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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भविष्य का संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन और संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं में सुधार

  • 24 Sep 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र महासचिव , स्टॉकहोम+50 सम्मेलन , उच्च सागर संधि , सतत विकास लक्ष्य , पेरिस समझौता , जीवाश्म ईंधन , कृत्रिम बुद्धिमत्ता , द्वितीय विश्व युद्ध , अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स  के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुधार की आवश्यकता, संयुक्त राष्ट्र सुधार और भारत, अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त राष्ट्र (UN) महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही में भविष्य का संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन, 2024 को संबोधित किया और वैश्विक शांति, सुरक्षा और वित्त से संबंधित पुरानी संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं में तत्काल सुधार का आह्वान किया । भारत के प्रधानमंत्री ने भी शिखर सम्मेलन में भाग लिया।

 भविष्य का संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • संयुक्त राष्ट्र के भविष्य का संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शासन में सुधार और उसे मजबूत बनाना है। शिखर सम्मेलन का उद्देश्य समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना और आने वाली पीढ़ियों के लिये एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करना है। 
  • यह शिखर सम्मेलन 2022 संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण स्टॉकहोम+50 सम्मेलन और उच्च सागर संधि जैसे संयुक्त राष्ट्र के हालिया प्रयासों पर आधारित है। 
    • शिखर सम्मेलन का विषय है 'बेहतर कल के लिये बहुपक्षीय समाधान'। 
    • शिखर सम्मेलन का समापन एक परिणाम दस्तावेज - भविष्य के लिये एक समझौता, तथा दो अनुलग्नकों, ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट और भावी पीढ़ियों पर एक घोषणा को अपनाने के साथ हुआ।
  • भविष्य के लिये समझौता : इसका उद्देश्य सतत विकास लक्ष्यों (SDG) और जलवायु कार्रवाई के लिये पेरिस समझौते के लक्ष्यों में तेजी लाना है। इसमें जीवाश्म ईंधन से संक्रमण  और एक स्थायी और शांतिपूर्ण भविष्य सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता शामिल है ।
    • ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट प्रौद्योगिकी तक समान पहुँच  को बढ़ावा देता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि इसका लाभ सभी को मिल सके। 
    • संयुक्त राष्ट्र के भीतर एआई पर एक बहु-विषयक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक पैनल के निर्माण पर बल दिया, जिससे प्रभाव, ज़ोखिम और अवसरों के साक्ष्य-आधारित आकलन के माध्यम से वैज्ञानिक समझ को आगे बढ़ाने के लिये संतुलित भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके और वर्तमान पहलों और अनुसंधान नेटवर्क का उपयोग किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)(एसडीजी 17) के शासन पर पहला सार्वभौमिक समझौता शुरू हुआ
    • दीर्घकालिक विचार को बढ़ावा देने के लिये "भविष्य की पीढ़ियों पर घोषणा (Declaration on Future Generations)" वर्तमान निर्णय निर्माताओं से भविष्य की पीढ़ियों के हितों को ध्यान में रखने का आह्वान करती है।
      • यह परमाणु निरस्त्रीकरण, स्वायत्त हथियारों को विनियमित करने तथा बाह्य अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ को रोकने के लिये प्रतिबद्ध है, जो एक दशक से अधिक समय में परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये पहला बहुपक्षीय समर्थन है।
  • शिखर सम्मेलन में भारत का रुख: भारत प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में सुधारों का आह्वान करता है, तथा अफ्रीकी देशों के साथ-साथ स्वयं को स्थायी सदस्यता में शामिल करने को बढ़ावा देता है।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने साइबर, समुद्री और अंतरिक्ष को संघर्षों में नए मोर्चों के रूप में उद्धृत करते हुए सुरक्षा बनाए रखने के लिये अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे का आग्रह किया। उन्होंने वैश्विक डिजिटल शासन का समर्थन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे की पेशकश की।
  • भारत ने भविष्य के लिये संयुक्त राष्ट्र के समझौते तथा एआई शासन और डिजिटल सहयोग पर पहल का समर्थन किया।

संयुक्त राष्ट्र में अब सुधार की आवश्यकता क्यों?

