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थेरी मरुस्थल

  • 20 Jun 2022
  • 5 min read

थेरी मरुस्थल के निर्माण के संबंध में कुछ सिद्धांतों पर बहस हो रही है, जिनमें से सबसे विश्वसनीय दक्षिण पश्चिम मानसूनी हवाओं की भूमिका है। 

थेरी मरुस्थल: 

  • यह तमिलनाडु राज्य में स्थित एक छोटा सा रेगिस्तान है। इसमें लाल रेत के टीले हैं और यह थूथुकुडी ज़िले तक ही सीमित है। 
  • लाल टीलों को तमिल में ‘थेरी’ कहा जाता है। इनमें क्वार्टनरी  युग (2.6 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुई) की तलछट शामिल हैं और यह समुद्री निक्षेप से बने हैं। 
  • इसमें बहुत कम पानी और पोषक तत्व धारण क्षमता है। टिब्बा वायुगतिकीय उभार के लिये अतिसंवेदनशील होते हैं। यह वह दवाब है जो किसी चीज को ऊपर जाने देता है। यह वह बल है जो भार के विपरीत होता है। 

थेरी की खनिज संरचना: 

  • पेट्रोग्राफिकल अध्ययन (पेट्रोग्राफी चट्टानों की संरचना और गुणों का अध्ययन है) और लाल रेत के टीलों के एक्स-रे विवर्तन विश्लेषण (एक सामग्री की क्रिस्टलोग्राफिक संरचना को निर्धारित करने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली विधि) से भारी और हल्के खनिजों की उपस्थिति का पता चलता है। 
  • इनमें शामिल हैं: इल्मेनाइट, मैग्नेटाइट, रूटाइल, गार्नेट, ज़िरकोन, डायोपसाइड, टूमलाइन, हेमेटाइट, गोएथाइट, कानाइट, क्वार्ट्ज़, फेल्डस्पार और बायोटाइट। 
  • मृदा में मौज़ूद आयरन से भरपूर भारी खनिज जैसे इल्मेनाइट, मैग्नेटाइट, गार्नेट, हाइपरस्थीन और रूटाइल सतह के जल से निक्षालित हो गए थे और फिर अनुकूल अर्ध-शुष्क जलवायु परिस्थितियों के कारण ऑक्सीकृत हो गए। 
  • यह इन प्रक्रियाओं के कारण था कि थूथुकुडी ज़िले के एक तटीय शहर तिरुचेंदूर के पास के टीले लाल रंग के होते हैं। 

थेरी टिब्बा निर्माण: 

  • थेरी मुलायम, लहरदार क्षेत्र के रूप में दिखाई देता है। लिथोलॉजी (चट्टानों की सामान्य भौतिक विशेषताओं का अध्ययन) कि यह क्षेत्र अतीत में एक पैलियो (प्राचीन) तट रहा होगा। कई स्थानों पर चूना पत्थर की उपस्थिति समुद्री अतिक्रमण का संकेत देती है। 
  • समुद्र के प्रतिगमन के बाद, स्थानीय रूप से समुद्र तट की रेत के परिसीमन द्वारा वर्तमान समय के थेरियों का गठन हुआ होगा। जब पश्चिमी घाट से उच्च वेग वाली हवाएँ पूर्व की ओर चलीं, तो उन्होंने रेत के दानों और टीलों के संचय को प्रेरित किया। 
  • एक अन्य दृष्टिकोण यह है कि ये भूवैज्ञानिक संरचनाएंँ हैं जो कुछ सौ वर्षों की अवधि में प्रकट हुईं। 
  • इन थेरियों के ऊपर काफी मात्रा में लाल रेत फैली हुई है। लाल रेत मई-सितंबर के दौरान दक्षिण पश्चिम मानसूनी हवाओं द्वारा नांगुनेरी क्षेत्र (तिरुनेलवेली जिले के इस क्षेत्र से लगभग 57 किलोमीटर) के मैदानी इलाकों में लाल दोमट की एक विस्तृत बेल्ट की सतह से लाई जाती है। 
  • वनों की कटाई और वानस्पतिक आवरण की अनुपस्थिति को वायु अपरदन का प्रमुख कारण माना जाता है। 
  • जब शुष्क मानसूनी हवा तेज वेग से चलती है, तो लाल दोमट को लाल रेत के विशाल स्तंभों के साथ पूर्व की ओर तब तक ले जाती है, जब तक कि वे तिरुचेंदूर के तटीय पथ के पास समुद्री हवा से मिल कर वहाँ जमा नहीं हो जाते।  
  • पृथ्वी की सतह पर या उसके पास हवा के कारण होने वाले तलछट के क्षरण, परिवहन और जमा की ये प्रक्रिया ‘एओलियन’ प्रक्रिया कहलाती है।  

स्रोत- डाउन टू अर्थ 

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