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भारतीय ज़िला न्यायालयों में स्वच्छता चुनौतियाँ

  • 04 Jan 2024
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, ज़िला न्यायालय स्वच्छता, स्वच्छ भारत मिशन, WHO की जल नीति, स्वच्छता और आरोग्य (WASH), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन हेतु अटल मिशन (AMRUT)

मेन्स के लिये:

भारत में स्वच्छता और स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ 

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों ? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग द्वारा 'स्टेट ऑफ द ज्यूडिशियरी' शीर्षक से प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट ने देश भर के ज़िला न्यायालय परिसरों के भीतर लिंग-विशिष्ट सुविधाओं में असमानताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है। 

  • रिपोर्ट महिलाओं के लिये अलग शौचालयों के अपर्याप्त प्रावधान, सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनों की कमी और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये शौचालयों की अनुपलब्धता पर प्रकाश डालती है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • अपर्याप्त महिला-अनुकूल सुविधाएँ:
    • कुल ज़िला न्यायालय परिसरों के लगभग पाँचवें हिस्से में महिलाओं के लिये पृथक शौचालयों का अभाव है।
    • केवल 6.7% महिला शौचालयों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें उपलब्ध हैं।
  • मौजूदा शौचालयों की चुनौतियाँ:
    • मौजूदा शौचालयों के दरवाज़े प्रायः टूटे हुए होते हैं तथा विद्यार्थियों को अनियमित जल आपूर्ति की समस्या का सामना करना पड़ता है।
    • पुरुष और महिला न्यायाधीश के लिये साझा शौचालय गोपनीयता एवं समानता को लेकर चिंता उत्पन्न करते हैं।
    • न्यायालय के शौचालयों में साफ-सफाई सुनिश्चित करने के लिये न्यायाधीश व्यक्तिगत रूप से सफाईकर्मियों और स्वच्छताकर्मियों को नियुक्त करते हैं।
      • उदाहरण के लिये नगालैंड के पेरेन ज़िले में शौचालयों को साफ करने के लिये कोई रखरखाव की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। स्टाफ सदस्यों को स्वयं शौचालय का रखरखाव सुनिश्चित करना था।
  • समावेशी सुविधाओं का अभाव:
    • अधिकांश ज़िला न्यायालयों में ट्रांसजेंडर कर्मियों के लिये शौचालय नहीं हैं।
    • प्रत्येक न्यायालय परिसर में "लिंग-समावेशी शौचालय" की आवश्यकता है।
      • केरल में ट्रांसजेंडर कर्मियों के शौचालय दिव्यांग कर्मियों के साथ साझा किये जाते हैं।
      • उत्तराखंड में ट्रांसजेंडर कर्मियों के लिये राज्य भर में केवल चार शौचालय हैं।
      • तमिलनाडु के केवल दो ज़िलों, चेन्नई और कोयंबटूर में ऐसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
    • ऐसे शौचालयों का उपयोग करना जो उनकी लिंग पहचान के अनुरूप न हों, ट्रांसजेंडर कर्मियों के लिये असुविधा और उत्पीड़न का कारण बन सकता है।

अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं से उत्पन्न चुनौतियाँ क्या हैं?

  • स्वास्थ्य तथा स्वच्छता संबंधी जोखिम:
    • अपर्याप्त शौचालय सुविधाओं के परिणामस्वरूप अस्वच्छता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य जोखिम का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें संक्रमण तथा हैजा, टाइफाइड एवं पेचिश जैसी बीमारियों के होने की संभावना शामिल है।
    • विशेषकर कम रोशनी वाले अथवा एकांत क्षेत्रों में पृथक शौचालयों की कमी,महिलाओं की  सुरक्षा संबंधी चिंताओं को बढ़ा सकती है जिससे उनके उत्पीड़न की संभावना बढ़ जाती है।
    • गर्भवती महिलाओं तथा वृद्ध व्यक्तियों को साझा शौचालय सुविधाओं तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनकी आवाजाही की सुगमता प्रभावित हो सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों का हनन:
    • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों के उपबंधों के अनुसार स्वच्छता के अधिकार के तहत प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के सभी क्षेत्रों में स्वच्छता तक प्रत्यक्ष तथा सरल पहुँच का अधिकार है, जो सुरक्षित, स्वच्छ, संरक्षित और सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य है और साथ ही गोपनीयता प्रदान करता है एवं गरिमा सुनिश्चित करता है। 
  • मौलिक अधिकार का हनन:
    • वीरेंद्र गौड़ बनाम हरियाणा राज्य (1995) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार की रक्षा करता है तथा उस अधिकार को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये आवश्यक स्वच्छ स्थितियों तक विस्तारित करता है।

न्यायालयों में स्वच्छता सुविधाओं को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?

