वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ का दूसरा शिखर सम्मेलन | 23 Nov 2023

प्रिलिम्स के लिये:

वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट, G20 शिखर सम्मेलन, G-77, ब्रांट लाइन, लॉस एंड डैमेज फंड, संयुक्त राष्ट्र, IMF, विश्व बैंक, SAARC, आसियान, बिम्सटेक (BIMSTEC)

मेन्स के लिये:

ग्लोबल साउथ का पुनरुत्थान, ग्लोबल साउथ की आवाज़ के रूप में भारत के लिये चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

भारत ने हाल ही में वर्चुअल तरीके से आयोजित अपना दूसरा 'वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मलेन' (VOGSS) संपन्न किया। यह शिखर सम्मेलन जनवरी 2023 में उद्घाटन शिखर सम्मेलन के बाद संपन्न हुआ, जो राष्ट्रों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देने तथा ग्लोबल साउथ में अपने नेतृत्व को सशक्त करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शता है।

दूसरे VOGSS की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • थीम: उद्घाटन सत्र 'टूगैदर, फॉर एवरीवन्‍स ग्रोथ, विद एवरीवन्‍स ट्रस्‍ट' पर केंद्रित था, जबकि समापन सत्र में 'ग्लोबल साउथ: टुगेदर फॉर वन फ्यूचर' पर ज़ोर दिया गया।
  • शिखर सम्मेलन का उद्देश्य: भारत द्वारा आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के परिणामों का प्रसार करना तथा विकासशील देशों के हितों पर विशेष ध्यान देने के साथ G20 निर्णयों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये निरंतर गति सुनिश्चित करना।
  • प्रमुख परिणाम:
    • ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस 'दक्षिण': इस पहल का उद्घाटन भारतीय प्रधानमंत्री ने किया, जिसका उद्देश्य ज्ञानकोश तथा थिंक टैंक के रूप में कार्य करके विकासशील देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है।
    • विषयगत चर्चाएँ: मंत्रिस्तरीय सत्रों में सतत् विकास लक्ष्य, ऊर्जा परिवर्तन, जलवायु वित्त, डिजिटल परिवर्तन, महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास, आतंकवाद रोधी तथा वैश्विक संस्थान में सुधार सहित विषयों की एक विस्तृत शृंखला पर चर्चा हुई।
    • इज़रायल-हमास संघर्ष के बीच संयम बरतने का आह्वान: भारत ने इज़रायल-हमास संघर्ष से प्रभावित नागरिकों की दुर्दशा को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की।
      • उन्होंने सभी संबंधित पक्षों को संयम बरतने, निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने तथा तनाव कम करने की दिशा में कार्य करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
    • ग्लोबल साउथ के लिये 5 ‘Cs’: भारत ने ग्लोबल साउथ के लिये 5 ‘Cs’ का भी आह्वान किया, जिसमें परामर्श (Consultation), सहयोग (Cooperation), संचार (Communication), रचनात्मकता (Creativity) एवं क्षमता निर्माण (Capacity Building) शामिल हैं।

ग्लोबल साउथ क्या है?

  • परिचय
    • ग्लोबल साउथ, जिसे अमूमन पूर्णतः भौगोलिक अवधारणा के रूप में गलत समझा जाता है, भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक तथा विकासात्मक कारकों पर आधारित विविध देशों को संदर्भित करता है।
      • हालाँकि यह मात्र अवस्थिति द्वारा परिभाषित नहीं है, यह मोटे तौर पर विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाले देशों का प्रतिनिधित्व करता है।
      • ग्लोबल साउथ में शामिल कई देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं, जैसे- भारत, चीन तथा अफ्रीका के अर्द्ध उत्तरी हिस्से में स्थित सभी देश।
        • जबकि, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड जो दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं, ग्लोबल साउथ में शामिल नहीं हैं।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • ब्रांट लाइन (Brandt Line): यह रेखा 1980 के दशक में पूर्व जर्मन चांसलर विली ब्रांट द्वारा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर उत्तर-दक्षिण विभाजन के दृश्य चित्रण के रूप में प्रस्तावित की गई थी।
      • यह रेखा वैश्विक आर्थिक विभाजन का प्रतीक है, जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को छोड़कर, अफ्रीका, मध्य पूर्व, भारत एवं चीन के कुछ हिस्सों को कवर करते हुए महाद्वीपों में टेढ़ी-मेढ़ी होती जा रही है।
    • G-77: वर्ष 1964 में 77 देशों का समूह (G-77) तब अस्तित्व में आया जब इन देशों ने जिनेवा में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के पहले सत्र के दौरान एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
      • G-77 उस समय विकासशील देशों का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन बन गया।

