केंद्र के खिलाफ राज्यों की बढ़ती अपील से सर्वोच्च न्यायालय चिंतित | 13 Apr 2024
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF), आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष मेन्स के लिये:आपदा प्रबंधन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, राज्य उधार लेने की शक्ति, केंद्र-राज्य संबंध |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों द्वारा केंद्र के खिलाफ उसके पास जाने के लिये मजबूर होने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है।
किन मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी दी?
- तमिलनाडु:
- तमिलनाडु ने केंद्र पर लगभग 38,000 करोड़ रुपए की आपदा राहत निधि में देरी करके राज्य की ज़रूरतों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया।
- केरल:
- केरल ने सीधे सर्वोच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया, जिसमें केंद्र पर उसकी 'नेट बॉरोइंग सीलिंग' (2023-24 के लिये अनुमानित सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 3% के रूप में निर्धारित) में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया, जिससे राज्य को वित्तीय आपातकाल की ओर अग्रसर कर दिया गया।
- कर्नाटक:
- मानवीय संकट से निपटने के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (National Disaster Response Fund- NDRF) के तहत कर्नाटक का ₹18,171.44 करोड़ का अनुरोध छह महीने से अनुत्तरित है।
- राज्य का तर्क है कि केंद्र की निष्क्रियता न केवल आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती है, बल्कि भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत राज्य के लोगों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करती है, जिसमें समानता और जीवन का अधिकार भी शामिल है।
- राज्य गंभीर सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है, जिससे वर्षा में भारी कमी हो रही है, जिससे लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है।
राज्यों द्वारा राजस्व उधार लेने और केंद्र के साथ विवाद निपटारे हेतु संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- अनुच्छेद 293:
- इस अनुच्छेद के प्रावधानों के अधीन, किसी राज्य की कार्यकारी शक्ति, भारत के क्षेत्र के अंतर्गत राज्य की संचित निधि की सुरक्षा पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हो, ऋण लेने तक विस्तारित है, जो समय-समय पर विधायिका द्वारा तय की जा सकती हैं।
- भारत सरकार संसद द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन राज्यों को ऋण दे सकती है या गारंटी प्रदान कर सकती है।
- यदि भारत सरकार के पिछले ऋण का कोई हिस्सा बकाया रहता है तो राज्य भारत सरकार की सहमति के बिना ऋण नहीं उठा सकते हैं।
- यदि आवश्यक हो तो भारत सरकार द्वारा शर्तों के साथ उधार लेने की सहमति दी जा सकती है।
- अनुच्छेद 131:
- यह सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार से संबंधित है। इसका मतलब यह है कि यह सर्वोच्च न्यायालय को निम्नलिखित के बीच विवादों को सीधे सुनने और निर्णय लेने का अधिकार देता है:
- केंद्र सरकार और एक या अधिक राज्य सरकारें।
- दो या दो से अधिक राज्य सरकारें।
- अनिवार्य रूप से यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच या स्वयं विभिन्न राज्य सरकारों के बीच असहमति में रेफरी/निर्णायक के रूप में कार्य करता है।
- यह सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार से संबंधित है। इसका मतलब यह है कि यह सर्वोच्च न्यायालय को निम्नलिखित के बीच विवादों को सीधे सुनने और निर्णय लेने का अधिकार देता है:
भारत की शासन व्यवस्था में केंद्र-राज्य संबंध |
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अवस्था |
संवैधानिक प्रावधान |
प्रमुख विशेषताएँ |
विधायी संबंध |
अनुच्छेद 245 से 255 |
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प्रशासनिक संबंध |
अनुच्छेद 256 से 263 |
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वित्तीय संबंध |
अनुच्छेद 264 से 293 |
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राज्यों के लिये आपदा बहाली योजनाओं में केंद्र सरकार की क्या भूमिका है?
