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सामाजिक न्याय

महिला जनप्रतिनिधियों के सशक्तीकरण हेतु सर्वोच्च न्यायालय का आह्वान

  • 29 Nov 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचित महिला प्रतिनिधि, पंचायती राज संस्थाएँ, प्रधान-पति, स्वयं सहायता समूह, शहरी स्थानीय निकाय, परिसीमन अभ्यास

मेन्स के लिये:

भारत में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण, महिला जनप्रतिनिधियों के लिये शासन सुधार, भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को सशक्त बनाने और उनकी स्वायत्तता की रक्षा के लिये शासन सुधारों का आह्वान किया है। इसने प्रणालीगत लैंगिक पूर्वाग्रह, नौकरशाही के अतिक्रमण और भेदभावपूर्ण प्रथाओं को उज़ागर किया जो नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं को कमज़ोर करते हैं। 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने शासन में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये आत्मनिरीक्षण और संरचनात्मक परिवर्तन का आग्रह किया।

शासन में महिला जनप्रतिनिधियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • प्रणालीगत भेदभाव: भारत की पंचायती राज संस्थाओं (PRI) की निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों (EWR) को प्रायः नौकरशाहों के अधीनस्थ माना जाता है, जो अक्सर उनकी वैधता की अनदेखी करते हैं। 
    • नौकरशाह अपनी भूमिका का अतिक्रमण कर सकते हैं, निर्वाचित प्रतिनिधियों से परामर्श किये बिना एकतरफा निर्णय ले सकते हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमज़ोर हो सकती है।
    • यह शक्ति असंतुलन निर्वाचित प्रतिनिधियों, विशेषकर महिलाओं की निर्णय लेने की क्षमता को बाधित करता है।
  • सरपंच-पतिवाद: इसे प्रधान-पति के नाम से भी जाना जाता है, यह प्रथा जिसमें निर्वाचित महिला पंचायत नेताओं के पति सत्ता का प्रयोग करते हैं, जिससे महिलाओं की स्वायत्तता और नेतृत्व कमज़ोर होता है। यह पितृसत्ता को मज़बूत करता है और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये 73 वें संविधान संशोधन (पंचायतों में महिलाओं के लिये आरक्षण) के इरादे को कमज़ोर करता है।
  • इसे प्रधान-पति के नाम से भी जाना जाता है, यह पंचायतों में अपनाई जाने वाली एक प्रथा है, जहाँ पुरुष प्रायः वास्तविक राजनीतिक और निर्णय लेने की शक्ति का प्रयोग करते हैं, जबकि निर्वाचित महिला प्रतिनिधि सरपंच या प्रधान का पद धारण करती हैं, जिसके कारण महिला जनप्रतिनिधियों के लिये स्वायत्तता में कमी आती है।
  • राजनीतिक बाधाएँ: महिला जनप्रतिनिधियों को अक्सर अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में  सीमित वित्तीय सहायता और कम राजनीतिक संबंधों का सामना करना पड़ता है।
    • राजनीतिक दल महिला उम्मीदवारों को कम संसाधन आवंटित कर सकते हैं, जिससे उनके लिये चुनाव लड़ना और मान्यता प्राप्त करना अधिक कठिन हो जाएगा।
    • इसके अतिरिक्त, सीमित संसाधनों के कारण पंचायती राज संस्थाओं में अधिकांश महिला जनप्रतिनिधि केवल एक ही कार्यकाल के लिये पद पर रहती हैं, जिससे उनकी दोबारा भागीदारी करने की क्षमता में बाधा आती है।
  • हिंसा और धमकी: महिला जनप्रतिनिधियों को धमकियों, उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ सकता है, जो उन्हें अपनी भूमिका पूरी तरह से निभाने से रोक सकता है। 
    • प्रशासनिक अधिकारी और पंचायत सदस्य प्रायः महिला जनप्रतिनिधियों से बदला लेने के लिये एकजुट हो जाते हैं।
  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की उपेक्षा: निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को हटाने से उन्हें निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करके और अस्पष्ट निर्णय लेकर लोकतांत्रिक मानदंडों और निष्पक्षता को कमज़ोर किया जाता है, जिससे शासन में भेदभाव और पक्षपातपूर्ण प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।
  • संरचनात्मक बाधाएँ: विलंबित कार्य आदेश और प्रक्रियात्मक बाधाएँ महिलाओं की विकासात्मक पहल में बाधा डालने के साथ शासन में उनकी भागीदारी को हतोत्साहित करती हैं।

शासन में महिलाओं की भूमिका क्या है?

  • लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: शासन में महिलाओं की भागीदारी दीर्घकालिक लैंगिक असमानताओं को दूर करती है तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में समानता को बढ़ावा देती है।
  • यह उन सामाजिक मानदंडों को चुनौती देकर सार्वजनिक और राजनीतिक क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, जो महिलाओं की भूमिका को निजी क्षेत्र तक सीमित रखते हैं।
  • नीतिगत परिणामों में वृद्धि: महिलाएँ अपने अनुभवों से उत्पन्न विविध दृष्टिकोण लेकर आती हैं, जिससे नीति निर्माण अधिक व्यापक और सहानुभूतिपूर्ण हो जाता है।
    • उदाहरण के लिये, राजस्थान में EWR स्वच्छ भारत अभियान से जुड़ी पहलों और प्लास्टिक के उपयोग पर अंकुश लगाने के प्रयासों के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे स्वच्छ एवं हरित भविष्य में योगदान मिल रहा है।
  • महिला जनप्रतिनिधियों को अक्सर कम भ्रष्ट और अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति अधिक प्रतिबद्ध माना जाता है, जिससे लोक प्रशासन में पारदर्शिता और विश्वास बढ़ता है।
  • उनका समावेशन लैंगिक-संवेदनशील नीतियों के निर्माण को सुनिश्चित करता है, तथा मातृ स्वास्थ्य, कार्यस्थल समानता और शिक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान देता है।
  • ज़मीनी स्तर पर भागीदारी को बढ़ावा देना: स्थानीय प्रशासन में महिलाओं की भागीदारी अन्य महिलाओं को भी ऐसा करने के लिये प्रोत्साहित करती है, जिसके परिणामस्वरूप सशक्तीकरण की एक शृंखला बनती है। इसके अतिरिक्त, स्वयं सहायता समूहों (SHG) के विस्तार का समर्थन करके, यह भागीदारी आजीविका को बढ़ाती है।
  • स्थानीय शासन में भारत की 44% से अधिक EWR की भागीदारी सीट आरक्षण और महिला-केंद्रित नीतियों की सफलता को दर्शाती है।
  • लिंग आधारित हिंसा का समाधान: महिला घरेलू हिंसा, बाल विवाह और अन्य लिंग आधारित मुद्दों का समाधान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • उदाहरण के लिये, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2023 में 2 लाख बाल विवाह पर रोक लगाई गई। विदित है की EWR द्वारा अपने निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा रिपोर्ट किये गए दुर्व्यवहार को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए थे।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन: लोकतांत्रिक मूल्यों में महिलाओं का समर्थन आधे से अधिक आबादी को नीति निर्माण में अपनी बात कहने का अधिकार सुनिश्चित करता है, महिलाओं की भागीदारी लोकतांत्रिक आदर्शों को कायम रखती है। यह राजनीतिक प्रक्रियाओं में समान प्रतिनिधित्व के अधिकार के साथ-साथ सामाजिक निष्पक्षता का भी समर्थन करता है।

