पवन ऊर्जा उत्पादन का उन्नयन | 11 Nov 2024

प्रिलिम्स के लिये:

उच्च न्यायालय, पवन ऊर्जा, पवन टरबाइन, नवीकरणीय ऊर्जा, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE), चेन्नई, उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, ग्रीन हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, पंचामृत, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC), कार्बन गहनता

मेन्स के लिये:

वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में नवीकरणीय ऊर्जा की भूमिका।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

अगस्त 2024 में तमिलनाडु सरकार ने पुराने टरबाइनों को बदलने और पवन ऊर्जा के उपयोग को अनुकूलित करने के लिये “पुनर्शक्तीकरण, नवीनीकरण और परिचालन अवधि विस्तार नीति” प्रस्तुत की।

  • इस क्रम में पवन ऊर्जा उत्पादकों ने इस नीति का विरोध किया और मद्रास उच्च न्यायालय का रुख किया।

पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये तमिलनाडु पुनर्शक्तीकरण, नवीनीकरण और परिचालन अवधि विस्तार नीति, 2024 क्या है?

  • संदर्भ: इसके तहत तमिलनाडु में 20 वर्ष से अधिक पुरानी पवन चक्कियों वाले पवन ऊर्जा उत्पादकों की ऊर्जा दक्षता हेतु उन्नयन की आवश्यकता निर्धारित की गई।
  • नीति फोकस: नीति में तीन प्रमुख पहलू शामिल हैं:
    • परिचालन अवधि विस्तार: 20 वर्ष से अधिक पुरानी पवन चक्कियों की परिचालन अवधि बढ़ाना।
    • पुनर्शक्तीकरण: पुरानी पवन चक्कियों को नई मशीनों से बदलना।
    • नवीनीकरण: पुरानी पवन चक्कियों का उन्नयन या मरम्मत करना।
  • क्षमता अवलोकन: तमिलनाडु में 9,000 मेगावाट पवन ऊर्जा क्षमता में से लगभग 300 मेगावाट 20 वर्ष से अधिक पुरानी मशीनरी से संबंधित है।
  • विरोध का कारण: परिचालन अवधि के विस्तार हेतु पवन ऊर्जा उत्पादकों से प्रत्येक पाँच वर्ष में 30 लाख रुपए प्रति मेगावाट का खर्च करने की अपेक्षा है। 
    • पुनः विद्युतीकरण के लिये पुरानी मशीनों को नई मशीनों से बदलने के लिये 30 लाख रुपए प्रति मेगावाट की दर से एकमुश्त खर्च की आवश्यकता है।

नोट: नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने सबसे पहले पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये राष्ट्रीय पुनर्शक्ति एवं परिचालन अवधि विस्तार नीति-2023 प्रस्तुत की।

  • भारत में पवन ऊर्जा के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
  • पवन ऊर्जा क्षमता: भारत में जमीनी स्तर से 150 मीटर ऊँचाई वाली पवन ऊर्जा क्षमता 1,163.86 गीगावाट है जबकि 120 मीटर ऊँचाई (टरबाइन) के संदर्भ में यह 695.51 गीगावाट है।
  • पवन ऊर्जा उपयोग: भारत की पवन ऊर्जा क्षमता का केवल 6.5% ही राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग किया जाता है तथा तमिलनाडु में लगभग 15% उपयोग किया जाता है। 
  • पवन ऊर्जा उत्पादन: वर्ष 2024 तक भारत को पवन ऊर्जा क्षमता और नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में चौथा स्थान दिया गया है।
  • लागत प्रतिस्पर्द्धी: वर्ष 2025-30 के दौरान भारत में पवन ऊर्जा परियोजनाओं से विद्युत उत्पादन, ताप विद्युत उत्पादन की तुलना में लागत प्रतिस्पर्द्धी होने की संभावना है।
  • पवन टरबाइन का रखरखाव:
    • पुनर्शक्तिकरण: 15 वर्ष से अधिक पुराने या 2 मेगावाट से कम क्षमता वाले पवन टरबाइनों को नए टरबाइनों से बदलना।
    • नवीनीकरण: ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये टरबाइनों की ऊँचाई बढ़ाना, ब्लेड बदलना या उच्च क्षमता वाले गियरबॉक्स लगाकर उन्हें उन्नत करना।
    • परिचालन अवधि का विस्तार: पुराने टरबाइनों की परिचालन अवधि बढ़ाने के लिये सुरक्षा उपायों को अपनाना।
  • पवन ऊर्जा आधारित राज्य: प्रमुख पवन ऊर्जा उत्पादक राज्यों में गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान और आंध्र प्रदेश शामिल हैं, जो मिलकर देश की स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता में 93.37% का योगदान देते हैं।
    • तमिलनाडु में 10,603.5 मेगावाट के साथ गुजरात के बाद दूसरी सबसे बड़ी स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता है।                                                                           

