जैव विविधता और पर्यावरण
वायु प्रदूषण की रोकथाम
- 21 Nov 2024
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:सिंधु-गंगा मैदान, वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI), पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA), PM 10, PM 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), ओज़ोन (O3), अमोनिया (NH3), सीसा (Pb), भारी धातुएँ, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM)। मेन्स के लिये:वायु प्रदूषण से उत्पन्न चुनौतियाँ और उनसे निपटने के उपाय। |
स्रोत: एचटी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली, बिहार, चंडीगढ़, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को शामिल करने वाला सिंधु-गंगा का मैदान तीव्र वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) बढ़कर लगभग 500 तक पहुँच गया, जिससे IGP में वायु प्रदूषण की गंभीर चुनौती उजागर हुई, जहाँ वैश्विक आबादी का 9% और भारत की 40% आबादी रहती है।
भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति क्या है?
- सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में अग्रणी: वैश्विक स्तर पर शीर्ष 100 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में भारत के सबसे ज़्यादा 39 शहर हैं, जबकि चीन के 30 शहर इस सूची में हैं।
- क्षेत्रीय तुलना: अन्य दक्षिण एशियाई देश वैश्विक प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिसमें पाकिस्तान के 7 शहर, बांग्लादेश के 5 और नेपाल के 2 शहर शीर्ष 100 में शामिल हैं।
- शीर्ष 100 प्रदूषित शहरों में से 53 भारतीय उपमहाद्वीप में हैं।
- जीवन प्रत्याशा में कमी: शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) द्वारा वर्ष 2019 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, गंभीर वायु प्रदूषण के कारण IGP के निवासियों की औसत जीवन प्रत्याशा देश के अन्य हिस्सों की तुलना में सात वर्ष कम है।
AQI क्या है?
- परिचय: AQI एक संख्यात्मक पैमाना है जिसका उपयोग प्रमुख प्रदूषकों की सांद्रता के आधार पर वायु की गुणवत्ता को मापने और संप्रेषित करने के लिये किया जाता है।
- इसे पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) द्वारा स्थापित किया गया था।
- श्रेणियाँ: AQI की छह श्रेणियाँ हैं:
- अच्छा, संतोषजनक, मध्यम प्रदूषित, खराब, बहुत खराब और गंभीर।
- प्रदूषक: AQI आठ प्रदूषकों पर विचार करता है, अर्थात् PM 10, PM 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), ओज़ोन (O3), अमोनिया (NH3), और सीसा (Pb)।
- AQI का पैमाना: AQI 0 से 500 तक होता है, इससे अधिक मान खराब वायु गुणवत्ता और अधिक स्वास्थ्य जोखिम का संकेत देते हैं।
खराब वायु गुणवत्ता के प्रभाव:
- अल्पकालिक प्रभाव: खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने पर सिरदर्द, नाक बंद होना और त्वचा में जलन जैसे लक्षण सामान्य हैं।
- उच्च स्तर के प्रदूषण के कारण अस्थमा, एलर्जिक राइनाइटिस और निमोनिया जैसी बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती हैं या बिगड़ सकती हैं।
- दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम:
- क्रोनिक श्वसन रोग: अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) और यहाँ तक कि फेफड़ों का कैंसर।
- हृदय संबंधी स्वास्थ्य: जैसे दिल का दौरा, स्ट्रोक, हृदय विफलता और उच्च रक्तचाप।
- संज्ञानात्मक गिरावट: संज्ञानात्मक गिरावट, मनोभ्रंश और स्ट्रोक विशेष रूप से वृद्ध वयस्कों में।
- त्वचा: एक्जिमा और डर्मेटाइटिस।
- आंतरिक अंग क्षति: गुर्दे और यकृत सहित आंतरिक अंगों को क्षति।
- सुभेद्य समूहों पर प्रभाव:
- गर्भवती महिलाएँ: प्लेसेंटा विकास को बाधित करती हैं, भ्रूण के विकास को नुकसान पहुँचाती हैं और बच्चों में दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न करती हैं।
- बच्चे: तंत्रिका संबंधी विकास में बाधा डालती हैं, जिससे संज्ञानात्मक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है।
वायु प्रदूषण के कारण क्या हैं?
