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सामाजिक न्याय

महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व

  • 19 Jul 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आम चुनाव, भारत का निर्वाचन आयोग, परिसीमन आयोग, राजनीतिक दल, आरक्षण

मेन्स के लिये:

संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के मुद्दे और कारण, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, समावेशी विकास, मानव संसाधन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिला आरक्षण अधिनियम, 2023

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

यूनाइटेड किंगडम में हाल ही में संपन्न आम चुनावों में हाउस ऑफ कॉमन्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व रिकॉर्ड 40% देखा गया, जो महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के संदर्भ में अन्य देशों द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण प्रगति को उजागर करता है।

  • इसके विपरीत, भारत की संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व वैश्विक औसत 25% से काफी नीचे है।

भारतीय संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है? 

  • संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: लोकसभा में महिला सदस्यों का प्रतिशत वर्ष 2004 तक 5-10% से बढ़कर वर्तमान 18वीं लोकसभा में 13.6% हो गया है, जबकि राज्यसभा में यह 13% है
    • इसके अलावा, पिछले 15 वर्षों में चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या में भी क्रमिक वृद्धि हुई है।
      • वर्ष 1957 में, केवल 45 महिला उम्मीदवारों ने लोकसभा चुनाव में भाग लिया था; वर्ष 2024 में यह संख्या 799 थी (कुल उम्मीदवारों का 9.5%)।
    • पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक महिला सांसद (11 प्रतिनिधि) निर्वाचित हुई हैं। 18वीं लोकसभा में तृणमूल कॉन्ग्रेस के लोकसभा सांसदों में महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक 38% है।
      • यह वैश्विक औसत लगभग 25% से बहुत कम है

  • राज्य विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का राष्ट्रीय औसत मात्र 9% है तथा किसी भी राज्य में 20% से अधिक महिला विधायक नहीं हैं। 
    • यहाँ तक ​​कि सर्वाधिक प्रतिनिधित्व वाले राज्य छत्तीसगढ़ में भी केवल 18% महिला विधायक हैं।
  • वैश्विक परिदृश्य: संसद के निचले सदन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत 185 देशों में से 143वें स्थान पर है।
    • स्वीडन में 46%, दक्षिण अफ्रीका में 45%, ब्रिटेन में 40% और अमेरिका में 29% महिला सांसद हैं।
    • लैंगिक प्रतिनिधित्व के मामले में भारत, वियतनाम, फिलीपींस, पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से पीछे हैं।

राजनीति में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के क्या कारण हैं?

  • सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ: पितृसत्तात्मक मानदंड और लैंगिक रूढ़िवादिता राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को सीमित करती है। घरेलू ज़िम्मेदारियाँ और परिवार के समर्थन की कमी, साथ ही शिक्षा तथा आर्थिक सशक्तीकरण में असमानताएँ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी बाधाओं में योगदान करती हैं।
  • राजनीतिक दल की गतिशीलता: पुरुष-प्रधान दल अक्सर महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में हिचकिचाते हैं, जिससे उन्हें "सुरक्षित" या "अजेय" सीटों पर उतार दिया जाता है। आंतरिक कोटा या सकारात्मक कार्रवाई नीतियों की कमी महिलाओं की उम्मीदवारी में और बाधा डालती है।
  • चुनाव प्रणाली की चुनौतियाँ: फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम में मज़बूत वित्तीय और संगठनात्मक समर्थन वाले स्थापित पुरुष उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाती है। उच्च चुनाव लागत और राजनीति में अपराधीकरण तथा धनबल का प्रचलन महिलाओं को और अधिक नुकसान पहुँचाता है।
  • संस्थागत और कानूनी बाधाएँ: स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये एक-तिहाई आरक्षण प्रदान करने वाले 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के विलंबित कार्यान्वयन ने महिलाओं के राजनीति में प्रवेश की संभावनाओं को सीमित कर दिया है।
    • महिला आरक्षण विधेयक, जिसमें संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण का प्रस्ताव था, को पारित करने में बार-बार विफलता एक अन्य प्रमुख संस्थागत बाधा है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: प्रमुख दलों द्वारा महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण को अपर्याप्त प्राथमिकता देना तथा महिला आंदोलनों और नागरिक समाज की ओर से निरंतर दबाव का अभाव यथास्थिति को कायम रखता है।

भारतीय संसद में महिला आरक्षण के पक्ष में तर्क क्या हैं?

  • महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाना: वर्तमान में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व वैश्विक औसत लगभग 25% से काफी कम है। 33% आरक्षण इस अंतर को पाटने में मदद करेगा और भारतीय संसद में महिलाओं का अधिक न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा।
  • लैंगिक समानता और समावेशी शासन को बढ़ावा देना: भारत में महिलाओं को राजनीतिक भागीदारी के लिये सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें पितृसत्तात्मक मानदंड, संसाधनों की कमी तथा लिंग आधारित हिंसा शामिल हैं।
    • इसके अलावा, वे भारत की आबादी का लगभग 50% हिस्सा बनाते हैं, लेकिन राजनीतिक निर्णय लेने में उनका प्रतिनिधित्व कम है। उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने से लैंगिक रूप से संवेदनशील नीतियाँ बनेंगी और महिलाओं के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान होगा।
  • लोकतांत्रिक भागीदारी को मजबूत करना: महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने से राजनीति में उनकी सक्रिय भागीदारी को बल मिलेगा, समावेशी लोकतंत्र मज़बूत होगा और महिलाओं तथा बच्चों पर केंद्रित नीतियों की शुरुआत होगी, जिससे मानव विकास में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण के लिये, कई गाँवों में महिला प्रतिनिधियों ने बाल विवाह उन्मूलन, मातृ स्वास्थ्य में सुधार और स्वच्छ पेयजल तक पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारतीय राजनीति में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व को दूर करने हेतु क्या उपाय किये गए हैं?

  • संवैधानिक संशोधन:
    • 73वें और 74वें संविधान संशोधन (1992/1993) द्वारा पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं, जिससे स्थानीय शासन में उनकी भागीदारी बढ़ गई।
    • 106वें संविधान संशोधन (2023) में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है, हालाँकि इसका कार्यान्वयन अगले परिसीमन पर निर्भर है।
      • यह आरक्षण 106वें संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद पहली जनगणना के बाद लागू किया जाएगा, जिसमें परिसीमन प्रक्रिया भी शामिल होगी।
  • महिला आरक्षण विधेयक:
    • वर्ष 1996 में पहली बार पेश किये गए इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण का प्रस्ताव था। कई प्रयासों के बावजूद, प्रमुख दलों के बीच राजनीतिक सहमति की कमी के कारण यह विधेयक पारित नहीं हो सका।
  • राजनीतिक दलों द्वारा महिला उम्मीदवार: भारत में कई राजनीतिक दलों ने चुनावों में अपने उम्मीदवारों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिया है।
    • नाम तमिलर काची (Naam Tamilar Katchi) 50% महिला उम्मीदवारों के साथ सबसे आगे है, इसके बाद लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी 40-40% के साथ दूसरे स्थान पर है।
    • झारखंड मुक्ति मोर्चा, बीजू जनता दल और राष्ट्रीय जनता दल में क्रमशः 33%, 33% तथा 29% महिला प्रतिनिधित्व था।
    • इस बीच समाजवादी पार्टी में 20% और अखिल भारतीय तृणमूल कॉन्ग्रेस में 25% महिला उम्मीदवार थीं।
  • सशक्तीकरण योजनाएँ और कार्यक्रम:
    • महिला शक्ति केंद्र, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और STEP जैसी पहलों का उद्देश्य महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है, लेकिन उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने पर इनका प्रत्यक्ष प्रभाव सीमित ही रहा है।
  • नागरिक समाज और महिला आंदोलन:
    • महिला अधिकार समूहों, कार्यकर्त्ताओं और संगठनों द्वारा अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिये निरंतर वकालत की जा रही है।

WOMEN_Reservation_Act_2023

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं और उन्हें दूर करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.1 भारत में महिलाओं के समक्ष समय और स्थान संबंधित निरंतर चुनौतियाँ क्या-क्या हैं? (2019)

प्रश्न.2 विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021)

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