  • समर्पित संसाधनों का आवंटन: 
    • स्वच्छता रखरखाव के लिये पर्याप्त धनराशि का बजट तैयार करना तथा सफाई एवं रखरखाव के लिये ज़िम्मेदार कर्मचारियों का नियोजन करना। जागरूकता बढ़ाने व मानकों की निगरानी के लिये न्यायालय के अंतर्गत हाइजीन चैंपियन नियुक्त करने पर विचार करना।
      • न्यायालयों में स्वच्छता सुधार परियोजनाओं के लिये धन जुटाने हेतु एक केंद्रीय निकाय के रूप में एक समर्पित संस्थान, नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NJIAI) की स्थापना का सुझाव पूर्व CJI द्वारा दिया गया था।
  • मौजूदा सुविधाओं का उन्नयन:
    • दिव्यांगजनों के लिये स्वच्छता, व्यावहारिकता तथा पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शौचालयों का नवीनीकरण करना। उचित वेंटिलेशन, प्रकाश एवं स्वच्छता संबंधी आवश्यकताएँ जैसे सैनिटरी डिब्बे, साबुन, कागज़ के तौलिये आदि की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  • स्वच्छता संबंधी दिशा-निर्देश जारी करना: 
    • विभिन्न राज्यों तथा न्यायालय स्तरों पर स्थिरता तथा गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए न्यायालयों में स्वच्छता सुविधाओं के लिये राष्ट्रीय मानक निर्धारित करना। इसमें मूल सुविधाओं, पहुँच  हेतु आवश्यकताओं तथा स्वच्छता प्रोटोकॉल के लिये दिशानिर्देश शामिल हो सकते हैं।
  • उपयोगकर्त्ता प्रतिक्रिया को प्रोत्साहन:
    • प्रदत्त स्वच्छता सुविधाओं पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने, कमियों की पहचान करने तथा सुधार का प्रस्ताव देने के लिये न्यायालय में स्वच्छता सुविधाओं के उपयोगकर्त्ताओं के लिये तंत्र स्थापित करना। इसमें सुझाव बॉक्स, सर्वेक्षण अथवा सार्वजनिक बैठकें शामिल की सकती हैं।
      • सुझावों एवं शिकायतों पर त्वरित एवं समयबद्ध कार्यवाही सुनिश्चित करना।

भारत में शौचालय सुविधाओं की स्थिति क्या है?

  • स्वच्छता राज्य के अंतर्गत एक विषय है और इसलिये शौचालय उपलब्ध कराने, व्यवहार परिवर्तन गतिविधियाँ शुरू करने, ठोस तथा तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रदान करने एवं विभिन्न गतिविधियों को बनाए रखने का कार्य राज्यों का है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ( National Family Health Survey- NFHS) के अनुसार, 69.3% घरों में बेहतर शौचालय सुविधाएँ हैं, जो साझा नहीं की जाती हैं।
    • 8.4% परिवारों के पास साझा शौचालय सुविधाओं तक पहुँच है और 2.9% के पास अविकसित शौचालय सुविधाओं तक पहुँच है।
  • NFHS की रिपोर्ट से पता चला है कि 80.7% शहरी परिवारों और 63.6% ग्रामीण परिवारों के पास बेहतर शौचालय सुविधाओं तक पहुँच है।
    • वर्ष 2019-2021 में कुल 19.4% भारतीय परिवारों ने किसी भी शौचालय सुविधा का उपयोग नहीं किया।
      • शहरी क्षेत्रों में सभी घरों में से 6.1% घरों में खुले में शौच किया जाता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या 25.9% तक पहुँच जाती है।
  • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शौचालय की सुविधा तक पहुँच बिहार (केवल 61.2% घरों में उपलब्ध है) में सबसे कम है। बिहार के बाद झारखंड (69.6%) और ओडिशा (71.3%) का स्थान है।
    • लक्षद्वीप में शत-प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध है।

स्वच्छता से संबंधित पहल:

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. "जल, सफाई और स्वच्छता आवश्यकता को लक्षित करने वाली नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ जोड़ना होगा।" ‘वाश’ योजना के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2017)

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