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सामाजिक न्याय

जनजातीय विकास दृष्टिकोण

  • 20 Nov 2024
  • 12 min read

प्रीलिम्स के लिये:

हाका, सेंटिनली जनजाति, पारंपरिक ज्ञान, छठी अनुसूची, जनजातीय पंचशील नीति, प्रधानमंत्री वन धन योजना

मेन्स के लिये:

स्वदेशी अधिकार, भारत में जनजातीय विकास नीतियाँ, आधुनिक शासन और सांस्कृतिक विरासत के बीच संतुलन की चुनौतियाँ।

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यूज़ीलैंड में माओरी सांसदों ने संधि सिद्धांत विधेयक के खिलाफ हाका विरोध प्रदर्शन किया, जो वर्ष 1840 की वेटांगी संधि की पुनर्व्याख्या करने का प्रयास करता है।

  • इस विरोध प्रदर्शन में जनजातीय विकास नीतियों के प्रति असहमति को उजागर किया गया, जो सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक शासन के बीच संतुलन स्थापित करती हैं।

हाका क्या है?

  • हाका नृत्य माओरी का पारंपरिक नृत्य है, जिसे युद्ध के मैदान में योद्धाओं द्वारा या दूसरों का स्वागत करने के लिये किया जाता है। इसमें मंत्रोच्चार, चेहरे के भाव और हाथों की हरकतें शामिल होती हैं। यह माओरी पहचान का प्रतिनिधित्व करता है और प्रतिरोध का प्रतीक बन गया है।
    • माओरी जनजाति एक स्वदेशी जनजाति है जो न्यूज़ीलैंड में निवास करती है।
  • हाका विरोध: हाका विरोध संधि सिद्धांत विधेयक के प्रस्तुत किये जाने के प्रति प्रतिक्रिया है।
    • विधेयक का उद्देश्य वर्ष 1840 की वेटांगी संधि की पुनर्व्याख्या करना है, जो एक आधारभूत दस्तावेज़ है, जिसने ब्रिटिश क्राउन और माओरी प्रमुखों के बीच संबंध स्थापित किये।
  • संधि सिद्धांत विधेयक: इसका उद्देश्य सभी न्यूज़ीलैंडवासियों के लिये समानता सुनिश्चित करना है। आलोचकों का तर्क है कि संधि सिद्धांतों को सभी न्यूज़ीलैंडवासियों पर समान रूप से लागू करके यह विधेयक माओरी लोगों के स्वदेशी लोगों के रूप में विशिष्ट अधिकारों को मान्यता देने में विफल रहा है।
    • इस दृष्टिकोण को वेटांगी संधि के तहत माओरी को दी गई कानूनी सुरक्षा को कमज़ोर करने के रूप में देखा जाता है।

जनजातीय विकास नीति के दृष्टिकोण क्या हैं?

