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भारतीय समाज

राजनीति में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व

  • 15 Mar 2023
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 13/02/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “In politics and bureaucracy, women are severely under-represented” लेख पर आधारित है। इसमें राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व संबंधी मुद्दों और उनके समाधान के तरीकों के बारे में चर्चा की गई है।

अपेक्षा की जाती है कि भारत वर्ष 2030 तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था अमेरिका की 1.6% की तुलना में 6.8% की दर से विकास करेगी। लेकिन भारत के इस आशाजनक आर्थिक विकास के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज में महिलाओं की भागीदारी अभी भी अनुरूप गति नहीं पा सकी है।

हाल के समय में भारतीय चुनावों में एक आश्चर्यजनक व्यतिरेक दिखाई पड़ा है। देश में महिला मतदाताओं द्वारा मतदान में वृद्धि हुई है जहाँ वर्ष 2022 में संपन्न हुए चुनावों में आठ में से सात राज्यों में महिला मतदान में उछाल देखा गया।

यह स्थिति आशाजनक प्रतीत होती है, लेकिन स्थानीय चुनावों, राज्य चुनावों और लोकसभा चुनावों में महिला मतदाताओं का यह बढ़ता अनुपात स्वयं महिलाओं द्वारा वृहत रूप से चुनाव लड़ने के रूप में परिलक्षित नहीं हुआ है।

इस परिदृश्य में, राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की राह में मौजूद बाधाओं को दूर करना समय की मांग है। लैंगिक समता प्राप्त करने के लिये और यह सुनिश्चित करने के लिये कि महिलाओं को राजनीति में भाग लेने का समान अवसर मिले, नीति निर्माताओं, नागरिक समाज संगठनों और आम जनता को मिलकर कार्य करना होगा।

राजनीति और नौकरशाही के क्षेत्र में महिलाओं की वर्तमान स्थिति 

  • राजनीति में:
    • अंतर-संसदीय संघ (Inter-Parliamentary Union- IPU) द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, भारत में 17वीं लोकसभा में कुल सदस्यता में महिलाएँ मात्र 14.44% का प्रतिनिधित्व करती हैं।
    • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की नवीनतम उपलब्ध रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएँ संसद के सभी सदस्यों के मात्र 10.5% का प्रतिनिधित्व करती हैं (अक्टूबर 2021 तक की स्थिति के अनुसार)।
      • राज्य विधानसभाओं के मामले में महिला विधायकों (MLAs) का प्रतिनिधित्व औसतन 9% है।
      • इस संबंध में भारत की रैंकिंग में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है। यह वर्तमान में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है।
  • नौकरशाही में:
    • केंद्र और राज्य स्तर पर विभिन्न लोक सेवा नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी इतनी कम है कि महिला उम्मीदवारों के लिये निःशुल्क आवेदन की सुविधा प्रदान की गई है।
    • इसके बावजूद, भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के आँकड़ों और वर्ष 2011 की केंद्र सरकार की रोज़गार जनगणना के अनुसार, इसके कुल कर्मियों में 11% से भी कम महिलाएँ थीं, जिनकी संख्या वर्ष 2020 में 13% तक दर्ज की गई।
    • इसके अलावा, वर्ष 2022 में IAS में सचिव स्तर पर केवल 14% महिलाएँ कार्यरत थीं।
      • सभी भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की साथ गणना करें तो भी केवल तीन महिलाएँ मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत हैं।
    • भारत में कभी कोई महिला कैबिनेट सचिव नहीं बनी। गृह, वित्त, रक्षा और कार्मिक मंत्रालय में भी कभी कोई महिला सचिव नहीं रही हैं।
  • अन्य क्षेत्र:
    • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) के स्वामियों में केवल 20.37% महिलाएँ हैं, मात्र 10% स्टार्ट-अप महिलाओं द्वारा स्थापित किये गए हैं और श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 23.3% है।

राजनीति और नौकरशाही में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम क्यों है?

