नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय नागरिकता के लिये श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों का संघर्ष

  • 22 Jan 2025
  • 19 min read

प्रिलिम्स के लिये:

श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, अनुच्छेद 21, रोहिंग्या शरणार्थी, भारतीय नागरिकता का अधिग्रहण, शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग

मेन्स के लिये:

राज्यविहीनता और मानव अधिकारों पर इसके प्रभाव, भारत में नागरिकता, भारत में शरणार्थियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ, श्रीलंका में जातीय हिंसा और भारत पर इसका प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी के भारतीय नागरिकता आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया है, जो वर्ष 1984 से भारत में रह रहा है। 

  • यह निर्देश भारतीय कानून के तहत श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के अधिकारों पर जोर देता है। 

नोट: एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी, जिसका जन्म वर्ष 1975 में श्रीलंका में हुआ था, जातीय संघर्ष के कारण वर्ष 1984 में भारत आ गया। उस व्यक्ति ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1)(a) के तहत वर्ष 2022 में भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन किया था, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई। 

  • भारत में 40 वर्षों से अधिक समय तक निवास करने के बावजूद, वह व्यक्ति कानूनी मान्यता की उम्मीद में नागरिकता से वंचित रह जाता है।
  • इस मान्यता से अन्य दीर्घकालिक शरणार्थियों, विशेषकर श्रीलंका में जातीय संघर्ष के दौरान पलायन करने वाले शरणार्थियों को नागरिकता मिलने में तेज़ी आ सकती है।

श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की स्थिति क्या है?

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारतीय मूल के तमिलों को औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेज़ों द्वारा बागानों में कार्य करने के लिये गिरमिटिया मज़दूरों के रूप में श्रीलंका लाया गया था।
  • सामाजिक अलगाव: इन तमिलों को श्रीलंका के राजनीतिक और नागरिक जीवन से बड़े पैमाने पर बाहर रखा गया था, तथा उन्हें सिंहली (श्रीलंका के लोग) और मूल तमिल समुदायों दोनों से हाशिये पर रखा गया था।
  • वर्ष 1948 के बाद के संघर्ष: श्रीलंका की स्वतंत्रता (1948) के बाद, बढ़ते सिंहली राष्ट्रवाद ने भारतीय मूल के तमिलों को और अधिक वंचित कर दिया, उन्हें नागरिकता के अधिकारों से वंचित कर दिया गया और राज्यविहीन कर दिया गया (किसी व्यक्ति को किसी भी देश द्वारा नागरिक के रूप में मान्यता नहीं दी जाती)।
  • द्विपक्षीय समझौते: सिरीमावो-शास्त्री समझौता (1964) और सिरीमावो-इंदिरा गांधी समझौता (1974) में रेखांकित किया गया था कि छह लाख तक भारतीय मूल के तमिलों और उनके वंशजों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकती है, लेकिन श्रीलंकाई गृहयुद्ध सहित विभिन्न कारकों के कारण यह प्रक्रिया रुक गई।
  • CAA 2003: वर्ष 1982 से पहले भारत लौटने वाले भारतीय मूल के तमिलों को नागरिकता प्रदान की गई, लेकिन वर्ष 1983 के बाद आने वालों को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) 2003 के तहत 'अवैध प्रवासियों' के रूप में वर्गीकृत किया गया।
    • भारतीय मूल के श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी, जो वर्ष 1983 से वर्ष 2009 तक अलगाववादी तमिल शक्तियों (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE)) और श्रीलंकाई सरकार के बीच लड़े गए गृहयुद्ध से बचकर आए थे, दशकों से भारत में रहने के बावजूद भारतीय नागरिकता के लिये पात्र नहीं हैं।
      • औपचारिक शरणार्थी कानून के अभाव के कारण शरणार्थियों को कानूनी अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है, तथा उनके पास नागरिकता या स्थायी दर्जा पाने का कोई स्पष्ट रास्ता नहीं होता।
  • न्यायालय के निर्णय: पी. उलगानाथन बनाम भारत सरकार, 2019 मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि शरणार्थियों का बहिष्कार प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार (संविधान का अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है, जिससे इस मामले का तत्काल समाधान किया जाना आवश्यक हुआ।
    • अबिरामी एस बनाम भारत संघ (2022) मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) 2019 के सिद्धांतों का समर्थन करते हुए भारतीय मूल के तमिलों को नागरिकता देने के लिये मानवीय दृष्टिकोण का आह्वान किया, जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिंदुओं के लिये नागरिकता की शर्तों को आसान बनाता है।