पवन टरबाइनों को पुनः शक्ति प्रदान करने और नवीनीकरण करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • भूमि की आवश्यकताएँ: नई टर्बाइनों, विशेष रूप से उच्च क्षमता वाली टर्बाइनों (2 मेगावाट और 2.5 मेगावाट) को पुरानी छोटी टर्बाइनों की तुलना में अधिक भूमि (3.5 से 5 एकड़) की आवश्यकता होती है।
  • विस्थापन: 1980 के दशक से जब टर्बाइन स्थापित किये गए, तब से पवन स्थलों के बीच आवास विकसित हो गए हैं, जिससे जनसंख्या के विस्थापन और पुनर्वास की नई चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।  
  • प्रौद्योगिकी विकास: प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये टर्बाइनों, ब्लेडों और गियरबॉक्सों को उन्नत करने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश, समय तथा विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।  
  • बैंकिंग समस्या: तमिलनाडु में वर्ष 2018 के बाद स्थापित पवन टर्बाइनों में बैंकिंग सुविधाएँ नहीं हैं, जिसका अर्थ है कि पुनः शक्ति प्रदान की गई टर्बाइनों को नई स्थापनाओं के रूप में माना जाता है और जनरेटर वित्तीय व्यवहार्यता को प्रभावित करते हुए उत्पन्न ऊर्जा को बैंक में नहीं रख सकते हैं।

भारत का नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य

  • भारत ने ग्लासगो यूनाइटेड किंगडम में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) में COP-26 में भारत की जलवायु कार्रवाई के निम्नलिखित पाँच अमृत तत्त्व (पंचामृत) प्रस्तुत किये हैं:
    • इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता तक पहुँचना है।
    • वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करना।
    • अभी से वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी।
    • वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता में 45% की कमी।
    • वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना।

नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल क्या हैं?

आगे की राह

  • बेहतर टैरिफ तंत्र: प्रतिस्पर्धी नवीकरणीय टैरिफ की पेशकश से स्थिर मूल्य निर्धारण सुनिश्चित होगा और परियोजना डेवलपर्स के लिये वित्तीय जोखिम कम होंगे।
  • परियोजना पूर्ण होने की समय-सीमा: परियोजना पूर्ण होने की समय-सीमा का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने से देरी को रोका जा सकेगा, परियोजना की दक्षता में सुधार होगा और पवन ऊर्जा क्षेत्र की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
  • सौर ऊर्जा के साथ एकीकरण: भारत को सौर-पवन ग्रिड एकीकरण में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि रात जैसे कम सौर उत्पादन वाले समय में ऊर्जा का दोहन किया जा सके।
  • ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर: उन्नत ऊर्जा भंडारण प्रणालियों में निवेश और ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करने से पवन ऊर्जा दक्षता अधिकतम होगी।
  • दीर्घकालिक विद्युत क्रय समझौते (PPA): डिस्कॉम के साथ दीर्घकालिक PPA सुरक्षित करने से डेवलपर्स के लिये एक स्थिर राजस्व प्रवाह उपलब्ध होगा और पवन ऊर्जा परियोजनाओं में अधिक रुचि उत्पन्न होगी।
  • प्रौद्योगिकी उन्नयन: बड़े और अधिक कुशल टर्बाइन, अपतटीय पवन प्रौद्योगिकी और हाइब्रिड सिस्टम जैसे नवाचार भारत की पवन ऊर्जा क्षमता को और बढ़ा सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: पवन ऊर्जा क्षमता में भारत विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है, लेकिन अपनी क्षमता का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही उपयोग करता है। इस क्षेत्र में चुनौतियों से निपटने के लिये किन समाधानों की आवश्यकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. ‘‘मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ’’ यह पहल किसके द्वारा प्रवर्तित की गई है? (2018)

(a)    जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी पैनल
(b)    UNEP सचिवालय
(c)    UNFCCC सचिवालय
(d)    विश्व मौसमविज्ञान संगठन

उत्तर: (c)


प्रश्न: वर्ष, 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. इस समझौते पर UN के सभी सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये और यह वर्ष 2017 से लागू होगा।
  2. यह समझौता ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को सीमित करने का लक्ष्य रखता है जिससे इस सदी के अंत तक औसत वैश्विकं तापमान की वृद्धि उद्योग-पूर्व स्तर (pre-industrial levels) से 2C या कोशिश करें कि 1.5 °C से भी अधिक न होने पाए।
  3. विकसित देशों ने वैश्विक तापन में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकारा और जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विकासशील देशों की सहायता के लिये 2020 से प्रतिवर्ष 1000 अरब डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 3 
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न: भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं ? (2021)