  • पितृसत्तात्मक मानसिकता:
    • भारत एक गहन पितृसत्तात्मक समाज है और महिलाओं को प्रायः पुरुषों से हीन माना जाता है।
    • यह मानसिकता समाज में गहराई तक समाई हुई है और महिलाओं की राजनीति में नेतृत्व एवं भागीदारी की क्षमता के संबंध में लोगों की सोच को प्रभावित करती है।
  • सामाजिक मानदंड और रूढ़िवादिता:
    • भारत में महिलाओं से प्रायः पारंपरिक लिंग भूमिकाओं के अनुरूप व्यवहार की उम्मीद की जाती है और उन्हें राजनीति में करियर बनाने से हतोत्साहित किया जाता है। सामाजिक मानदंड और रूढ़िवादिता यह निर्धारित करती है कि महिलाओं को पत्नियों एवं माताओं के रूप में अपनी भूमिकाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये, जबकि राजनीति को प्रायः पुरुषों का क्षेत्र माना जाता है।
  • शिक्षा तक पहुँच का अभाव:
    • भारत में महिलाओं की ऐतिहासिक रूप से शिक्षा तक सीमित पहुँच रही है, जिसने राजनीति में भागीदारी की उनकी क्षमता को बाधित किया है। यद्यपि हाल के वर्षों में परिदृश्य में कुछ सुधार आया है, फिर भी बहुत-सी महिलाओं में अभी भी राजनीतिक पद पर कार्य कर सकने हेतु आवश्यक शिक्षा एवं कौशल की कमी है।
    • शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER) 2020 के अनुसार, 6-10 वर्ष आयु के बीच के 5.5% बच्चे और 11-14 वर्ष आयु के बीच के 15.9% बच्चे स्कूल में नामांकित नहीं थे।
  • राजनीतिक दलों में सीमित प्रतिनिधित्व:
    • महिलाओं को राजनीतिक दलों में प्रायः कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है, जिससे उनके लिये अपने दलों में विभिन्न पदों से गुज़रते हुए आगे बढ़ना और चुनाव के लिये दल का नामांकन प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
    • प्रतिनिधित्व की इस कमी को राजनीतिक दलों के भीतर मौजूद लैंगिक पूर्वाग्रह और इस धारणा का परिणाम माना जा सकता कि महिलाएँ पुरुषों की तरह चुनाव जीतने योग्य नहीं होतीं।
  • हिंसा और उत्पीड़न:
    • राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं को प्रायः हिंसा और उत्पीड़न (भौतिक एवं ऑनलाइन दोनों रूप में) का शिकार होना पड़ता है, जो फिर महिलाओं को राजनीति में प्रवेश या विभिन्न मुद्दों पर मुखर होने से हतोत्साहित कर सकता है। राजनीति में सुरक्षित एवं समावेशी अवसर की कमी महिलाओं की भागीदारी के मार्ग में एक प्रमुख बाधा है।
  • असमान अवसर:
    • राजनीति में महिलाओं को प्रायः कम वेतन, संसाधनों तक कम पहुँच और सीमित नेटवर्किंग जैसे असमान अवसरों की स्थिति का सामना करना पड़ता है। यह असमानता महिलाओं के लिये पुरुष उम्मीदवारों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना और राजनीति में सफल होना चुनौतीपूर्ण बना सकती है।
  • संरचनात्मक बाधाएँ:
    • महिला सशक्तिकरण के लिये संरचनात्मक बाधाएँ आम तौर पर वे प्राथमिक समस्याएँ हैं जो उनके लिये सेवाओं का अंग बनना कठिन बनाती हैं।
    • दूरस्थ संवर्गों में पदस्थापन, पितृसत्तात्मक कंडीशनिंग और नौकरी विशेष की आवश्यकताओं एवं मांगों के साथ पारिवारिक प्रतिबद्धताओं के संतुलन जैसी सेवा शर्तें ऐसे कुछ सामाजिक कारक हैं जो महिलाओं को सिविल सेवाओं से बाहर रखने में योगदान करते हैं।
    • इसके अलावा, एक आम धारणा यह है कि महिलाओं को समाज कल्याण, संस्कृति, महिला एवं बाल विकास जैसे ‘सॉफ्ट’ मंत्रालयों के लिये प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

राजनीति में महिलाओं का अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व कैसे किया जा सकता है?

  • सीटों का आरक्षण:
    • राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक यह है कि विधायी निकायों में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित की जाएँ।
    • बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में इसे लागू किया गया है, जहाँ स्थानीय निकायों में कुल सीटों के कुछ प्रतिशत महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
  • राजनीतिक दलों द्वारा महिला प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना:
    • राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि चुनावों के लिये उम्मीदवारों के चयन में वे महिलाओं को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान करें।
    • उन्हें महिला उम्मीदवारों के चयन का प्रयास करना चाहिये और आसानी से जीतने योग्य सीटों पर उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण:
    • राजनीति में भागीदारी हेतु महिलाओं को सशक्त करने के लिये शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा सकते हैं।
    • इससे महिलाओं को अपना आत्मविश्वास एवं कौशल विकसित करने और राजनीति की जटिलताओं को समझने में मदद मिलेगी।
  • स्थानीय महिला नेताओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना:
    • स्थानीय महिला नेताओं को प्रोत्साहन और समर्थन देकर राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है। परामर्श कार्यक्रमों और अन्य सहायता पहलों के माध्यम से इस उद्देश्य की पूर्ति की जा सकती है।
  • राजनीति में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को संबोधित करना:
    • राजनीति में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उनके प्रभावी प्रतिनिधित्व के लिये एक प्रमुख बाधा है। इस समस्या के समाधान के लिये और राजनीति में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये जागरूकता का प्रसार करने, सुरक्षित वातावरण का निर्माण करने जैसे विभिन्न कदम उठाये जाने चाहिये।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करना:
    • राजनीति में महिलाओं का प्रभावी प्रतिनिधित्व पितृसत्ता एवं लैंगिक मानदंडों जैसी सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं से प्रभावित हो सकता है। इन मुद्दों को विभिन्न अभियानों, शिक्षा एवं जागरूकता कार्यक्रमों और ‘बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ’, सुकन्या समृद्धि योजना जैसे सामाजिक सुधार पहलों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिये।
  • कार्य-जीवन संतुलन के लिये सहायता प्रदान करना:
    • कई महिलाओं को अपने परिवार एवं निजी जीवन के साथ अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को संतुलित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लचीले शेड्यूल, बाल देखभाल और मातृ/पितृ अवकाश (Parental leave) जैसे उपायों के माध्यम से कार्य-जीवन संतुलन (Work-life balance) को समर्थन प्रदान कर इस मुद्दे को हल किया जा सकता है।
      • हाल ही में केरल सरकार ने उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत सभी राज्य विश्वविद्यालयों में छात्राओं के लिये मासिक धर्म अवकाश की घोषणा की है।
  • दृश्यता और मान्यता बढ़ाना:
    • राजनीति में सक्रिय महिलाओं को उनकी उपलब्धियों के लिये अधिक दृश्यता और मान्यता प्रदान की जानी चाहिये।
    • यह अन्य महिलाओं को राजनीति से संलग्न होने के लिये प्रेरित करने और राजनीति के क्षेत्र में वृहत लैंगिक समानता की संस्कृति का निर्माण करने में मदद कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बाधित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और उन्हें दूर करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

Q. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019)

Q. विविधता, समानता और समावेश सुनिश्चित करने के लिये उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021)

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