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005:
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 आपदा प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और स्थानीय स्तर पर संस्थागत, कानूनी, वित्तीय एवं समन्वय तंत्र निर्धारित करता है।
- यह अधिनियम आपदा प्रबंधन प्रयासों की देखरेख और कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) एवं राज्य तथा ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण जैसे विभिन्न प्राधिकरणों व समितियों की स्थापना को अनिवार्य करता है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को आपदा प्रबंधन में सुविधा या सहायता के लिये NDMA, राज्य सरकारों/SDMA, या उनके किसी भी अधिकारी/कर्मचारी को निर्देश जारी करने का अधिकार देता है।
- वित्त आयोग आपदा प्रतिक्रिया के साथ-साथ आपदा शमन के लिये धन के निर्माण की सिफारिश करता है, जिसे अब एक साथ राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (NDRMF) और राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (SDRMF) कहा जाएगा।
- 15वें वित्त आयोग ने वर्ष 2021-26 की अवधि के लिये राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (NDMF) की सिफारिश की, तथा NDMF के साथ-साथ राज्य DMF की स्थापना की गई है।
- SDMF में केंद्र व राज्य दोनों सरकारों द्वारा योगदान दिया जाता है, सामान्य राज्यों के लिये 75:25 अनुपात और पूर्वोत्तर तथा हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 अनुपात निर्धारित होता है।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 आपदा प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और स्थानीय स्तर पर संस्थागत, कानूनी, वित्तीय एवं समन्वय तंत्र निर्धारित करता है।
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF):
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गठित SDRF, अधिसूचित आपदाओं की प्रतिक्रिया के लिये राज्य सरकारों के पास उपलब्ध प्राथमिक निधि है।
- केंद्र सरकार सामान्य श्रेणी के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये SDRF आवंटन का 75% तथा विशेष श्रेणी के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर) के लिये 90% का योगदान करती है।
- वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार वार्षिक केंद्रीय योगदान दो समान किश्तों में जारी किया जाता है।
- SDRF का उपयोग केवल पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने के व्यय को पूरा करने के लिये किया जाएगा।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गठित SDRF, अधिसूचित आपदाओं की प्रतिक्रिया के लिये राज्य सरकारों के पास उपलब्ध प्राथमिक निधि है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF):
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 के तहत स्थापित NDRF, खतरनाक स्थितियों या आपदाओं के दौरान आपातकालीन प्रतिक्रिया, राहत और पुनर्वास को संबोधित करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा प्रबंधित एक कोष है।
- यह गंभीर प्रकृति की आपदा की स्थिति में राज्य के SDRF को पूरक बनाता है, बशर्ते SDRF में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध न हो।
- इस कोष को भारत सरकार के "सार्वजनिक खाते" में "ब्याज न देने वाली आरक्षित कोष" के अंतर्गत रखा जाता है, जिससे सरकार इसे संसदीय अनुमोदन के बिना उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
- NDRF को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क के अधीन विशिष्ट वस्तुओं पर लगाए गए उपकर के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है, जिसे वित्त विधेयक के माध्यम से वार्षिक तौर पर मंज़ूरी दी जाती है।
- NDRF आवंटन से परे अतिरिक्त कोषीय आवश्यकताओं को सामान्य बजटीय संसाधनों के माध्यम से पूर्ण किया जाता है, जिससे आपदा राहत प्रयासों के लिये निरंतर समर्थन सुनिश्चित होता है।
- कोष के उपयोग की निगरानी NDMA की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC) द्वारा की जाती है, जिसमें पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा वार्षिक ऑडिट किया जाता है।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 के तहत स्थापित NDRF, खतरनाक स्थितियों या आपदाओं के दौरान आपातकालीन प्रतिक्रिया, राहत और पुनर्वास को संबोधित करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा प्रबंधित एक कोष है।
वित्तीय सहायता के संवितरण के संबंध में राज्यों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
- विलंबित एवं अपर्याप्त आपदा राहत:
