आर्द्रभूमि संरक्षण को सुदृढ़ बनाना | 17 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:आर्द्रभूमि, आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), कार्बन पृथक्करण, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय योजना (NPCA) मेन्स के लिये:राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची और मूल्यांकन, आर्द्रभूमि का महत्त्व, आर्द्रभूमि संरक्षण में चुनौतियाँ |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यकर्त्ताओं द्वारा दायर एक जनहित याचिका में, लगभग 30,000 अतिरिक्त आर्द्रभूमियों के संरक्षण का आदेश दिया, जो एम.के. बालाकृष्णन बनाम भारत संघ मामले में वर्ष 2017 के निर्णय के अनुसार 201,503 आर्द्रभूमियों के पूर्व संरक्षण पर आधारित है।
- न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को तीन महीने के भीतर इन आर्द्रभूमियों की ज़मीनी जाँच और सीमांकन का काम पूरा करने का आदेश दिया।
आर्द्रभूमियाँ क्या हैं?
- जलीय व स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों के बीच का संक्रमण क्षेत्र जो दीर्घावधि में प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से, खारे या ताजे जल से भरा हुआ अथवा जल से संतृप्त हो, आर्द्र भूमि कहा जाता है जिसमें समुद्रतटीय भाग भी शामिल है जहाँ लघु ज्वार की स्थिति में जल की गहराई 6 मीटर से अधिक न हो।
- आर्द्रभूमियाँ इकोटोन होती हैं, जिनमें स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच संक्रमणकालीन भूमि होती है।
आर्द्रभूमि के प्रकार:
- तटीय आर्द्रभूमि: यह नदियों से अप्रभावित होकर भूमि और खुले समुद्र के बीच पाई जाती हैं।
- उदाहरणों में तटरेखाएँ, समुद्र तट, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियाँ शामिल हैं, जैसे कि संरक्षित उष्णकटिबंधीय तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव दलदल इसका एक अच्छा उदहारण है।
- उथली झीलें और तालाब: कम प्रवाह वाले स्थायी या अर्द्ध-स्थायी जल के क्षेत्र, जिनमें लवणीय झीलें और ज्वालामुखी क्रेटर झीलें शामिल हैं।
- दलदल: ये जल से संतृप्त क्षेत्र या जल से भरे क्षेत्र होते हैं और आर्द्र मृदा की स्थिति के अनुकूल जड़ी-बूटियों वाली वनस्पतियाँ इनकी विशेषता होती है।
- वे ज्वारीय या गैर-ज्वारीय हो सकते हैं।
- स्वैंप्स: ये मुख्य रूप से सतही जल द्वारा पोषित होते हैं तथा यहाँ वृक्ष व झाड़ियाँ पाई जाती हैं। ये मीठे जल से खारे जल के बाढ़ के मैदानों में पाए जाते हैं।
- बॉग्स: बॉग्स दलदल पुरानी झील घाटियाँ अथवा भूमि में जलभराव वाले गड्ढे हैं। इनमें लगभग सारा पानी वर्षा के दौरान जमा होता है।
- ज्वारनदमुख (Estuaries): वे क्षेत्र जहाँ नदियाँ समुद्र से मिलती हैं, मीठे जल से खारे जल में परिवर्तित होती हैं, जैवविविधता से समृद्ध हैं।
- उदाहरणों में डेल्टा, ज्वारीय पंक और लवणीय दलदल शामिल हैं।
आर्द्रभूमि का महत्त्व:
- प्राकृतिक जल शोधक: तलछट को रोककर, प्रदूषकों को विघटित करके तथा अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करके, आर्द्रभूमि प्राकृतिक जल शोधक के रूप में कार्य करती हैं।
- इस प्रक्रिया से जल की गुणवत्ता में सुधार होता है, यह सुनिश्चित होता है कि यह मानव उपभोग के लिये स्वच्छ और सुरक्षित है तथा समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है।
- बाढ़ की रोकथाम: वे अतिरिक्त जल को अवशोषित और संग्रहीत करते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा कम होता है जिससे घरों और बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा होती है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) इस बात पर ज़ोर देता है कि आर्द्रभूमि आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ के खतरे को 60% तक कम कर सकती है।
- वन्यजीवों के लिये आवास: आर्द्रभूमि पक्षियों, मछलियों और अन्य वन्यजीवों की कई प्रजातियों के लिये महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करती है, जिनमें सारस क्रेन जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
- अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (SAC) द्वारा तैयार राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची एवं मूल्यांकन के अनुसार, आर्द्रभूमियाँ पृथ्वी की सतह के केवल 6% भाग को कवर करने के बावजूद, विश्व की 40% से अधिक प्रजातियों का आवास स्थल हैं।
- कार्बन पृथक्करण: आर्द्रभूमियाँ मिट्टी और वनस्पति में बड़ी मात्रा में कार्बन संग्रहित करती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलती है।
- भारतीय जलवायु परिवर्तन आकलन नेटवर्क (INCCA) इस बात पर ज़ोर देता है कि आर्द्रभूमियों को बहाल करने से कार्बन अवशोषण को बढ़ाकर, जल गुणवत्ता में सुधार करके तथा बाढ़ के खतरों को कम करके भारत के जलवायु लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है।
- आजीविका: कई समुदाय मछली संग्रहण, कृषि और पर्यटन के माध्यम से अपनी आजीविका के लिये आर्द्रभूमि पर निर्भर हैं।
- एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में लगभग एक अरब परिवार अपनी आजीविका के लिये चावल की खेती पर निर्भर हैं। वेटलैंड धान चावल 3.5 अरब लोगों के लिये मुख्य भोजन है, जो वैश्विक कैलोरी सेवन का 20% प्रदान करता है।
भारत में आर्द्रभूमियों की स्थिति क्या है?