  • अलगाव: यह दृष्टिकोण स्वदेशी समुदायों की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक प्रणालियों को संरक्षित करने के लिये आधुनिक समाज के साथ उनके संपर्क को सीमित करके उनकी सुरक्षा पर ज़ोर देता है।
    • उदाहरण: अंडमान द्वीप समूह में सेंटिनली जनजाति अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी जनजातियों का संरक्षण) अधिनियम, 1956 के तहत सख्त कानूनों द्वारा संरक्षित होकर पूर्ण अलगाव में रहती है।
    • लाभ: पारंपरिक जीवनशैलियाँ, भाषाएँ और ज्ञान प्रणालियाँ संरक्षित रहती हैं।  
      • समुदायों को बाह्य प्रभावों से बचाता है जो संसाधनों या श्रम का शोषण कर सकते हैं।
      • स्वदेशी भूमि प्रायः जैव विविधता से समृद्ध होती है, जिसे उनकी सतत् प्रथाओं के माध्यम से संरक्षित किया जाता है।  
    • चुनौतियाँ: अलगाव के कारण अक्सर स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आर्थिक अवसरों की कमी हो जाती है।  
      • समुदाय राष्ट्रीय विकास प्रक्रियाओं से बाहर रह सकते हैं। 
      • जलवायु प्रभाव या अतिक्रमण जैसे परिवर्तन अलगाव को अस्थाई बना सकते हैं।
  • आत्मसातीकरण: यह दृष्टिकोण स्वदेशी समुदायों को मुख्यधारा के समाज में शामिल करता है जिसका उद्देश्य एकीकृत राष्ट्रीय पहचान बनाना है, लेकिन यह उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक प्रथाओं को कमज़ोर कर सकता है।
    • उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका में, मूल अमेरिकी बच्चों को उनकी भाषाओं और परंपराओं को दबाते हुए उन्हें “अमेरिकीकृत” करने के लिये बोर्डिंग स्कूलों में रखा गया था।
      • ऑस्ट्रेलिया में "स्टोलन जेनरेशन (जनजातीय और/या टोरेस स्ट्रेट द्वीपवासी लोग)" के जनजातीय बच्चों को श्वेत संस्कृति में आत्मसात करने के लिये जबरन उनके परिवारों से अलग कर दिया गया।
    • लाभ: शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और नौकरी के अवसरों जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच जीवन की गुणवत्ता में सुधार ला सकती है। आत्मसात आर्थिक और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में अंतर को कम कर सकता है।
    • चुनौतियाँ: जबरन आत्मसातीकरण से भाषा, परंपराओं और आध्यात्मिक प्रथाओं की हानि होती है तथा सांस्कृतिक विरासत कमज़ोर होती है,  जिससे स्वदेशी पहचान समाप्त हो जाती है ।
      • जबरन आत्मसातीकरण को प्रायः प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, जिससे मूल निवासियों और सरकार के बीच अलगाव एवं अविश्वास को बढ़ावा मिलता है, जिससे आधुनिक शासन के साथ सांस्कृतिक संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
  • एकीकरण: इसमें स्वदेशी लोगों को आधुनिक शासन में शामिल करना शामिल है, साथ ही उनकी सांस्कृतिक पहचान का सम्मान करना, यह सुनिश्चित करना कि उनके अधिकार, परंपराएँ और स्वायत्तता व्यापक समाज में संरक्षित रहें।
    • उदाहरण: गुंडजेइहमी और बिनिंज जनजातियाँ, पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक संरक्षण प्रथाओं के साथ मिलाकर, काकाडू राष्ट्रीय उद्यान के प्रबंधन में ऑस्ट्रेलियाई सरकार के साथ मिलकर कार्य करती हैं।
    • लाभ: शासन में समावेशन से स्वदेशी समुदायों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिलता है, जो उनके समुदायों को प्रभावित करता है।
      • आधुनिक शासन के माध्यम से स्वदेशी समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने से उनकी भूमि, परंपराओं और संसाधनों की रक्षा करने की क्षमता बढ़ सकती है।
      • सहयोगात्मक ढाँचे स्वदेशी समुदायों और सरकारों के बीच विश्वास को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • चुनौतियाँ: औपचारिक समावेशन के बावजूद स्वदेशी समुदायों को प्रणालीगत नस्लवाद और असमानता का सामना करना पड़ सकता है।
      • सरकारें और उद्योग स्वदेशी प्राधिकारियों को सत्ता या संसाधन सौंपने का विरोध कर सकते हैं।

जनजातीय विकास नीति के प्रति भारत का दृष्टिकोण क्या है?

  • स्वतंत्रता-पूर्व दृष्टिकोण: अंग्रेज़ों ने कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये जनजातीय क्षेत्रों को “बहिष्कृत” या “आंशिक रूप से बहिष्कृत” क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत करके एक अलगाववादी दृष्टिकोण लागू किया।
  • वर्ष 1874 में, ब्रिटिश भारत में अनुसूचित जिला अधिनियम (अधिनियम XIV) प्रस्तुत किया गया, जिसने शोषण से बचाने के लिये कुछ क्षेत्रों को नियमित कानूनों से छूट दी।
  • स्वतंत्रता के बाद: सरकार की नीतियाँ स्वायत्तता और एकीकरण दोनों की ओर उन्मुख रही हैं।

निष्कर्ष

स्वदेशी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और आधुनिक शासन के बीच संतुलन बनाना एक जटिल चुनौती है। जबकि अलगाव, आत्मसात और एकीकरण जैसे दृष्टिकोणों के अपने-अपने लाभ और हानि हैं, स्वदेशी अधिकारों को मान्यता देना और संस्कृति को संरक्षित करना उनके कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण है। वैश्विक स्तर पर और भारत में, स्वायत्तता और एकीकरण को जोड़ने वाली नीतियाँ जनजातीय आबादी के कल्याण और सांस्कृतिक अखंडता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: जनजातीय विकास नीतियों में अलगाव, आत्मसात और एकीकरण के बीच संतुलन का विश्लेषण कीजिये। सांस्कृतिक विरासत पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न: भारतीय जनजातीय समाज के विकास की विभिन्न धाराओं को समझने में अलगाव, समावेशन और एकीकरण के परिप्रेक्ष्यों का विश्लेषण कीजिये। (2023)

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