  • पुराना ढाँचा: संयुक्त राष्ट्र की स्थापना वर्ष 1945 में हुई थी, तब केवल 51 देश ही इसके सदस्य थे, जबकि वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 193 है। 
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 1945 की तुलना में बारह गुनी वृद्धि हुई है , तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली औपनिवेशिक काल के दौरान तैयार की गई थी।
  • वैश्विक असमानताएँ: विकासशील राष्ट्र बढ़ते ऋण और असमानताओं का सामना कर रहे हैं जो सतत् विकास में बाधा डालते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्तमान वैश्विक प्रणालियाँ वर्तमान विश्व की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाती हैं।
  • तकनीकी और भू-राजनीतिक बदलाव: आधुनिक तकनीकी प्रगति और बदलती वैश्विक शक्ति गतिशीलता वर्तमान वैश्विक चुनौतियों, जैसे जलवायु कार्रवाई, सतत् विकास एवं आर्थिक असमानताओं से निपटने में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की संस्थाओं की अपर्याप्तता को उज़ागर करती है।
  • वैधता और विश्वसनीयता से संबंधित मुद्दे: सुरक्षा परिषद की वैधता और विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रभावी ढंग से बनाए रखने के लिये, परिषद को सभी सदस्य देशों की सामान्य इच्छा को प्रतिबिंबित करना चाहिये, न कि कुछ चुनिंदा स्थायी सदस्यों के नियंत्रण में रहना चाहिये। 
  • परिषद के निर्णयों और कार्यों की वैधता बढ़ाने के लिये सुधार आवश्यक है, क्योंकि इसकी वर्तमान स्थायी सदस्यता आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
  • असमान प्रतिनिधित्व: एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों का वर्तमान सुरक्षा परिषद संरचना में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है। 
  • यह असंतुलन प्रतिनिधित्व की समानता के बारे में चिंताएँ पैदा करता है और परिषद की निर्णय लेने की प्रक्रिया की प्रभावशीलता को कमज़ोर करता है । 
  • इन असमानताओं को दूर करने के लिये गैर-स्थायी सीटों का न्यायसंगत वितरण आवश्यक है।
  • वित्तीय और प्रशासनिक सुधार: संयुक्त राष्ट्र की वित्तीय स्थिरता सर्वोपरि है, विशेष रूप से तब जब उसे शांति स्थापना और विकास पहलों की बढ़ती मांगों का सामना करना पड़ रहा है। 
  • जापान के सुधार प्रस्ताव में, वित्तीय दायित्वों को सदस्य देशों की ज़िम्मेदारियों के साथ संरेखित करने तथा निष्पक्ष एवं आनुपातिक योगदान सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है।
  • वैश्विक सुरक्षा चुनौतियाँ: वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण जटिल चुनौतियों का सामना कर रहा है जिनमें क्षेत्रीय संघर्ष, आतंकवाद और मानवीय संकट शामिल हैं। 
  • इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने के लिये एक प्रभावी सुरक्षा परिषद आवश्यक है। सुधारों से निवारक कूटनीति और शांति-निर्माण रणनीतियों को लागू करने की संयुक्त राष्ट्र की क्षमता बढ़ेगी।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने क्या सुधार प्रस्तावित किये?

  • सुरक्षा परिषद में सुधार: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अब वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है और सुधार के बिना इसकी विश्वसनीयता कम होने का खतरा है।
    • गुटेरेस ने अफ्रीका, एशिया-प्रशांत और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों के कम प्रतिनिधित्व की समस्या को दूर करने के लिये परिषद की संरचना और कार्य पद्धति में बदलाव का आह्वान किया है।
  • वैश्विक वित्तीय ढाँचे  को मजबूत बनाना: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक समूह और विश्व व्यापार संगठन सहित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को सतत विकास लक्ष्य हासिल करने के लिये संघर्ष कर रहे ऋणग्रस्त विकासशील देशों को बेहतर ढंग से समर्थन देना चाहिये।
    • भविष्य के संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में वित्तीय संस्थाओं को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने तथा वैश्विक आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम बनाने के लिये सुधारों की शुरुआत की गई।

संयुक्त राष्ट्र सुधार वैश्विक शासन को किस प्रकार प्रभावित करेंगे?

  • उन्नत समावेशिता: इन सुधारों का उद्देश्य विकासशील देशों और अफ्रीका, लैटिन अमेरिका जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों को अधिक सशक्त बनाकर वैश्विक शासन को अधिक समावेशी बनाना है। 
    • इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया अधिक न्यायसंगत हो सकेगी।
  • सक्रियता में वृद्धि: इन सुधारों से अधिक सक्रिय शांति स्थापना आयोग की स्थापना होगी तथा शांति अभियानों में परिवर्तन होगा, जिससे उभरती वैश्विक चुनौतियों पर त्वरित प्रतिक्रिया संभव हो सकेगी।
  • सुदृढ़ वित्तीय संरचना: अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में सुधार से अधिक कर्ज का सामना कर रहे विकासशील देशों को सहायता मिलेगी तथा सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में उनकी प्रगति में सहायता मिलेगी।
  • डिजिटल गवर्नेंस: ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट (जो कि भविष्य के लिये समझौते का हिस्सा है) का उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल प्रौद्योगिकियों को विनियमित करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सतत् विकास और मानव अधिकारों में योगदान दे सकें। 
    • इसमें डिजिटल डिवाइड और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों का समाधान शामिल है।
  • युवा सहभागिता: निर्णय लेने की प्रक्रिया में युवाओं को शामिल करने पर बल देने से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि भावी पीढ़ियों के हितों पर विचार किया जाए।
  • संघर्ष समाधान: सुधारों में बहुपक्षीय प्रणाली को मज़बूत करने और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का प्रबंधन करने के लिये नए मानदंडों और जवाबदेही तंत्रों की आवश्यकता है। इससे संघर्षों को रोकने और उन्हें अधिक प्रभावी ढंग से हल करने में मदद मिल सकती है।

भारत संयुक्त राष्ट्र की आलोचना किस प्रकार करता है?

