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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अफ्रीकी संघ की 20वीं वर्षगाँठ

  • 06 Jul 2022
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अफ्रीकी महाद्वीप के देश, अफ्रीका के खनिज, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, अंतर्राष्ट्रीय संस्थान

मेन्स के लिये:

भारत-अफ्रीका संबंध और समझौते, भारतीय अर्थव्यवस्था में अफ्रीका का महत्त्व , अफ्रीका में चीन की उपस्थिति, अफ्रीका के लिये चुनौतियांँ

चर्चा में क्यों?

अफ्रीकी संघ 9 जुलाई, 2022 को अपनी 20वीं वर्षगाँठ मना रहा है।

अफ्रीकी संघ:

  • परिचय:
    • अफ्रीकी संघ (AU) महाद्वीपीय निकाय है, इसमें 55 सदस्य देश शामिल हैं जो अफ्रीकी महाद्वीप के देशों से बना है।
  • गठन:
    • अफ्रीकी एकता संगठन की स्थापना वर्ष 1963 में अफ्रीका के स्वतंत्र राज्यों द्वारा की गई थी। संगठन का उद्देश्य अफ्रीकी राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है।
    • लागोस प्लान ऑफ एक्शन को अफ्रीकी एकता संगठन द्वारा वर्ष 1980 में अपनाया गया। इस योजना ने सुझाव दिया कि अफ्रीका को अंतर-अफ्रीकी व्यापार को बढ़ावा देकर पश्चिम पर निर्भरता को कम करना चाहिये।
    • वर्ष 2002 में अफ्रीकी एकता संगठन की जगह अफ्रीकी संघ ने ले लिया, जिसका लक्ष्य "महाद्वीप के आर्थिक एकीकरण" में तेज़ी लाना था।

अफ्रीकी संघ की 20 वर्षों में उपलब्धियांँ:

  • अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र:
    • इसकी स्थापना वर्ष 2018 में अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार समझौते (AfCFTA) द्वारा की गई थी।
      • AfCFTA व्यापारियों तथा निवेशों की मुक्त आवाजाही के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये एक एकल महाद्वीपीय बाज़ार बनाने का प्रयास करता है और इस प्रकार महाद्वीपीय सीमा शुल्क संघ व अफ्रीकी सीमा शुल्क संघ की स्थापना में तेज़ी लाने का मार्ग प्रशस्त करता है।
      • AfCFTA के प्रारंभिक कार्य वृद्धिशील टैरिफ में कमी, गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त करना, आपूर्ति शृंखला और विवाद निपटान आदि हैं।
    • इससे वर्ष 2022 के अंत तक अंतर-अफ्रीकी व्यापार लगभग 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • बड़ा बाज़ार क्षेत्र महाद्वीपीय बुनियादी ढांँचे के विकास के लिये निवेश आकर्षित करेगा।
    • बढ़े हुए व्यापार से रोज़गार सृजित होंगे, अफ्रीका की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होगी, सामाजिक कल्याण में सुधार होगा और अफ्रीका का अधिक औद्योगीकरण होगा।
  • राजनयिक उपलब्धि:
    • AU ने अफ्रीका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के साथ आर्थिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने के लिये बीजिंग, चीन में एक स्थायी मिशन की स्थापना की है।
      • यह अफ्रीका की वैश्विक प्रोफाइल और वैश्विक मामलों पर एक स्वर से बोलने की क्षमता को समेकित करता है।
  • महिलाओं का आर्थिक वित्तीय समावेशन:
    • AU ने फरवरी 2020 में शुरू की गई लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य से 10 वर्षीय महाद्वीपीय घोषणा का समर्थन किया।
    • यह घोषणा, जिसे महिलाओं के वित्तीय और आर्थिक समावेश का दशक कहा जाता है, अफ्रीकी नेताओं की राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं महाद्वीपीय स्तर पर सतत् विकास की दिशा में लैंगिक समावेशन के लिये कार्रवाई करने की प्रतिबद्धता दर्शाती है।

अफ्रीकी संघ के समक्ष चुनौतियाँ:

