में हाइड्रोजन का उपयोग करना शामिल है।
  • ये परियोजनाएँ हरित हाइड्रोजन की साध्यता, व्यवहार्यता और लाभों को प्रदर्शित करने के साथ-साथ चुनौतियों एवं अंतरालों की पहचान करने में मदद कर सकती हैं।
  • इन परियोजनाओं से मिली सीख और परिणामों के आधार पर भारत इस्पात संयंत्रों में हरित हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ा सकता है।
  • निवेश और सहयोग वृद्धि: भारत को हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं में सार्वजनिक और निजी निवेश बढ़ाने के साथ-साथ सरकार, उद्योग, शिक्षा एवं नागरिक समाज जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन एवं मिशन इनोवेशन जैसी अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी और पहल के माध्यम से संबद्ध क्षेत्र में प्रगति कर सकता है।
  • अनुसंधान एवं विकास और नवाचार क्षमता में वृद्धि: भारत को हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में अपने अनुसंधान एवं विकास (R&D) और नवाचार क्षमताओं में वृद्धि करने की आवश्यकता है जिसमें उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना, स्टार्टअप्स व उद्यमियों का समर्थन करना एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा प्रसार की सुविधा प्रदान करना शामिल है।

अनुपूरक पाठन: ग्रीन हाइड्रोजन: भारत में अपनाने हेतु सक्षम उपाय रोडमैप, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, भारत के हरित हाइड्रोजन पहल के नुकसान

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन "निकास" के रूप में निम्नलिखित में से एक का उत्पादन करते हैं: (2010)

(a) NH3
(b) CH4
(c) H2O 
(d) H2O2

उत्तर: c

व्याख्या:

  • ईंधन सेल एक उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा (आणविक बंधनों में संग्रहीत ऊर्जा) को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
  • यह ईंधन के रूप में हाइड्रोजन गैस (H2) और ऑक्सीजन गैस (O2) का उपयोग करता है एवं सेल में अभिक्रिया के उपरांत उत्पाद जल (H2O), विद्युत और ऊष्मा हैं।
  • यह आंतरिक दहन इंजन, कोयला जलाने वाले विद्युत संयंत्रों और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में एक बड़ा सुधार है, जो सभी हानिकारक उपोत्पाद उत्पन्न करते हैं। अतः विकल्प (c) सही है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2