- आपदा प्रबंधन निधि (NDRF तथा SDRF) के वितरण में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय का अभाव।
- आपदा सहायता की मात्रा निर्धारित करने में केंद्र के एकतरफा निर्णय लेने पर चिंता।
- राज्यों को आपदा राहत एवं पुनर्वास सहायता की मात्रा निर्धारित करने के लिये केंद्र के पास स्पष्ट, पारदर्शी और उद्देश्यपूर्ण मानदंडों का अभाव।
- आपदा सहायता पर केंद्र के निर्णयों को चुनौती देने के लिये राज्यों के पास पर्याप्त संस्थागत तंत्र का अभाव।
- आपदा प्रबंधन निधि (NDRF तथा SDRF) के वितरण में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय का अभाव।
- केंद्र-राज्य आपदा प्रबंधन ढाँचे में असंतुलन:
- आपदा प्रबंधन शक्तियों एवं निर्णय लेने के अधिकार के संदर्भ में केंद्र के पास अति-केंद्रीकरण।
- NDMA के केंद्र पर अत्यधिक निर्भर होने तथा राज्यों के प्रभावी प्रतिनिधित्व की कमी को लेकर चिंताएँ हैं।
- राज्यों के पास अपने स्थानीय संदर्भों एवं प्राथमिकताओं के अनुसार, आपदा प्रतिक्रिया तथा शमन उपायों को अनुकूलित करने हेतु लचीलेपन का अभाव है।
- केंद्रीकृत योजना:
- केंद्रीकृत योजना हमेशा प्रत्येक राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रख सकती है, जिससे आपदाओं अथवा सहायता की आवश्यकता वाली अन्य स्थितियों की प्रतिक्रिया में अक्षमताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- केंद्रीकृत योजना हमेशा प्रत्येक राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रख सकती है, जिससे आपदाओं अथवा सहायता की आवश्यकता वाली अन्य स्थितियों की प्रतिक्रिया में अक्षमताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- राजनीतिक गतिशीलता:
- केंद्र सरकार तथा राज्यों के बीच राजनीतिक गतिशीलता एवं संबंधों में सहायता वितरण को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे कभी-कभी पूर्वाग्रह अथवा पक्षपात के आरोप भी लग सकते हैं।
- परामर्श का अभाव:
- केंद्र पर प्राय: नीतियों तथा योजनाओं को तैयार करते समय राज्यों से परामर्श नहीं करने का आरोप लगाया जाता है, जिससे योजनाओं के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- केंद्र द्वारा राज्यों की सहमति के बिना उन पर एकतरफा निर्णय थोपना भी उदाहरण टकराव का एक स्रोत रहे हैं।
- केंद्र और राज्यों के बीच नियमित संवाद एवं विवाद समाधान हेतु प्रभावी संस्थागत मंचों का अभाव।
- बढ़ती प्रतिस्पर्द्धात्मक एवं प्रतिकूल राजनीति के सामने संघीय भावना तथा सहयोगात्मक दृष्टिकोण का कमज़ोर होना।
आगे की राह
- कराधान शक्तियों एवं राजस्व बँटवारे की समीक्षा करके, राजकोषीय असंतुलन को दूर करके राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देना।
- केंद्र और राज्यों के बीच नियमित संवाद एवं आम सहमति बनाने के लिये संस्थागत मंचों को पुनर्जीवित करना। केंद्र-राज्य विवादों को संबोधित करने हेतु सहयोगात्मक नीति निर्धारण तथा प्रभावी विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देना।
- आपदा राहत निधि एवं सहायता उपयोग हेतु निर्णय लेने में पारदर्शिता में सुधार करना। निधि के गबन तथा भेदभाव को रोकने के लिये लेखापरीक्षा एवं निरीक्षण बढ़ाना।
- एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति को बढ़ावा देना जो पक्षपातपूर्ण एजेंडे पर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देती है तथा केंद्र और राज्य स्तरों के बीच सहयोग एवं पारस्परिक सम्मान बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है। प्रभावी शासन तथा न्यायसंगत विकास के लिये सहकारी संघवाद के महत्त्व के बारे में नागरिकों को शिक्षित करती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. राजनीतिक गतिशीलता एवं अपर्याप्त परामर्श संकट के समय केंद्र-राज्य को सहयोग करने से कैसे रोकते हैं, और अधिक सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करने के लिये क्या बदलाव किये जाने चाहिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं है? (2017) (a) भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है। उत्तर: (d) प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है: (2017) (a) संघवाद का उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. पहले के प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण से हटकर भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन हेतु शुरू किये गए हालिया उपायों की चर्चा कीजिये। (2020) प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में उत्तराखंड के कई स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016) |