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सामाजिक न्याय

भारत में मोटापे का बढ़ता बोझ

  • 04 Mar 2025
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), बॉडी मास इंडेक्स (BMI), राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5, गैर-संचारी रोग (NCD), अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF), फिट इंडिया मूवमेंट, CSR      

मुख्य परीक्षा के लिये:

मोटापे के बढ़ते मामले, कारण, संबंधित चिंताएँ और आगे की राह

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने, विशेष रूप से बच्चों में मोटापे की बढ़ती समस्या पर चिंता व्यक्त की तथा लोगों से स्वस्थ जीवनशैली अपनाने का आग्रह किया।

मोटापा क्या है?

  • परिचय: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मोटापे अथवा स्थूलता को वसा के असामान्य या अत्यधिक संचय के रूप में परिभाषित करता है जिससे स्वास्थ्य को खतरा होता है। 25 या उससे अधिक बॉडी मास इंडेक्स (BMI), को अधिक वज़न और 30 अथवा उससे अधिक को मोटापे के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • BMI किसी वयस्क के वज़न का स्वस्थ अथवा अस्वस्थ होने का आकलन करने की मूल विधि है, जिसकी गणना किलोग्राम में वज़न को मीटर वर्ग (किलोग्राम/मी²) में व्यक्ति की लंबाई से विभाजित करके की जाती है।
  • मोटापे के आँकड़े:
    • भारत: 
      • NFHS-5: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 (2019-21) के अनुसार, 24% भारतीय महिलाएँ और 22.9% भारतीय पुरुष अधिक वज़न अथवा मोटापे से ग्रस्त हैं।
        • NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर पाँच वर्ष से कम आयु के अधिक वज़न वाले बच्चों का प्रतिशत NFHS-4 (2015-16) के 2.1% से बढ़कर 3.4% हो गया। 
        • अधिक वज़न और मोटापे की दर विभिन्न राज्यों, जेंडरों और ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में 8% से 50% तक भिन्न-भिन्न है।
      • द लैंसेट: भारत में उदरीय मोटापे (कमर की परिधि के आधार पर) की व्यापकता महिलाओं में 40% और पुरुषों में 12% है।
        • 20 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों में, 3 में से 1 (35 करोड़) को उदरीय मोटापा है, 4 में से 1 (25 करोड़) को सामान्य मोटापा है, तथा 5 में से 1 (21 करोड़) को उच्च कोलेस्ट्रॉल है।
    • वैश्विक: वर्ष 1990 से वर्ष 2022 की अवधि में, बच्चों और किशोरों (5 से 19 वर्षीय) में मोटापा 2% से बढ़कर 8% हो गया, जो चार गुना वृद्धि है। 
      • वयस्कों (18+ वर्ष) में यह दर 7% से बढ़कर 16% हो गई।
  • संबद्ध स्वास्थ्य जोखिम: मोटापा सभी रोगों का कारण है जिससे विभिन्न गैर-संचारी रोगों (NCD) का जोखिम अत्यधिक हो जाता है।
    • हृदय संबंधी रोग (C.V.D): भारतीयों को हृदयाघात और उच्च रक्तचाप जैसी सी.वी.डी. का अनुभव अन्य देशों के लोगों की तुलना में कम-से-कम 10 वर्ष पहले होता है।
    • मधुमेह: भारत में मधुमेह के सबसे अधिक मामले (101 मिलियन) हैं, और मोटापा इंसुलिन का प्रतिरोध उत्पन्न करके टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को बढ़ाता है।
    • कैंसर: भारत में मोटापा से संबंधित कैंसर के मामले वर्ष 2022 में 14.6 लाख से बढ़कर 2025 तक 15.7 लाख होने की उम्मीद है।
    • जोड़ों के विकार: अधिक वजन के कारण जोड़ों पर दबाव पड़ता है, जिससे घुटने के पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस और पीठ दर्द जैसे अपक्षयी रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
    • मनोसामाजिक प्रभाव: रोग के भय के कारण बच्चों के आत्म-सम्मान में कमी, अवसाद, चिंता उत्पन्न होती है, तथा स्कूल में उनके प्रदर्शन एवं जीवन की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।
  • आर्थिक निहितार्थ: वर्ष 2019 में, स्वास्थ्य देखभाल व्यय और उत्पादकता की हानि के कारण मोटापे के कारण भारत को 28.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर (प्रति व्यक्ति 1,800 रुपए) या सकल घरेलू उत्पाद का 1.02% का नुकसान हुआ।
    • वर्ष 2030 तक भारत का मोटापे से संबंधित आर्थिक बोझ प्रति व्यक्ति 4,700 रुपए या सकल घरेलू उत्पाद का 1.57% हो सकता है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 मोटापे को एक स्वास्थ्य संबंधी चुनौती के रूप में देखता है तथा अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों (UPF) पर अधिक कर लगाने का सुझाव देता है।

मोटापे के कारण क्या हैं?