  • सत्ता पर असंवैधानिक पकड़:
    • अफ्रीका सैन्य तख्तापलट का एक चिंताजनक पुनरुत्थान तथा सत्ता में बने रहने के लिये असंवैधानिक साधनों का उपयोग करने वाले नेताओं जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
      • वर्ष 2013 के बाद से कम-से-कम 32 तख्तापलट और तख्तापलट के प्रयास हुए हैं।
    • वर्ष 2020 के बाद से तख्तापलट के सात प्रयासों में से पांँच सफल रहे।
      • पांँच देशों -बुर्किना फासो, चाड, गिनी, माली और सूडान में तख्तापलट करने वाले नेताओं ने लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों को हिंसक रूप से दबा दिया।
    • उदाहरण के लिये सूडान में तख्तापलट विरोधी प्रदर्शनों के दमन में मरने वालों की संख्या 100 से अधिक है। खाद्य असुरक्षा से 18 मिलियन से अधिक सूडानी खतरे में हैं।
  • कानून के शासन की अवहेलना:
    • लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई और वैध सरकारों की बढ़ती संख्या नागरिक समाज संगठनों पर नकेल कस रही है।
    • सरकारें उन संस्थानों को दबा रही हैं जो उन्हें जवाबदेह ठहराना चाहती हैं तथा मीडिया को चुप करा रहे हैं।
    • वे कार्यकर्त्ताओं को गिरफ्तार करते हैं और ऐसे कानून बनाते हैं जो नागरिक समाज संगठनों एवं उनकी गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद:
    • अफ्रीका को कम-से-कम दो स्थायी सीटें प्रदान करने हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता है।
      • परिषद के एजेंडे का दो-तिहाई से अधिक अफ्रीका से संबंधित है, फिर भी महाद्वीप को स्थायी प्रतिनिधित्व से बाहर रखा गया है।

भारत-अफ्रीका संबंध:

  • सामाजिक अवसंरचना:
    • भारत-अफ्रीका सामाजिक बुनियादी ढाँचा (शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल) सहयोग बहुआयामी एवं व्यापक है, इसमें अफ्रीकी संस्थागत और व्यक्तिगत क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में काम करने वाले राष्ट्रीय, राज्य तथा उपराष्ट्रीय कारक शामिल हैं।
  • समान भू-राजनीतिक हित:
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भारत और अफ्रीका के साझा हित हैं, जैसे- संयुक्त राष्ट्र सुधार, आतंकवाद का मुकाबला, शांति स्थापना, साइबर सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा आदि।
  • आर्थिक सहयोग:
    • अफ्रीका के साथ भारत का आर्थिक जुड़ाव मौलिक है।
    • पिछले डेढ़ दशक में भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार में विविधता के साथ यह कई गुना बढ़ गया है, वर्ष 2018-19 में 63.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार ने भारत को महाद्वीप के लिये  तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना दिया है।
  • कोविड-19 के उपचार में सहायता:
    • -आईटीईसी पहल के तहत भारत ने भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा अफ्रीका के स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षण वेबिनार, कोविड-19 प्रबंधन रणनीतियों को साझा किया।
      • भारत कई अफ्रीकी देशों में डॉक्टरों और पैरामेडिक्स के अलावा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) एवं पैरासिटामोल समेत ज़रूरी दवाओं की खेप भी भेज रहा है।
  • हालिया विकास:
    • वर्ष 2022 में भारत की पहली उच्च स्तरीय अफ्रीका यात्रा संपन्न हुई जिसके परिणाम निम्नलिखित हैं :
      • भारत ने भारतीय अनुदान सहायता से निर्मित डकार में उद्यमिता विकास और प्रौद्योगिकी केंद्र (CEDT) के दूसरे चरण के उन्नयन की घोषणा की।
      • भारत ने सेनेगल के लोक सेवकों के लिये एक विशेष आईटीईसी अंग्रेज़ी प्रवीणता पाठ्यक्रम की भी पेशकश की है।
      • भारत ने विदेश सेवा के सुषमा स्वराज संस्थान में 15 सेनेगल राजनयिकों के एक बैच के लिये एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम की घोषणा की।
  • इस दौरान दोनों पक्षों ने तीन समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये:
    • युवा मामलों में द्विपक्षीय सहयोग
    • सांस्कृतिक विनियम कार्यक्रम (CEP)
    • राजनयिकों/अधिकारियों के लिये वीज़ा मुक्त व्यवस्था