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (SAC) द्वारा उपग्रह आधारित अवलोकन के अनुसार, भारत में लगभग 231,195 आर्द्रभूमियाँ हैं। हालाँकि आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017 के तहत केवल 92 आर्द्रभूमियों को आधिकारिक तौर पर संरक्षण हेतु अधिसूचित किया गया है।
आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिये उठाए गए कदम:
- रामसर अभिसमय: भारत 1 फरवरी, 1982 को रामसर अभिसमय में शामिल हुआ और तब से 1,367,749 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली 85 आर्द्रभूमियों को अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया है।
- नंजरायन पक्षी अभयारण्य, काज़ुवेली पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु) और मध्य प्रदेश का तवा जलाशय को हाल ही में आर्द्रभूमियों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड: मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की सूची पर रामसर अभिसमय के अंतर्गत आर्द्रभूमि स्थलों का एक रजिस्टर है।
आर्द्रभूमि संरक्षण में चुनौतियाँ क्या हैं?
- अपर्याप्त कानूनी ढाँचा:
- विनियामक चुनौतियाँ: हालाँकि आद्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन प्रभावी रूप से नहीं किया जाता है। कई आद्रभूमियाँ असुरक्षित हैं या उनका प्रबंधन ठीक से नहीं किया जाता।
- वर्ष 2022-23 की जल निकाय जनगणना से पता चलता है कि भारत में 24,24,540 जल निकाय हैं, जिनमें से 55% निजी स्वामित्त्व वाले हैं, जिससे संरक्षण के प्रयास जटिल हो जाते हैं ।
- विकेंद्रीकरण के मुद्दे: आर्द्रभूमि प्रबंधन के लिये राज्य सरकारों को शक्तियाँ सौंपे जाने से विभिन्न क्षेत्रों में कार्यान्वयन और संरक्षण में असंगतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।
- विनियामक चुनौतियाँ: हालाँकि आद्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन प्रभावी रूप से नहीं किया जाता है। कई आद्रभूमियाँ असुरक्षित हैं या उनका प्रबंधन ठीक से नहीं किया जाता।
- शहरीकरण और भूमि उपयोग परिवर्तन:
- अतिक्रमण: तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण से आर्द्रभूमियों का विनाश हुआ है, जिससे उनके आकार और पारिस्थितिक कार्य में कमी आई है। चेन्नई और मुंबई जैसे शहरों में महत्त्वपूर्ण गिरावट देखी गई है।
- पिछले 30 वर्षों में, शहरीकरण, प्रदूषण और कृषि के कारण भारत की 30% आर्द्रभूमि नष्ट हो गई हैं।
- अतिक्रमण: तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण से आर्द्रभूमियों का विनाश हुआ है, जिससे उनके आकार और पारिस्थितिक कार्य में कमी आई है। चेन्नई और मुंबई जैसे शहरों में महत्त्वपूर्ण गिरावट देखी गई है।
- प्रदूषण और जल गुणवत्ता में गिरावट:
- औद्योगिक उत्सर्जन: पूर्वी कोलकाता सहित कई आर्द्रभूमियों का स्वास्थ्य और जैवविविधता पर अनुपचारित सीवेज़, कृषि अपवाह और औद्योगिक अपशिष्टों से होने वाले प्रदूषण का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक पौधों की प्रजातियों के प्रवेश से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बाधित होने से स्थानीय वनस्पतियों एवं जीवों को खतरा हो सकता है।
- उदाहरण के लिये, जलकुंभी (Eichhornia crassipes) एक आक्रामक पौधे की प्रजाति है जो भारत के जल निकायों में मिलती है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव:
- परिवर्तित जल विज्ञान: जलवायु परिवर्तन से वर्षा का पैटर्न प्रभावित होने से जल स्तर में परिवर्तन होने के साथ आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र बाधित (जैसा कि सुंदरवन में देखा गया है) हो सकता है।
- आर्द्रभूमियाँ बाढ़ एवं सूखे जैसी चरम मौसमी घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती जा रही हैं, जिससे उनका पारिस्थितिक संतुलन बाधित हो सकता है।