- तापमान व्युत्क्रमण: यह नवंबर और दिसंबर में होता है जब शीत वायु प्रदूषकों के साथ मिलकर उन्हें ज़मीन के पास सीमित कर देती है। यह हानिकारक कणों के फैलाव को रोककर वायु प्रदूषण को बढ़ाता है।
- यातायात भीड़: यातायात भीड़ वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है, मुंबई में प्रति किलोमीटर वाहन घनत्व सबसे अधिक है, उसके बाद कोलकाता, पुणे और दिल्ली का स्थान है।
- घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में, भारी यातायात न केवल वायु प्रदूषण को बढ़ाता है, बल्कि स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और अधिक कुशल शहरी नियोजन के माध्यम से वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों में भी बाधा डालता है।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली जैसे शहरों में इलेक्ट्रिक बसों और सख्त उत्सर्जन मानदंडों के बावजूद यातायात की भीड़ वायु गुणवत्ता में सुधार को कमज़ोर कर रही है।
- पराली दहन और रेगिस्तानी धूल: फसल अवशेषों का बड़े पैमाने पर दहन करने से धुआँ, कार्बन डाइऑक्साइड और कण पदार्थों का उत्सर्जन होता है, जिससे वायु की गुणवत्ता काफी खराब हो जाती है।
- इसके अतिरिक्त, थार रेगिस्तान से आने वाली हवाएँ इस क्षेत्र में धूल के महीन कण लाती हैं, जिससे वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है।
- आतिशबाजी: आतिशबाजी के जलने से विषैले रसायन, भारी धातुएँ और सूक्ष्म कण वायु में उत्सर्जित होते हैं, जो वायु प्रदूषण में अल्पकालिक वृद्धि और वायु की गुणवत्ता में गिरावट का कारण बनते हैं।
- बायोमास जलाना: ग्रामीण क्षेत्रों में, खाना पकाने और गर्म करने के पारंपरिक तरीकों, जैसे कि लकड़ी, बायोमास ईंधन या कोयले पर निर्भरता, घर के अंदर और बाहर दोनों जगह वायु प्रदूषण में योगदान करती है।
भारत में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने से संबंधित पहल क्या हैं?
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम
- वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान प्रणाली (SAFAR) पोर्टल
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये नया आयोग
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (दिल्ली के लिये)
- वाहन प्रदूषण कम करने के लिये:
WHO की 4 स्तंभ रणनीति
- WHO ने वायु प्रदूषण के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को दूर करने के लिये वर्ष 2015 में 4 स्तंभ रणनीति अपनाते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था ।
- वे चार स्तंभ हैं:
- ज्ञान आधार का विस्तार
- निगरानी और रिपोर्टिंग
- वैश्विक नेतृत्व और समन्वय
- संस्थागत क्षमता सुदृढ़ीकरण
आगे की राह
- अपशिष्ट से ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ: अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्रों में निवेश करना जो गैर-पुनर्चक्रणीय अपशिष्ट को भस्मीकरण या अवायवीय पाचन जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
- भस्मीकरण एक तापीय प्रक्रिया है जिसमें अपशिष्ट को उच्च तापमान पर जलाकर उसका आयतन कम किया जाता है, जबकि अवायवीय पाचन एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें सूक्ष्मजीव ऑक्सीजन के बिना कार्बनिक अपशिष्ट को विघटित करते हैं।
- निर्माण स्थलों को ढकना: निर्माण क्षेत्र को लंबवत रूप से ढकना, कच्चे माल को ढकना, रेत और धूल को फैलने से रोकने के लिये पानी का छिड़काव और विंडब्रेकर का उपयोग करना तथा निर्माण सामग्री को ढकना जैसे उपायों से वायु की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।
- डी-सॉक्सिंग और डी-एनओएक्सिंग प्रणालियाँ: सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) जैसे प्रदूषकों को सीमित करने के लिये, संयंत्रों और रिफाइनरियों को डी-सॉक्सिंग (De-SOx-ing) और डी-एनओएक्सिंग (De-NOx-ing) प्रणालियाँ स्थापित करने की आवश्यकता होती है जो क्रमशः SO2 और NOx को हटाती हैं।
- वैकल्पिक बायोमास उपयोग: जलाने के बजाय, अवशेष का उपयोग ऊर्जा उत्पादन, बायोगैस उत्पादन और मवेशियों को खिलाने के लिये किया जा सकता है।
- विद्युतीकरण की ओर बदलाव: सार्वजनिक परिवहन में सुधार के साथ-साथ इलेक्ट्रिक, हाइब्रिड और बीएस-VI वाहनों को बढ़ावा देने से वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है।
- वाष्प पुनर्प्राप्ति प्रणालियाँ: पेट्रोल वाष्प (Petrol Vapours), जिसमें वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (Volatile Organic Compounds- VOC) होते हैं, धुंध उत्पन्न करते हैं तथा भंडारण, उतराई (Unloading) और ईंधन भरने के दौरान स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा करते हैं।
- वाष्प पुनर्प्राप्ति प्रणालियाँ उत्सर्जन को कम करने के लिये VOCs को अधिकृत करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: सिंधु-गंगा के मैदान में गंभीर वायु प्रदूषण में योगदान देने वाले कारकों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से कारण/कारक बेंज़ीन प्रदूषण उत्पन्न करते हैं ? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये : (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न: प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के संदर्भ में जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक के कौन-सा/से लाभ है/हैं ? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये : (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) प्रश्न: भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एन.सी.ए.पी.) की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020) |