भारत के शासन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

  • संसद: लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व वर्ष 2004 तक 5-10% से बढ़कर 18वीं लोकसभा (2024-वर्तमान) में 13.6% हो गया है, जबकि राज्यसभा में यह 13% है।
    • चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 1957 में 45 महिला उम्मीदवारों से बढ़कर वर्ष 2024 में 799 (कुल उम्मीदवारों का 9.5%) हो गई है।
  • राज्य विधानमंडल: राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का राष्ट्रीय औसत सिर्फ 9% है, और किसी भी राज्य में महिला विधायकों की संख्या 20% से अधिक नहीं है। छत्तीसगढ़ में यह आँकड़ा सबसे अधिक 18% है।
  • पंचायती राज संस्था: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की वर्ष 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, पंचायती राज संस्थाओं के कुल प्रतिनिधियों में से 45.6% EWR हैं।
  • शहरी स्थानीय निकाय: भारत में 46% पार्षद महिलाएँ हैं, तथा सक्रिय शहरी स्थानीय निकायों वाले 21 राजधानी शहरों में से 19 में यह संख्या 60% से अधिक है।
  • वैश्विक परिदृश्य: संसद के निम्न सदन के संदर्भ में भारत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 185 देशों में से 143वें स्थान पर है।

शासन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु भारत में कौन से प्रयास किये गए हैं?

  • पंचायतों में आरक्षण: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अनुसार पंचायतों (स्थानीय सरकारी निकायों) में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित की गई हैं, जिनमें अध्यक्ष का पद भी शामिल है।
    • शहरी स्थानीय निकायों में आरक्षण: पंचायतों के समान ही 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा शहरी स्थानीय निकायों (जैसे नगर पालिकाओं) में महिलाओं के लिये एक तिहाई आरक्षण सुनिश्चित किया गया है।
  • महिला आरक्षण अधिनियम, 2023: 106वें संविधान संशोधन (2023) के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है।
  • पहल: 
    • राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA): वर्ष 2018 में शुरू किए गए RGSA का उद्देश्य स्थायी समाधानों को बढ़ावा देने तथा महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये प्रौद्योगिकी एवं संसाधनों का उपयोग करके उत्तरदायी ग्रामीण शासन के क्रम में PRI की क्षमता को मज़बूत करना है।
  • ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP): यह महिला सभाओं सहित बजट, योजना, कार्यान्वयन एवं निगरानी में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

Women_Resevation_ Act

आगे की राह

  • संरचनात्मक सुधार: निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं नौकरशाहों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये शासन ढाँचे को नया स्वरूप देना चाहिये। इसके साथ ही प्रशासनिक शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिये जवाबदेही तंत्र को मज़बूत करना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: महिला जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति एवं सहभागिता की निगरानी हेतु डिजिटल प्लेटफाॅर्म का उपयोग करना चाहिये। महिलाओं से संबंधित मुद्दों को उठाने एवं ज़मीनी स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु मोबाइल एप्लिकेशन का प्रयोग करना चाहिये।
  • महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना: महिला जनप्रतिनिधियों के लिये क्षमता निर्माण पहल को प्रोत्साहित (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) करना चाहिये। उन्हें प्रणालीगत चुनौतियों से निपटने में मदद करने के क्रम में मार्गदर्शन एवं सहायता प्रदान करनी चाहिये।
    • स्वयं सहायता समूहों जैसे मंचों से उम्मीदवारों का चयन करके पंचायत की भूमिकाओं (जैसे, पंचायत सचिव) में महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहिये।
  • समावेशी शासन पद्धतियाँ: सभी स्तरों पर निर्णय लेने वाली संस्थाओं में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहिये। निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों के बीच सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिये।
  • विधिक सुरक्षा उपाय: निर्वाचित प्रतिनिधियों के मामलों में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन हेतु कठोर दंड का प्रावधान करना चाहिये। इसके साथ ही प्रणालीगत उत्पीड़न का समाधान करने के लिये शिकायत निवारण तंत्र विकसित करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: शासन में महिला जनप्रतिनिधियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और राजनीतिक प्रक्रिया में उनकी सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु उपाय बताइये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.1 भारत में महिलाओं के समक्ष समय और स्थान संबंधित निरंतर चुनौतियाँ क्या-क्या हैं? (2019)

प्रश्न.2 विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021)

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