भारत-अफ्रीका संबंधों में विद्यमान संभावित अवसर:

  • खाद्य सुरक्षा: कृषि और खाद्य सुरक्षा भी संबंधों को प्रगाढ़ करने के हेतु एक आधार हो सकती है।
    • अफ्रीका के पास दुनिया की कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन वैश्विक कृषि-उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी अत्यंत कम है।
    • भारत कृषि क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त कर चुका है, जो  कृषि उपज के  शीर्ष उत्पादक देशों में शामिल  है।
    • इस प्रकार भारत और अफ्रीका दोनों एक-दूसरे के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहयोग कर सकते हैं।
  • नव-उपनिवेशवाद का मुकाबला:
    • अफ्रीका में चीन सक्रिय रूप से चेकबुक एवं दान कूटनीति (Chequebook and Donation Diplomacy) का अनुसरण कर रहा है।
      • हालाॅंकि चीनी निवेश को नव-औपनिवेशिक प्रकृति के रूप में देखा जाता है क्योंकि यह धन, राजनीतिक प्रभाव, कठिन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और संसाधन निष्कर्षण पर केंद्रित है।
      • दूसरी ओर भारत का लक्ष्य स्थानीय क्षमताओं के निर्माण और अफ्रीकियों के साथ समान भागीदारी के ज़रिये अफ्रीका को प्रगति के पथ पर अग्रसर करना है, न कि केवल अफ्रीकी अभिजात वर्ग के साथ आगे बढ़ना।
  • वैश्विक प्रतिद्वंद्विता को रोकना:
    • हाल के वर्षों में विश्व के कई अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं ने ऊर्जा, खनन, बुनियादी ढाॅंचे और कनेक्टिविटी सहित बढ़ते आर्थिक अवसरों की दृष्टि से अफ्रीकी देशों के साथ अपने संपर्क को मज़बूत किया है।
      • जैसे-जैसे अफ्रीका मे वैश्विक हित बढ़ता है, भारत और अफ्रीका यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अफ्रीका एक बार फिर प्रतिद्वंद्वी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने वाले क्षेत्र में न बदल जाए।

आगे की राह

  • AU को उन सदस्य देशों से निर्णायक रूप से निपटना चाहिये जो अपने क्षेत्रों के भीतर कानून के शासन को कमज़ोर करते हैं।
    • सतत् और समावेशी आर्थिक विकास, सतत् विकास, गरीबी एवं भुखमरी के उन्मूलन के लिये कानून का शासन आवश्यक है।
    • कानून का शासन लोगों, व्यापार और वाणिज्य को समृद्ध बनाता है।
  • अफ्रीकी नेताओं को उन समस्याओं का समाधान करना चाहिये जिनका उपयोग सैन्य नेता अफ्रीकी राज्यों में मुख्य रूप से भ्रष्टाचार, कुशासन और असुरक्षा के लिये तख्तापलट के बहाने करते हैं। इन समस्याओं का समाधान सेना को नागरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से वंचित कर देगा।
  • नागरिकों तथा समाज पर नकेल कसने के बजाय राज्यों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने और नागरिकों को सशक्त बनाने के लिये अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना चाहिये।
    • सामूहिक आर्थिक ताकत से वैश्विक कर्त्ता के रूप में अफ्रीका की स्थिति में सुधार होगा।
  • AU को संवैधानिक उल्लंघनों से निपटने के लिये भी दृढ़ और सुसंगत होना चाहिये।
    • हाल के उदाहरणों से पता चलता है कि अपराधी संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने के निर्देश की अवहेलना करते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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