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सामाजिक न्याय

UNDP का 2023 जेंडर सोशल नॉर्म्स इंडेक्स

  • 15 Jun 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, UNDP का लैंगिक सामाजिक मानदंड सूचकांक, संसद में महिला प्रतिनिधित्व, मानव विकास सूचकांक, सुकन्या समृद्धि योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ  योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना

मेन्स के लिये:

भारत में लैंगिक समानता से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?  

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के अनुसार, पक्षपातपूर्ण लैंगिक सामाजिक मानदंड लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में प्रगति को बाधित करते हैं और मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

  • महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने वाले वैश्विक प्रयासों और अभियानों के बावजूद लोगों का एक महत्त्वपूर्ण प्रतिशत अभी भी महिलाओं के खिलाफ पक्षपातपूर्ण बना हुआ है।
  • UNDP का 2023 जेंडर सोशल नॉर्म्स इंडेक्स (GSNI) इन पूर्वाग्रहों की दृढ़ता एवं महिलाओं के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उनके प्रभाव की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

सूचकांक के प्रमुख निष्कर्ष: 

  • परिचय:  
    • UNDP ने चार आयामों राजनीतिक, शैक्षिक, आर्थिक और भौतिक अखंडता में महिलाओं के प्रति लोगों के नज़रिये को ट्रैक किया। UNDP की रिपोर्ट है कि लगभग 90% लोग अभी भी महिलाओं के खिलाफ कम-से-कम एक पूर्वाग्रह रखते हैं।
  • जाँच परिणाम:  
    • राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व: लैंगिक सामाजिक मानदंडों में पूर्वाग्रह राजनीतिक भागीदारी में समानता की कमी में को दर्शाता है। दुनिया की लगभग आधी आबादी का मानना है कि पुरुष बेहतर राजनीतिक नेता बनते हैं, जबकि पाँच में से दो का मानना है कि पुरुष बेहतर कारोबारी अधिकारी बनते हैं।
      • अधिक पूर्वाग्रह वाले देश संसद में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व प्रदर्शित करते हैं।
        • औसतन वर्ष 1995 के बाद से दुनिया भर में राज्य या सरकार के प्रमुखों की हिस्सेदारी लगभग 10% रही है और दुनिया भर में संसद की एक-चौथाई से अधिक सीटों पर महिलाओं का कब्ज़ा है।
      • संघर्ष-प्रभावित देशों में मुख्य रूप से यूक्रेन (0%), यमन (4%) और अफगानिस्तान (10%) में हाल के संघर्षों को लेकर बातचीत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है।
      • स्वदेशी, प्रवासी और विकलांग महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त करने में और भी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण: शिक्षा में प्रगति के बावजूद आर्थिक सशक्तीकरण में लैंगिक अंतर बना हुआ है।
    • महिलाओं की शिक्षा में वृद्धि से भी बेहतर आर्थिक परिणामों में परिवर्तन नहीं देखा गया है।
    • 59 देशों में जहाँ वयस्क महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक शिक्षित हैं वहाँ औसत आय में 39% का अंतर है।
  • घरेलू और देखभाल के कार्य: लैंगिक सामाजिक मानदंडों में उच्च पूर्वाग्रह वाले देशों में घरेलू और देखभाल के काम में काफी असमानता है।
    • पुरुषों की तुलना में महिलाएँ इन कार्यों पर लगभग छह गुना अधिक समय व्यतीत करती हैं, जिससे उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के अवसर सीमित हो जाते हैं।
    • इसके अतिरिक्त 25% लोगों का मानना ​​है कि रूढ़िवादी पूर्वाग्रहों के चलते एक व्यक्ति के लिये अपनी पत्नी को पीटना उचित है।
  • उम्मीद के संकेत और सफलताएँ: सर्वेक्षण किये गए 38 में से 27 देशों में किसी भी संकेतक में बिना किसी पूर्वाग्रह वाले लोगों की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई, जबकि समग्र प्रगति सीमित रही है।
    • सबसे व्यापक सुधार जर्मनी, उरुग्वे, न्यूज़ीलैंड, सिंगापुर और जापान में देखा गया, जहाँ महिलाओं की तुलना में पुरुषों ने अधिक प्रगति की।
    • नीतियों, नियमों और वैज्ञानिक प्रगति के माध्यम से लैंगिक सामाजिक मानदंडों में सफलता प्राप्त की गई है।
  • बदलाव की तत्काल आवश्यकता: पक्षपाती लैंगिक सामाजिक मानदंड न केवल महिलाओं के अधिकारों को बाधित करते हैं बल्कि सामाजिक विकास एवं कल्याण में भी बाधा उत्पन्न करते हैं।
    • लैंगिक सामाजिक मानदंडों में प्रगति की कमी मानव विकास सूचकांक (HDI) की रिपोर्ट में गिरावट के साथ मेल खाती है।
    • महिलाओं को सुरक्षा और स्वतंत्रता मिलने से समाज को समग्र रूप से लाभ प्राप्त होता है।

