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सामाजिक न्याय

लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियाँ

  • 29 Oct 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs), UNFCCC, पेरिस समझौता, शुद्ध-शून्य उत्सर्जन

मेन्स के लिये:

लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियाँ: आवश्यकता, चुनौतियाँ, सिफारिशें

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सचिवालय की एक नई रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियों में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।

वर्ष 2014 में लैंगिक दृष्टिकोण पर प्रथम UNFCCC लीमा वर्क प्रोग्राम (LWPG) और वर्ष 2019 में LWPG के उन्नत संस्करण को अपनाने के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) सहित सभी रिपोर्टों एवं संचारों में लिंग एकीकरण को महत्त्व मिला है।

नोट:

  • LWPG की स्थापना लैंगिक संतुलन को बढ़ावा देने तथा पेरिस समझौते के कार्यान्वयन में विभिन्न पक्षों एवं सचिवालय के कार्य में लैंगिक विचारों को एकीकृत करने के लिये की गई थी, ताकि लैंगिक संवेदनशील जलवायु नीति एवं कार्रवाई को महत्त्व मिल सके।

Lima Work Programme on gender

इस रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

निष्कर्ष:

  • लैंगिक दृष्टिकोण को महत्त्व देना: पेरिस समझौते के लगभग 81% पक्षकारों ने अब अपने NDCs में लैंगिक दृष्टिकोण को शामिल किया है। 
    • यह वर्ष 2015 की तुलना में एक महत्त्वपूर्ण सुधार है, जब बहुत कम NDCs में लैंगिक दृष्टिकोण का उल्लेख किया गया था।
  • संस्थागत तंत्र को मज़बूत करना: लगभग 62.3% पक्षकारों ने जलवायु कार्रवाई में लैंगिक विचारों को एकीकृत करने के लिये संस्थागत तंत्र को मज़बूत करने के प्रयासों पर प्रकाश डाला है।
  • लैंगिक संतुलन पहल: लगभग 11.5% पक्षकारों ने अनुकूलन प्रयासों (विशेष रूप से कृषि, वानिकी और जल संसाधनों के क्षेत्र में) की निगरानी एवं मूल्यांकन में शामिल हितधारक समूहों के बीच लैंगिक संतुलन और विविधता को बढ़ाने के उद्देश्य से संबंधित पहल की विस्तृत जानकारी दी है।

लैंगिक संवेदनशीलता की आवश्यकता:

  • लैंगिक समानता के प्रति प्रतिबद्धता: लगभग 55.7% पक्षकारों ने जलवायु कार्रवाई में लैंगिक समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है, जो इसके महत्त्व को दर्शाता है।
  • खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस प्रकार जलवायु परिवर्तन से उपलब्धता, पहुँच, उपयोग एवं स्थिरता के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
    • विकासशील देशों में खाद्य उत्पादन में 45-80% की हिस्सेदारी रखने वाली महिलाएँ इससे असमान रूप से प्रभावित होती हैं क्योंकि इससे खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ जाती हैं।
  • भेद्यता पर विचार: इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के प्रति महिलाओं की बढ़ती संवेदनशीलता पर बल दिया गया है, इसमें यह भी कहा गया है कि संवेदनशील परिस्थितियों में रहने वाले पुरुषों को अक्सर नीति नियोजन में नज़रअंदाज किया जाता है।

सिफारिशें एवं भविष्य के पहलू:

  • जलवायु पहलों को बढ़ावा देना: हितधारकों का मानना ​​है कि जलवायु पहलों की महत्त्वाकांक्षा और प्रभावशीलता में सुधार के लिये लैंगिक-संवेदनशील रणनीतियों को अपनाना आवश्यक है। 
    • अधिकांश पक्षों ने जलवायु कार्रवाई के मूलभूत पहलू के रूप में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।
  • वैश्विक समीक्षा परिणाम: UNFCCC के पक्षकारों के 28 वें सम्मेलन में प्रथम वैश्विक समीक्षा के परिणाम, पक्षकारों को लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियों और कार्यों को लागू करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
  • NDC का अगला दौर (NDC 3.0): वर्ष 2025 में NDC की आगामी प्रस्तुति लैंगिक समानता और प्रभावी जलवायु परिणामों को प्राप्त करने की दिशा में सहयोगात्मक प्रयासों को मज़बूत करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है।

भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC)

  • भारत ने वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • अद्यतन NDC वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने के भारत के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • वर्ष 2021-2030 की अवधि में स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के लिये एक नए ढाँचे का उद्देश्य हरित क्षेत्र में नौकरियों को बढ़ाना, इलेक्ट्रिक वाहनों और कम उत्सर्जन वाले उत्पादों के विनिर्माण को बढ़ावा देना और हरित हाइड्रोजन जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना है।
  • देश मज़बूत अनुकूलन लक्ष्यों के लिये प्रतिबद्ध है। 
    • इससे जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों पर केंद्रित विकास कार्यक्रमों में निवेश बढ़ेगा।
  • भारत अत्याधुनिक जलवायु प्रौद्योगिकी के त्वरित प्रसार के लिये क्षमता निर्माण करेगा।

जलवायु कार्रवाई में लैंगिक समानता का क्या महत्त्व है?

  • कृषि पर प्रभाव: महिलाएँ कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं लेकिन संसाधनों, सेवाओं और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं तक उनकी समान पहुँच नहीं है। 
    • यदि महिला किसानों को पुरुषों के समान संसाधनों तक पहुँच प्राप्त हो तो कृषि उपज में 20-30% की वृद्धि हो सकती है जिससे संभवतः 100-150 मिलियन लोगों की भुखमरी कम हो सकती है तथा वर्ष 2050 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 2.1 गीगाटन की कमी आ सकती है।
  • भूमि स्वामित्व और संसाधन नियंत्रण: वैश्विक कृषि कार्यबल में महिलाएँ एक तिहाई हैं लेकिन भूस्वामियों में उनकी हिस्सेदारी केवल 12.6% है। 
    • यह असमानता कृषि सहायता तक उनकी पहुँच को सीमित करती है तथा अनुकूलन तकनीकों एवं फसल पैटर्न के बारे में सीमित जानकारी के कारण उनकी भेद्यता में वृद्धि होती है।
  • निर्णय-निर्माण एवं जलवायु नेतृत्व: जलवायु संबंधी निर्णय-निर्माण में महिलाओं को शामिल करना प्रभावी जलवायु नीतियाँ बनाने के लिये आवश्यक है। 
    • हालांकि महिलाएँ अक्सर वैश्विक स्तर पर 75% अवैतनिक देखभाल कार्य में संलग्न हैं। जलवायु-प्रेरित आपदाओं से महिलाओं पर अधिक भार पड़ता है।
  • शिक्षा और रोजगार पर प्रभाव: जलवायु संबंधी तनाव से महिलाओं के लिये शिक्षा एवं श्रम बाज़ार तक पहुँच सीमित हो सकती है।
    • आपदा की स्थिति में लिंग आधारित हिंसा का जोखिम बढ़ जाता है, जिससे गुणवत्तापूर्ण सेवाओं तक पहुँच और निर्णय लेने में सार्थक भागीदारी की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।

लिंग-संवेदनशील जलवायु कार्रवाई के उदाहरण

  • भूटान: इसने लैंगिक समानता एवं जलवायु परिवर्तन पहलों के समन्वय एवं कार्यान्वयन के लिये विभिन्न मंत्रालयों और महिला संगठनों में लैंगिक दृष्टिकोण को महत्त्व दिया है।
  • ज़िम्बाब्वे: इसने महिलाओं के लिये उद्यमिता के अवसर सृजित करने के लिये एक नवीकरणीय ऊर्जा कोष की स्थापना की है।
  • उज़्बेकिस्तान: यहाँ एक प्रायोगिक हरित बंधक योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को निम्न-कार्बन ऊर्जा प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराई गई, जिसमें 67% बंधक महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों द्वारा लिये गए।
  • उरुग्वे: इसने लैंगिक समानता पर NDCs के प्रभाव को ट्रैक करने के लिये लिंग-संवेदनशील निगरानी, ​​रिपोर्टिंग और सत्यापन प्रणाली स्थापित की है।

लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियों में सुधार किस प्रकार किया जा सकता है?