भारत में शरणार्थी

  • शरणार्थी वे व्यक्ति हैं जो अपने जीवन, सुरक्षा या स्वतंत्रता के लिये गंभीर खतरों के कारण अपना देश छोड़ देते हैं, जिन्हें उत्पीड़न, सशस्त्र संघर्ष, हिंसा या सार्वजनिक अशांति से अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण की आवश्यकता है।
  • भारत में शरणार्थियों को आश्रय देने का इतिहास: भारत ने ऐतिहासिक रूप से विभिन्न शरणार्थी समूहों को आश्रय दिया है, जिनमें चीनी कब्जे से भागे तिब्बती, 1971 के युद्ध के बाद के बांग्लादेशी शरणार्थी, श्रीलंकाई तमिल और रोहिंग्या शरणार्थी (म्याँमार) शामिल हैं।
  • शरणार्थियों के प्रबंधन में भारत की चुनौतियाँ: 
    • विधिक ढाँचे का अभाव: भारत 1951 के शरणार्थी अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, जिसके कारण शरणार्थियों की कोई स्पष्ट विधिक परिभाषा नहीं है, जिससे आर्थिक प्रवासियों और वास्तविक शरणार्थियों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है। 
      • भारतीय विधि के अंतर्गत किसी भी अवैध आप्रवासी को शरणार्थी की मान्यता नहीं दी जाती है तथा शरणार्थियों से सम्प्रभुता को खतरा तथा संभावित सुरक्षा जोखिम के संबंध में चिंता व्यक्त की गई है।
    • सरंध्र सीमाएँ: भारत की सरंध्र/छिद्रिल सीमाओं के कारण शरणार्थियों के प्रवेश को नियंत्रित करना कठिन हो जाता है, जिसके कारण विशेष रूप से असम और पश्चिम बंगाल में शरणार्थियों का आगमन बढ़ जाता है तथा स्थानीय संसाधन और बुनियादी ढाँचे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • सीमित संसाधन: भारत के सीमित संसाधन और बुनियादी ढाँचे के कारण शरणार्थियों की सहायता करने और उन्हें एकीकृत करने की उसकी क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार जैसी बुनियादी सेवाओं तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।

Refugees_In_India

नागरिकताहीन व्यक्तियों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • मूल अधिकारों का अभाव: नागरिकताहीन व्यक्तियों को प्रायः शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सेवाओं जैसे मूल अधिकारों से वंचित रखा जाता है, क्योंकि वे मान्यता प्राप्त नागरिक नहीं होते हैं।
  • सीमित विधिक संरक्षण: विधिक मान्यता के बिना, नागरिकताहीन शरणार्थी शोषण के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिसमें बलात् श्रम, मानव तस्करी और अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार शामिल हैं, क्योंकि उनके पास राष्ट्रीयता और विधिक मान्यता द्वारा प्रदत्त सुरक्षा का अभाव होता है।
  • आर्थिक बहिष्कार: वे प्रायः विधिक रूप से कार्य नहीं कर पाते, बैंक खाते नहीं खोल पाते, या सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा पाते, जिसके कारण आर्थिक असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • सामाजिक हाशियाकरण: नागरिकताहीन व्यक्तियों को राज्य प्राधिकारियों और समाज दोनों से सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप अलगाव और एकीकरण की कमी होती है।
  • अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव: नागरिकताहीनता पीढ़ियों तक जारी रह सकती है, जिसके परिणामस्वरूप वंचना और अधिकारहीनता का चक्र चलता रहता है।
    • नागरिकताहीन बच्चों को संपत्ति विरासत, माता-पिता के समर्थन और विधिक सुरक्षा की कमी हो सकती है। यह अनिश्चितता चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है।

भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया क्या है?