भारत में लैंगिक समानता से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड: भारत में गहरे सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड हैं जो लैंगिक पूर्वाग्रह को बनाए रखते हैं। लैंगिक भूमिकाओं और अपेक्षाओं के विषय में पारंपरिक मान्यताएँ महिलाओं की स्वतंत्रता एवं अवसरों को सीमित करती हैं।
    • उदाहरण के लिये पुरुष बच्चों को प्राथमिकता एक महत्त्वपूर्ण लिंग असंतुलन और कन्या भ्रूण हत्या के उदाहरणों की ओर ले जाती है।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा: घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और बलात्कार जैसी महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएँ भारत में अभी भी जारी हैं।
    • हालाँकि कानून बनाए गए हैं और जागरूकता अभियान भी शुरू किये गए हैं लेकिन ये घटनाएँ बनी रहती हैं जो रूढ़िवादी दृष्टिकोण और व्यवहार को बदलने की चुनौती का प्रदर्शन करती हैं।
    • हाल के मामलों ने व्यवस्था में खामियों को उजागर किया और ऐसे मामलों से निपटने के संबंध में जनता में आक्रोश देखा गया है जैसे कि वर्ष 2020 में हाथरस सामूहिक बलात्कार के मामला
  • आर्थिक असमानता: पुरुषों और महिलाओं के बीच आर्थिक असमानताओं के कारण लैंगिक पूर्वाग्रह में वृद्धि होती हैं। भारत में महिलाओं को अक्सर असमान वेतन, सीमित नौकरी के अवसर और निर्णायक भूमिकाओं में प्रतिनिधित्व की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • समान कार्य के लिये पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आय कम होने के कारण लैंगिक वेतन अंतर एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: भारत के कुछ हिस्सों में महिलाओं के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच के कारण लैंगिक पूर्वाग्रह अभी भी व्याप्त है।
  • इसके अतिरिक्त प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच, महिलाओं के कल्याण और विकास के लिये अन्य बाधाओं में से हैं।
  • समाजीकरण प्रक्रिया में विभेदीकरण: भारत के कई हिस्सों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी पुरुषों और महिलाओं के लिये अलग-अलग सामजिक मानदंड हैं।
  • महिलाओं से मृदुभाषी के साथ ही शांत रहने की उम्मीद की जाती है। यह उम्मीद की जाती है कि वे एक निश्चित व निर्धारित तरीके से व्यवहार करें, जबकि पुरुष आत्मविश्वासी, मुखर और अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं। 

महिला सशक्तीकरण से संबंधित हालिया सरकारी योजनाएँ

आगे की राह  

  • शिक्षा के बेहतर अवसरः महिलाओं को शिक्षित करने का अर्थ है पूरे परिवार को शिक्षित करना। महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करने में शिक्षा की अहम भूमिका होती है।
    • साथ ही भारत की शिक्षा नीति को युवा पुरुषों और लड़कों को लड़कियों एवं महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिये।
  • सभी के लिये सम्मान, सहानुभूति और समान अवसरों पर बल देते हुए कम उम्र से ही स्कूली पाठ्यक्रम में लैंगिक समानता एवं संवेदनशीलता को शामिल करने की आवश्यकता है।
  • आर्थिक स्वतंत्रता: उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने और महिलाओं को अपना व्यवसाय स्थापित करने के लिये वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण तथा परामर्श प्रदान करने व समान वेतन एवं नम्य कार्य व्यवस्था को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • महिलाओं की रोज़गार क्षमता बढ़ाने और पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान क्षेत्रों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों को लागू करने की भी आवश्यकता है।
  • सुरक्षा उपायों के संदर्भ में जागरूकता: पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु मौजूदा सरकारी पहलों एवं तंत्रों के संदर्भ में महिलाओं में जागरूकता बढ़ाने के लिये बहु-क्षेत्रीय रणनीति तैयार की जानी चाहिये।
    • पैनिक बटन, निर्भया पुलिस दस्ता महिला सुरक्षा की दिशा में कुछ अच्छे कदम हैं।
  • महिला विकास से महिला नेतृत्व विकास तक: विकास के लाभों के निष्क्रिय प्राप्तकर्त्ता होने के बजाय महिलाओं को भारत की प्रगति और विकास के निर्माता के रूप में पुनर्परिभाषित किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: स्वाधार और स्वयं सिद्ध महिलाओं के विकास के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू की गई दो योजनाएँ हैं। उनके बीच अंतर के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010) 

  1. स्वयं सिद्ध उन लोगों के लिये है जो प्राकृतिक आपदाओं या आतंकवाद से बची महिलाओं, ज़ेलों से रिहा महिला कैदियों, मानसिक रूप से विकृत महिलाओं आदि जैसी कठिन परिस्थितियों में हैं, जबकि स्वाधार स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं के समग्र सशक्तीकरण के लिये है।  
  2. स्वयं सिद्ध को स्थानीय स्व-सरकारी निकायों या प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है, जबकि स्वाधार को राज्यों में स्थापित आईसीडीएस इकाइयों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d) 


प्रश्न. “महिलाओं का सशक्तीकरण जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019) 

प्रश्न. भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2015) 

प्रश्न. महिला संगठन को लैंगिक पूर्वाग्रह से मुक्त बनाने के लिये पुरुष सदस्यता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

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