  • संकट प्रबंधन में अप्रभाविता: भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर कोविड-19 महामारी, रूस -यूक्रेन संघर्ष, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहा है ।
    • भारतीय राजदूत ने संयुक्त राष्ट्र को आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के प्रति अधिक प्रासंगिक और उत्तरदायी बनाने के लिये इसमें तत्काल सुधारों का आह्वान किया।
  • वीटो शक्ति संबंधी चिंताएँ: भारत ने पी-5 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन) के पास मौजूद वीटो शक्ति की आलोचना की तथा उस प्रणाली की निष्पक्षता पर सवाल उठाया जो कुछ चुनिंदा लोगों को असंगत शक्ति  प्रदान करती है।
    • भारत सहित कई देशों ने सुरक्षा परिषद में अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया जैसे क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व की कमी पर चिंता व्यक्त की है।
  • चार्टर समीक्षा: भारत ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर की व्यापक समीक्षा का आह्वान किया है , जिसमें "सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ" जैसी पूर्ववर्ती संस्थाओं के पुराने संदर्भों तथा जापान सहित कुछ देशों को "शत्रु राष्ट्र" के रूप में नामित करने पर प्रकाश डाला गया है जबकि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में उनकी वर्तमान भूमिकाएँ यथावत हैं। 
    • इसमें इन विफलताओं को सुधारने तथा चार्टर को आधुनिक भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप अद्यतन करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • धीमी सुधार प्रक्रिया: भारत की चिंता संयुक्त राष्ट्र सुधार पर अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया की धीमी गति से संबंधित है, जो 2008 में शुरू हुई थी, लेकिन अभी तक इसमें कोई खास प्रगति नहीं हुई है। भारत ने इस बात पर बल दिया है कि यह मुद्दा वैश्विक प्राथमिकता बना रहना चाहिये।

निष्कर्ष:

भविष्य पर 2024 के संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में व्यापक सुधारों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र और उसके संस्थानों में सुधार के लिये भारत का सक्रिय रुख एक अधिक न्यायसंगत एवं समावेशी वैश्विक परिदृश्य को बढ़ावा देने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इन सुधारों को लागू करना 21 वीं सदी के जटिल मुद्दों को संबोधित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता और क्षमता सुनिश्चित करने के क्रम में महत्त्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भविष्य पर संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन द्वारा प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये। ये सुधार विकासशील देशों के वैश्विक शासन को किस प्रकार बेहतर करेंगे?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. ‘‘संयुक्त राष्ट्र प्रत्यय समिति (यूनाईटेड नेशंस क्रेडेंशियल्स कमिटी)’’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. यह संयुक्त राष्ट्र (UN) सुरक्षा परिषद द्वारा स्थापित समिति है और इसके पर्यवेक्षण के अधीन काम करती है। 
  2.  पारंपरिक रूप से प्रतिवर्ष मार्च, जून और सितंबर में इसकी बैठक होती है। 
  3.  यह महासभा को अनुमोदन हेतु रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पूर्व सभी UN सदस्यों के प्रत्ययों का आकलन करती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 3
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 2

उत्तर: (a) 

व्याख्या:

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के प्रत्येक नियमित सत्र की शुरुआत में एक प्रत्यय समिति नियुक्त की जाती है। इसमें नौ सदस्य होते हैं, जिन्हें UNGA अध्यक्ष के प्रस्ताव पर महासभा द्वारा नियुक्त किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • प्रतिनिधियों की साख और प्रत्येक सदस्य राज्य के प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के नाम महासचिव को प्रस्तुत किये जाते हैं और या तो राज्य या सरकार के प्रमुख या विदेश मामलों के मंत्री द्वारा जारी किये जाते हैं। समिति के लिये सदस्य राज्यों के प्रतिनिधियों की साख की जाँच करना और उस पर महासभा को रिपोर्ट करना अनिवार्य है। अत: कथन 3 सही है।
  • आमतौर पर समिति की बैठक नवंबर में होती है, दिसंबर में आम सभा के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। अतः कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।


मेन्स:

Q. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) के प्रमुख कार्य क्या हैं? इसके साथ संलग्न विभिन्न प्रकार्यात्मक आयोगों को स्पष्ट कीजिये। (2017)

Q. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने की दिशा में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)

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