  • भारत के नागरिकता कानून में 'जस सोली' और 'जस सैंग्विनिस' दोनों सिद्धांतों को शामिल किया गया है, जिससे ढाँचे में जन्मसिद्ध अधिकार और वंशानुक्रम के बीच संतुलन स्थापित होता है।
    • 'jus soli' के अंतर्गत जन्मस्थान के आधार पर नागरिकता प्रदान की जाती है, जबकि 'jus sanguinis' के अंतर्गत रक्त संबंध द्वारा नागरिकता दी जाती है।
  • भारतीय नागरिकता जन्म, वंश, पंजीकरण और देशीयकरण द्वारा प्राप्त की जा सकती है, जैसा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में उल्लिखित है।
    • जन्म द्वारा: भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद लेकिन 1 जुलाई, 1987 से पहले जन्मा प्रत्येक व्यक्ति भारतीय नागरिक है, चाहे उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
      • 1 जुलाई, 1987 और 2 फरवरी, 2004 के बीच भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक है, बशर्ते कि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक देश का नागरिक हो।
      • 3 दिसंबर, 2004 को या उसके बाद भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति देश का नागरिक है, बशर्ते उसके माता-पिता दोनों भारतीय हों या जन्म के समय कम से कम एक माता या पिता भारत का नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
    • पंजीकरण द्वारा: कुछ शर्तों के तहत पंजीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त की जा सकती है, जैसे कि जैसे कि भारत में कम से कम 7 साल का निवास होना। (धारा 5(1)(A))
      • भारतीय मूल के व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी देश या स्थान में सामान्यतः निवासी हैं।
      • भारतीय नागरिकों के जीवन-साथी जो पंजीकरण के लिये आवेदन करने से पहले 7 वर्षों से भारत में रह रहे हों।
      • भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।
    • वंशानुक्रम द्वारा : 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद भारत के बाहर जन्म हुआ व्यक्ति वंशानुक्रम द्वारा नागरिक है, यदि उसके पिता जन्म से भारतीय नागरिक थे। 
      • जिनका जन्म 10 दिसंबर, 1992 और 3 दिसंबर 2004 के बीच हुआ है, उनके माता-पिता में से कोई एक जन्म से भारतीय नागरिक होना चाहिये। 
      • 3 दिसंबर, 2004 के बाद, माता-पिता को यह घोषित करना होगा कि बच्चे के पास कोई दूसरा पासपोर्ट नहीं है, तथा जन्म को एक वर्ष के भीतर भारतीय वाणिज्य दूतावास में पंजीकृत कराना होगा।
    • प्राकृतिककरण द्वारा: भारत में 12 वर्षों का निवास आवश्यक है, तथा नागरिकता अधिनियम की तीसरी अनुसूची में उल्लिखित सभी योग्यताएँ पूरी करनी होंगी।

Indian_Citizenship

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019

  • CAA, 2019 नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करता है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए कुछ अवैध प्रवासियों को भारत में नागरिकता का मार्ग प्रदान करता है।
  • CAA, 2019 के तहत भारतीय नागरिकता के लिये पात्र व्यक्तियों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों के व्यक्ति शामिल है ।
    • 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया हो।
    • पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3(2)(c) के अंतर्गत या विदेशी विषयक अधिनियम, 1946 के प्रावधानों या उसके अंतर्गत बनाए गए किसी नियम या आदेश के आवेदन से छूट प्राप्त व्यक्ति शामिल हैं।
      • ये कानून भारत में अवैध प्रवेश और निर्धारित समय से अधिक समय तक रहने पर दंड का प्रावधान करते हैं।

आगे की राह:

  • विधायी कार्रवाई: भारत सरकार को भारतीय मूल के तमिलों को नागरिकता देने के लिये सुधारात्मक विधायी कार्रवाई करनी चाहिये, जिसमें वर्ष 1983 के बाद आए लोग भी शामिल हैं। इसके लिये राज्यविहीनता को प्रबंधित करने के लिये पूर्वव्यापी उपायों की आवश्यकता हो सकती है।
    • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (UNHCR) के अनुसार, वर्तमान में भारत में लगभग 29,500 भारतीय मूल के तमिल रह रहे हैं, और भारत का नैतिक और कानूनी दायित्व है कि वह उन्हें नागरिकता का मार्ग प्रदान करे।
  • प्राकृतिकीकरण प्रक्रिया: श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के लिये निवास (प्राकृतिकीकरण) और एकीकरण के आधार पर भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाना।
  • मानवीय दृष्टिकोण: सरकार को भारतीय मूल के तमिलों की गरिमा और अधिकारों को बहाल करने के लिये कानूनी तकनीकीताओं से परे जाकर दयालु और मानवीय रुख अपनाना चाहिये।
    • शरणार्थी शिविरों में यौन और लिंग आधारित हिंसा को रोकने के लिये कमज़ोर समूहों के लिये इथियोपिया में UNHCR के "सेफ फ्रॉम द स्टार्ट" जैसे कार्यक्रमों को लागू करने की आवश्यकता है।
  • सुलह: सामाजिक सामंजस्य बढ़ाने के लिये शरणार्थियों और स्थानीय समुदायों के बीच संवाद और शांति-निर्माण प्रयासों को बढ़ावा देना।

और पढ़ें: श्रीलंका में तमिलों का मुद्दा

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न:  भारत में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के समक्ष आने वाली कानूनी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। उनकी राज्यविहीनता उनके बुनियादी अधिकारों और सेवाओं तक पहुँच को कैसे प्रभावित करती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)

कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित समुदाय  -  किसके  मामलों में 

  1. कुर्द                                                -    बांग्लादेश 
  2.  मधेसी                                            -     नेपाल  
  3.  रोहिंग्या                                           -     म्याँमार  

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3 

उत्तर: (c) 


मेन्स:

प्रश्न. अवैध सीमा पार प्रवास भारत की सुरक्षा के लिये कैसे खतरा उत्पन्न करता है? इस तरह के प्रवासन को बढ़ावा देने वाले कारकों को उजागर करते हुए इसे रोकने के लिये रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2014)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2