  • लिंग विश्लेषण करना: यह आकलन करने से कि जलवायु परिवर्तन पुरुषों एवं महिलाओं को किस प्रकार अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है, संसाधन वितरण और अवसरों में असमानताओं तथा अंतरालों की पहचान करने में सहायक है। 
    • लिंग विश्लेषण से साक्ष्य-आधारित जलवायु नीतियाँ बनाने में मदद मिलती है, जिससे सभी लिंगों की विशिष्ट आवश्यकताओं एवं कमज़ोरियों का पता चलता है।
  • लिंग-संवेदनशील बजट: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये सभी उपलब्ध कौशल, संसाधनों एवं नेतृत्व क्षमताओं को जुटाने के लिये जलवायु कार्रवाई निधि का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • इस बजट दृष्टिकोण से पुरुषों एवं महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन के अलग-अलग प्रभावों पर विचार होता है तथा समावेशी एवं प्रभावशाली जलवायु समाधानों को बढ़ावा मिलता है।
  • लैंगिक समानता उद्देश्यों को एकीकृत करना: लैंगिक समानता लक्ष्यों के साथ संरेखित जलवायु नीतियों से जलवायु संकट से निपटने एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक संरचनात्मक परिवर्तन प्राप्त करने की अधिक संभावना है। 
    • लिंग आधारित कमज़ोरियों के मूल कारणों का समाधान करने से अधिक अनुकूल समुदाय एवं धारणीय जलवायु परिणाम मिलते हैं।
  • हितधारक सहभागिता में लैंगिक संतुलन को बढ़ावा देना: जलवायु कार्यों की निगरानी एवं मूल्यांकन में लैंगिक विविधता को प्रोत्साहित करने से जलवायु पहलों की समग्र प्रभावशीलता में सुधार हो सकता है। 
    • निर्णय लेने में महिलाओं तथा अन्य कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों को शामिल करने से व्यापक दृष्टिकोण और अनुभवों पर विचार किया जा सकता है।
  • विकासशील और अल्पविकसित देशों (LDCs) को समर्थन देना: विकासशील देशों और LDCs ने जलवायु नीतियों में लैंगिक विचारों को एकीकृत करने में रूचि दिखाई है। 
    • विकसित देशों को लिंग-संवेदनशील जलवायु कार्रवाई के लिये वैश्विक ढाँचे को बढ़ावा देने के क्रम में इस दृष्टिकोण को अपनाना चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीतियों एवं रणनीतियों में लैंगिक समानता को एकीकृत करने के लिये सहयोगात्मक प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: विकासशील एवं विकसित देशों में लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियों के महत्त्व को बताते हुए इसमें लिंग संबंधी विचारों को एकीकृत करने की चुनौतियों की व्याख्या कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)

  1. संघ और राज्य के बजट में पर्यावरणीय लाभों और लागतों को शामिल करते हुए 'ग्रीन एकाउंटिंग' को लागू करना।
  2.  कृषि उत्पादन बढ़ाने हेतु दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत करना ताकि भविष्य में सभी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  3.  अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन द्वारा वन आवरण को बहाल करना एवं बढ़ाना तथा जलवायु परिवर्तन का सामना करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि' (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एलाएन्स के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह यूरोपीय संघ की पहल है।
  2.  यह लक्ष्याधीन विकासशील देशों को उनकी विकास नीतियों और बजट में जलवायु परिवर्तन के एकीकृत हेतु तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
  3.  इसका समन्वय विश्व संसाधन संस्थान (WRI) और धारणीय विकास हेतु विश्व व्यापार परिषद (WBCSD) द्वारा किया जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. वहनीय (अफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य हैं। भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)

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