  • अस्वास्थ्यकर आहार: उच्च वसा, नमक और चीनी (HFSS) वाले खाद्य पदार्थों का बढ़ता उपभोग, तथा अस्वास्थ्यकर वसा से भरपूर UPF।
  • कम शारीरिक गतिविधियाँ: द लैंसेट के अनुसार, ऑफिस की नौकरी और स्क्रीन पर अधिक समय बिताने जैसी जीवनशैली के कारण लगभग आधे भारतीय अपर्याप्त रूप से सक्रिय रहते हैं।
  • खराब शहरी बुनियादी ढाँचा: ट्रैफिक जाम, हरे भरे स्थान में कमी और यातायात की भीड़ सक्रिय आवागमन को हतोत्साहित करते हैं।
  • वायु प्रदूषण: यह सूजन का कारण बनता है, हृदय-चयापचय संबंधी जोखिम, वसा संचय को बढ़ावा देता है, तथा बाहरी गतिविधियों को हतोत्साहित करता है।
  • सामाजिक-आर्थिक बाधाएँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली मुख्य रूप से मुख्य अनाज (चावल और गेंहूँ) प्रदान करती है, जिससे असंतुलित आहार होता है, जबकि उच्च लागत निम्न आय वर्ग के लिये पौष्टिक भोजन (फल, सब्जियाँ और दालें) को सीमित करती है।
    • चूँकि 40% भारतीयों में पर्याप्त पोषक तत्त्वों की कमी है तथा 55% (78 करोड़) लोग स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते, इसलिये देश "भोजन या कैलोरी की कमी" से "भोजन या कैलोरी किन पर्याप्तता (असमान वितरण के साथ)" की स्थिति में पहुँच गया है।

मोटापे की रोकथाम के लिये सरकार की क्या पहल हैं?

आगे की राह

  • पोषण हस्तक्षेप: भारत के पोषण प्रयासों को 'सुपोषण अभियान' के रूप में पुनः परिकल्पित करना चाहिये, जिसमें अल्पपोषण (अस्वास्थ्यकर भोजन के अत्यधिक उपभोग को कम करना) एवं उचित सूक्ष्मपोषक तत्त्वों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
    • जापान के लोग 80% नियम (हरा हची बू ) का पालन करते हैं, अर्थात वे तब खाना बंद कर देते हैं जब उनका पेट भरने के करीब होता है। भारत में मोटापे की समस्या से निपटने के लिये ऐसी प्रथाओं को अपनाया जा सकता है।
  • जन जागरूकता: मोटापे को केवल एक व्यक्तिगत मुद्दे के रूप में नहीं बल्कि एक लोक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में पहचाना जाना चाहिये।
    • लोक अभियानों में इसके स्वास्थ्य जोखिमों को उजागर करने के साथ अन्य दीर्घकालिक बीमारियों की तरह इसकी रोकथाम, देखभाल एवं प्रबंधन पर बल देना चाहिये।
  • आहार को विनियमित करना: HFSS और UPF पर उच्च कर लगाया जाना चाहिये, जबकि दूध एवं अंडे जैसे स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी देकर उनकी लोकप्रियता बढ़ाई जानी चाहिये।
    • CSR निधि को स्वस्थ खान-पान की आदतों एवं सक्रिय जीवनशैली को बढ़ावा देने हेतु आवंटित किया जाना चाहिये।
  • मोटापे की जाँच: स्वास्थ्य जाँच में ऊँचाई, वज़न तथा कमर की माप अनिवार्य है, विशेष रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) पर, जहाँ डॉक्टर हर परामर्श में मोटापे के जोखिम पर ध्यान देते हैं।
  • स्कूल-आधारित पहल: स्वस्थ भोजन एवं संतुलित आहार के साथ प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के जोखिमों को स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिये।
    • स्कूल कैंटीनों में स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराया जाना चाहिये तथा HFSS खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिये। 
    • जापान के स्कूलों में प्रचलित आहार विशेषज्ञ कार्यक्रमों जैसे वैश्विक मॉडलों को अपनाने के साथ हेल्थ-प्रोमोटिंग स्कूल' पहल को लागू करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में मोटापे की बढ़ती चुनौती एवं इसके कारणों के साथ इसे हल करने के लिये बहु-क्षेत्रीय रणनीति पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL) की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं।  
  2.  परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार का मुखिया होगी। 
  3.  गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छह महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं। 

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2   
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3   
(d) केवल 3  

उत्तर: (b) 


मेन्स

प्रश्न: "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा, सतत् विकास के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021)

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