  • ग्लोबल साउथ का पुनरुत्थान:
    • आर्थिक गतिशीलता:
      • कोविड-19 के कारण आर्थिक असंतुलन: महामारी ने मौजूदा आर्थिक असमानताओं को बढ़ा दिया, सीमित स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे, बाधित आपूर्ति शृंखलाओं और लॉकडाउन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों पर भारी निर्भरता के कारण इसने ग्लोबल साउथ देशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
      • व्यापार और आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव: महामारी के बाद तथा रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे हालिया भू-राजनीतिक संघर्षों के संदर्भ में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्मूल्यांकन ने उत्पादन केंद्रों को फिर से स्थापित करने पर चर्चा शुरू की, जिससे कुछ ग्लोबल साउथ अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्गठन तथा अपनी भूमिकाओं को बढ़ाने का अवसर मिला।
    • भू-राजनीतिक वास्तविकताएँ:
      • ग्लोबल साउथ की सामूहिक आवाज़ ने G20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लोकप्रियता हासिल की, जिससे शक्ति की गतिशीलता में बदलाव आया और उनके दृष्टिकोण तथा हितों पर अधिक ध्यान देने के विचार को बढ़ावा मिला।
    • पर्यावरण एवं जलवायु प्रभाव:
      • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता: ग्लोबल साउथ जलवायु परिवर्तन से असमान रूप से प्रभावित है, जिससे जलवायु अनुकूलन, लचीलापन-निर्माण और न्यायसंगत वैश्विक जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता पर चर्चा चल रही है।
      • नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् विकास: ग्लोबल साउथ के अंतर्गत सतत् विकास लक्ष्यों, नवीकरणीय ऊर्जा निवेश और पर्यावरण संरक्षण पहल पर ज़ोर दिये जाने से इसने वैश्विक समर्थन एवं ध्यान आकर्षित किया।

कौन-सा साक्ष्य ग्लोबल साउथ के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है?

  • मिस्र में COP27 के दौरान 'लॉस एंड डैमेज फंड' की स्थापना ने ग्लोबल साउथ के सामने आने वाले अनुपातहीन भार को उजागर किया।
  • जापान के G7 शिखर सम्मेलन ने अधिक समावेशी संवाद को बढ़ावा देते हुए भारत और ब्राज़ील जैसे देशों को शामिल करने का सराहनीय प्रयास किया।
  • ब्रिक्स के 11 सदस्यों तक इसके विस्तार से ग्लोबल साउथ के साथ जुड़ाव बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया।
  • क्यूबा में G-77 शिखर सम्मेलन महत्त्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिये कई विकासशील देशों को सफलतापूर्वक एक साथ लेकर आया।
  • G20 में 55 देशों वाले अफ्रीकी संघ का शामिल होना अफ्रीकी देशों के वैश्विक महत्त्व और वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में उनके बहुमूल्य योगदान की बढ़ती मान्यता का प्रतीक है।

वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ के रूप में भारत के लिये क्या चुनौतियाँ हैं?

  • भिन्न हितों को संबोधित करना: ग्लोबल साउथ में विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, आर्थिक संरचनाओं और भू-राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं वाले देश शामिल हैं। व्यापार, जलवायु परिवर्तन तथा सुरक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों पर एकीकृत रुख प्रस्तुत करने के लिये इन मतभेदों में सामंजस्य बिठाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • शक्ति विषमता पर काबू पाना: ग्लोबल साउथ में अल्प विकसित देशों के साथ-साथ भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरती हुई शक्तियाँ भी शामिल हैं
    • इस समूह के भीतर शक्ति की गतिशीलता को संतुलित करना और समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि मज़बूत राष्ट्र छोटे, कम प्रभावशाली देशों पर हावी हो सकते हैं।
  • वैश्विक शक्तियों के साथ बातचीत: वैश्विक शक्तियों के प्रभुत्व के बीच ग्लोबल साउथ के हितों का समर्थन करने के लिये कुशल रणनीतिक वार्ता की आवश्यकता होती है। भारत को अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी स्थापित शक्तियों के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि ग्लोबल साउथ के मत को वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सुना और माना जाता है।
  • संसाधन की कमी: भारत को ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधि के रूप में भूमिका के साथ अपनी  विकासात्मक प्रयासों को संतुलित करने की आवश्यकता है। ग्लोबल साउथ देशों के भीतर सीमित संसाधन और प्रतिस्पर्द्धी घरेलू प्राथमिकताएँ प्रायः भारत के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।

आगे की राह 

  • क्षेत्रीय गठबंधनों को मज़बूत करना: क्षेत्रीय चुनौतियों का सामूहिक रूप से समाधान करने, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने के लिये  SAARC, आसियान, बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय समूहों के भीतर मज़बूत गठबंधन बनाना।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग को सुगम बनाना: प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सतत् विकास जैसे क्षेत्रों में एक-दूसरे की शक्ति का लाभ उठाते हुए, ग्लोबल साउथ देशों के बीच सहयोग एवं ज्ञान के साझाकरण को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक शासन में समानता का समर्थन: ग्लोबल साउथ के लिये निष्पक्ष प्रतिनिधित्व और अधिक निर्णय लेने की शक्ति सुनिश्चित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र, IMF, विश्व बैंक जैसी वैश्विक शासन संरचनाओं में सुधारों पर ज़ोर देना।
  • जलवायु परिवर्तन और स्थिरता को संबोधित करना: भारत टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने तथा ग्लोबल साउथ देशों की विकास संबंधी ज़रूरतों पर विचार करते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वैश्विक प्रयासों का समर्थन करने में उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. ‘उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है’। विस्तार से समझाइये। (2019)