- परिवर्तित जल विज्ञान: जलवायु परिवर्तन से वर्षा का पैटर्न प्रभावित होने से जल स्तर में परिवर्तन होने के साथ आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र बाधित (जैसा कि सुंदरवन में देखा गया है) हो सकता है।
- जागरूकता की कमी:
- शैक्षिक अंतराल: कई समुदाय आर्द्रभूमि से मिलने वाले लाभों (जैसे- बाढ़ नियंत्रण, जल शोधन, और जीवों के लिये आवास) को नहीं समझते हैं।
- आर्द्रभूमि के पारिस्थितिकी महत्त्व के बारे में आम लोगों तथा नीति निर्माताओं में जागरूकता का अभाव है, जिसके कारण संरक्षण के प्रयास अपर्याप्त बने हुए हैं।
- शैक्षिक अंतराल: कई समुदाय आर्द्रभूमि से मिलने वाले लाभों (जैसे- बाढ़ नियंत्रण, जल शोधन, और जीवों के लिये आवास) को नहीं समझते हैं।
आगे की राह
- नीतियों में आर्द्रभूमियों को महत्त्व देना:
- उत्सर्जन लक्ष्य: आर्द्रभूमि के ब्लू कार्बन को शामिल करने से संरक्षण लक्ष्यों (भारत का वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य) को समर्थन मिल सकता है लेकिन वर्तमान में व्यवस्थित सूची की कमी के कारण इसे अनदेखा किया जाता है।
- आर्द्रभूमि के कार्बन भंडारण और GHG उत्सर्जन को राष्ट्रीय कार्बन स्टॉक एवं प्रवाह आकलन में शामिल करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त पीटलैंड की कार्बन गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने एवं प्रबंधित करने के लिये उनकी विस्तृत सूची बनानी चाहिये।
- उत्सर्जन लक्ष्य: आर्द्रभूमि के ब्लू कार्बन को शामिल करने से संरक्षण लक्ष्यों (भारत का वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य) को समर्थन मिल सकता है लेकिन वर्तमान में व्यवस्थित सूची की कमी के कारण इसे अनदेखा किया जाता है।
- आर्द्रभूमि का प्रभावी प्रबंधन:
- एकीकृत दृष्टिकोण: एकीकृत योजना, कार्यान्वयन एवं निगरानी के साथ आर्द्रभूमि के निकटवर्ती क्षेत्र में अनियोजित शहरीकरण की समस्या का समाधान करना चाहिये।
- पारिस्थितिकीविदों, जलग्रहण प्रबंधन विशेषज्ञों, योजनाकारों एवं निर्णयकर्त्ताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
- एकीकृत दृष्टिकोण: एकीकृत योजना, कार्यान्वयन एवं निगरानी के साथ आर्द्रभूमि के निकटवर्ती क्षेत्र में अनियोजित शहरीकरण की समस्या का समाधान करना चाहिये।
- मेगा शहरी योजनाओं के साथ समन्वय विकसित करना:
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को महत्त्व देना: विकास नीतियों, शहरी नियोजन एवं जलवायु परिवर्तन शमन में आर्द्रभूमि की भूमिका पर बल देना चाहिये।
- स्मार्ट सिटी मिशन और अटल कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन मिशन जैसी पहलों के साथ धारणीय आर्द्रभूमि प्रबंधन को एकीकृत करना चाहिये।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को महत्त्व देना: विकास नीतियों, शहरी नियोजन एवं जलवायु परिवर्तन शमन में आर्द्रभूमि की भूमिका पर बल देना चाहिये।
- जन भागीदारी को बढ़ावा देना:
- सार्वजनिक भागीदारी: दिल्ली विकास प्राधिकरण के मास्टर प्लान, दिल्ली 2041 में 'ग्रीन और ब्लू परिसंपत्तियों' के एकीकृत नेटवर्क के संरक्षण एवं विकास हेतु सार्वजनिक टिप्पणियों को आमंत्रित किया गया।
- महाराष्ट्र के मांडवी क्रीक में स्वामिनी स्वयं सहायता समूह की मैंग्रोव सफारी, पारिस्थितिकी पर्यटन के तहत समुदाय-नेतृत्व वाले संरक्षण का एक मॉडल है।
- सार्वजनिक भागीदारी: दिल्ली विकास प्राधिकरण के मास्टर प्लान, दिल्ली 2041 में 'ग्रीन और ब्लू परिसंपत्तियों' के एकीकृत नेटवर्क के संरक्षण एवं विकास हेतु सार्वजनिक टिप्पणियों को आमंत्रित किया गया।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में अतिरिक्त आर्द्रभूमियों को संरक्षित करने के क्रम में हाल ही के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
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